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1 Então respondeu Sofar, o naamathita, e disse
इसके बाद नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:
2 Porventura não se dará resposta à multidão de palavras? E o homem falador será justificado?
“क्या मेरे इतने सारे शब्दों का उत्तर नहीं मिलेगा? क्या कोई वाचाल व्यक्ति दोष मुक्त माना जाएगा?
3 As tuas mentiras se hão de calar os homens? E zombarás tu sem que ninguém te envergonhe?
क्या तुम्हारी अहंकार की बातें लोगों को चुप कर पाएगी? क्या तुम उपहास करके भी कष्ट से मुक्त रहोगे?
4 Pois tu disseste: A minha doutrina é pura, e limpo sou aos teus olhos.
क्योंकि तुमने तो कहा है, ‘मेरी शिक्षा निर्मल है तथा आपके आंकलन में मैं निर्दोष हूं,’
5 Mas, na verdade, oxalá que Deus falasse e abrisse os seus lábios contra ti!
किंतु यह संभव है कि परमेश्वर संवाद करने लगें तथा वह तुम्हारे विरुद्ध अपना निर्णय दें.
6 E te fizesse saber os segredos da sabedoria, que ela é multíplice em eficácia; pelo que sabe que Deus exige de ti menos do que merece a tua iniquidade.
वह तुम पर ज्ञान का रहस्य प्रगट कर दें, क्योंकि सत्य ज्ञान के दो पक्ष हैं. तब यह समझ लो, कि परमेश्वर तुम्हारे अपराध के कुछ अंश को भूल जाते हैं.
7 Porventura alcançarás os caminhos de Deus? ou chegarás à perfeição do Todo-poderoso?
“क्या, परमेश्वर के रहस्य की गहराई को नापना तुम्हारे लिए संभव है? क्या तुम सर्वशक्तिमान की सीमाओं की जांच कर सकते हो?
8 Como as alturas dos céus é a sua sabedoria; que poderás tu fazer? mais profunda do que o inferno, que poderás tu saber? (Sheol h7585)
क्या करोगे तुम? वे तो आकाश-समान उन्‍नत हैं. क्या मालूम कर सकोगे तुम? वे तो पाताल से भी अधिक अथाह हैं. (Sheol h7585)
9 Mais comprida é a sua medida do que a terra: e mais larga do que o mar.
इसका विस्तार पृथ्वी से भी लंबा है तथा महासागर से भी अधिक व्यापक.
10 Se ele destruir, e encerrar, ou se recolher, quem o fará tornar para traz?
“यदि वह आएं तथा तुम्हें बंदी बना दें, तथा तुम्हारे लिए अदालत आयोजित कर दें, तो कौन उन्हें रोक सकता है?
11 Porque ele conhece aos homens vãos, e vê o vício; e não o terá em consideração?
वह तो पाखंडी को पहचान लेते हैं, उन्हें तो यह भी आवश्यकता नहीं; कि वह पापी के लिए विचार करें.
12 Mas o homem vão é falto de entendimento; sim, o homem nasce como a cria do jumento montez.
जैसे जंगली गधे का बच्चा मनुष्य नहीं बन सकता, वैसे ही किसी मूर्ख को बुद्धिमान नहीं बनाया जा सकता.
13 Se tu preparaste o teu coração, e estendeste as tuas mãos para ele!
“यदि तुम अपने हृदय को शुद्ध दिशा की ओर बढ़ाओ, तथा अपना हाथ परमेश्वर की ओर बढ़ाओ,
14 Se há iniquidade na tua mão, lança-a para longe de ti e não deixes habitar a injustiça nas tuas tendas.
यदि तुम्हारे हाथ जिस पाप में फंसे है, तुम इसका परित्याग कर दो तथा अपने घरों में बुराई का प्रवेश न होने दो,
15 Porque então o teu rosto levantarás sem mácula: e estarás firme, e não temerás.
तो तुम निःसंकोच अपना सिर ऊंचा कर सकोगे तथा तुम निर्भय हो स्थिर खड़े रह सकोगे.
16 Porque te esquecerás dos trabalhos, e te lembrarás deles como das águas que já passaram
क्योंकि तुम्हें अपने कष्टों का स्मरण रहेगा, जैसे वह जल जो बह चुका है वैसी ही होगी तुम्हारी स्मृति.
17 E a tua vida mais clara se levantará do que o meio dia; ainda que seja trevas, será como a manhã.
तब तुम्हारा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक प्रकाशमान हो जाएगा, अंधकार भी प्रभात-समान होगा.
18 E terás confiança; porque haverá esperança; e buscarás e repousarás seguro.
तब तुम विश्वास करोगे, क्योंकि तब तुम्हारे सामने होगी एक आशा; तुम आस-पास निरीक्षण करोगे और फिर पूर्ण सुरक्षा में विश्राम करोगे.
19 E deitar-te-ás, e ninguém te espantará; muitos suplicarão o teu rosto.
कोई भी तुम्हारी निद्रा में बाधा न डालेगा, अनेक तुम्हारे समर्थन की अपेक्षा करेंगे.
20 Porém os olhos dos ímpios desfalecerão, e perecerá o seu refúgio: e a sua esperança será o expirar da alma
किंतु दुर्वृत्तों की दृष्टि शून्य हो जाएगी, उनके लिए निकास न हो सकेगा; उनके लिए एकमात्र आशा है मृत्यु.”

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