< মার্কঃ 9 >

1 অথ স তানৱাদীৎ যুষ্মভ্যমহং যথার্থং কথযামি, ঈশ্ৱররাজ্যং পরাক্রমেণোপস্থিতং ন দৃষ্ট্ৱা মৃত্যুং নাস্ৱাদিষ্যন্তে, অত্র দণ্ডাযমানানাং মধ্যেপি তাদৃশা লোকাঃ সন্তি|
अथ स तानवादीत् युष्मभ्यमहं यथार्थं कथयामि, ईश्वरराज्यं पराक्रमेणोपस्थितं न दृष्ट्वा मृत्युं नास्वादिष्यन्ते, अत्र दण्डायमानानां मध्येपि तादृशा लोकाः सन्ति।
2 অথ ষড্দিনেভ্যঃ পরং যীশুঃ পিতরং যাকূবং যোহনঞ্চ গৃহীৎৱা গিরেরুচ্চস্য নির্জনস্থানং গৎৱা তেষাং প্রত্যক্ষে মূর্ত্যন্তরং দধার|
अथ षड्दिनेभ्यः परं यीशुः पितरं याकूबं योहनञ्च गृहीत्वा गिरेरुच्चस्य निर्जनस्थानं गत्वा तेषां प्रत्यक्षे मूर्त्यन्तरं दधार।
3 ততস্তস্য পরিধেযম্ ঈদৃশম্ উজ্জ্ৱলহিমপাণডরং জাতং যদ্ জগতি কোপি রজকো ন তাদৃক্ পাণডরং কর্ত্তাং শক্নোতি|
ततस्तस्य परिधेयम् ईदृशम् उज्ज्वलहिमपाणडरं जातं यद् जगति कोपि रजको न तादृक् पाणडरं कर्त्तां शक्नोति।
4 অপরঞ্চ এলিযো মূসাশ্চ তেভ্যো দর্শনং দত্ত্ৱা যীশুনা সহ কথনং কর্ত্তুমারেভাতে|
अपरञ्च एलियो मूसाश्च तेभ्यो दर्शनं दत्त्वा यीशुना सह कथनं कर्त्तुमारेभाते।
5 তদা পিতরো যীশুমৱাদীৎ হে গুরোঽস্মাকমত্র স্থিতিরুত্তমা, ততএৱ ৱযং ৎৱৎকৃতে একাং মূসাকৃতে একাম্ এলিযকৃতে চৈকাং, এতাস্তিস্রঃ কুটী র্নির্ম্মাম|
तदा पितरो यीशुमवादीत् हे गुरोऽस्माकमत्र स्थितिरुत्तमा, ततएव वयं त्वत्कृते एकां मूसाकृते एकाम् एलियकृते चैकां, एतास्तिस्रः कुटी र्निर्म्माम।
6 কিন্তু স যদুক্তৱান্ তৎ স্ৱযং ন বুবুধে ততঃ সর্ৱ্ৱে বিভযাঞ্চক্রুঃ|
किन्तु स यदुक्तवान् तत् स्वयं न बुबुधे ततः सर्व्वे बिभयाञ्चक्रुः।
7 এতর্হি পযোদস্তান্ ছাদযামাস, মমযাং প্রিযঃ পুত্রঃ কথাসু তস্য মনাংসি নিৱেশযতেতি নভোৱাণী তন্মেদ্যান্নির্যযৌ|
एतर्हि पयोदस्तान् छादयामास, ममयां प्रियः पुत्रः कथासु तस्य मनांसि निवेशयतेति नभोवाणी तन्मेद्यान्निर्ययौ।
8 অথ হঠাত্তে চতুর্দিশো দৃষ্ট্ৱা যীশুং ৱিনা স্ৱৈঃ সহিতং কমপি ন দদৃশুঃ|
अथ हठात्ते चतुर्दिशो दृष्ट्वा यीशुं विना स्वैः सहितं कमपि न ददृशुः।
9 ততঃ পরং গিরেরৱরোহণকালে স তান্ গাঢম্ দূত্যাদিদেশ যাৱন্নরসূনোঃ শ্মশানাদুত্থানং ন ভৱতি, তাৱৎ দর্শনস্যাস্য ৱার্ত্তা যুষ্মাভিঃ কস্মৈচিদপি ন ৱক্তৱ্যা|
ततः परं गिरेरवरोहणकाले स तान् गाढम् दूत्यादिदेश यावन्नरसूनोः श्मशानादुत्थानं न भवति, तावत् दर्शनस्यास्य वार्त्ता युष्माभिः कस्मैचिदपि न वक्तव्या।
10 ১০ তদা শ্মশানাদুত্থানস্য কোভিপ্রায ইতি ৱিচার্য্য তে তদ্ৱাক্যং স্ৱেষু গোপাযাঞ্চক্রিরে|
तदा श्मशानादुत्थानस्य कोभिप्राय इति विचार्य्य ते तद्वाक्यं स्वेषु गोपायाञ्चक्रिरे।
11 ১১ অথ তে যীশুং পপ্রচ্ছুঃ প্রথমত এলিযেনাগন্তৱ্যম্ ইতি ৱাক্যং কুত উপাধ্যাযা আহুঃ?
