< مزامیر 102 >

دعای شخص مصیبت دیده، که نالۀ خود را به حضور خداوند می‌ریزد. ای خداوند، دعای مرا بشنو و به فریادم گوش فرا ده! 1
संकट में पुकारा आक्रांत पुरुष की अभ्यर्थना. वह अत्यंत उदास है और याहवेह के सामने अपनी हृदय-पीड़ा का वर्णन कर रहा है याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए; सहायता के लिए मेरी पुकार आप तक पहुंचे.
وقتی که در زحمت هستم، روی خود را از من برنگردان! به من توجه فرما، و هرگاه دعا کنم بی‌درنگ مرا اجابت فرما! 2
मेरी पीड़ा के समय मुझसे अपना मुखमंडल छिपा न लीजिए. जब मैं पुकारूं. अपने कान मेरी ओर कीजिए; मुझे शीघ्र उत्तर दीजिए.
عمرم چون دود به سرعت ناپدید می‌شود و استخوانهایم همچون چوب خشک می‌سوزد. 3
धुएं के समान मेरा समय विलीन होता जा रहा है; मेरी हड्डियां दहकते अंगारों जैसी सुलग रही हैं.
دل من مانند گیاهی است که کوبیده و خشک شده باشد. غذا خوردن را از یاد برده‌ام. 4
घास के समान मेरा हृदय झुलस कर मुरझा गया है; मुझे स्मरण ही नहीं रहता कि मुझे भोजन करना है.
با صدای بلند می‌نالم؛ جز پوست و استخوان چیزی در بدنم نمانده است. 5
मेरी सतत कराहटों ने मुझे मात्र हड्डियों एवं त्वचा का ढांचा बनाकर छोड़ा है.
همچون پرنده‌ای وحشی، آوارهٔ صحرا شده‌ام و چون جغد خرابه‌نشین، بی‌خانمان گشته‌ام. 6
मैं वन के उल्लू समान होकर रह गया हूं, उस उल्लू के समान, जो खंडहरों में निवास करता है.
مانند گنجشکی بر پشت بام، تنها مانده‌ام؛ خواب به چشمانم نمی‌رود. 7
मैं सो नहीं पाता, मैं छत के एकाकी पक्षी-सा हो गया हूं.
هر روز دشمنانم مرا تحقیر می‌کنند و مخالفانم مرا لعنت می‌نمایند. 8
दिन भर मैं शत्रुओं के ताने सुनता रहता हूं; जो मेरी निंदा करते हैं, वे मेरा नाम शाप के रूप में जाहिर करते हैं.
به سبب خشم و غضب تو ای خداوند، غذای من خاکستر است و نوشیدنی‌ام با اشکهایم آمیخته است. زیرا تو مرا برداشتی و به کنار انداختی. 9
राख ही अब मेरा आहार हो गई है और मेरे आंसू मेरे पेय के साथ मिश्रित होते रहते हैं.
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यह सब आपके क्रोध, उग्र कोप का परिणाम है क्योंकि आपने मुझे ऊंचा उठाया और आपने ही मुझे अलग फेंक दिया है.
عمرم چون سایه‌های عصر، زودگذر است؛ همچون علف خشک پژمرده شده‌ام. 11
मेरे दिन अब ढलती छाया-समान हो गए हैं; मैं घास के समान मुरझा रहा हूं.
اما تو ای خداوند، تا ابد پادشاه هستی؛ ذکر تو در تمام نسلها باقی خواهد ماند. 12
किंतु, याहवेह, आप सदा-सर्वदा सिंहासन पर विराजमान हैं; आपका नाम पीढ़ी से पीढ़ी स्थायी रहता है.
تو برخاسته، بر اورشلیم ترحم خواهی فرمود؛ اکنون زمان آن رسیده است که بر اورشلیم رحمت فرمایی. 13
आप उठेंगे और ज़ियोन पर मनोहरता करेंगे, क्योंकि यही सुअवसर है कि आप उस पर अपनी कृपादृष्टि प्रकाशित करें. वह ठहराया हुआ अवसर आ गया है.
بندگان تو سنگها و خاک اورشلیم را دوست دارند! 14
इस नगर का पत्थर-पत्थर आपके सेवकों को प्रिय है; यहां तक कि यहां की धूल तक उन्हें द्रवित कर देती है.
