< داوران 11 >
یَفتاح جلعادی، جنگجویی بسیار شجاع، و پسر زنی بدکاره بود. پدرش (که نامش جلعاد بود) از زن عقدی خود چندین پسر دیگر داشت. وقتی برادران ناتنی یفتاح بزرگ شدند، او را از شهر خود رانده، گفتند: «تو پسر زن دیگری هستی و از دارایی پدر ما هیچ سهمی نخواهی داشت.» | 1 |
१यिप्तह नामक गिलादी बड़ा शूरवीर था, और वह वेश्या का बेटा था; और गिलाद से यिप्तह उत्पन्न हुआ था।
२गिलाद की स्त्री के भी बेटे उत्पन्न हुए; और जब वे बड़े हो गए तब यिप्तह को यह कहकर निकाल दिया, “तू तो पराई स्त्री का बेटा है; इस कारण हमारे पिता के घराने में कोई भाग न पाएगा।”
پس یفتاح از نزد برادران خود گریخت و در سرزمین طوب ساکن شد. دیری نپایید که عدهای از افراد ولگرد دور او جمع شده، او را رهبر خود ساختند. | 3 |
३तब यिप्तह अपने भाइयों के पास से भागकर तोब देश में रहने लगा; और यिप्तह के पास लुच्चे मनुष्य इकट्ठे हो गए; और उसके संग फिरने लगे।
پس از مدتی عمونیها با اسرائیلیها وارد جنگ شدند. | 4 |
४और कुछ दिनों के बाद अम्मोनी इस्राएल से लड़ने लगे।
رهبران جلعاد به سرزمین طوب نزد یفتاح رفتند | 5 |
५जब अम्मोनी इस्राएल से लड़ते थे, तब गिलाद के वृद्ध लोग यिप्तह को तोब देश से ले आने को गए;
و از او خواهش کردند که بیاید و سپاه ایشان را در جنگ با عمونیها رهبری نماید. | 6 |
६और यिप्तह से कहा, “चलकर हमारा प्रधान हो जा, कि हम अम्मोनियों से लड़ सके।”
اما یفتاح به ایشان گفت: «شما آنقدر از من نفرت داشتید که مرا از خانهٔ پدرم بیرون راندید. چرا حالا که در زحمت افتادهاید پیش من آمدهاید؟» | 7 |
७यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगों से कहा, “क्या तुम ने मुझसे बैर करके मुझे मेरे पिता के घर से निकाल न दिया था? फिर अब संकट में पड़कर मेरे पास क्यों आए हो?”
آنها گفتند: «ما آمدهایم تو را همراه خود ببریم. اگر تو ما را در جنگ با عمونیها یاری کنی، تو را فرمانروای جلعاد میکنیم.» | 8 |
८गिलाद के वृद्ध लोगों ने यिप्तह से कहा, “इस कारण हम अब तेरी ओर फिरे हैं, कि तू हमारे संग चलकर अम्मोनियों से लड़े; तब तू हमारी ओर से गिलाद के सब निवासियों का प्रधान ठहरेगा।”
یفتاح گفت: «چطور میتوانم سخنان شما را باور کنم؟» | 9 |
९यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगों से पूछा, “यदि तुम मुझे अम्मोनियों से लड़ने को फिर मेरे घर ले चलो, और यहोवा उन्हें मेरे हाथ कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा प्रधान ठहरूँगा?”
ایشان پاسخ دادند: «خداوند در میان ما شاهد است که این کار را خواهیم کرد.» | 10 |
१०गिलाद के वृद्ध लोगों ने यिप्तह से कहा, “निश्चय हम तेरी इस बात के अनुसार करेंगे; यहोवा हमारे और तेरे बीच में इन वचनों का सुननेवाला है।”
پس یفتاح این مأموریت را پذیرفت و مردم او را سردار لشکر و فرمانروای خود ساختند. همهٔ قوم اسرائیل در مصفه جمع شدند و در حضور خداوند با یفتاح پیمان بستند. | 11 |
११तब यिप्तह गिलाद के वृद्ध लोगों के संग चला, और लोगों ने उसको अपने ऊपर मुखिया और प्रधान ठहराया; और यिप्तह ने अपनी सब बातें मिस्पा में यहोवा के सम्मुख कह सुनाईं।
آنگاه یفتاح قاصدانی نزد پادشاه عمون فرستاد تا بداند به چه دلیل با اسرائیلیها وارد جنگ شده است. | 12 |
१२तब यिप्तह ने अम्मोनियों के राजा के पास दूतों से यह कहला भेजा, “तुझे मुझसे क्या काम, कि तू मेरे देश में लड़ने को आया है?”
پادشاه عمون جواب داد: «هنگامی که اسرائیلیها از مصر بیرون آمدند، سرزمین ما را تصرف کردند. آنها تمام سرزمین ما را از رود ارنون تا رود یبوق و اردن گرفتند. اکنون شما باید این زمینها را بدون جنگ و خونریزی پس بدهید.» | 13 |
१३अम्मोनियों के राजा ने यिप्तह के दूतों से कहा, “कारण यह है, कि जब इस्राएली मिस्र से आए, तब अर्नोन से यब्बोक और यरदन तक जो मेरा देश था उसको उन्होंने छीन लिया; इसलिए अब उसको बिना झगड़ा किए लौटा दे।”
یفتاح قاصدان را با این پاسخ نزد پادشاه عمون فرستاد: «اسرائیلیها این زمینها را به زور تصرف نکردهاند، | 14 |
१४तब यिप्तह ने फिर अम्मोनियों के राजा के पास यह कहने को दूत भेजे,
१५“यिप्तह तुझ से यह कहता है, कि इस्राएल ने न तो मोआब का देश ले लिया और न अम्मोनियों का,
بلکه وقتی قوم اسرائیل از مصر بیرون آمده، از دریای سرخ عبور کردند و به قادش رسیدند، | 16 |
१६वरन् जब वे मिस्र से निकले, और इस्राएली जंगल में होते हुए लाल समुद्र तक चले, और कादेश को आए,
برای پادشاه ادوم پیغام فرستاده، اجازه خواستند که از سرزمین او عبور کنند. اما خواهش آنها پذیرفته نشد. سپس از پادشاه موآب همین اجازه را خواستند. او هم قبول نکرد. پس اسرائیلیها به ناچار در قادش ماندند. | 17 |
१७तब इस्राएल ने एदोम के राजा के पास दूतों से यह कहला भेजा, ‘मुझे अपने देश में से होकर जाने दे;’ और एदोम के राजा ने उनकी न मानी। इसी रीति उसने मोआब के राजा से भी कहला भेजा, और उसने भी न माना। इसलिए इस्राएल कादेश में रह गया।
سرانجام از راه بیابان، ادوم و موآب را دور زدند و در مرز شرقی موآب به راه خود ادامه دادند تا اینکه بالاخره در آن طرف مرز موآب در ناحیهٔ رود ارنون اردو زدند ولی وارد موآب نشدند. | 18 |
१८तब उसने जंगल में चलते-चलते एदोम और मोआब दोनों देशों के बाहर-बाहर घूमकर मोआब देश की पूर्व की ओर से आकर अर्नोन के इसी पार अपने डेरे डाले; और मोआब की सीमा के भीतर न गया, क्योंकि मोआब की सीमा अर्नोन थी।
آنگاه اسرائیلیها قاصدانی نزد سیحون پادشاه اموریها که در حشبون حکومت میکرد فرستاده، از او اجازه خواستند که از سرزمین وی بگذرند و به جانب مقصد خود بروند. | 19 |
१९फिर इस्राएल ने एमोरियों के राजा सीहोन के पास जो हेशबोन का राजा था दूतों से यह कहला भेजा, ‘हमें अपने देश में से होकर हमारे स्थान को जाने दे।’
ولی سیحون پادشاه به اسرائیلیها اعتماد نکرد، بلکه تمام سپاه خود را در یاهص بسیج کرد و به ایشان حمله برد. | 20 |
२०परन्तु सीहोन ने इस्राएल का इतना विश्वास न किया कि उसे अपने देश में से होकर जाने देता; वरन् अपनी सारी प्रजा को इकट्ठा कर अपने डेरे यहस में खड़े करके इस्राएल से लड़ा।
اما یهوه خدای ما به بنیاسرائیل کمک نمود تا سیحون و تمام سپاه او را شکست دهند. بدین طریق بنیاسرائیل همهٔ زمینهای اموریها را از رود ارنون تا رود یبوق، و از بیابان تا رود اردن تصرف نمودند. | 21 |
२१और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने सीहोन को सारी प्रजा समेत इस्राएल के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको मार लिया; इसलिए इस्राएल उस देश के निवासी एमोरियों के सारे देश का अधिकारी हो गया।
२२अर्थात् वह अर्नोन से यब्बोक तक और जंगल से ले यरदन तक एमोरियों के सारे देश का अधिकारी हो गया।
«اکنون که خداوند، خدای اسرائیل زمینهای اموریها را از آنها گرفته، به اسرائیلیها داده است شما چه حق دارید آنها را از ما بگیرید؟ | 23 |
२३इसलिए अब इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपनी इस्राएली प्रजा के सामने से एमोरियों को उनके देश से निकाल दिया है; फिर क्या तू उसका अधिकारी होने पाएगा?
آنچه را که کموش، خدای تو به تو میدهد برای خود نگاه دار و ما هم آنچه را که خداوند، خدای ما به ما میدهد برای خود نگاه خواهیم داشت. | 24 |
२४क्या तू उसका अधिकारी न होगा, जिसका तेरा कमोश देवता तुझे अधिकारी कर दे? इसी प्रकार से जिन लोगों को हमारा परमेश्वर यहोवा हमारे सामने से निकाले, उनके देश के अधिकारी हम होंगे।
آیا فکر میکنی تو از بالاق، پادشاه موآب بهتر هستی؟ آیا او هرگز سعی نمود تا زمینهایش را بعد از شکست خود از اسرائیلیها پس بگیرد؟ | 25 |
२५फिर क्या तू मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से कुछ अच्छा है? क्या उसने कभी इस्राएलियों से कुछ भी झगड़ा किया? क्या वह उनसे कभी लड़ा?
اینک تو پس از سیصد سال این موضوع را پیش کشیدهای؟ اسرائیلیها در تمام این مدت در اینجا ساکن بوده و در سراسر این سرزمین از حشبون و عروعیر و دهکدههای اطراف آنها گرفته تا شهرهای کنار رود ارنون زندگی میکردهاند. پس چرا تا به حال آنها را پس نگرفتهاید؟ | 26 |
२६जबकि इस्राएल हेशबोन और उसके गाँवों में, और अरोएर और उसके गाँवों में, और अर्नोन के किनारे के सब नगरों में तीन सौ वर्ष से बसा है, तो इतने दिनों में तुम लोगों ने उसको क्यों नहीं छुड़ा लिया?
من به تو گناهی نکردهام. این تو هستی که به من بدی کرده آمدهای با من بجنگی، اما خداوند که داور مطلق است امروز نشان خواهد داد که حق با کیست اسرائیل یا عمون.» | 27 |
२७मैंने तेरा अपराध नहीं किया; तू ही मुझसे युद्ध छेड़कर बुरा व्यवहार करता है; इसलिए यहोवा जो न्यायी है, वह इस्राएलियों और अम्मोनियों के बीच में आज न्याय करे।”
ولی پادشاه عمون به پیغام یفتاح توجهی ننمود. | 28 |
२८तो भी अम्मोनियों के राजा ने यिप्तह की ये बातें न मानीं जिनको उसने कहला भेजा था।
آنگاه روح خداوند بر یفتاح قرار گرفت و او سپاه خود را از سرزمینهای جلعاد و منسی عبور داد و از مصفه واقع در جلعاد گذشته، به جنگ سپاه عمون رفت. | 29 |
२९तब यहोवा का आत्मा यिप्तह में समा गया, और वह गिलाद और मनश्शे से होकर गिलाद के मिस्पे में आया, और गिलाद के मिस्पे से होकर अम्मोनियों की ओर चला।
یفتاح نزد خداوند نذر کرده بود که اگر اسرائیلیها را یاری کند تا عمونیها را شکست دهند وقتی که به سلامت به منزل بازگردد، هر چه را که از در خانهاش به استقبال او بیرون آید به عنوان قربانی سوختنی به خداوند تقدیم خواهد کرد. | 30 |
३०और यिप्तह ने यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, “यदि तू निःसन्देह अम्मोनियों को मेरे हाथ में कर दे,
३१तो जब मैं कुशल के साथ अम्मोनियों के पास से लौट आऊँ तब जो कोई मेरे भेंट के लिये मेरे घर के द्वार से निकले वह यहोवा का ठहरेगा, और मैं उसे होमबलि करके चढ़ाऊँगा।”
پس یفتاح با عمونیها وارد جنگ شد و خداوند او را پیروز گردانید. | 32 |