अथ ते यीशुं पप्रच्छुः प्रथमत एलियेनागन्तव्यम् इति वाक्यं कुत उपाध्याया आहुः?
12 ১২ তদা স প্রত্যুৱাচ, এলিযঃ প্রথমমেত্য সর্ৱ্ৱকার্য্যাণি সাধযিষ্যতি; নরপুত্রে চ লিপি র্যথাস্তে তথৈৱ সোপি বহুদুঃখং প্রাপ্যাৱজ্ঞাস্যতে|
तदा स प्रत्युवाच, एलियः प्रथममेत्य सर्व्वकार्य्याणि साधयिष्यति; नरपुत्रे च लिपि र्यथास्ते तथैव सोपि बहुदुःखं प्राप्यावज्ञास्यते।
13 ১৩ কিন্ত্ৱহং যুষ্মান্ ৱদামি, এলিযার্থে লিপি র্যথাস্তে তথৈৱ স এত্য যযৌ, লোকা: স্ৱেচ্ছানুরূপং তমভিৱ্যৱহরন্তি স্ম|
किन्त्वहं युष्मान् वदामि, एलियार्थे लिपि र्यथास्ते तथैव स एत्य ययौ, लोका: स्वेच्छानुरूपं तमभिव्यवहरन्ति स्म।
14 ১৪ অনন্তরং স শিষ্যসমীপমেত্য তেষাং চতুঃপার্শ্ৱে তৈঃ সহ বহুজনান্ ৱিৱদমানান্ অধ্যাপকাংশ্চ দৃষ্টৱান্;
अनन्तरं स शिष्यसमीपमेत्य तेषां चतुःपार्श्वे तैः सह बहुजनान् विवदमानान् अध्यापकांश्च दृष्टवान्;
15 ১৫ কিন্তু সর্ৱ্ৱলোকাস্তং দৃষ্ট্ৱৈৱ চমৎকৃত্য তদাসন্নং ধাৱন্তস্তং প্রণেমুঃ|
किन्तु सर्व्वलोकास्तं दृष्ट्वैव चमत्कृत्य तदासन्नं धावन्तस्तं प्रणेमुः।
16 ১৬ তদা যীশুরধ্যাপকানপ্রাক্ষীদ্ এতৈঃ সহ যূযং কিং ৱিৱদধ্ৱে?
तदा यीशुरध्यापकानप्राक्षीद् एतैः सह यूयं किं विवदध्वे?
