< ایوب 31 >

با چشمان خود عهد بستم که هرگز با نظر شهوت به دختری نگاه نکنم. 1
“मैंने अपनी आँखों के विषय वाचा बाँधी है, फिर मैं किसी कुँवारी पर क्यों आँखें लगाऊँ?
خدای قادر مطلق که در بالاست برای ما چه تدارک دیده است؟ 2
क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग से कौन सा अंश और सर्वशक्तिमान ऊपर से कौन सी सम्पत्ति बाँटता है?
آیا مصیبت و بلا سرنوشت شریران و بدکاران نیست؟ 3
क्या वह कुटिल मनुष्यों के लिये विपत्ति और अनर्थ काम करनेवालों के लिये सत्यानाश का कारण नहीं है?
آیا او هر کاری را که می‌کنم و هر قدمی را که برمی‌دارم نمی‌بیند. 4
क्या वह मेरी गति नहीं देखता और क्या वह मेरे पग-पग नहीं गिनता?
من هرگز دروغ نگفته و کسی را فریب نداده‌ام. 5
यदि मैं व्यर्थ चाल चलता हूँ, या कपट करने के लिये मेरे पैर दौड़े हों;
بگذار خدا خودش مرا با ترازوی عدل بسنجد و ببیند که بی‌گناهم. 6
(तो मैं धर्म के तराजू में तौला जाऊँ, ताकि परमेश्वर मेरी खराई को जान ले)।
اگر پایم را از راه خدا بیرون گذاشته‌ام، یا اگر دلم در طمع چیزهایی بوده که چشمانم دیده است، یا اگر دستهایم به گناه آلوده شده است، 7
यदि मेरे पग मार्ग से बहक गए हों, और मेरा मन मेरी आँखों की देखी चाल चला हो, या मेरे हाथों में कुछ कलंक लगा हो;
باشد که غله‌ای که کاشته‌ام از ریشه کنده شود و یا شخص دیگری آن را درو کند. 8
तो मैं बीज बोऊँ, परन्तु दूसरा खाए; वरन् मेरे खेत की उपज उखाड़ डाली जाए।
اگر شیفتهٔ زن مرد دیگری شده، در کمین او نشسته‌ام، 9
“यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, और मैं अपने पड़ोसी के द्वार पर घात में बैठा हूँ;
باشد که همسرم را مرد دیگری تصاحب کند؛ 10
१०तो मेरी स्त्री दूसरे के लिये पीसे, और पराए पुरुष उसको भ्रष्ट करें।
زیرا این کار زشت سزاوار مجازات است، 11
११क्योंकि वह तो महापाप होता; और न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता;
و مانند آتشی جهنمی می‌تواند تمام هستی مرا بسوزاند و از بین ببرد. 12
१२क्योंकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और वह मेरी सारी उपज को जड़ से नाश कर देती है।
اگر نسبت به غلام یا کنیز خود بی‌انصافی می‌کردم، وقتی که از من شکایت داشتند، 13
१३“जब मेरे दास व दासी ने मुझसे झगड़ा किया, तब यदि मैंने उनका हक़ मार दिया हो;
چگونه می‌توانستم با خدا روبرو شوم؟ و هنگامی که در این باره از من سؤال می‌کرد، چه جوابی می‌دادم؟ 14
१४तो जब परमेश्वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूँगा? और जब वह आएगा तब मैं क्या उत्तर दूँगा?
چون هم من و هم خدمتگزارانم، به دست یک خدا سرشته شده‌ایم. 15
१५क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिसने मुझे गर्भ में बनाया? क्या एक ही ने हम दोनों की सूरत गर्भ में न रची थी?
