< 2 Samuel 22 >

1 E falou Davi ao SENHOR as palavras deste cântico, o dia que o SENHOR o livrou da mão de todos os seus inimigos e da mão de Saul.
जिस समय यहोवा ने दाऊद को उसके सब शत्रुओं और शाऊल के हाथ से बचाया था, उस समय उसने यहोवा के लिये इस गीत के वचन गाए:
2 E disse: O SENHOR é minha rocha, e minha fortaleza, e meu libertador;
उसने कहा, “यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़, मेरा छुड़ानेवाला,
3 Deus de minha rocha, nele confiarei: Meu escudo, e o poder de minha salvação, minha fortaleza, e meu refúgio; Meu salvador, que me livrarás de violência.
मेरा चट्टानरूपी परमेश्वर है, जिसका मैं शरणागत हूँ, मेरी ढाल, मेरा बचानेवाला सींग, मेरा ऊँचा गढ़, और मेरा शरणस्थान है, हे मेरे उद्धारकर्ता, तू उपद्रव से मेरा उद्धार किया करता है।
4 Invocarei ao SENHOR, digno de ser louvado. E serei salvo de meus inimigos.
मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूँगा, और मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊँगा।
5 Quando me cercaram ondas de morte, E ribeiros de iniquidade me assombraram,
“मृत्यु के तरंगों ने तो मेरे चारों ओर घेरा डाला, नास्तिकपन की धाराओं ने मुझ को घबरा दिया था;
6 As cordas do Xeol me rodearam, e laços de morte me tomaram desprevenido. (Sheol h7585)
अधोलोक की रस्सियाँ मेरे चारों ओर थीं, मृत्यु के फंदे मेरे सामने थे। (Sheol h7585)
7 Tive angústia, invoquei ao SENHOR, E clamei a meu Deus: E ele ouviu minha voz desde seu templo; Chegou meu clamor a seus ouvidos.
अपने संकट में मैंने यहोवा को पुकारा; और अपने परमेश्वर के सम्मुख चिल्लाया। उसने मेरी बात को अपने मन्दिर में से सुन लिया, और मेरी दुहाई उसके कानों में पहुँची।
8 A terra se moveu, e tremeu; Os fundamentos dos céus foram movidos, E se estremeceram, porque ele se irou.
“तब पृथ्वी हिल गई और डोल उठी; और आकाश की नींवें काँपकर बहुत ही हिल गईं, क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था।
9 Subiu fumaça de suas narinas, E de sua boca fogo consumidor, Pelo qual se acenderam carvões.
उसके नथनों से धुआँ निकला, और उसके मुँह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिससे कोयले दहक उठे।
10 E abaixo os céus, e desceu: Uma escuridão debaixo de seus pés.
१०और वह स्वर्ग को झुकाकर नीचे उतर आया; और उसके पाँवों तले घोर अंधकार छाया था।
11 Subiu sobre o querubim, e voou: Apareceu-se sobre as asas do vento.
११वह करूब पर सवार होकर उड़ा, और पवन के पंखों पर चढ़कर दिखाई दिया।
12 Armou tendas de escuridão ao redor de si; nuvens negras e espessas, carregadas de águas.
१२उसने अपने चारों ओर के अंधियारे को, मेघों के समूह, और आकाश की काली घटाओं को अपना मण्डप बनाया।
13 Do resplendor de sua presença Se acenderam brasas ardentes.
१३उसके सम्मुख के तेज से, आग के कोयले दहक उठे।
14 O SENHOR trovejou desde os céus, E o Altíssimo deu sua voz;
१४यहोवा आकाश में से गरजा, और परमप्रधान ने अपनी वाणी सुनाई।
15 Lançou flechas, e desbaratou-os; Relampejou, e consumiu-os.
१५उसने तीर चला-चलाकर मेरे शत्रुओं को तितर-बितर कर दिया, और बिजली गिरा गिराकर उसको परास्त कर दिया।
16 Então apareceram as profundezas do mar, E os fundamentos do mundo foram descobertos, À repreensão do SENHOR, Ao sopro do vento de seu nariz.
