< اعداد 23 >
بلعام به بالاقِ پادشاه گفت: «در اینجا هفت مذبح بساز و هفت گاو و هفت قوچ برای قربانی حاضر کن.» | 1 |
१तब बिलाम ने बालाक से कहा, “यहाँ पर मेरे लिये सात वेदियाँ बनवा, और इसी स्थान पर सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।”
بالاق به دستور بلعام عمل نمود و ایشان بر هر مذبح، یک گاو و یک قوچ قربانی کردند. | 2 |
२तब बालाक ने बिलाम के कहने के अनुसार किया; और बालाक और बिलाम ने मिलकर प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
بعد بلعام به بالاق گفت: «در اینجا در کنار قربانیهای سوختنی خود بایست تا من بروم و ببینم آیا خداوند به ملاقات من میآید یا نه. هر چه او به من بگوید به تو خواهم گفت.» پس بلعام به بالای تپهای رفت و در آنجا خدا او را ملاقات نمود. بلعام به خدا گفت: «من هفت مذبح حاضر نموده و روی هر کدام یک گاو و یک قوچ قربانی کردهام.» | 3 |
३फिर बिलाम ने बालाक से कहा, “तू अपने होमबलि के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूँ; सम्भव है कि यहोवा मुझसे भेंट करने को आए; और जो कुछ वह मुझ पर प्रगट करेगा वही मैं तुझको बताऊँगा।” तब वह एक मुण्डे पहाड़ पर गया।
४और परमेश्वर बिलाम से मिला; और बिलाम ने उससे कहा, “मैंने सात वेदियाँ तैयार की हैं, और प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है।”
آنگاه خداوند توسط بلعام برای بالاق پادشاه پیامی فرستاد. | 5 |
५यहोवा ने बिलाम के मुँह में एक बात डाली, और कहा, “बालाक के पास लौट जा, और इस प्रकार कहना।”
پس بلعام به نزد پادشاه که با همهٔ بزرگان موآب در کنار قربانیهای سوختنی خود ایستاده بود بازگشت | 6 |
६और वह उसके पास लौटकर आ गया, और क्या देखता है कि वह सारे मोआबी हाकिमों समेत अपने होमबलि के पास खड़ा है।
و این پیام را داد: «بالاق، پادشاه موآب مرا از سرزمین ارام، از کوههای شرقی آورد. او به من گفت:”بیا و قوم اسرائیل را برای من نفرین کن.“ولی چگونه نفرین کنم آنچه را که خدا نفرین نکرده است؟ چگونه لعنت کنم قومی را که خداوند لعنت نکرده است؟ از بالای صخرهها ایشان را میبینم، از بالای تپهها آنان را مشاهده میکنم. آنان قومی هستند که به تنهایی زندگی میکنند و خود را از دیگر قومها جدا میدانند. ایشان مثل غبارند، بیشمار و بیحساب! ای کاش این سعادت را میداشتم که همچون یک صالح بمیرم. ای کاش عاقبت من، مثل عاقبت آنها باشد!» | 7 |
७तब बिलाम ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, “बालाक ने मुझे अराम से, अर्थात् मोआब के राजा ने मुझे पूर्व के पहाड़ों से बुलवा भेजा: ‘आ, मेरे लिये याकूब को श्राप दे, आ, इस्राएल को धमकी दे!’
८परन्तु जिन्हें परमेश्वर ने श्राप नहीं दिया उन्हें मैं क्यों श्राप दूँ? और जिन्हें यहोवा ने धमकी नहीं दी उन्हें मैं कैसे धमकी दूँ?
९चट्टानों की चोटी पर से वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, पहाड़ियों पर से मैं उनको देखता हूँ; वह ऐसी जाति है जो अकेली बसी रहेगी, और अन्यजातियों से अलग गिनी जाएगी!
१०याकूब के धूलि के किनके को कौन गिन सकता है, या इस्राएल की चौथाई की गिनती कौन ले सकता है? सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धर्मियों की सी, और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो!”
بالاق پادشاه به بلعام گفت: «این چه کاری بود که کردی؟ من به تو گفتم که دشمنانم را نفرین کنی، ولی تو ایشان را برکت دادی!» | 11 |
११तब बालाक ने बिलाम से कहा, “तूने मुझसे क्या किया है? मैंने तुझे अपने शत्रुओं को श्राप देने को बुलवाया था, परन्तु तूने उन्हें आशीष ही आशीष दी है।”
اما بلعام جواب داد: «آیا میتوانم سخن دیگری غیر از آنچه که خداوند به من میگوید بر زبان آورم؟» | 12 |
१२उसने कहा, “जो बात यहोवा ने मुझे सिखलाई, क्या मुझे उसी को सावधानी से बोलना न चाहिये?”
