< مزامیر 130 >

سرود زائران به هنگام بالا رفتن به اورشلیم. ای خداوند، از گرداب غم نزد تو فریاد برمی‌آورم. 1
ଆରୋହଣ ଗୀତ। ହେ ସଦାପ୍ରଭୋ, ମୁଁ ଗଭୀର ଜଳରେ ଥାଇ ତୁମ୍ଭ ନିକଟରେ ଡାକ ପକାଇଅଛି।
خداوندا، صدای مرا بشنو و به ناله‌ام گوش فرا ده! 2
ହେ ପ୍ରଭୋ, ମୋʼ ରବ ଶୁଣ; ତୁମ୍ଭ କର୍ଣ୍ଣ ମୋʼ ବିନତି-ରବରେ ମନୋଯୋଗ କରୁ।
ای خداوند، اگر تو گناهان ما را به نظر آوری، کیست که بتواند تبرئه شود؟ 3
ହେ ସଦାପ୍ରଭୋ, ତୁମ୍ଭେ ଯଦି ଅପରାଧସବୁ ଧରିବ, ତେବେ ହେ ପ୍ରଭୋ, କିଏ ଠିଆ ହେବ?
اما تو گناهان ما را می‌بخشی، پس تو را گرامی می‌داریم و از تو اطاعت می‌کنیم. 4
ମାତ୍ର ତୁମ୍ଭଙ୍କୁ ଯେପରି ଭୟ କରାଯାଏ, ଏଥିପାଇଁ ତୁମ୍ଭଠାରେ କ୍ଷମା ଅଛି।
من بی‌صبرانه منتظر خداوند هستم و به وعده‌ای که داده است امید بسته‌ام. 5
ମୁଁ ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କର ଅପେକ୍ଷା କରୁଅଛି, ମୋʼ ପ୍ରାଣ ଅପେକ୍ଷା କରୁଅଛି, ପୁଣି, ମୁଁ ତାହାଙ୍କ ବାକ୍ୟରେ ଭରସା ରଖୁଅଛି।
آری، من منتظر خداوند هستم بیش از کشیکچیانی که منتظر دمیدن سپیدهٔ صبح هستند، آری، بیش از کشیکچیانی که منتظر دمیدن سپیدهٔ صبح هستند. 6
ପ୍ରହରୀମାନେ ପ୍ରଭାତ ପାଇଁ ଚାହିଁ ରହିବା ଅପେକ୍ଷା ମୋʼ ପ୍ରାଣ ପ୍ରଭୁଙ୍କ ପାଇଁ ଅଧିକ ଚାହିଁ ରହେ; ହଁ, ପ୍ରହରୀମାନଙ୍କର ପ୍ରଭାତ ପାଇଁ ଚାହିଁ ରହିବା ଅପେକ୍ଷା ଅଧିକ।
ای اسرائیل، به خداوند امیدوار باش، زیرا محبت او عظیم است؛ اوست که می‌تواند ما را نجات فراوان بخشد. 7
ହେ ଇସ୍ରାଏଲ, ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କଠାରେ ଭରସା ରଖ; କାରଣ ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କଠାରେ ଦୟା ଅଛି ଓ ତାହାଙ୍କଠାରେ ପ୍ରଚୁର ମୁକ୍ତି ଅଛି।
خداوند اسرائیل را از همهٔ گناهانش نجات خواهد داد. 8
ପୁଣି, ସେ ଇସ୍ରାଏଲକୁ ତାହାର ସମସ୍ତ ଅପରାଧରୁ ମୁକ୍ତ କରିବେ।

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