१६तब समुद्र की थाह दिखाई देने लगी, और जगत की नेवें खुल गईं, यह तो यहोवा की डाँट से, और उसके नथनों की साँस की झोंक से हुआ।
17 Estendeu sua mão do alto, e arrebatou-me, E tirou-me de copiosas águas.
१७“उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे गहरे जल में से खींचकर बाहर निकाला।
18 Livrou-me de fortes inimigos, De aqueles que me aborreciam, os quais eram mais fortes que eu.
१८उसने मुझे मेरे बलवन्त शत्रु से, और मेरे बैरियों से, जो मुझसे अधिक सामर्थी थे, मुझे छुड़ा लिया।
19 Atacaram-me no dia de minha calamidade; Mas o SENHOR foi meu apoio.
१९उन्होंने मेरी विपत्ति के दिन मेरा सामना तो किया; परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था।
20 Tirou-me para um lugar amplo; Livrou-me, porque se agradou de mim.
२०उसने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुँचाया; उसने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझसे प्रसन्न था।
21 Remunerou-me o SENHOR conforme minha justiça: E conforme a limpeza de minhas mãos ele me pagou.
२१“यहोवा ने मुझसे मेरी धार्मिकता के अनुसार व्यवहार किया; मेरे कामों की शुद्धता के अनुसार उसने मुझे बदला दिया।
22 Porque eu guardei os caminhos do SENHOR; E não me apartei impiamente de meu Deus.
२२क्योंकि मैं यहोवा के मार्गों पर चलता रहा, और अपने परमेश्वर से मुँह मोड़कर दुष्ट न बना।
23 Porque diante de mim tenho todas suas ordenanças; E atento a seus estatutos, não me retirarei deles.
२३उसके सब नियम तो मेरे सामने बने रहे, और मैं उसकी विधियों से हट न गया।
24 E fui íntegro para com ele, E guardei-me de minha iniquidade.
२४मैं उसके साथ खरा बना रहा, और अधर्म से अपने को बचाए रहा, जिसमें मेरे फँसने का डर था।
25 Remunerou-me, portanto, o SENHOR conforme minha justiça, E conforme minha limpeza diante de seus olhos.
२५इसलिए यहोवा ने मुझे मेरी धार्मिकता के अनुसार बदला दिया, मेरी उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था।
26 Com o bom és benigno, E com o íntegro te mostras íntegro;
२६“विश्वासयोग्य के साथ तू अपने को विश्वासयोग्य दिखाता; खरे पुरुष के साथ तू अपने को खरा दिखाता है;
27 Limpo és para com o limpo, Mas com o perverso és rígido.
२७शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता; और टेढ़े के साथ तू तिरछा बनता है।
28 E tu salvas ao povo humilde; Mas teus olhos sobre os altivos, para abatê-los.
२८और दीन लोगों को तो तू बचाता है, परन्तु अभिमानियों पर दृष्टि करके उन्हें नीचा करता है।
29 Porque tu és minha lâmpada, ó SENHOR; o SENHOR dá luz às minhas trevas.
२९हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक है, और यहोवा मेरे अंधियारे को दूर करके उजियाला कर देता है।
30 Pois contigo avançarei contra uma tropa, e com o meu Deus saltarei uma muralha.
३०तेरी सहायता से मैं दल पर धावा करता, अपने परमेश्वर की सहायता से मैं शहरपनाह को फाँद जाता हूँ।
31 O caminho de Deus [é] perfeito; a palavra do SENHOR [é] purificada, é escudo é de todos os que nele confiam.
३१परमेश्वर की गति खरी है; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपने सब शरणागतों की ढाल है।
32 Porque que Deus há a não ser o SENHOR? Ou quem é forte a não ser nosso Deus?
३२“यहोवा को छोड़ क्या कोई परमेश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है?
33 Deus é o que com virtude me corrobora, e o que tira os obstáculos do meu caminho;
३३यह वही परमेश्वर है, जो मेरा अति दृढ़ किला है, वह खरे मनुष्य को अपने मार्ग में लिए चलता है।
34 O que faz meus pés como de cervas, E o que me assenta em minhas alturas;
३४वह मेरे पैरों को हिरनी के समान बना देता है, और मुझे ऊँचे स्थानों पर खड़ा करता है।
35 O que ensina minhas mãos para a luta, e proporciona que com meus braços quebre o arco de bronze.
३५वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरी बाँहे पीतल के धनुष को झुका देती हैं।
