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1 Então Job respondeu, e disse:
यह सुन अय्योब ने यह कहा:
2 Oh se a minha mágoa retamente se pesasse, e a minha miséria juntamente se alçasse numa balança!
“कैसा होता यदि मेरी पीड़ा मापी जा सकती, इसे तराजू में रखा जाता!
3 Porque na verdade mais pesada seria, do que a areia dos mares: por isso é que as minhas palavras se me afogam.
तब तो इसका माप सागर तट की बालू से अधिक होता. इसलिये मेरे शब्द मूर्खता भरे लगते हैं.
4 Porque as flechas do Todo-poderoso estão em mim, cujo ardente veneno me chupa o espírito: os terrores de Deus se armam contra mim.
क्योंकि सर्वशक्तिमान के बाण मुझे बेधे हुए हैं, उनका विष रिसकर मेरी आत्मा में पहुंच रहा है. परमेश्वर का आतंक आक्रमण के लिए मेरे विरुद्ध खड़ा है!
5 Porventura zurrará o jumento montez junto à relva? ou berrará o boi junto ao seu pasto?
क्या जंगली गधा घास के सामने आकर रेंकता है? क्या बछड़ा अपना चारा देख रम्भाता है?
6 Ou comer-se-á sem sal o que é insípido? ou haverá gosto na clara do ovo?
क्या किसी स्वादरहित वस्तु का सेवन नमक के बिना संभव है? क्या अंडे की सफेदी में कोई भी स्वाद होता है?
7 A minha alma recusa toca-lo, pois é como a minha comida fastienta.
मैं उनका स्पर्श ही नहीं चाहता; मेरे लिए ये घृणित भोजन-समान हैं.
8 Quem dera que se cumprisse o meu desejo, e que Deus me desse o que espero!
“कैसा होता यदि मेरा अनुरोध पूर्ण हो जाता तथा परमेश्वर मेरी लालसा को पूर्ण कर देते,
9 E que Deus quizesse quebrantar-me, e soltasse a sua mão, e me acabasse!
तब ऐसा हो जाता कि परमेश्वर मुझे कुचलने के लिए तत्पर हो जाते, कि वह हाथ बढ़ाकर मेरा नाश कर देते!
10 Isto ainda seria a minha consolação, e me refrigeraria no meu tormento, não me perdoando ele; porque não ocultei as palavras do santo.
किंतु तब भी मुझे तो संतोष है, मैं असह्य दर्द में भी आनंदित होता हूं, क्योंकि मैंने पवित्र वचनों के आदेशों का विरोध नहीं किया है.
11 Qual é a minha força, para que eu espere? ou qual é o meu fim, para que prolongue a minha vida?
“क्या है मेरी शक्ति, जो मैं आशा करूं? क्या है मेरी नियति, जो मैं धैर्य रखूं?
12 É porventura a minha força a força de pedra? Ou é de cobre a minha carne?
क्या मेरा बल वह है, जो चट्टानों का होता है? अथवा क्या मेरी देह की रचना कांस्य से हुई है?
13 Ou não está em mim a minha ajuda? ou desamparou-me a verdadeira sabedoria?
क्या मेरी सहायता का मूल मेरे अंतर में निहित नहीं, क्या मेरी विमुक्ति मुझसे दूर हो चुकी?
14 Ao que está aflito devia o amigo mostrar compaixão, ainda ao que deixasse o temor do Todo-poderoso.
“जो अपने दुःखी मित्र पर करुणा नहीं दिखाता, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति श्रद्धा छोड़ देता है.
15 Meus irmãos aleivosamente me falaram, como um ribeiro, como a torrente dos ribeiros que passam.
मेरे भाई तो जलधाराओं समान विश्वासघाती ही प्रमाणित हुए, वे जलधाराएं, जो विलीन हो जाती हैं,
16 Que estão encobertos com a geada, e neles se esconde a neve.
जिनमें हिम पिघल कर जल बनता है और उनका जल छिप जाता है.
17 No tempo em que se derretem com o calor se desfazem, e em se aquentando, desaparecem do seu lugar.
वे जलहीन शांत एवं सूनी हो जाती हैं, वे ग्रीष्मऋतु में अपने स्थान से विलीन हो जाती हैं.
18 Desviam-se as veredas dos seus caminhos: sobem ao vácuo, e perecem.
वे अपने रास्ते से भटक जाते हैं; उसके बाद वे मरुभूमि में विलीन हो जाती हैं.
19 Os caminhantes de Tema os veem; os passageiros de Sheba olham para eles.
तेमा के यात्री दल उन्हें खोजते रहे, शीबा के यात्रियों ने उन पर आशा रखी थी.
20 Foram envergonhados, por terem confiado e, chegando ali, se confundem.
उन पर भरोसा कर उन्हें पछतावा हुआ; वे वहां पहुंचे और निराश हो गए.
21 Agora sois semelhantes a eles: vistes o terror, e temestes.
अब स्थिति यह है, कि तुम इन्हीं जलधाराओं के समान हो चुके हो; तुम आतंक को देखकर डर जाते हो.
22 Disse-vos eu: dai-me ou oferecei-me da vossa fazenda presentes?
क्या मैंने कभी यह आग्रह किया है, ‘कुछ तो दे दो मुझे, अथवा, अपनी संपत्ति में से कुछ देकर मुझे मुक्त करा लो,
23 Ou livrai-me das mãos do opressor? ou redemi-me das mãos dos tiranos?
अथवा, शत्रु के बंधन से मुझे मुक्त करा लो, इस उपद्रव करनेवाले व्यक्ति के अधिकार से मुझे छुड़ा लो?’
24 Ensinai-me, e eu me calarei: e dai-me a entender em que errei.
“मुझे शिक्षा दीजिए, मैं चुप रहूंगा; मेरी त्रुटियां मुझ पर प्रकट कर दीजिए.
25 Oh! quão fortes são as palavras da boa razão! mas que é o que argui a vossa arguição?
सच्चाई में कहे गए उद्गार कितने सुखदायक होते हैं! किंतु आपके विवाद से क्या प्रकट होता है?
26 Porventura buscareis palavras para me repreenderdes, visto que as razões do desesperado estão como vento?
क्या तुम्हारा अभिप्राय मेरे कहने की निंदा करना है, निराश व्यक्ति के उद्गार तो निरर्थक ही होते हैं?
27 Mas antes lançais sortes sobre o órfão; e cavais uma cova para o vosso amigo.
तुम तो पितृहीनों के लिए चिट्ठी डालोगे तथा अपने मित्र को ही बेच दोगे.
28 Agora pois, se sois servidos, virai-vos para mim; e vede se minto em vossa presença.
“अब कृपा करो और मेरी ओर देखो. फिर देखना कि क्या मैं तुम्हारे मुख पर झूठ बोल सकूंगा?
29 Voltai pois, não haja iniquidade: tornai-vos, digo, que ainda a minha justiça aparecerá nisso.
अब कोई अन्याय न होने पाए; छोड़ दो यह सब, मैं अब भी सत्यनिष्ठ हूं.
30 Há porventura iniquidade na minha língua? Ou não poderia o meu paladar dar a entender as minhas misérias?
क्या मेरी जीभ अन्यायपूर्ण है? क्या मुझमें बुराई और अच्छाई का बोध न रहा?

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