< 14 >

1 O homem nascido da mulher é curto de dias e farto de inquietação.
इंसान जो 'औरत से पैदा होता है थोड़े दिनों का है, और दुख से भरा है।
2 Sae como a flor, e se corta; foge tambem como a sombra, e não permanece.
वह फूल की तरह निकलता, और काट डाला जाता है। वह साए की तरह उड़ जाता है और ठहरता नहीं।
3 E sobre este tal abres os teus olhos, e a mim me fazes entrar no juizo comtigo.
इसलिए क्या तू ऐसे पर अपनी आँखें खोलता है; और मुझे अपने साथ 'अदालत में घसीटता है?
4 Quem do immundo tirará o puro? Ninguem.
नापाक चीज़ में से पाक चीज़ कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
5 Visto que os seus dias estão determinados, comtigo está o numero dos seus dias; e tu lhe pozeste limites, e não passará além d'elles.
उसके दिन तो ठहरे हुए हैं, और उसके महीनों की ता'दाद तेरे पास है; और तू ने उसकी हदों को मुक़र्रर कर दिया है, जिन्हें वह पार नहीं कर सकता।
6 Desvia-te d'elle, para que tenha repouso, até que, como o jornaleiro, tenha contentamento no seu dia.
इसलिए उसकी तरफ़ से नज़र हटा ले ताकि वह आराम करे, जब तक वह मज़दूर की तरह अपना दिन पूरा न कर ले।
7 Porque ha esperança para a arvore que, se fôr cortada, ainda se renovará, e não cessarão os seus renovos
“क्यूँकि दरख़्त की तो उम्मीद रहती है कि अगर वह काटा जाए तो फिर फूट निकलेगा, और उसकी नर्म नर्म डालियाँ ख़त्म न होंगी।
8 Se se envelhecer na terra a sua raiz, e morrer o seu tronco no pó,
अगरचे उसकी जड़ ज़मीन में पुरानी हो जाए, और उसका तना मिट्टी में गल जाए,
9 Ao cheiro das aguas brotará, e dará ramos para a planta.
तोभी पानी की बू पाते ही वह नए अखुवे लाएगा, और पौदे की तरह शाख़ें निकालेगा।
10 Porém, morrendo o homem, está abatido: e dando o homem o espirito, então onde está?
लेकिन इंसान मर कर पड़ा रहता है, बल्कि इंसान जान छोड़ देता है, और फिर वह कहाँ रहा?
11 Como as aguas se retiram do mar, e o rio se esgota, e fica secco,
जैसे झील का पानी ख़त्म हो जाता, और दरिया उतरता और सूख जाता है,
12 Assim o homem se deita, e não se levanta: até que não haja mais céus não acordarão nem se erguerão de seu somno.
वैसे आदमी लेट जाता है और उठता नहीं; जब तक आसमान टल न जाए, वह बेदार न होंगे; और न अपनी नींद से जगाए जाएँगे।
13 Oxalá me escondesses na sepultura, e me occultasses até que a tua ira se desviasse: e me pozesses um limite, e te lembrasses de mim! (Sheol h7585)
काश कि तू मुझे पाताल में छिपा दे, और जब तक तेरा क़हर टल न जाए, मुझे पोशीदा रख्खे; और कोई मुक़र्ररा वक़्त मेरे लिए ठहराए और मुझे याद करे। (Sheol h7585)
14 Morrendo o homem, porventura tornará a viver? todos os dias de meu combate esperaria, até que viesse a minha mudança?
अगर आदमी मर जाए तो क्या वह फिर जिएगा? मैं अपनी जंग के सारे दिनों में मुन्तज़िर रहता जब तक मेरा छुटकारा न होता।
15 Chama-me, e eu te responderei, e affeiçoa-te á obra de tuas mãos.
तू मुझे पुकारता और मैं तुझे जवाब देता; तुझे अपने हाथों की सन'अत की तरफ़ ख्वाहिश होती।
16 Pois agora contas os meus passos: porventura não vigias sobre o meu peccado?
लेकिन अब तो तू मेरे क़दम गिनता है; क्या तू मेरे गुनाह की ताक में लगा नहीं रहता?
17 A minha transgressão está sellada n'um sacco, e amontoas as minhas iniquidades.
मेरी ख़ता थैली में सरब — मुहर है, तू ने मेरे गुनाह को सी रख्खा है।
18 E, na verdade, caindo a montanha, desfaz-se: e a rocha se remove do seu logar.
यक़ीनन पहाड़ गिरते गिरते ख़त्म हो जाता है, और चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाती है।
19 As aguas gastam as pedras, as cheias afogam o pó da terra: e tu fazes perecer a esperança do homem.
पानी पत्थरों को घिसा डालता है, उसकी बाढ़ ज़मीन की ख़ाक को बहाले जाती है; इसी तरह तू इंसान की उम्मीद को मिटा देता है।
20 Tu para sempre prevaleces contra elle, e elle passa; tu, mudando o seu rosto, o despedes.
तू हमेशा उस पर ग़ालिब होता है, इसलिए वह गुज़र जाता है। तू उसका चेहरा बदल डालता और उसे ख़ारिज कर देता है।
21 Os seus filhos estão em honra, sem que elle o saiba: ou ficam minguados sem que elle o perceba:
उसके बेटों की 'इज़्ज़त होती है, लेकिन उसे ख़बर नहीं। वह ज़लील होते हैं लेकिन वह उनका हाल‘नहीं जानता।
22 Mas a sua carne n'elle tem dôres: e a sua alma n'elle lamenta.
बल्कि उसका गोश्त जो उसके ऊपर है, दुखी रहता; और उसकी जान उसके अन्दर ही अन्दर ग़म खाती रहती है।”

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