قومها از نام خداوند خواهند ترسید و همه پادشاهان جهان از قدرت و عظمت او هراسان خواهند شد. 15
समस्त राष्ट्रों पर आपके नाम का आतंक छा जाएगा, पृथ्वी के समस्त राजा आपकी महिमा के सामने नतमस्तक हो जाएंगे.
او شهر اورشلیم را دوباره بنا خواهد کرد و با جلال و شکوه فراوان ظاهر خواهد شد. 16
क्योंकि याहवेह ने ज़ियोन का पुनर्निर्माण किया है; वे अपने तेज में प्रकट हुए हैं.
به دعای قوم درمانده خود توجه نموده، ایشان را اجابت خواهد نمود. 17
याहवेह लाचार की प्रार्थना का प्रत्युत्तर देते हैं; उन्होंने उनकी गिड़गिड़ाहट का तिरस्कार नहीं किया.
آنچه که خداوند انجام می‌دهد برای نسل آینده نوشته خواهد شد تا ایشان نیز او را ستایش کنند: 18
भावी पीढ़ी के हित में यह लिखा जाए, कि वे, जो अब तक अस्तित्व में ही नहीं आए हैं, याहवेह का स्तवन कर सकें:
«خداوند از مکان مقدّس خود در آسمان، به زمین نظر انداخت تا ناله اسیران را بشنود و آنها را که به مرگ محکوم شده بودند، آزاد سازد.» 19
“याहवेह ने अपने महान मंदिर से नीचे की ओर दृष्टि की, उन्होंने स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि की,
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कि वह बंदियों का कराहना सुनें और उन्हें मुक्त कर दें, जिन्हें मृत्यु दंड दिया गया है.”
بنابراین وقتی قومها در اورشلیم گرد هم بیایند تا خدا را در خانهٔ او پرستش کنند، نام خداوند در اورشلیم ستوده و سراییده خواهد شد. 21
कि मनुष्य ज़ियोन में याहवेह की महिमा की घोषणा कर सकें तथा येरूशलेम में उनका स्तवन,
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जब लोग तथा राज्य याहवेह की वंदना के लिए एकत्र होंगे.
خداوند در جوانی‌ام توان مرا از من گرفته و عمرم را کوتاه ساخته است. 23
मेरी जीवन यात्रा पूर्ण भी न हुई थी, कि उन्होंने मेरा बल शून्य कर दिया; उन्होंने मेरी आयु घटा दी.
ای خدای من، نگذار در جوانی بمیرم! تو تا ابد زنده هستی! 24
तब मैंने आग्रह किया: “मेरे परमेश्वर, मेरे जीवन के दिनों के पूर्ण होने के पूर्व ही मुझे उठा न लीजिए; आप तो पीढ़ी से पीढ़ी स्थिर ही रहते हैं.
تو از قدیم بنیاد زمین را نهادی و آسمانها را به دست خود ساختی. 25
प्रभु, आपने प्रारंभ में ही पृथ्वी की नींव रखी, तथा आकाशमंडल आपके ही हाथों की कारीगरी है.
آنها فانی می‌شوند، اما تو باقی هستی. همهٔ آنها همچون جامۀ کهنه، پوسیده خواهند شد. تو آنها را مانند لباس عوض خواهی کرد و به دور خواهی افکند. 26
वे तो नष्ट हो जाएंगे किंतु आप अस्तित्व में ही रहेंगे; वे सभी वस्त्र समान पुराने हो जाएंगे. आप उन्हें वस्त्रों के ही समान परिवर्तित कर देंगे उनका अस्तित्व समाप्‍त हो जाएगा.
اما تو جاودانی هستی و برای تو هرگز پایانی وجود ندارد. 27
आप न बदलनेवाले हैं, आपकी आयु का कोई अंत नहीं.
فرزندان بندگانت، همیشه در امان خواهند بود و نسل آنها از حمایت تو برخوردار خواهند شد. 28
आपके सेवकों की सन्तति आपकी उपस्थिति में निवास करेंगी; उनके वंशज आपके सम्मुख स्थिर रहेंगे.”

< مزامیر 102 >