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1 Então Elifaz, o temanita, respondeu, dizendo:
तब तेमानी एलीपज ने कहा
2 Por acaso o sábio dará como resposta vão conhecimento, e encherá seu ventre de vento oriental?
“क्या बुद्धिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, या अपने अन्तःकरण को पूर्वी पवन से भरे?
3 Repreenderá com palavras que nada servem, e com argumentos que de nada aproveitam?
क्या वह निष्फल वचनों से, या व्यर्थ बातों से वाद-विवाद करे?
4 Porém tu destróis o temor, e menosprezas a oração diante de Deus.
वरन् तू परमेश्वर का भय मानना छोड़ देता, और परमेश्वर की भक्ति करना औरों से भी छुड़ाता है।
5 Pois tua perversidade conduz tua boca, e tu escolheste a língua dos astutos.
तू अपने मुँह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है।
6 Tua boca te condena, e não eu; e teus lábios dão testemunho contra ti.
मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुँह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरुद्ध साक्षी देते हैं।
7 Por acaso foste tu o primeiro ser humano a nascer? Ou foste gerado antes dos morros?
“क्या पहला मनुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहले हुई?
8 Ouviste tu o segredo de Deus? Reténs tu [apenas] contigo a sabedoria?
क्या तू परमेश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुद्धि का ठेका तू ही ने ले रखा है
9 O que tu sabes que nós não saibamos? [O que] tu entendes que não tenhamos [entendido]?
तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं?
10 Entre nós também há os que tenham cabelos grisalhos, também há os que são muito mais idosos que teu pai.
१०हम लोगों में तो पक्के बाल वाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं।
11 Por acaso as consolações de Deus te são poucas? As mansas palavras voltadas a ti?
११परमेश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या ये तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं?
12 Por que o teu coração te arrebata, e por que centelham teus olhos,
१२तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है? और तू आँख से क्यों इशारे करता है?
13 Para que vires teu espírito contra Deus, e deixes sair [tais] tais palavras de tua boca?
१३तू भी अपनी आत्मा परमेश्वर के विरुद्ध करता है, और अपने मुँह से व्यर्थ बातें निकलने देता है।
14 O que é o homem, para que seja puro? E o nascido de mulher, para que seja justo?
१४मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके?
15 Eis que [Deus] não confia em seus santos, nem os céus são puros diante de seus olhos;
१५देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है।
16 Quanto menos o homem, abominável e corrupto, que bebe a maldade como água?
१६फिर मनुष्य अधिक घिनौना और भ्रष्ट है जो कुटिलता को पानी के समान पीता है।
17 Escuta-me; eu te mostrarei; eu te contarei o que vi.
१७“मैं तुझे समझा दूँगा, इसलिए मेरी सुन ले, जो मैंने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ।
18 (O que os sábios contaram, o que não foi encoberto por seus pais,
१८(वे ही बातें जो बुद्धिमानों ने अपने पुरखाओं से सुनकर बिना छिपाए बताया है।
19 A somente os quais a terra foi dada, e estranho nenhum passou por meio deles):
१९केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता-जाता नहीं था।)
20 Todos os dias do perverso são sofrimento para si, o número de anos reservados ao opressor.
२०दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और उपद्रवी के वर्षों की गिनती ठहराई हुई है।
21 Ruídos de horrores estão em seus ouvidos; até na paz lhe sobrevém o assolador.
२१उसके कान में डरावना शब्द गूँजता रहता है, कुशल के समय भी नाश करनेवाला उस पर आ पड़ता है।
22 Ele não crê que voltará da escuridão; ao contrário, a espada o espera.
२२उसे अंधियारे में से फिर निकलने की कुछ आशा नहीं होती, और तलवार उसकी घात में रहती है।
23 Anda vagueando por comida, onde quer que ela esteja. Ele sabe que o dia das trevas está prestes a acontecer.
२३वह रोटी के लिये मारा-मारा फिरता है, कि कहाँ मिलेगी? उसे निश्चय रहता है, कि अंधकार का दिन मेरे पास ही है।
24 Angústia e aflição o assombram, [e] prevalecem contra ele como um rei preparado para a batalha;
२४संकट और दुर्घटना से उसको डर लगता रहता है, ऐसे राजा के समान जो युद्ध के लिये तैयार हो, वे उस पर प्रबल होते हैं।
25 Porque ele estendeu sua mão contra Deus, e se embraveceu contra o Todo-Poderoso,
२५क्योंकि उसने तो परमेश्वर के विरुद्ध हाथ बढ़ाया है, और सर्वशक्तिमान के विरुद्ध वह ताल ठोंकता है,
26 Corre contra ele com [dureza] de pescoço, e como seus escudos grossos e levantados.
२६और सिर उठाकर और अपनी मोटी-मोटी ढालें दिखाता हुआ घमण्ड से उस पर धावा करता है;
27 Porque cobriu seu rosto com sua gordura, e engordou as laterais de seu corpo.
२७इसलिए कि उसके मुँह पर चिकनाई छा गई है, और उसकी कमर में चर्बी जमी है।
28 E habitou em cidades desoladas cidades, em casas desabitadas; que estavam prestes a desmoronar.
२८और वह उजाड़े हुए नगरों में बस गया है, और जो घर रहने योग्य नहीं, और खण्डहर होने को छोड़े गए हैं, उनमें बस गया है।
29 Ele não enriquecerá, nem seu patrimônio subsistirá, nem suas riquezas se estenderão pela terra.
२९वह धनी न रहेगा, और न उसकी सम्पत्ति बनी रहेगी, और ऐसे लोगों के खेत की उपज भूमि की ओर न झुकने पाएगी।
30 Não escapará das trevas; a chama secará seus ramos, e ao sopro de sua boca desparecerá.
३०वह अंधियारे से कभी न निकलेगा, और उसकी डालियाँ आग की लपट से झुलस जाएँगी, और परमेश्वर के मुँह की श्वास से वह उड़ जाएगा।
31 Não confie ele na ilusão para ser enganado; pois a sua recompensa será nada.
३१वह अपने को धोखा देकर व्यर्थ बातों का भरोसा न करे, क्योंकि उसका प्रतिफल धोखा ही होगा।
32 Não sendo ainda seu tempo, ela se cumprirá; e seu ramo não florescerá.
३२वह उसके नियत दिन से पहले पूरा हो जाएगा; उसकी डालियाँ हरी न रहेंगी।
33 Sacudirá suas uvas antes de amadurecerem como a vide, e derramará sua flor como a oliveira.
३३दाख के समान उसके कच्चे फल झड़ जाएँगे, और उसके फूल जैतून के वृक्ष के समान गिरेंगे।
34 Pois a ajuntamento dos hipócritas será estéril, e fogo consumirá as tendas do suborno.
३४क्योंकि भक्तिहीन के परिवार से कुछ बन न पड़ेगा, और जो घूस लेते हैं, उनके तम्बू आग से जल जाएँगे।
35 Eles concebem a maldade, e dão à luz a perversidade; e o ventre deles prepara enganos.
३५उनको उपद्रव का गर्भ रहता, और वे अनर्थ को जन्म देते है और वे अपने अन्तःकरण में छल की बातें गढ़ते हैं।”

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