17 ১৭ ততো লোকানাং কশ্চিদেকঃ প্রত্যৱাদীৎ হে গুরো মম সূনুং মূকং ভূতধৃতঞ্চ ভৱদাসন্নম্ আনযং|
ततो लोकानां कश्चिदेकः प्रत्यवादीत् हे गुरो मम सूनुं मूकं भूतधृतञ्च भवदासन्नम् आनयं।
18 ১৮ যদাসৌ ভূতস্তমাক্রমতে তদৈৱ পাতসতি তথা স ফেণাযতে, দন্তৈর্দন্তান্ ঘর্ষতি ক্ষীণো ভৱতি চ; ততো হেতোস্তং ভূতং ত্যাজযিতুং ভৱচ্ছিষ্যান্ নিৱেদিতৱান্ কিন্তু তে ন শেকুঃ|
यदासौ भूतस्तमाक्रमते तदैव पातसति तथा स फेणायते, दन्तैर्दन्तान् घर्षति क्षीणो भवति च; ततो हेतोस्तं भूतं त्याजयितुं भवच्छिष्यान् निवेदितवान् किन्तु ते न शेकुः।
19 ১৯ তদা স তমৱাদীৎ, রে অৱিশ্ৱাসিনঃ সন্তানা যুষ্মাভিঃ সহ কতি কালানহং স্থাস্যামি? অপরান্ কতি কালান্ ৱা ৱ আচারান্ সহিষ্যে? তং মদাসন্নমানযত|
तदा स तमवादीत्, रे अविश्वासिनः सन्ताना युष्माभिः सह कति कालानहं स्थास्यामि? अपरान् कति कालान् वा व आचारान् सहिष्ये? तं मदासन्नमानयत।
20 ২০ ততস্তৎসন্নিধিং স আনীযত কিন্তু তং দৃষ্ট্ৱৈৱ ভূতো বালকং ধৃতৱান্; স চ ভূমৌ পতিৎৱা ফেণাযমানো লুলোঠ|
ततस्तत्सन्निधिं स आनीयत किन्तु तं दृष्ट्वैव भूतो बालकं धृतवान्; स च भूमौ पतित्वा फेणायमानो लुलोठ।
21 ২১ তদা স তৎপিতরং পপ্রচ্ছ, অস্যেদৃশী দশা কতি দিনানি ভূতা? ততঃ সোৱাদীৎ বাল্যকালাৎ|
तदा स तत्पितरं पप्रच्छ, अस्येदृशी दशा कति दिनानि भूता? ततः सोवादीत् बाल्यकालात्।
22 ২২ ভূতোযং তং নাশযিতুং বহুৱারান্ ৱহ্নৌ জলে চ ন্যক্ষিপৎ কিন্তু যদি ভৱান কিমপি কর্ত্তাং শক্নোতি তর্হি দযাং কৃৎৱাস্মান্ উপকরোতু|
भूतोयं तं नाशयितुं बहुवारान् वह्नौ जले च न्यक्षिपत् किन्तु यदि भवान किमपि कर्त्तां शक्नोति तर्हि दयां कृत्वास्मान् उपकरोतु।
23 ২৩ তদা যীশুস্তমৱদৎ যদি প্রত্যেতুং শক্নোষি তর্হি প্রত্যযিনে জনায সর্ৱ্ৱং সাধ্যম্|
तदा यीशुस्तमवदत् यदि प्रत्येतुं शक्नोषि तर्हि प्रत्ययिने जनाय सर्व्वं साध्यम्।
24 ২৪ ততস্তৎক্ষণং তদ্বালকস্য পিতা প্রোচ্চৈ রূৱন্ সাশ্রুনেত্রঃ প্রোৱাচ, প্রভো প্রত্যেমি মমাপ্রত্যযং প্রতিকুরু|
ततस्तत्क्षणं तद्बालकस्य पिता प्रोच्चै रूवन् साश्रुनेत्रः प्रोवाच, प्रभो प्रत्येमि ममाप्रत्ययं प्रतिकुरु।
25 ২৫ অথ যীশু র্লোকসঙ্ঘং ধাৱিৎৱাযান্তং দৃষ্ট্ৱা তমপূতভূতং তর্জযিৎৱা জগাদ, রে বধির মূক ভূত ৎৱমেতস্মাদ্ বহির্ভৱ পুনঃ কদাপি মাশ্রযৈনং ৎৱামহম্ ইত্যাদিশামি|
अथ यीशु र्लोकसङ्घं धावित्वायान्तं दृष्ट्वा तमपूतभूतं तर्जयित्वा जगाद, रे बधिर मूक भूत त्वमेतस्माद् बहिर्भव पुनः कदापि माश्रयैनं त्वामहम् इत्यादिशामि।
26 ২৬ তদা স ভূতশ্চীৎশব্দং কৃৎৱা তমাপীড্য বহির্জজাম, ততো বালকো মৃতকল্পো বভূৱ তস্মাদযং মৃতইত্যনেকে কথযামাসুঃ|
तदा स भूतश्चीत्शब्दं कृत्वा तमापीड्य बहिर्जजाम, ततो बालको मृतकल्पो बभूव तस्मादयं मृतइत्यनेके कथयामासुः।
27 ২৭ কিন্তু করং ধৃৎৱা যীশুনোত্থাপিতঃ স উত্তস্থৌ|
किन्तु करं धृत्वा यीशुनोत्थापितः स उत्तस्थौ।
28 ২৮ অথ যীশৌ গৃহং প্রৱিষ্টে শিষ্যা গুপ্তং তং পপ্রচ্ছুঃ, ৱযমেনং ভূতং ত্যাজযিতুং কুতো ন শক্তাঃ?
