< پیدایش 50 >

آنگاه یوسف خود را روی جسد پدرش انداخته، گریست و او را بوسید. 1
तब यूसुफ अपने पिता के मुँह पर गिरकर रोया और उसे चूमा।
سپس دستور داد تا جسد وی را مومیایی کنند. 2
और यूसुफ ने उन वैद्यों को, जो उसके सेवक थे, आज्ञा दी कि उसके पिता के शव में सुगन्ध-द्रव्य भरे; तब वैद्यों ने इस्राएल के शव में सुगन्ध-द्रव्य भर दिए।
کار مومیایی کردن مرده چهل روز طول می‌کشید. پس از مومیایی کردن جسد یعقوب، مردمِ مصر مدت هفتاد روز برای او عزاداری کردند. 3
और उसके चालीस दिन पूरे हुए, क्योंकि जिनके शव में सुगन्ध-द्रव्य भरे जाते हैं, उनको इतने ही दिन पूरे लगते है; और मिस्री लोग उसके लिये सत्तर दिन तक विलाप करते रहे।
بعد از اتمام ایام عزاداری، یوسف نزد درباریان فرعون رفته، از ایشان خواست که از طرف وی به فرعون بگویند: 4
जब उसके विलाप के दिन बीत गए, तब यूसुफ फ़िरौन के घराने के लोगों से कहने लगा, “यदि तुम्हारे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो मेरी यह विनती फ़िरौन को सुनाओ,
«پدرم مرا قسم داده است که پس از مرگش جسد وی را به کنعان برده، در قبری که برای خود آماده کرده است دفن کنم. درخواست می‌کنم به من اجازه دهید بروم و پدرم را دفن کنم. پس از دفن پدرم مراجعت خواهم کرد.» 5
मेरे पिता ने यह कहकर, ‘देख मैं मरने पर हूँ,’ मुझे यह शपथ खिलाई, ‘जो कब्र मैंने अपने लिये कनान देश में खुदवाई है उसी में तू मुझे मिट्टी देगा।’ इसलिए अब मुझे वहाँ जाकर अपने पिता को मिट्टी देने की आज्ञा दे, तत्पश्चात् मैं लौट आऊँगा।”
فرعون موافقت کرد و به یوسف گفت: «برو و همان‌طوری که قول داده‌ای پدرت را دفن کن.» 6
तब फ़िरौन ने कहा, “जाकर अपने पिता की खिलाई हुई शपथ के अनुसार उसको मिट्टी दे।”
پس یوسف روانه شد تا پدرش را دفن کند. تمام مشاوران فرعون، بزرگان خاندان فرعون، و همۀ بزرگان سرزمین مصر همراه وی رفتند. 7
इसलिए यूसुफ अपने पिता को मिट्टी देने के लिये चला, और फ़िरौन के सब कर्मचारी, अर्थात् उसके भवन के पुरनिये, और मिस्र देश के सब पुरनिये उसके संग चले।
یوسف همچنین همۀ اهل خانۀ خود و برادرانش و اهل خانۀ پدرش را نیز با خود برد. اما بچه‌ها و گله‌ها و رمه‌هایشان در جوشن ماندند. 8
और यूसुफ के घर के सब लोग, और उसके भाई, और उसके पिता के घर के सब लोग भी संग गए; पर वे अपने बाल-बच्चों, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों को गोशेन देश में छोड़ गए।
ارابه‌ها و سواران نیز آنها را همراهی می‌کردند. به این ترتیب گروه عظیمی راهی کنعان شد. 9
और उसके संग रथ और सवार गए, इस प्रकार भीड़ बहुत भारी हो गई।
وقتی که به خرمنگاه اطاد در آن طرف رود اردن رسیدند، با صدای بلند گریستند و به نوحه‌گری پرداختند و یوسف برای پدرش هفت روز ماتم گرفت. 10
१०जब वे आताद के खलिहान तक, जो यरदन नदी के पार है, पहुँचे, तब वहाँ अत्यन्त भारी विलाप किया, और यूसुफ ने अपने पिता के लिये सात दिन का विलाप कराया।
کنعانی‌های ساکن اطاد چون این سوگواری را دیدند آن محل را آبِل مِصرایِم نامیدند و گفتند: «اینجا مکانی است که مصری‌ها ماتمی عظیم گرفتند.» 11
११आताद के खलिहान में के विलाप को देखकर उस देश के निवासी कनानियों ने कहा, “यह तो मिस्रियों का कोई भारी विलाप होगा।” इसी कारण उस स्थान का नाम आबेलमिस्रैम पड़ा, और वह यरदन के पार है।
بدین ترتیب، پسران یعقوب همان‌طور که او به ایشان وصیت کرده بود، عمل کردند: 12
१२इस्राएल के पुत्रों ने ठीक वही काम किया जिसकी उसने उनको आज्ञा दी थी:
بدن او را به سرزمین کنعان برده، در غاری دفن کردند که در زمین مکفیله در نزدیکی ممری بود و ابراهیم آن را با مزرعه‌اش از عفرون حیتّی خریده بود تا مقبرۀ خانوادگی‌اش باشد. 13
१३अर्थात् उन्होंने उसको कनान देश में ले जाकर मकपेला की उस भूमिवाली गुफा में, जो मम्रे के सामने हैं, मिट्टी दी; जिसको अब्राहम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसलिए मोल लिया था, कि वह कब्रिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो।