بعد بالاق به او گفت: «پس بیا تا تو را به جای دیگری ببرم. از آنجا فقط قسمتی از قوم اسرائیل را خواهی دید. حداقل آن عده را نفرین کن.» | 13 |
१३बालाक ने उससे कहा, “मेरे संग दूसरे स्थान पर चल, जहाँ से वे तुझे दिखाई देंगे; तू उन सभी को तो नहीं, केवल बाहरवालों को देख सकेगा; वहाँ से उन्हें मेरे लिये श्राप दे।”
بنابراین بالاق پادشاه، بلعام را به مزرعهٔ صوفیم بر روی کوه پیسگاه برد و در آنجا هفت مذبح ساخت و روی هر مذبح یک گاو و یک قوچ قربانی کرد. | 14 |
१४तब वह उसको सोपीम नामक मैदान में पिसगा के सिरे पर ले गया, और वहाँ सात वेदियाँ बनवाकर प्रत्येक पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
پس بلعام به پادشاه گفت: «تو در کنار قربانی سوختنی خود بایست تا من به ملاقات خداوند بروم.» | 15 |
१५तब बिलाम ने बालाक से कहा, “अपने होमबलि के पास यहीं खड़ा रह, और मैं उधर जाकर यहोवा से भेंट करूँ।”
خداوند بلعام را ملاقات نمود و آنچه را که او میبایست به بالاق بگوید به او گفت. | 16 |
१६और यहोवा ने बिलाम से भेंट की, और उसने उसके मुँह में एक बात डाली, और कहा, “बालाक के पास लौट जा, और इस प्रकार कहना।”
پس بلعام به نزد پادشاه که با بزرگان موآب در کنار قربانیهای سوختنی خود ایستاده بود، بازگشت. پادشاه پرسید: «خداوند چه فرموده است؟» | 17 |
१७और वह उसके पास गया, और क्या देखता है कि वह मोआबी हाकिमों समेत अपने होमबलि के पास खड़ा है। और बालाक ने पूछा, “यहोवा ने क्या कहा है?”
جواب بلعام چنین بود: «بالاق، برخیز و بشنو! ای پسر صفور، به من گوش فرا ده! | 18 |
१८तब बिलाम ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, “हे बालाक, मन लगाकर सुन, हे सिप्पोर के पुत्र, मेरी बात पर कान लगा:
خدا انسان نیست که دروغ بگوید، او مثل انسان نیست که تغییر فکر دهد. آیا تاکنون وعدهای داده است که بدان عمل نکرده باشد؟ یا کلامی بر زبان آورده که به انجام نرسانده باشد؟ | 19 |
१९परमेश्वर मनुष्य नहीं कि झूठ बोले, और न वह आदमी है कि अपनी इच्छा बदले। क्या जो कुछ उसने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उसे पूरा न करे?
به من دستور داده شده است که ایشان را برکت دهم، زیرا خدا آنان را برکت داده است و من نمیتوانم آن را تغییر دهم. | 20 |
२०देख, आशीर्वाद ही देने की आज्ञा मैंने पाई है: वह आशीष दे चुका है, और मैं उसे नहीं पलट सकता।
او گناهی در اسرائیل ندیده است، پس بدبختی در قوم خدا مشاهده نخواهد شد. خداوند، خدای ایشان با آنان است، و ایشان اعلان میکنند که او پادشاه آنهاست. | 21 |
२१उसने याकूब में अनर्थ नहीं पाया; और न इस्राएल में अन्याय देखा है। उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग है, और उनमें राजा की सी ललकार होती है।
خدا اسرائیل را از مصر بیرون آورده است، آنها مثل شاخهای گاو وحشی نیرومند هستند. | 22 |
२२उनको मिस्र में से परमेश्वर ही निकाले लिए आ रहा है, वह तो जंगली साँड़ के समान बल रखता है।
نمیتوان اسرائیل را نفرین کرد، و هیچ افسونی بر این قوم کارگر نیست. دربارهٔ اسرائیل خواهند گفت:”ببینید خدا برای آنها چه کارهایی کرده است!“ | 23 |
२३निश्चय कोई मंत्र याकूब पर नहीं चल सकता, और इस्राएल पर भावी कहना कोई अर्थ नहीं रखता; परन्तु याकूब और इस्राएल के विषय में अब यह कहा जाएगा, कि परमेश्वर ने क्या ही विचित्र काम किया है!
این قوم، چون شیر ماده برمیخیزد، و همچون شیر نر خود را بر پا میدارد. و تا وقتی شکار خود را نخورند و خون کشتگان را ننوشند، نمیخوابند.» | 24 |
२४सुन, वह दल सिंहनी के समान उठेगा, और सिंह के समान खड़ा होगा; वह जब तक शिकार को न खा ले, और मरे हुओं के लहू को न पी ले, तब तक न लेटेगा।”
پادشاه به بلعام گفت: «اگر آنها را نفرین نمیکنی، حداقل برکتشان هم نده.» | 25 |
२५तब बालाक ने बिलाम से कहा, “उनको न तो श्राप देना, और न आशीष देना।”
اما بلعام جواب داد: «مگر به تو نگفتم هر چه خداوند بر زبانم بگذارد آن را خواهم گفت؟» | 26 |
२६बिलाम ने बालाक से कहा, “क्या मैंने तुझ से नहीं कहा कि जो कुछ यहोवा मुझसे कहेगा, वही मुझे करना पड़ेगा?”
بعد بالاق پادشاه، به بلعام گفت: «تو را به جای دیگری میبرم، شاید خدا را خوش آید و به تو اجازه فرماید از آنجا بنیاسرائیل را نفرین کنی.» | 27 |
२७बालाक ने बिलाम से कहा, “चल मैं तुझको एक और स्थान पर ले चलता हूँ; सम्भव है कि परमेश्वर की इच्छा हो कि तू वहाँ से उन्हें मेरे लिये श्राप दे।”
پس بالاق پادشاه بلعام را به قلهٔ کوه فغور که مشرف به بیابان بود، برد. | 28 |
२८तब बालाक बिलाम को पोर के सिरे पर, जहाँ से यशीमोन देश दिखाई देता है, ले गया।
بلعام دوباره به بالاق گفت که هفت مذبح بسازد و هفت گاو و هفت قوچ برای قربانی حاضر کند. | 29 |
२९और बिलाम ने बालाक से कहा, “यहाँ पर मेरे लिये सात वेदियाँ बनवा, और यहाँ सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।”
بالاق چنانکه بلعام گفته بود عمل نمود و بر هر مذبح، یک گاو و یک قوچ قربانی کرد. | 30 |
३०बिलाम के कहने के अनुसार बालाक ने प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।