अथ यीशौ गृहं प्रविष्टे शिष्या गुप्तं तं पप्रच्छुः, वयमेनं भूतं त्याजयितुं कुतो न शक्ताः?
29 ২৯ স উৱাচ, প্রার্থনোপৱাসৌ ৱিনা কেনাপ্যন্যেন কর্ম্মণা ভূতমীদৃশং ত্যাজযিতুং ন শক্যং|
स उवाच, प्रार्थनोपवासौ विना केनाप्यन्येन कर्म्मणा भूतमीदृशं त्याजयितुं न शक्यं।
30 ৩০ অনন্তরং স তৎস্থানাদিৎৱা গালীল্মধ্যেন যযৌ, কিন্তু তৎ কোপি জানীযাদিতি স নৈচ্ছৎ|
अनन्तरं स तत्स्थानादित्वा गालील्मध्येन ययौ, किन्तु तत् कोपि जानीयादिति स नैच्छत्।
31 ৩১ অপরঞ্চ স শিষ্যানুপদিশন্ বভাষে, নরপুত্রো নরহস্তেষু সমর্পযিষ্যতে তে চ তং হনিষ্যন্তি তৈস্তস্মিন্ হতে তৃতীযদিনে স উত্থাস্যতীতি|
अपरञ्च स शिष्यानुपदिशन् बभाषे, नरपुत्रो नरहस्तेषु समर्पयिष्यते ते च तं हनिष्यन्ति तैस्तस्मिन् हते तृतीयदिने स उत्थास्यतीति।
32 ৩২ কিন্তু তৎকথাং তে নাবুধ্যন্ত প্রষ্টুঞ্চ বিভ্যঃ|
किन्तु तत्कथां ते नाबुध्यन्त प्रष्टुञ्च बिभ्यः।
33 ৩৩ অথ যীশুঃ কফর্নাহূম্পুরমাগত্য মধ্যেগৃহঞ্চেত্য তানপৃচ্ছদ্ ৱর্ত্মমধ্যে যূযমন্যোন্যং কিং ৱিৱদধ্ৱে স্ম?
अथ यीशुः कफर्नाहूम्पुरमागत्य मध्येगृहञ्चेत्य तानपृच्छद् वर्त्ममध्ये यूयमन्योन्यं किं विवदध्वे स्म?
