< نحمیا 2 >
چهار ماه بعد، یک روز وقتی جام شراب را به دست اردشیر پادشاه میدادم، از من پرسید: «چرا اینقدر غمگینی؟ به نظر نمیرسد بیمار باشی، پس حتماً فکری تو را ناراحت کرده است.» (تا آن روز پادشاه هرگز مرا غمگین ندیده بود.) از این سؤال او بسیار ترسیدم، | 1 |
१अर्तक्षत्र राजा के बीसवें वर्ष के नीसान नामक महीने में, जब उसके सामने दाखमधु था, तब मैंने दाखमधु उठाकर राजा को दिया। इससे पहले मैं उसके सामने कभी उदास न हुआ था।
२तब राजा ने मुझसे पूछा, “तू तो रोगी नहीं है, फिर तेरा मुँह क्यों उतरा है? यह तो मन ही की उदासी होगी।” तब मैं अत्यन्त डर गया।
ولی در جواب گفتم: «پادشاه تا به ابد زنده بماند! وقتی شهری که اجدادم در آن دفن شدهاند، ویران شده و تمام دروازههایش سوخته، من چطور میتوانم غمگین نباشم؟» | 3 |
३मैंने राजा से कहा, “राजा सदा जीवित रहे! जब वह नगर जिसमें मेरे पुरखाओं की कब्रें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुँह क्यों न उतरे?”
پادشاه پرسید: «درخواستت چیست؟» آنگاه به خدای آسمانها دعا کردم | 4 |
४राजा ने मुझसे पूछा, “फिर तू क्या माँगता है?” तब मैंने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना करके, राजा से कहा;
و بعد جواب دادم: «اگر پادشاه راضی باشند و اگر نظر لطف به من داشته باشند، مرا به سرزمین یهودا بفرستند تا شهر اجدادم را بازسازی کنم.» | 5 |
५“यदि राजा को भाए, और तू अपने दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कब्रों के नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊँ।”
پادشاه در حالی که ملکه در کنار او نشسته بود، با رفتنم موافقت کرده، پرسید: «سفرت چقدر طول خواهد کشید و کی مراجعت خواهی کرد؟» من نیز زمانی برای بازگشت خود تعیین کردم. | 6 |
६तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी थी, मुझसे पूछा, “तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लौटेगा?” अतः राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैंने उसके लिये एक समय नियुक्त किया।
سپس به پادشاه گفتم: «اگر پادشاه صلاح بدانند، برای حاکمان منطقهٔ غرب رود فرات نامه بنویسند و سفارش مرا به ایشان بکنند تا اجازه بدهند از آن منطقه عبور کنم و به سرزمین یهودا برسم. | 7 |
७फिर मैंने राजा से कहा, “यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियों के लिये इस आशय की चिट्ठियाँ मुझे दी जाएँ कि जब तक मैं यहूदा को न पहुँचूँ, तब तक वे मुझे अपने-अपने देश में से होकर जाने दें।
یک نامه هم برای آساف، مسئول جنگلهای سلطنتی بنویسند و به او دستور بدهند تا برای بازسازی دروازههای قلعهٔ کنار خانهٔ خدا و حصار اورشلیم و خانهٔ خودم، به من چوب بدهد.» پادشاه تمام درخواستهای مرا قبول کرد، زیرا دست مهربان خدایم بر سر من بود. | 8 |
८और सरकारी जंगल के रखवाले आसाप के लिये भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कड़ियों के लिये, और शहरपनाह के, और उस घर के लिये, जिसमें मैं जाकर रहूँगा, लकड़ी दे।” मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर थी, इसलिए राजा ने यह विनती स्वीकार कर ली।
وقتی به غرب رود فرات رسیدم، نامههای پادشاه را به حاکمان آنجا دادم. (این را هم باید اضافه کنم که پادشاه برای حفظ جانم، چند سردار سپاه و عدهای سواره نظام همراه من فرستاده بود.) | 9 |
९तब मैंने महानद के पार के अधिपतियों के पास जाकर उन्हें राजा की चिट्ठियाँ दीं। राजा ने मेरे संग सेनापति और सवार भी भेजे थे।
ولی وقتی سنبلط (از اهالی حورون) و طوبیا (یکی از مأموران عمونی) شنیدند که من آمدهام، بسیار ناراحت شدند، چون دیدند کسی پیدا شده که میخواهد به قوم اسرائیل کمک کند. | 10 |
१०यह सुनकर कि एक मनुष्य इस्राएलियों के कल्याण का उपाय करने को आया है, होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नामक कर्मचारी जो अम्मोनी था, उन दोनों को बहुत बुरा लगा।
