< مزامیر 44 >
برای رهبر سرایندگان. قصیدۀ پسران قورَح. ای خدا، ما به گوشهای خود شنیدهایم و اجدادمان برای ما تعریف کردهاند که تو در گذشته چه کارهای شگفتانگیزی برای آنان انجام دادهای. | 1 |
ऐ ख़ुदा, हम ने अपने कानों से सुना; हमारे बाप — दादा ने हम से बयान किया, कि तूने उनके दिनों में पिछले ज़माने में क्या क्या काम किए।
تو به دست خود قومهای بتپرست را از این سرزمین بیرون راندی و اجداد ما را به جای آنها مستقر نمودی. قومهای خدانشناس را از بین بردی، اما بنیاسرائیل را در سرزمین موعود تثبیت نمودی. | 2 |
तूने क़ौमों को अपने हाथ से निकाल दिया, और उनको बसाया: तूने उम्मतों को तबाह किया, और इनको चारों तरफ़ फैलाया;
قوم تو به زور شمشیر این سرزمین را تسخیر نکردند و به قدرت بازوی خویش نجات نیافتند، بلکه قدرت و توانایی تو و اطمینان به حضور تو ایشان را رهانید، زیرا از ایشان خرسند بودی. | 3 |
क्यूँकि न तो यह अपनी तलवार से इस मुल्क पर क़ाबिज़ हुए, और न इनकी ताक़त ने इनको बचाया; बल्कि तेरे दहने हाथ और तेरी ताक़त और तेरे चेहरे के नूर ने इनको फ़तह बख़्शी क्यूँकि तू इनसे ख़ुश था।
ای خدا، تو پادشاه من هستی؛ اکنون نیز قوم خود اسرائیل را پیروز گردان. | 4 |
ऐ ख़ुदा! तू मेरा बादशाह है; या'क़ूब के हक़ में नजात का हुक्म सादिर फ़रमा।
ما با کمک تو دشمنان خود را شکست خواهیم داد و به نام تو کسانی را که بر ضد ما برخاستهاند، پایمال خواهیم کرد. | 5 |
तेरी बदौलत हम अपने मुख़ालिफ़ों को गिरा देंगे; तेरे नाम से हम अपने ख़िलाफ़ उठने वालों को पस्त करेंगे।
امید من به تیر و کمانم نیست، و نه به شمشیرم که مرا نجات دهد، | 6 |
क्यूँकि न तो मैं अपनी कमान पर भरोसा करूँगा, और न मेरी तलवार मुझे बचाएगी।
زیرا این تو بودی که ما را از دست دشمنان نجات دادی، و آنانی را که از ما متنفر بودند شکست دادی. | 7 |
लेकिन तूने हम को हमारे मुख़ालिफ़ों से बचाया है, और हम से 'अदावत रखने वालों को शर्मिन्दा किया।
برای همیشه تو را ستایش خواهیم کرد، و تا ابد از تو سپاسگزار خواهیم بود. | 8 |
हम दिन भर ख़ुदा पर फ़ख़्र करते रहे हैं, और हमेशा हम तेरे ही नाम का शुक्रिया अदा करते रहेंगे।
اما اکنون تو ما را دور انداختهای و رسوا ساختهای؛ دیگر لشکرهای ما را در جنگ کمک نمیکنی. | 9 |
लेकिन तूने तो अब हम को छोड़ दिया और हम को रुस्वा किया, और हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता।
تو ما را در مقابل دشمنان شکست دادهای و آنها اکنون ما را غارت میکنند. | 10 |
तू हम को मुख़ालिफ़ के आगे पस्पा करता है, और हम से 'अदावत रखने वाले लूट मार करते हैं
ما را همچون گوسفندان به کشتارگاه فرستادهای و در میان قومهای خدانشناس پراکنده ساختهای. | 11 |
तूने हम को ज़बह होने वाली भेड़ों की तरह कर दिया, और क़ौमों के बीच हम को तितर बितर किया।
