< ایوب 3 >

سرانجام ایوب لب به سخن گشود و روزی را که از مادر زاییده شده بود نفرین کرده، 1
После того открыл Иов уста свои и проклял день свой.
گفت: 2
И начал Иов и сказал:
«نابود باد روزی که به دنیا آمدم و شبی که در رحم مادرم قرار گرفتم! 3
погибни день, в который я родился, и ночь, в которую сказано: зачался человек!
ای کاش آن روز در ظلمت فرو رود و حتی خدا آن را به یاد نیاورد و نوری بر آن نتابد. 4
День тот да будет тьмою; да не взыщет его Бог свыше, и да не воссияет над ним свет!
ای کاش تاریکی و ظلمت مطلق آن را فرا گیرد و ابر تیره بر آن سایه افکند و تاریکی هولناک آن را در بر گیرد. 5
Да омрачит его тьма и тень смертная, да обложит его туча, да страшатся его, как палящего зноя!
ای کاش آن شب از صفحهٔ روزگار محو گردد و دیگر هرگز در شمار روزهای سال و ماه قرار نگیرد. 6
Ночь та, - да обладает ею мрак, да не сочтется она в днях года, да не войдет в число месяцев!
ای کاش شبی خاموش و عاری از شادی باشد. 7
О! ночь та - да будет она безлюдна; да не войдет в нее веселье!
بگذار نفرین‌کنندگانِ ماهر، نفرینش کنند، آنان که در برانگیزانیدنِ لِویاتان ماهرند. 8
Да проклянут ее проклинающие день, способные разбудить левиафана!
ای کاش آن شب ستاره‌ای نداشته باشد و آرزوی روشنایی کند، ولی هرگز روشنایی نباشد و هیچگاه سپیدهٔ صبح را نبیند. 9
Да померкнут звезды рассвета ее: пусть ждет она света, и он не приходит, и да не увидит она ресниц денницы
آن شب را لعنت کنید، چون قادر به بستن رحم مادرم نشد و باعث شد من متولد شده، دچار این بلاها شوم. 10
за то, что не затворила дверей чрева матери моей и не сокрыла горести от очей моих!
«چرا مرده به دنیا نیامدم؟ چرا وقتی از رَحِمِ مادرم بیرون می‌آمدم، نمردم؟ 11
Для чего не умер я, выходя из утробы, и не скончался, когда вышел из чрева?
چرا مادرم مرا روی زانوهایش گذاشت و مرا شیر داد؟ 12
Зачем приняли меня колени? зачем было мне сосать сосцы?
اگر هنگام تولد می‌مردم، اکنون آرام و آسوده در کنار پادشاهان، رهبران و بزرگان جهان که کاخهای قدیمی برای خود ساختند و قصرهای خود را با طلا و نقره پر کردند، خوابیده بودم. 13
Теперь бы лежал я и почивал; спал бы, и мне было бы покойно
14
с царями и советниками земли, которые застраивали для себя пустыни,
15
или с князьями, у которых было золото, и которые наполняли дома свои серебром;
«چرا مرده به دنیا نیامدم تا مرا دفن کنند؟ مانند نوزادی که هرگز فرصت دیدن روشنایی را نیافته است؟ 16
или, как выкидыш сокрытый, я не существовал бы, как младенцы, не увидевшие света.
زیرا در عالم مرگ، شریران مزاحمتی به وجود نمی‌آورند و خستگان می‌آرامند. 17
Там беззаконные перестают наводить страх, и там отдыхают истощившиеся в силах.
آنجا اسیران با هم در آسایش‌اند، و فریاد کارفرمایان را نمی‌شنوند. 18
Там узники вместе наслаждаются покоем и не слышат криков приставника.
در آنجا فقیر و غنی یکسانند و غلام از دست اربابش آزاد است. 19
Малый и великий там равны, и раб свободен от господина своего.
«چرا باید نور زندگی به کسانی که در بدبختی و تلخکامی به سر می‌برند بتابد؟ 20
На что дан страдальцу свет, и жизнь огорченным душою,
و چرا کسانی که آرزوی مردن دارند و مرگشان فرا نمی‌رسد و مثل مردمی که در پی گنج هستند به دنبال مرگ می‌گردند، زنده بمانند؟ 21
которые ждут смерти, и нет ее, которые вырыли бы ее охотнее, нежели клад,
چه سعادت بزرگی است وقتی که سرانجام مرگ را در آغوش می‌کشند! 22
обрадовались бы до восторга, восхитились бы, что нашли гроб?
چرا زندگی به آنانی داده می‌شود که آینده‌ای ندارند و خدا زندگیشان را از مشکلات پر ساخته؟ 23
На что дан свет человеку, которого путь закрыт, и которого Бог окружил мраком?
خوراک من غصه است، و آه و ناله مانند آب از وجودم جاری است. 24
Вздохи мои предупреждают хлеб мой, и стоны мои льются, как вода,
چیزی که همیشه از آن می‌ترسیدم بر سرم آمده است. 25
ибо ужасное, чего я ужасался, то и постигло меня; и чего я боялся, то и пришло ко мне.
آرامش و راحتی ندارم و رنجهای مرا پایانی نیست.» 26
Нет мне мира, нет покоя, нет отрады: постигло несчастье.

< ایوب 3 >