من به اورشلیم رفتم و تا سه روز در مورد نقشههایی که خدا دربارهٔ اورشلیم در دلم گذاشته بود، با کسی سخن نگفتم. سپس یک شب، چند نفر را با خود برداشتم و از شهر خارج شدم. من سوار الاغ بودم و دیگران پیاده میآمدند. | 11 |
११जब मैं यरूशलेम पहुँच गया, तब वहाँ तीन दिन रहा।
१२तब मैं थोड़े पुरुषों को लेकर रात को उठा; मैंने किसी को नहीं बताया कि मेरे परमेश्वर ने यरूशलेम के हित के लिये मेरे मन में क्या उपजाया था। अपनी सवारी के पशु को छोड़ कोई पशु मेरे संग न था।
از دروازهٔ دره خارج شدم و به طرف چشمهٔ اژدها و از آنجا تا دروازهٔ خاکروبه رفتم و حصار خراب شدهٔ اورشلیم و دروازههای سوخته شدهٔ آن را از نزدیک دیدم. | 13 |
१३मैं रात को तराई के फाटक में होकर निकला और अजगर के सोते की ओर, और कूड़ा फाटक के पास गया, और यरूशलेम की टूटी पड़ी हुई शहरपनाह और जले फाटकों को देखा।
سپس به دروازهٔ چشمه و استخر پادشاه رسیدم، ولی الاغ من نتوانست از میان خرابهها رد شود. | 14 |
१४तब मैं आगे बढ़कर सोते के फाटक और राजा के कुण्ड के पास गया; परन्तु मेरी सवारी के पशु के लिये आगे जाने को स्थान न था।
پس به طرف دره قدرون رفتم و از کنار دره، حصار شهر را بازرسی کردم. سپس از راهی که آمده بودم بازگشتم و از دروازهٔ درّه داخل شهر شدم. | 15 |
१५तब मैं रात ही रात नाले से होकर शहरपनाह को देखता हुआ चढ़ गया; फिर घूमकर तराई के फाटक से भीतर आया, और इस प्रकार लौट आया।
مقامات شهر نفهمیدند که من به کجا و برای چه منظوری بیرون رفته بودم، چون تا آن موقع دربارهٔ نقشههایم به کسی چیزی نگفته بودم. یهودیان اعم از کاهنان، رهبران، بزرگان و حتی کسانی که باید در این کار شرکت کنند از نقشههایم بیاطلاع بودند. | 16 |
१६और हाकिम न जानते थे कि मैं कहाँ गया और क्या करता था; वरन् मैंने तब तक न तो यहूदियों को कुछ बताया था और न याजकों और न रईसों और न हाकिमों और न दूसरे काम करनेवालों को।
آنگاه به ایشان گفتم: «شما خوب میدانید که چه بلایی به سر شهر ما آمده است، شهر ویران شده و دروازههایش سوخته است. بیایید حصار را دوباره بسازیم و خود را از این رسوایی آزاد کنیم!» | 17 |
१७तब मैंने उनसे कहा, “तुम तो आप देखते हो कि हम कैसी दुर्दशा में हैं, कि यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं। तो आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को बनाएँ, कि भविष्य में हमारी नामधराई न रहे।”
سپس به ایشان گفتم که چه گفتگویی با پادشاه داشتهام و چگونه دست خدا در این کار بوده و مرا یاری نموده است. ایشان جواب دادند: «پس دست به کار بشویم و حصار را بسازیم!» و به این ترتیب آمادهٔ این کار خیر شدند. | 18 |
१८फिर मैंने उनको बताया, कि मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर कैसी हुई और राजा ने मुझसे क्या-क्या बातें कही थीं। तब उन्होंने कहा, “आओ हम कमर बाँधकर बनाने लगें।” और उन्होंने इस भले काम को करने के लिये हियाव बाँध लिया।
ولی وقتی سنبلط، طوبیا و جشم عرب از نقشهٔ ما باخبر شدند، ما را مسخره و اهانت کردند و گفتند: «چه میکنید؟ آیا خیال دارید به ضد پادشاه شورش کنید؟» | 19 |
१९यह सुनकर होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नामक कर्मचारी जो अम्मोनी था, और गेशेम नामक एक अरबी, हमें उपहास में उड़ाने लगे; और हमें तुच्छ जानकर कहने लगे, “यह तुम क्या काम करते हो। क्या तुम राजा के विरुद्ध बलवा करोगे?”
جواب دادم: «خدای آسمانها، ما را که خدمتگزاران او هستیم یاری خواهد کرد تا این حصار را دوباره بسازیم. ولی شما حق ندارید در امور شهر اورشلیم دخالت کنید، زیرا این شهر هرگز به شما تعلق نداشته است.» | 20 |
२०तब मैंने उनको उत्तर देकर उनसे कहा, “स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सफल करेगा, इसलिए हम उसके दास कमर बाँधकर बनाएँगे; परन्तु यरूशलेम में तुम्हारा न तो कोई भाग, न हक़ और न स्मारक है।”