تو قوم برگزیدهات را ارزان فروختهای و از فروش آنها سودی نبردهای. | 12 |
तू अपने लोगों को मुफ़्त बेच डालता है, और उनकी क़ीमत से तेरी दौलत नहीं बढ़ती।
ما را نزد همسایگان خوار ساختهای و ما مورد تمسخر و توهین اطرافیان قرار گرفتهایم. | 13 |
तू हम को हमारे पड़ोसियों की मलामत का निशाना, और हमारे आसपास के लोगों के तमसखु़र और मज़ाक़ का जरिया' बनाता है।
ما را در میان قومهای خدانشناس انگشتنما ساختهای و آنها ما را به باد ریشخند گرفتهاند. | 14 |
तू हम को क़ौमों के बीच एक मिसाल, और उम्मतों में सिर हिलाने की वजह ठहराता है।
از تحقیر دائمی آنها گریزی نیست؛ صورتهای ما از شرم پوشیده شده است. | 15 |
मेरी रुस्वाई दिन भर मेरे सामने रहती है, और मेरे मुँह पर शर्मिन्दी छा गई।
از هر سو دشنامهای مخالفان به گوش ما میرسد و در برابر خود دشمنان انتقامجو را میبینیم. | 16 |
मलामत करने वाले और कुफ़्र बकने वाले की बातों की वजह से, और मुख़ालिफ़ और इन्तक़ाम लेने वाले की वजह।
این همه بر ما واقع شده است، ولی تو را فراموش نکردهایم و پیمانی را که با ما بستهای نشکستهایم. | 17 |
यह सब कुछ हम पर बीता तोभी हम तुझ को नहीं भूले, न तेरे 'अहद से बेवफ़ाई की;
نسبت به تو دلسرد نشدهایم و از راه تو منحرف نگشتهایم. | 18 |
न हमारे दिल नाफ़रमान हुए, न हमारे क़दम तेरी राह से मुड़े;
با وجود این، تو ما را در میان حیوانات وحشی رها نمودهای و با مرگ روبرو ساختهای. | 19 |
जो तूने हम को गीदड़ों की जगह में खू़ब कुचला, और मौत के साये में हम को छिपाया।
اگر ما نام خدای خود را فراموش میکردیم و دستهای خود را به سوی بتها دراز میکردیم، | 20 |
अगर हम अपने ख़ुदा के नाम को भूले, या हम ने किसी अजनबी मा'बूद के आगे अपने हाथ फैलाए हों:
آیا خدا که اسرار دل هر کس را میداند، این را نمیدانست؟ | 21 |
तो क्या ख़ुदा इसे दरियाफ़्त न कर लेगा? क्यूँकि वह दिलों के राज़ जानता है।
تو میدانی که ما به خاطر تو هر روز با مرگ روبرو میشویم و با ما همچون گوسفندانی که باید قربانی شوند رفتار میکنند. | 22 |
बल्कि हम तो दिन भर तेरी ही ख़ातिर जान से मारे जाते हैं, और जैसे ज़बह होने वाली भेड़ें समझे जाते हैं।
ای خداوند، بیدار شو! چرا خوابیدهای؟ بیدار شو و ما را تا ابد دور نیانداز! | 23 |
ऐ ख़ुदावन्द, जाग! तू क्यूँ सोता है? उठ! हमेशा के लिए हम को न छोड़।
چرا روی خود را از ما برمیگردانی و ذلت و خواری ما را نادیده میگیری؟ | 24 |
तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और हमारी मुसीबत और मज़लूमी को भूलता है?
اینک به خاک افتاده و مغلوب شدهایم. | 25 |
क्यूँकि हमारी जान ख़ाक में मिल गई, हमारा जिस्म मिट्टी हो गया।
برخیز و به کمک ما بشتاب و ما را نجات ده زیرا تو سراسر، رحمت و محبتی! | 26 |
हमारी मदद के लिए उठ और अपनी शफ़क़त की ख़ातिर, हमारा फ़िदिया दे।