هرگز از کمک کردن به فقرا کوتاهی نکرده‌ام. هرگز نگذاشته‌ام بیوه‌زنی در ناامیدی بماند، 16
१६“यदि मैंने कंगालों की इच्छा पूरी न की हो, या मेरे कारण विधवा की आँखें कभी निराश हुई हों,
یا یتیمی گرسنگی بکشد، بلکه خوراک خود را با آنها قسمت کرده‌ام 17
१७या मैंने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो, और उसमें से अनाथ न खाने पाए हों,
و تمام عمر خود را صرف نگهداری از آنها نموده‌ام. 18
१८(परन्तु वह मेरे लड़कपन ही से मेरे साथ इस प्रकार पला जिस प्रकार पिता के साथ, और मैं जन्म ही से विधवा को पालता आया हूँ);
اگر کسی را می‌دیدم که لباس ندارد و از سرما می‌لرزد، 19
१९यदि मैंने किसी को वस्त्रहीन मरते हुए देखा, या किसी दरिद्र को जिसके पास ओढ़ने को न था
لباسی از پشم گوسفندانم به او می‌دادم تا از سرما در امان بماند و او با تمام وجود برای من دعای خیر می‌کرد. 20
२०और उसको अपनी भेड़ों की ऊन के कपड़े न दिए हों, और उसने गर्म होकर मुझे आशीर्वाद न दिया हो;
اگر من با استفاده از نفوذی که در دادگاه داشته‌ام حق یتیمی را پایمال نموده باشم 21
२१या यदि मैंने फाटक में अपने सहायक देखकर अनाथों के मारने को अपना हाथ उठाया हो,
بازویم از کتفم بیفتد و دستم بشکند. 22
२२तो मेरी बाँह कंधे से उखड़कर गिर पड़े, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए।
هرگز جرأت نمی‌کردم چنین کاری را انجام دهم، زیرا از مجازات و عظمت خدا می‌ترسیدم. 23
२३क्योंकि परमेश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसकी ओर की विपत्ति के कारण मैं भयभीत होकर थरथराता था।
هرگز به طلا و نقره تکیه نکرده‌ام 24
२४“यदि मैंने सोने का भरोसा किया होता, या कुन्दन को अपना आसरा कहा होता,
و شادی من متکی به مال و ثروت نبوده است. 25
२५या अपने बहुत से धन या अपनी बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता,
هرگز فریفتهٔ خورشید تابان و ماه درخشان نشده‌ام و آنها را از دور نبوسیده و پرستش نکرده‌ام؛ 26
२६या सूर्य को चमकते या चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर
27
२७मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपने मुँह से अपना हाथ चूम लिया होता;
چون اگر مرتکب چنین کارهایی شده بودم مفهومش این بود که خدای متعال را انکار کرده‌ام، و چنین گناهی بی‌سزا نمی‌ماند. 28
२८तो यह भी न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैंने सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर का इन्कार किया होता।
هرگز از مصیبت دشمن شادی نکرده‌ام، 29
२९“यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, या जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हँसा होता;
هرگز آنها را نفرین نکرده‌ام و زبانم را از این گناه باز داشته‌ام. 30
३०(परन्तु मैंने न तो उसको श्राप देते हुए, और न उसके प्राणदण्ड की प्रार्थना करते हुए अपने मुँह से पाप किया है);
هرگز نگذاشته‌ام خدمتگزارانم گرسنه بمانند. 31
३१यदि मेरे डेरे के रहनेवालों ने यह न कहा होता, ‘ऐसा कोई कहाँ मिलेगा, जो इसके यहाँ का माँस खाकर तृप्त न हुआ हो?’
هرگز نگذاشته‌ام غریبه‌ای شب را در کوچه بخوابد، بلکه در خانهٔ خود را به روی او باز گذاشته‌ام. 32
३२(परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता था; मैं बटोही के लिये अपना द्वार खुला रखता था);
هرگز مانند دیگران به خاطر ترس از سرزنش مردم، سعی نکرده‌ام گناهانم را پنهان سازم و خاموش در داخل خانهٔ خود بنشینم. 33
३३यदि मैंने आदम के समान अपना अपराध छिपाकर अपने अधर्म को ढाँप लिया हो,
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३४इस कारण कि मैं बड़ी भीड़ से भय खाता था, या कुलीनों से तुच्छ किए जाने से डर गया यहाँ तक कि मैं द्वार से बाहर न निकला-
ای کاش کسی پیدا می‌شد که به حرفهایم گوش بدهد! من دفاعیهٔ خود را تقدیم می‌کنم. بگذار قادر مطلق جواب مرا بدهد و اتهاماتی را که به من نسبت داده شده به من نشان دهد، 35
३५भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता! सर्वशक्तिमान परमेश्वर अभी मेरा न्याय चुकाए! देखो, मेरा दस्तखत यही है। भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मुद्दई ने लिखा है वह मेरे पास होता!
و من آنها را مانند تاجی بر سر می‌گذارم! 36
३६निश्चय मैं उसको अपने कंधे पर उठाए फिरता; और सुन्दर पगड़ी जानकर अपने सिर में बाँधे रहता।
تمام کارهایی را که کرده‌ام برای او تعریف می‌کنم و سربلند در حضور او می‌ایستم. 37
३७मैं उसको अपने पग-पग का हिसाब देता; मैं उसके निकट प्रधान के समान निडर जाता।
اگر زمینی که در آن کشت می‌کنم مرا متهم سازد به اینکه صاحبش را کشته‌ام و آن را تصاحب کرده‌ام تا از محصولش استفاده برم، 38
३८“यदि मेरी भूमि मेरे विरुद्ध दुहाई देती हो, और उसकी रेघारियाँ मिलकर रोती हों;
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३९यदि मैंने अपनी भूमि की उपज बिना मजदूरी दिए खाई, या उसके मालिक का प्राण लिया हो;
باشد که در آن زمین به جای گندم، خار و به عوض جو، علفهای هرز بروید. پایان سخنان ایوب. 40
४०तो गेहूँ के बदले झड़बेरी, और जौ के बदले जंगली घास उगें!” अय्यूब के वचन पूरे हुए हैं।

< ایوب 31 >