34 ৩৪ কিন্তু তে নিরুত্তরাস্তস্থু র্যস্মাত্তেষাং কো মুখ্য ইতি ৱর্ত্মানি তেঽন্যোন্যং ৱ্যৱদন্ত|
किन्तु ते निरुत्तरास्तस्थु र्यस्मात्तेषां को मुख्य इति वर्त्मानि तेऽन्योन्यं व्यवदन्त।
35 ৩৫ ততঃ স উপৱিশ্য দ্ৱাদশশিষ্যান্ আহূয বভাষে যঃ কশ্চিৎ মুখ্যো ভৱিতুমিচ্ছতি স সর্ৱ্ৱেভ্যো গৌণঃ সর্ৱ্ৱেষাং সেৱকশ্চ ভৱতু|
ततः स उपविश्य द्वादशशिष्यान् आहूय बभाषे यः कश्चित् मुख्यो भवितुमिच्छति स सर्व्वेभ्यो गौणः सर्व्वेषां सेवकश्च भवतु।
36 ৩৬ তদা স বালকমেকং গৃহীৎৱা মধ্যে সমুপাৱেশযৎ ততস্তং ক্রোডে কৃৎৱা তানৱাদাৎ
तदा स बालकमेकं गृहीत्वा मध्ये समुपावेशयत् ततस्तं क्रोडे कृत्वा तानवादात्
37 ৩৭ যঃ কশ্চিদীদৃশস্য কস্যাপি বালস্যাতিথ্যং করোতি স মমাতিথ্যং করোতি; যঃ কশ্চিন্মমাতিথ্যং করোতি স কেৱলম্ মমাতিথ্যং করোতি তন্ন মৎপ্রেরকস্যাপ্যাতিথ্যং করোতি|
यः कश्चिदीदृशस्य कस्यापि बालस्यातिथ्यं करोति स ममातिथ्यं करोति; यः कश्चिन्ममातिथ्यं करोति स केवलम् ममातिथ्यं करोति तन्न मत्प्रेरकस्याप्यातिथ्यं करोति।
38 ৩৮ অথ যোহন্ তমব্রৱীৎ হে গুরো, অস্মাকমননুগামিনম্ একং ৎৱান্নাম্না ভূতান্ ত্যাজযন্তং ৱযং দৃষ্টৱন্তঃ, অস্মাকমপশ্চাদ্গামিৎৱাচ্চ তং ন্যষেধাম|
अथ योहन् तमब्रवीत् हे गुरो, अस्माकमननुगामिनम् एकं त्वान्नाम्ना भूतान् त्याजयन्तं वयं दृष्टवन्तः, अस्माकमपश्चाद्गामित्वाच्च तं न्यषेधाम।
39 ৩৯ কিন্তু যীশুরৱদৎ তং মা নিষেধৎ, যতো যঃ কশ্চিন্ মন্নাম্না চিত্রং কর্ম্ম করোতি স সহসা মাং নিন্দিতুং ন শক্নোতি|
किन्तु यीशुरवदत् तं मा निषेधत्, यतो यः कश्चिन् मन्नाम्ना चित्रं कर्म्म करोति स सहसा मां निन्दितुं न शक्नोति।
40 ৪০ তথা যঃ কশ্চিদ্ যুষ্মাকং ৱিপক্ষতাং ন করোতি স যুষ্মাকমেৱ সপক্ষঃ|
तथा यः कश्चिद् युष्माकं विपक्षतां न करोति स युष्माकमेव सपक्षः।
41 ৪১ যঃ কশ্চিদ্ যুষ্মান্ খ্রীষ্টশিষ্যান্ জ্ঞাৎৱা মন্নাম্না কংসৈকেন পানীযং পাতুং দদাতি, যুষ্মানহং যথার্থং ৱচ্মি, স ফলেন ৱঞ্চিতো ন ভৱিষ্যতি|
यः कश्चिद् युष्मान् ख्रीष्टशिष्यान् ज्ञात्वा मन्नाम्ना कंसैकेन पानीयं पातुं ददाति, युष्मानहं यथार्थं वच्मि, स फलेन वञ्चितो न भविष्यति।
42 ৪২ কিন্তু যদি কশ্চিন্ মযি ৱিশ্ৱাসিনামেষাং ক্ষুদ্রপ্রাণিনাম্ একস্যাপি ৱিঘ্নং জনযতি, তর্হি তস্যৈতৎকর্ম্ম করণাৎ কণ্ঠবদ্ধপেষণীকস্য তস্য সাগরাগাধজল মজ্জনং ভদ্রং|
