< ایوب 34 >

ای مردان حکیم و دانا به من گوش دهید. 1
इसके 'अलावा इलीहू ने यह भी कहा,
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“ऐ तुम 'अक़्लमन्द लोगों, मेरी बातें सुनो, और ऐ तुम जो अहल — ए — 'इल्म हो, मेरी तरफ़ कान लगाओ;
همچنانکه زبان طعم غذای خوب را می‌فهمد همان‌گونه نیز گوش سخنان درست را تشخیص می‌دهد؛ 3
क्यूँकि कान बातों को परखता है, जैसे ज़बान' खाने को चखती है।
پس بیایید آنچه را که خوب و درست است تشخیص داده، آن را اختیار کنیم. 4
जो कुछ ठीक है, हम अपने लिए चुन लें, जो भला है, हम आपस में जान लें।
ایوب گفته است: «من گناهی ندارم، ولی خدا مرا گناهکار می‌داند. 5
क्यूँकि अय्यूब ने कहा, 'मैं सादिक़ हूँ, और ख़ुदा ने मेरी हक़ तल्फ़ी की है।
هر چند که تقصیری ندارم او مرا دروغگو می‌داند. با اینکه هیچ خطایی نکرده‌ام، اما سخت تنبیه شده‌ام.» 6
अगरचे मैं हक़ पर हूँ, तोभी झूटा ठहरता हूँ जबकि मैं बेक़ुसूर हूँ, मेरा ज़ख़्म ला 'इलाज है।
ببینید ایوب چه حرفهای توهین‌آمیزی می‌زند! حتماً با بدکاران همنشین بوده است! 7
अय्यूब जैसा बहादुर कौन है, जो मज़ाक़ को पानी की तरह पी जाता है?
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जो बदकिरदारों की रफ़ाफ़त में चलता है, और शरीर लोगों के साथ फिरता है।
زیرا می‌گوید: «برای انسان چه فایده‌ای دارد که در صدد خشنود ساختن خدا برآید؟» 9
क्यूँकि उसने कहा है, कि 'आदमी को कुछ फ़ायदा नहीं कि वह ख़ुदा में ख़ुश है।”
ای کسانی که فهم و شعور دارید، به من گوش دهید. چطور ممکن است خدای قادر مطلق، بدی و ظلم بکند؟ 10
“इसलिए ऐ अहल — ए — अक़्ल मेरी सुनो, यह हरगिज़ हो नहीं सकता कि ख़ुदा शरारत का काम करे, और क़ादिर — ए — मुतलक़ गुनाह करे।
او هر کس را موافق عملش جزا می‌دهد. 11
वह इंसान को उसके आ'माल के मुताबिक़ बदला देगा, वह ऐसा करेगा कि हर किसी को अपनी ही राहों के मुताबिक़ बदला मिलेगा।
براستی که خدای قادر مطلق، بدی و بی‌انصافی نمی‌کند. 12
यक़ीनन ख़ुदा बुराई नहीं करेगा; क़ादिर — ए — मुतलक़ से बेइन्साफ़ी न होगी।
اقتدار و اختیار تمام جهان در دست اوست. 13
किसने उसको ज़मीन पर इख़्तियार दिया? या किसने सारी दुनिया का इन्तिज़ाम किया है?
اگر خدا اراده کند که روح و نفس خود را از انسان بگیرد، 14
अगर वह इंसान से अपना दिल लगाए, अगर वह अपनी रूह और अपने दम को वापस ले ले;
اثری از زندگی در او باقی نمی‌ماند و او به خاک باز می‌گردد. 15
तो तमाम बशर इकट्ठे फ़ना हो जाएँगे, और इंसान फिर मिट्टी में मिल जाएगा।
حال، اگر فهم داری، گوش کن. 16
“इसलिए अगर तुझ में समझ है तो इसे सुन ले, और मेरी बातों पर तवज्जुह कर।
اگر خدا از عدالت و انصاف متنفر بود آیا می‌توانست جهان را اداره کند؟ آیا می‌خواهی آن داور بزرگ را محکوم کنی؟ 17
क्या वह जो हक़ से 'अदावत रखता है, हुकूमत करेगा? और क्या तू उसे जो 'आदिल और क़ादिर है, मुल्ज़िम ठहराएगा?