36 Tu me deste também o escudo de tua salvação, E tua benignidade me acrescentou.
३६तूने मुझ को अपने उद्धार की ढाल दी है, और तेरी नम्रता मुझे बढ़ाती है।
37 Tu alargaste meus desfiladeiros debaixo de mim, Para que não titubeassem meus joelhos.
३७तू मेरे पैरों के लिये स्थान चौड़ा करता है, और मेरे पैर नहीं फिसले।
38 Perseguirei a meus inimigos, e os quebrantarei; E não me voltarei até que os acabe.
३८मैंने अपने शत्रुओं का पीछा करके उनका सत्यानाश कर दिया, और जब तक उनका अन्त न किया तब तक न लौटा।
39 Os consumirei, e os ferirei, e não se levantarão; E cairão debaixo de meus pés.
३९मैंने उनका अन्त किया; और उन्हें ऐसा छेद डाला है कि वे उठ नहीं सकते; वरन् वे तो मेरे पाँवों के नीचे गिरे पड़े हैं।
40 Cingiste-me de força para a batalha, E fizeste prostrar debaixo de mim os que contra mim se levantaram.
४०तूने युद्ध के लिये मेरी कमर बलवन्त की; और मेरे विरोधियों को मेरे ही सामने परास्त कर दिया।
41 Tu me deste o pescoço de meus inimigos, De meus aborrecedores, que eu os destruísse.
४१और तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मुझे दिखाई, ताकि मैं अपने बैरियों को काट डालूँ।
42 Olharam, e não houve quem os livrasse; Ao SENHOR, mas não lhes respondeu.
४२उन्होंने बाट तो जोही, परन्तु कोई बचानेवाला न मिला; उन्होंने यहोवा की भी बाट जोही, परन्तु उसने उनको कोई उत्तर न दिया।
43 Eu os esmiuçarei como pó da terra; Eu os pisarei como à lama das ruas, e os dissiparei.
४३तब मैंने उनको कूट कूटकर भूमि की धूल के समान कर दिया, मैंने उन्हें सड़कों और गली कूचों की कीचड़ के समान पटककर चारों ओर फैला दिया।
44 Tu me livraste das brigas dos povos; Tu me guardaste para eu que fosse cabeça de nações: Povos que eu não conhecia me serviram.
४४“फिर तूने मुझे प्रजा के झगड़ों से छुड़ाकर अन्यजातियों का प्रधान होने के लिये मेरी रक्षा की; जिन लोगों को मैं न जानता था वे भी मेरे अधीन हो जाएँगे।
45 Os estrangeiros se sujeitaram a mim; ao ouvirem, me obedeciam.
४५परदेशी मेरी चापलूसी करेंगे; वे मेरा नाम सुनते ही मेरे वश में आएँगे।
46 Os estrangeiros desfaleciam, E tremiam em seus esconderijos.
४६परदेशी मुर्झाएँगे, और अपने किलों में से थरथराते हुए निकलेंगे।
47 Viva o SENHOR, e seja bendita minha rocha; Seja exaltado o Deus, a rocha de meu salvamento:
४७“यहोवा जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है, और परमेश्वर जो मेरे उद्धार की चट्टान है, उसकी महिमा हो।
48 O Deus que me vingou, E sujeita os povos debaixo de mim:
४८धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला परमेश्वर, जो देश-देश के लोगों को मेरे वश में कर देता है,
49 E que me tira dentre meus inimigos: Tu me tiraste em alto dentre os que se levantaram contra mim: Livraste-me do homem de iniquidades.
४९और मुझे मेरे शत्रुओं के बीच से निकालता है; हाँ, तू मुझे मेरे विरोधियों से ऊँचा करता है, और उपद्रवी पुरुष से बचाता है।
50 Portanto eu te confessarei entre as nações, ó SENHOR, E cantarei a teu nome.
५०“इस कारण, हे यहोवा, मैं जाति-जाति के सामने तेरा धन्यवाद करूँगा, और तेरे नाम का भजन गाऊँगा
51 Ele que engrandece as saúdes de seu rei, E faz misericórdia a seu ungido, A Davi, e à sua semente, para sempre.
५१वह अपने ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपने अभिषिक्त दाऊद, और उसके वंश पर युगानुयुग करुणा करता रहेगा।”

< 2 Samuel 22 >