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1 Então respondeu Eliphaz o temanita, e disse:
तब तेमानी इलिफ़ज़ कहने लगा,
2 Se intentarmos falar-te, enfadar-te-ás? mas quem poderia conter as palavras?
अगर कोई तुझ से बात चीत करने की कोशिश करे तो क्या तू अफ़सोस करेगा?, लेकिन बोले बगै़र कौन रह सकता है?
3 Eis que ensinaste a muitos, e esforçaste as mãos fracas.
देख, तू ने बहुतों को सिखाया, और कमज़ोर हाथों को मज़बूत किया।
4 As tuas palavras levantaram os que tropeçavam e os joelhos desfalecentes fortificaste.
तेरी बातों ने गिरते हुए को संभाला, और तू ने लड़खड़ाते घुटनों को मज़बूत किया।
5 Mas agora a ti te vem, e te enfadas: e, tocando-te a ti, te perturbas.
लेकिन अब तो तुझी पर आ पड़ी और तू कमज़ोर हुआ जाता है। उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।
6 Porventura não era o teu temor de Deus a tua confiança, e a tua esperança a sinceridade dos teus caminhos?
क्या तेरे ख़ुदा का डर ही तेरा भरोसा नहीं? क्या तेरी राहों की रास्ती तेरी उम्मीद नहीं?
7 Lembra-te agora qual é o inocente que jamais perecesse? e onde foram os sinceros destruídos?
क्या तुझे याद है कि कभी कोई मा'सूम भी हलाक हुआ है? या कहीं रास्तबाज़ भी काट डाले गए?
8 Como eu tenho visto, os que lavram iniquidade, e semeam trabalho segam o mesmo.
मेरे देखने में तो जो गुनाह को जोतते और दुख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।
9 Com o bafo de Deus perecem; e com o assopro da sua ira se consomem.
वह ख़ुदा के दम से हलाक होते, और उसके ग़ुस्से के झोंके से भस्म होते हैं।
10 O bramido do leão, e a voz do leão feroz, e os dentes dos leõezinhos se quebrantam.
बबर की ग़रज़ और खू़ँख़्वार बबर की दहाड़, और बबर के बच्चों के दाँत, यह सब तोड़े जाते हैं।
11 Perece o leão velho, porque não há preza; e os filhos da leoa andam esparzidos.
शिकार न पाने से बूढ़ा बबर हलाक होता, और शेरनी के बच्चे तितर — बितर हो जाते हैं।
12 Uma palavra se me disse em segredo; e os meus ouvidos perceberam um sussurro dela.
एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, उसकी भनक मेरे कान में पड़ी।
13 Entre imaginações de visões da noite, quando cai sobre os homens o sono profundo;
रात के ख़्वाबों के ख़्यालों के बीच, जब लोगों को गहरी नींद आती है।
14 Sobreveiu-me o espanto e o tremor, e todos os meus ossos estremeceram.
मुझे ख़ौफ़ और कपकपी ने ऐसा पकड़ा, कि मेरी सब हड्डियों को हिला डाला।
15 Então um espírito passou por diante de mim; fêz-me arrepiar os cabelos da minha carne;
तब एक रूह मेरे सामने से गुज़री, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
16 Parou ele, porém não conheci a sua feição; um vulto estava diante dos meus olhos: e, calando-me, ouvi uma voz que dizia:
वह चुपचाप खड़ी हो गई लेकिन मैं उसकी शक्ल पहचान न सका; एक सूरत मेरी आँखों के सामने थी और सन्नाटा था। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी:
17 Seria porventura o homem mais justo do que Deus? seria porventura o varão mais puro do que o seu criador?
कि क्या फ़ानी इंसान ख़ुदा से ज़्यादा होगा? क्या आदमी अपने ख़ालिक़ से ज़्यादा पाक ठहरेगा?
18 Eis que nos seus servos não confiaria, e aos seus anjos imputaria loucura:
देख, उसे अपने ख़ादिमों का 'ऐतबार नहीं, और वह अपने फ़रिश्तों पर हिमाक़त को 'आइद करता है।
19 Quanto menos naqueles que habitam em casas de lodo, cujo fundamento está no pó, e são machucados como a traça!
फिर भला उनकी क्या हक़ीक़त है, जो मिट्टी के मकानों में रहते हैं। जिनकी बुन्नियाद ख़ाक में है, और जो पतंगे से भी जल्दी पिस जाते हैं।
20 Desde a manhã até à tarde são despedaçados: e eternamente perecem sem que disso se faça caso.
वह सुबह से शाम तक हलाक होते हैं, वह हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं, और कोई उनका ख़याल भी नहीं करता।
21 Porventura se não passa com eles a sua excelência? morrem, porém sem sabedoria.
क्या उनके ख़ेमे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर तोड़ी नहीं जाती? वह मरते हैं और यह भी बगै़र दानाई के।

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