او کسی است که پادشاهان و نجبا را به بدکاری و بی‌انصافی متهم می‌کند، 18
वह तो बादशाह से कहता है, 'तू रज़ील है'; और शरीफ़ों से, कि 'तुम शरीर हो'।
هرگز از قدرتمندان طرفداری نمی‌نماید و ثروتمند را بر فقیر ترجیح نمی‌دهد، زیرا همهٔ انسانها آفریدهٔ دست او هستند. 19
वह उमर की तरफ़दारी नहीं करता, और अमीर को ग़रीब से ज़्यादा नहीं मानता, क्यूँकि वह सब उसी के हाथ की कारीगरी हैं।
خدا می‌تواند نیمه‌شب در یک لحظه جان انسان را بگیرد و با یک اشاره قدرتمندترین انسانها را از پای درآورد. 20
वह दम भर में आधी रात को मर जाते हैं, लोग हिलाए जाते हैं और गुज़र जाते हैं और बहादुर लोग बगै़र हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं।
خدا تمام کارهای انسان را به دقت زیر نظر دارد و همه را می‌بیند. 21
“क्यूँकि उसकी आँखें आदमी की राहों पर लगीं हैं, और वह उसकी आदतों को देखता है;
هیچ ظلمتی نمی‌تواند آدمهای بدکار را از نظر او پنهان سازد. 22
न कोई ऐसी तारीकी न मौत का साया है, जहाँ बद किरदार छिप सकें।
پس خدا احتیاجی ندارد که برای داوری کردن انسان صبر کند. 23
क्यूँकि उसे ज़रूरी नहीं कि आदमी का ज़्यादा ख़याल करे ताकि वह ख़ुदा के सामने 'अदालत में जाए।
بی‌آنکه نیازی به تحقیق و بررسی باشد خدا قدرتمندان را خرد و متلاشی می‌کند و دیگران را به جای آنها می‌نشاند، 24
वह बिला तफ़तीश ज़बरदस्तों को टुकड़े — टुकड़े करता, और उनकी जगह औरों को खड़ा करता है।
زیرا او از کارهای ایشان آگاه است و در یک شب ایشان را سرنگون می‌سازد. 25
इसलिए वह उनके कामों का ख़याल रखता है, और वह उन्हें रात को उलट देता है ऐसा कि वह हलाक हो जाते हैं।
او آنها را در حضور همگان به سزای اعمالشان می‌رساند، 26
वह औरों को देखते हुए, उनको ऐसा मारता है जैसा शरीरों को;
چون از پیروی او انحراف ورزیده به احکام او توجهی نکرده‌اند، 27
इसलिए कि वह उसकी पैरवी से फिर गए, और उसकी किसी राह का ख़याल न किया।
و آنچنان بر فقرا ظلم نموده‌اند که فریادشان به گوش خدا رسیده است. بله، خدا نالهٔ مظلومان را می‌شنود. 28
यहाँ तक कि उनकी वजह से ग़रीबों की फ़रियाद उसके सामने पहुँची और उसने मुसीबत ज़दों की फ़रियाद सुनी।
وقتی او آرام است، کیست که بتواند او را مضطرب کند؟ و چون روی خود را بپوشاند، کیست که بتواند او را ببیند؟ هیچ قومی و هیچ انسانی نمی‌تواند. 29
जब वह राहत बख़्शे तो कौन मुल्ज़िम ठहरा सकता है? जब वह मुँह छिपा ले तो कौन उसे देख सकता है? चाहे कोई क़ौम हो या आदमी, दोनों के साथ यकसाँ सुलूक है।
او نمی‌گذارد بدکاران بر مردم حکومت رانند و آنها را اسیر کنند. 30
ताकि बेदीन आदमी सल्तनत न करे, और लोगों को फंदे में फंसाने के लिए कोई न हो।
ای ایوب، آیا گناهانت را پیش خدا اعتراف نموده‌ای؟ آیا به او قول داده‌ای که دیگر گناه نکنی؟ 31
“क्यूँकि क्या किसी ने ख़ुदा से कहा है, मैंने सज़ा उठा ली है, मैं अब बुराई न करूँगा;
آیا از خدا خواسته‌ای که خطاهایت را به تو نشان دهد؟ آیا حاضری از آنها دست بکشی؟ 32
जो मुझे दिखाई नहीं देता, वह तू मुझे सिखा; अगर मैंने गुनाह किया है तो अब ऐसा नहीं करूँगा'?
آیا عدالت خدا باید مطابق خواسته های تو باشد؟ حال آنکه تو او را طرد کرده‌ای؟ تصمیم با توست، نه با من. بگو چه فکر می‌کنی. 33
क्या उसका बदला तेरी मर्ज़ी पर हो कि तू उसे ना मंज़ूर करता है? क्यूँकि तुझे फ़ैसला करना है न कि मुझे; इसलिए जो कुछ तू जानता है, कह दे।
هر انسان فهمیده و با شعوری این حرف مرا تصدیق خواهد کرد که تو مثل آدم نادان حرف می‌زنی. 34
अहल — ए — अक़्ल मुझ से कहेंगे, बल्कि हर 'अक़्लमन्द जो मेरी सुनता है कहेगा,
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'अय्यूब नादानी से बोलता है, और उसकी बातें हिकमत से ख़ाली हैं।
ای ایوب، کاش به نهایت آزموده شوی، چون مثل شریران پاسخ می‌د‌هی 36
काश कि अय्यूब आख़िर तक आज़माया जाता, क्यूँकि वह शरीरों की तरह जवाब देता है।
و نافرمانی را بر گناهان دیگر خود افزوده‌ای و با بی‌حرمتی و با خشم بر ضد خدا سخن می‌گویی. 37
इसलिए कि वह अपने गुनाहों पर बग़ावत को बढ़ाता है; वह हमारे बीच तालियाँ बजाता है, और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहुत बातें बनाता है।”

< ایوب 34 >