< مزامیر 124 >
سرود زائران به هنگام بالا رفتن به اورشلیم. مزمور داوود. اگر خداوند با ما نمیبود چه میشد؟ بگذار اسرائیل بگوید: | 1 |
अब इस्राईल यूँ कहे, अगर ख़ुदावन्द हमारी तरफ़ न होता,
اگر خداوند با ما نمیبود هنگامی که دشمنان بر ما یورش آوردند، | 2 |
अगर ख़ुदावन्द उस वक़्त हमारी तरफ़ न होता, जब लोग हमारे ख़िलाफ़ उठे,
آنها در خشم آتشین خود ما را زنده میبلعیدند! | 3 |
तो जब उनका क़हर हम पर भड़का था, वह हम को ज़िन्दा ही निगल जाते।
سیل ما را با خود میبُرد و آبها از سر ما میگذشت. | 4 |
उस वक़्त पानी हम को डुबो देता, और सैलाब हमारी जान पर से गुज़र जाता।
آری، در گردابها غرق میشدیم! | 5 |
उस वक़्त मौजज़न, पानी हमारी जान पर से गुज़र जाता।
سپاس بر خداوند که نگذاشت ما شکار دندانهای آنها شویم. | 6 |
ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने हमें उनके दाँतों का शिकार न होने दिया।
همچون پرنده، از دام صیاد گریختیم. دام پاره شد و ما نجات یافتیم. | 7 |
हमारी जान चिड़िया की तरह चिड़ीमारों के जाल से बच निकली, जाल तो टूट गया और हम बच निकले।
مددکار ما خداوند است که آسمان و زمین را آفرید. | 8 |
हमारी मदद ख़ुदावन्द के नाम से है, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया।