< مزامیر 120 >
سرود زائران به هنگام بالا رفتن به اورشلیم. وقتی در زحمت بودم، از خداوند کمک خواستم و او به داد من رسید. | 1 |
१यात्रा का गीत संकट के समय मैंने यहोवा को पुकारा, और उसने मेरी सुन ली।
ای خداوند مرا از دست دروغگویان و مردم حیلهگر نجات بده. | 2 |
२हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुँह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर।
ای حیلهگران، میدانید چه در انتظار شماست؟ | 3 |
३हे छली जीभ, तुझको क्या मिले? और तेरे साथ और क्या अधिक किया जाए?
تیرهای تیز و اخگرهای داغ! | 4 |
४वीर के नोकीले तीर और झाऊ के अंगारे!
شما مانند مردمان «ماشک» و خیمه نشینان «قیدار» شرور هستید. وای بر من که در بین شما زندگی میکنم! | 5 |
५हाय, हाय, क्योंकि मुझे मेशेक में परदेशी होकर रहना पड़ा और केदार के तम्बुओं में बसना पड़ा है!
از زندگی کردن در میان این جنگطلبان خسته شدهام. | 6 |
६बहुत समय से मुझ को मेल के बैरियों के साथ बसना पड़ा है।
من صلح را دوست دارم، اما آنان طرفدار جنگ هستند و به سخنان من گوش نمیدهند. | 7 |
७मैं तो मेल चाहता हूँ; परन्तु मेरे बोलते ही, वे लड़ना चाहते हैं!