< مزامیر 43 >
خدایا، از من در برابر مردم بیرحم دفاع کن و مرا تبرئه نما؛ مرا از دست اشخاص حیلهگر و ظالم برهان. | 1 |
ऐ ख़ुदा, मेरा इन्साफ़ कर और बेदीन क़ौम के मुक़ाबले में मेरी वकालत कर, और दग़ाबाज़ और बेइन्साफ़ आदमी से मुझे छुड़ा।
خدایا، تو پناهگاه من هستی؛ چرا مرا طرد کردهای؟ چرا باید به سبب ستم دشمنان نالهکنان به این سو و آن سو بروم؟ | 2 |
क्यूँकि तू ही मेरी ताक़त का ख़ुदा है, तूने क्यूँ मुझे छोड़ दिया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?
نور و راستی خود را بفرست تا هدایتم کنند و مرا به کوه مقدّس تو و به مکان سکونتت بازگردانند. | 3 |
अपने नूर, अपनी सच्चाई को भेज, वही मेरी रहबरी करें, वही मुझ को तेरे पाक पहाड़ और तेरे घर तक पहुँचाए।
آنگاه به مذبح تو خواهم رفت، ای خدایی که شادی و خوشی من هستی، و در آنجا با نغمهٔ بربط و سرود تو را ستایش خواهم کرد. | 4 |
तब मैं ख़ुदा के मज़बह के पास जाऊँगा, ख़ुदा के सामने जो मेरी कमाल ख़ुशी है; ऐ ख़ुदा! मेरे ख़ुदा! मैं सितार बजा कर तेरी सिताइश करूँगा।
ای جان من، چرا محزون و افسردهای؟ بر خدا امید داشته باش! او را دوباره ستایش کن، زیرا او خدا و نجاتدهندۀ توست! | 5 |
ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक़ और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।