किन्तु यदि कश्चिन् मयि विश्वासिनामेषां क्षुद्रप्राणिनाम् एकस्यापि विघ्नं जनयति, तर्हि तस्यैतत्कर्म्म करणात् कण्ठबद्धपेषणीकस्य तस्य सागरागाधजल मज्जनं भद्रं।
43 ৪৩ অতঃ স্ৱকরো যদি ৎৱাং বাধতে তর্হি তং ছিন্ধি;
अतः स्वकरो यदि त्वां बाधते तर्हि तं छिन्धि;
44 ৪৪ যস্মাৎ যত্র কীটা ন ম্রিযন্তে ৱহ্নিশ্চ ন নির্ৱ্ৱাতি, তস্মিন্ অনির্ৱ্ৱাণানলনরকে করদ্ৱযৱস্তৱ গমনাৎ করহীনস্য স্ৱর্গপ্রৱেশস্তৱ ক্ষেমং| (Geenna g1067)
यस्मात् यत्र कीटा न म्रियन्ते वह्निश्च न निर्व्वाति, तस्मिन् अनिर्व्वाणानलनरके करद्वयवस्तव गमनात् करहीनस्य स्वर्गप्रवेशस्तव क्षेमं। (Geenna g1067)
45 ৪৫ যদি তৱ পাদো ৱিঘ্নং জনযতি তর্হি তং ছিন্ধি,
यदि तव पादो विघ्नं जनयति तर्हि तं छिन्धि,
46 ৪৬ যতো যত্র কীটা ন ম্রিযন্তে ৱহ্নিশ্চ ন নির্ৱ্ৱাতি, তস্মিন্ ঽনির্ৱ্ৱাণৱহ্নৌ নরকে দ্ৱিপাদৱতস্তৱ নিক্ষেপাৎ পাদহীনস্য স্ৱর্গপ্রৱেশস্তৱ ক্ষেমং| (Geenna g1067)
यतो यत्र कीटा न म्रियन्ते वह्निश्च न निर्व्वाति, तस्मिन् ऽनिर्व्वाणवह्नौ नरके द्विपादवतस्तव निक्षेपात् पादहीनस्य स्वर्गप्रवेशस्तव क्षेमं। (Geenna g1067)
47 ৪৭ স্ৱনেত্রং যদি ৎৱাং বাধতে তর্হি তদপ্যুৎপাটয, যতো যত্র কীটা ন ম্রিযন্তে ৱহ্নিশ্চ ন নির্ৱ্ৱাতি,
स्वनेत्रं यदि त्वां बाधते तर्हि तदप्युत्पाटय, यतो यत्र कीटा न म्रियन्ते वह्निश्च न निर्व्वाति,
48 ৪৮ তস্মিন ঽনির্ৱ্ৱাণৱহ্নৌ নরকে দ্ৱিনেত্রস্য তৱ নিক্ষেপাদ্ একনেত্রৱত ঈশ্ৱররাজ্যে প্রৱেশস্তৱ ক্ষেমং| (Geenna g1067)
तस्मिन ऽनिर्व्वाणवह्नौ नरके द्विनेत्रस्य तव निक्षेपाद् एकनेत्रवत ईश्वरराज्ये प्रवेशस्तव क्षेमं। (Geenna g1067)
49 ৪৯ যথা সর্ৱ্ৱো বলি র্লৱণাক্তঃ ক্রিযতে তথা সর্ৱ্ৱো জনো ৱহ্নিরূপেণ লৱণাক্তঃ কারিষ্যতে|
यथा सर्व्वो बलि र्लवणाक्तः क्रियते तथा सर्व्वो जनो वह्निरूपेण लवणाक्तः कारिष्यते।
50 ৫০ লৱণং ভদ্রং কিন্তু যদি লৱণে স্ৱাদুতা ন তিষ্ঠতি, তর্হি কথম্ আস্ৱাদ্যুক্তং করিষ্যথ? যূযং লৱণযুক্তা ভৱত পরস্পরং প্রেম কুরুত|
लवणं भद्रं किन्तु यदि लवणे स्वादुता न तिष्ठति, तर्हि कथम् आस्वाद्युक्तं करिष्यथ? यूयं लवणयुक्ता भवत परस्परं प्रेम कुरुत।

< মার্কঃ 9 >