< 13 >

1 Eis que tudo isto viram os meus olhos, e os meus ouvidos o ouviram e entenderam.
“सुनो, मैं यह सब कुछ अपनी आँख से देख चुका, और अपने कान से सुन चुका, और समझ भी चुका हूँ।
2 Como vós o sabeis, o sei eu tambem; não vos sou inferior.
जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ; मैं तुम लोगों से कुछ कम नहीं हूँ।
3 Mas eu fallarei ao Todo-poderoso, e quero defender-me para com Deus.
मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूँगा, और मेरी अभिलाषा परमेश्वर से वाद-विवाद करने की है।
4 Vós porém sois inventores de mentiras, e vós todos medicos que não valem nada.
परन्तु तुम लोग झूठी बात के गढ़नेवाले हो; तुम सब के सब निकम्मे वैद्य हो।
5 Oxalá vos calasseis de todo! que isso seria a vossa sabedoria.
भला होता, कि तुम बिल्कुल चुप रहते, और इससे तुम बुद्धिमान ठहरते।
6 Ouvi agora a minha defeza, e escutae os argumentos dos meus labios.
मेरा विवाद सुनो, और मेरी विनती की बातों पर कान लगाओ।
7 Porventura por Deus fallareis perversidade? e por elle fallareis engano?
क्या तुम परमेश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे, और उसके पक्ष में कपट से बोलोगे?
8 Ou fareis acceitação da sua pessoa? ou contendereis por Deus?
क्या तुम उसका पक्षपात करोगे? और परमेश्वर के लिये मुकद्दमा चलाओगे।
9 Ser-vos-hia bom, se elle vos esquadrinhasse? ou zombareis d'elle, como se zomba d'algum homem?
क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जाँचे? क्या जैसा कोई मनुष्य को धोखा दे, वैसा ही तुम क्या उसको भी धोखा दोगे?
10 Certamente vos reprehenderá, se em occulto fizerdes acceitação de pessoas.
१०यदि तुम छिपकर पक्षपात करो, तो वह निश्चय तुम को डाँटेगा।
11 Porventura não vos espantará a sua alteza? e não cairá sobre vós o seu temor?
११क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे? क्या उसका डर तुम्हारे मन में न समाएगा?
12 As vossas memorias são como a cinza: as vossas alturas como alturas de lodo.
१२तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं; तुम्हारे गढ़ मिट्टी ही के ठहरे हैं।
13 Calae-vos perante mim, e fallarei eu, e que fique alliviado algum tanto.
१३“मुझसे बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊँ; फिर मुझ पर जो चाहे वह आ पड़े।
14 Por que razão tomo eu a minha carne com os meus dentes, e ponho a minha vida na minha mão?
१४मैं क्यों अपना माँस अपने दाँतों से चबाऊँ? और क्यों अपना प्राण हथेली पर रखूँ?
15 Ainda que me matasse, n'elle esperarei; comtudo os meus caminhos defenderei diante d'elle.
१५वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तो भी मैं अपनी चाल-चलन का पक्ष लूँगा।
16 Tambem elle será a salvação minha: porém o hypocrita não virá perante o seu rosto
१६और यह ही मेरे बचाव का कारण होगा, कि भक्तिहीन जन उसके सामने नहीं जा सकता।
17 Ouvi com attenção as minhas razões, e com os vossos ouvidos a minha declaração.
१७चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी विनती तुम्हारे कान में पड़े।
18 Eis que já tenho ordenado a minha causa, e sei que serei achado justo.
१८देखो, मैंने अपने मुकद्दमे की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निर्दोष ठहरूँगा।
19 Quem é o que contenderá comigo? se eu agora me calasse, daria o espirito.
१९कौन है जो मुझसे मुकद्दमा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप होकर प्राण छोड़ूँगा।
20 Duas coisas sómente não faças para comigo; então me não esconderei do teu rosto:
२०दो ही काम मेरे लिए कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूँगाः
21 Desvia a tua mão para longe, de sobre mim, e não me espante o teu terror.
२१अपनी ताड़ना मुझसे दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर।
22 Chama, pois, e eu responderei; ou eu fallarei, e tu responde-me.
२२तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूँगा; या मैं प्रश्न करूँगा, और तू मुझे उत्तर दे।
23 Quantas culpas e peccados tenho eu? notifica-me a minha transgressão e o meu peccado.
२३मुझसे कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे।
24 Porque escondes o teu rosto, e me tens por teu inimigo?
२४तू किस कारण अपना मुँह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है?
25 Porventura quebrantarás a folha arrebatada do vento? e perseguirás o restolho secco?
२५क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कँपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?
26 Porque escreves contra mim amarguras e me fazes herdar as culpas da minha mocidade?
२६तू मेरे लिये कठिन दुःखों की आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है।
27 Tambem pões no tronco os meus pés, e observas todos os meus caminhos, e marcas as solas dos meus pés.
२७और मेरे पाँवों को काठ में ठोंकता, और मेरी सारी चाल-चलन देखता रहता है; और मेरे पाँवों की चारों ओर सीमा बाँध लेता है।
28 Envelhecendo-se entretanto elle com a podridão, e como o vestido, ao qual roe a traça.
२८और मैं सड़ी-गली वस्तु के तुल्य हूँ जो नाश हो जाती है, और कीड़ा खाए कपड़े के तुल्य हूँ।

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