یوسف پس از دفن پدرش، با برادران و همهٔ کسانی که همراه او رفته بودند به مصر بازگشت. 14
१४अपने पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपने भाइयों और उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिये उसके संग गए थे, मिस्र लौट आया।
وقتی برادران یوسف دیدند که پدرشان مرده است، به یکدیگر گفتند: «حالا یوسف انتقام همهٔ بدیهایی را که به او روا داشتیم از ما خواهد گرفت.» 15
१५जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, “कदाचित् यूसुफ अब हमारे पीछे पडे़, और जितनी बुराई हमने उससे की थी सब का पूरा बदला हम से ले।”
پس این پیغام را برای یوسف فرستادند: «پدرت قبل از این که بمیرد چنین وصیت کرد: 16
१६इसलिए उन्होंने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, “तेरे पिता ने मरने से पहले हमें यह आज्ञा दी थी,
”به یوسف بگویید: از تو تمنا دارم از سر تقصیر برادرانت بگذری و گناهشان را ببخشی، زیرا که به تو بدی کرده‌اند.“حال ما، بندگان خدای پدرت، التماس می‌کنیم که ما را ببخشی.» وقتی که یوسف این پیغام را شنید گریست. 17
१७‘तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम विनती करते हैं, कि तू अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा कर; हमने तुझ से बुराई की थी, पर अब अपने पिता के परमेश्वर के दासों का अपराध क्षमा कर।’” उनकी ये बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा।
آنگاه برادرانش آمده، به پای او افتادند و گفتند: «ما غلامان تو هستیم.» 18
१८और उसके भाई आप भी जाकर उसके सामने गिर पड़े, और कहा, “देख, हम तेरे दास हैं।”
اما یوسف به ایشان گفت: «از من نترسید. مگر من خدا هستم؟ 19
१९यूसुफ ने उनसे कहा, “मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूँ?
هر چند شما به من بدی کردید، اما خدا عمل بد شما را برای من به نیکی مبدل نمود و چنانکه می‌بینید مرا به این مقام رسانیده است تا افراد بی‌شماری را از مرگِ ناشی از گرسنگی نجات دهم. 20
२०यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिससे वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं।
پس نترسید. من از شما و خانواده‌های شما مواظبت خواهم کرد.» او با آنها به مهربانی سخن گفت و خیال آنها آسوده شد. 21
२१इसलिए अब मत डरो: मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन-पोषण करता रहूँगा।” इस प्रकार उसने उनको समझा-बुझाकर शान्ति दी।
یوسف و برادرانش و خانواده‌های آنها مثل سابق به زندگی خود در مصر ادامه دادند. یوسف صد و ده سال زندگی کرد. 22
२२यूसुफ अपने पिता के घराने समेत मिस्र में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा।
او توانست سومین نسل فرزندانِ افرایم را ببیند، و نیز شاهد تولد فرزندان ماخیر، پسر منسی که فرزندان یوسف محسوب می‌شدند، باشد. 23
२३और यूसुफ एप्रैम के परपोतों तक को देखने पाया और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न हुए और यूसुफ ने उन्हें गोद में लिया।
یوسف به برادران خود گفت: «من به‌زودی می‌میرم، ولی بدون شک خدا شما را از مصر به کنعان، سرزمینی که وعدهٔ آن را به نسل ابراهیم و اسحاق و یعقوب داده است، خواهد برد.» 24
२४यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाई थी।”
سپس یوسف برادرانش را قسم داده، گفت: «هنگامی که خدا شما را به کنعان می‌برد، استخوانهای مرا نیز با خود ببرید.» 25
२५फिर यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहकर कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की शपथ खिलाई, “हम तेरी हड्डियों को यहाँ से उस देश में ले जाएँगे।”
یوسف در سن صد و ده سالگی در مصر درگذشت و جسد او را مومیایی کرده در تابوتی قرار دادند. 26
२६इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया: और उसके शव में सुगन्ध-द्रव्य भरे गए, और वह शव मिस्र में एक शवपेटी में रखा गया।

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