३२तब यिप्तह अम्मोनियों से लड़ने को उनकी ओर गया; और यहोवा ने उनको उसके हाथ में कर दिया।
او آنها را از عروعیر تا منیت که شامل بیست شهر بود و تا آبیل کرامیم با کشتار فراوان شکست داد. بدین طریق عمونیها به دست قوم اسرائیل سرکوب شدند. | 33 |
३३और वह अरोएर से ले मिन्नीत तक, जो बीस नगर हैं, वरन् आबेलकरामीम तक जीतते-जीतते उन्हें बहुत बड़ी मार से मारता गया। और अम्मोनी इस्राएलियों से हार गए।
هنگامی که یفتاح به خانهٔ خود در مصفه بازگشت، دختر وی یعنی تنها فرزندش در حالی که از شادی دف میزد و میرقصید به استقبال او از خانه بیرون آمد. | 34 |
३४जब यिप्तह मिस्पा को अपने घर आया, तब उसकी बेटी डफ बजाती और नाचती हुई उससे भेंट करने के लिये निकल आई; वह उसकी एकलौती थी; उसको छोड़ उसके न तो कोई बेटा था और न कोई बेटी।
وقتی یفتاح دخترش را دید از شدت ناراحتی لباس خود را چاک زد و گفت: «آه، دخترم! تو مرا غصهدار کردی؛ زیرا من به خداوند نذر کردهام و نمیتوانم آن را ادا نکنم.» | 35 |
३५उसको देखते ही उसने अपने कपड़े फाड़कर कहा, “हाय, मेरी बेटी! तूने कमर तोड़ दी, और तू भी मेरे कष्ट देनेवालों में हो गई है; क्योंकि मैंने यहोवा को वचन दिया है, और उसे टाल नहीं सकता।”
دخترش گفت: «پدر، تو باید آنچه را که به خداوند نذر کردهای بجا آوری، زیرا او تو را بر دشمنانت عمونیها پیروز گردانیده است. | 36 |
३६उसने उससे कहा, “हे मेरे पिता, तूने जो यहोवा को वचन दिया है, तो जो बात तेरे मुँह से निकली है उसी के अनुसार मुझसे बर्ताव कर, क्योंकि यहोवा ने तेरे अम्मोनी शत्रुओं से तेरा बदला लिया है।”
اما اول به من دو ماه مهلت بده تا به کوهستان رفته، با دخترانی که دوست من هستند گردش نمایم و به خاطر اینکه هرگز ازدواج نخواهم کرد، گریه کنم.» | 37 |
३७फिर उसने अपने पिता से कहा, “मेरे लिये यह किया जाए, कि दो महीने तक मुझे छोड़े रह, कि मैं अपनी सहेलियों सहित जाकर पहाड़ों पर फिरती हुई अपने कुँवारेपन पर रोती रहूँ।”
پدرش گفت: «بسیار خوب، برو.» پس او با دوستان خود به کوهستان رفت و دو ماه ماتم گرفت. | 38 |
३८उसने कहा, “जा।” तब उसने उसे दो महीने की छुट्टी दी; इसलिए वह अपनी सहेलियों सहित चली गई, और पहाड़ों पर अपने कुँवारेपन पर रोती रही।
سپس نزد پدرش برگشت و یفتاح چنانکه نذر کرده بود عمل نمود. بنابراین آن دختر هرگز ازدواج نکرد. پس از آن در اسرائیل رسم شد | 39 |
३९दो महीने के बीतने पर वह अपने पिता के पास लौट आई, और उसने उसके विषय में अपनी मानी हुई मन्नत को पूरा किया। और उस कन्या ने पुरुष का मुँह कभी न देखा था। इसलिए इस्राएलियों में यह रीति चली
که هر ساله دخترها به مدت چهار روز بیرون میرفتند و به یاد دختر یفتاح ماتم میگرفتند. | 40 |
४०कि इस्राएली स्त्रियाँ प्रतिवर्ष यिप्तह गिलादी की बेटी का यश गाने को वर्ष में चार दिन तक जाया करती थीं।