< پیدایش 24 >
ابراهیم اکنون مردی بود بسیار سالخورده و خداوند او را از هر لحاظ برکت داده بود. | 1 |
१अब्राहम अब वृद्ध हो गया था और उसकी आयु बहुत थी और यहोवा ने सब बातों में उसको आशीष दी थी।
روزی ابراهیم به خادم خود که رئیس غلامانش بود، گفت: «دستت را زیر ران من بگذار | 2 |
२अब्राहम ने अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था, कहा, “अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रख;
و به خداوند، خدای آسمان و زمین قسم بخور که نگذاری پسرم با یکی از دختران کنعانی اینجا ازدواج کند. | 3 |
३और मुझसे आकाश और पृथ्वी के परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपथ खा, कि तू मेरे पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से, जिनके बीच मैं रहता हूँ, किसी को न लाएगा।
پس به زادگاهم نزد خویشاوندانم برو و در آنجا برای اسحاق همسری انتخاب کن.» | 4 |
४परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियों के पास जाकर मेरे पुत्र इसहाक के लिये एक पत्नी ले आएगा।”
خادم پرسید: «اگر هیچ دختری حاضر نشد زادگاه خود را ترک کند و به این دیار بیاید، آن وقت چه؟ در آن صورت آیا اسحاق را به آنجا ببرم؟» | 5 |
५दास ने उससे कहा, “कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साथ आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहाँ से तू आया है ले जाना पड़ेगा?”
ابراهیم در جواب گفت: «نه، چنین نکن! | 6 |
६अब्राहम ने उससे कहा, “चौकस रह, मेरे पुत्र को वहाँ कभी न ले जाना।”
خداوند، خدای آسمان، به من فرمود که ولایت و خانۀ پدریام را ترک کنم و وعده داد که این سرزمین را به من و به فرزندانم به مِلکیت خواهد بخشید. پس خودِ خداوند فرشتهٔ خود را پیش روی تو خواهد فرستاد و ترتیبی خواهد داد که در آنجا همسری برای پسرم اسحاق بیابی و همراه خود بیاوری. | 7 |
७स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिसने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्म-भूमि से ले आकर मुझसे शपथ खाकर कहा कि “मैं यह देश तेरे वंश को दूँगा; वही अपना दूत तेरे आगे-आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्र के लिये वहाँ से एक स्त्री ले आए।
اما اگر آن دختر نخواست با تو بیاید، تو از این قسم مبرا هستی. ولی به هیچ وجه نباید پسرم را به آنجا ببری.» | 8 |
८और यदि वह स्त्री तेरे साथ आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपथ से छूट जाएगा; पर मेरे पुत्र को वहाँ न ले जाना।”
پس خادم دستش را زیر ران سَرور خود ابراهیم گذاشت و قسم خورد که مطابق دستور او عمل کند. | 9 |
९तब उस दास ने अपने स्वामी अब्राहम की जाँघ के नीचे अपना हाथ रखकर उससे इस विषय की शपथ खाई।
او با ده شتر از شتران ابراهیم و مقداری هدایا از اموالِ او به سوی شمالِ بینالنهرین، به شهری که ناحور در آن زندگی میکرد، رهسپار شد. | 10 |
१०तब वह दास अपने स्वामी के ऊँटों में से दस ऊँट छाँटकर उसके सब उत्तम-उत्तम पदार्थों में से कुछ कुछ लेकर चला; और अरम्नहरैम में नाहोर के नगर के पास पहुँचा।
وقتی به مقصد رسید، شترها را در خارج شهر، در کنار چاه آبی خوابانید. نزدیک غروب که زنان برای کشیدن آب به سر چاه میآمدند، | 11 |
११और उसने ऊँटों को नगर के बाहर एक कुएँ के पास बैठाया। वह संध्या का समय था, जिस समय स्त्रियाँ जल भरने के लिये निकलती हैं।
او چنین دعا کرد: «ای خداوند، خدای سَروَر من ابراهیم، التماس میکنم نسبت به سرورم لطف فرموده، مرا یاری دهی تا خواستهٔ او را برآورم. | 12 |
१२वह कहने लगा, “हे मेरे स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी अब्राहम पर करुणा कर।
اینک من در کنار این چاه ایستادهام، و دختران شهر برای بردن آب میآیند. | 13 |
१३देख, मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूँ; और नगरवासियों की बेटियाँ जल भरने के लिये निकली आती हैं
من به یکی از آنان خواهم گفت:”سبوی خود را پایین بیاور تا آب بنوشم.“اگر آن دختر بگوید:”بنوش و من شترانت را نیز سیراب خواهم کرد،“آنگاه خواهم دانست که او همان دختری است که تو برای اسحاق در نظر گرفتهای و سرورم را مورد لطف خویش قرار دادهای.» | 14 |
१४इसलिए ऐसा होने दे कि जिस कन्या से मैं कहूँ, ‘अपना घड़ा मेरी ओर झुका, कि मैं पीऊँ,’ और वह कहे, ‘ले, पी ले, बाद में मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,’ यह वही हो जिसे तूने अपने दास इसहाक के लिये ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर करुणा की है।”
در حالی که خادم هنوز مشغول راز و نیاز با خداوند بود، دختر زیبایی به نام رِبِکا که سبویی بر دوش داشت، سر رسید. او دختر بتوئیل، پسر مِلکه بود، و ملکه همسر ناحور، برادر ابراهیم بود. | 15 |
१५और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा था कि रिबका, जो अब्राहम के भाई नाहोर के जन्माये मिल्का के पुत्र, बतूएल की बेटी थी, वह कंधे पर घड़ा लिये हुए आई।
ربکا دختری بسیار زیبا و به سن ازدواج رسیده بود، و مردی با او همبستر نشده بود. او به چشمه پائین رفت و کوزۀ خود را پر کرده، بالا آمد. | 16 |
१६वह अति सुन्दर, और कुमारी थी, और किसी पुरुष का मुँह न देखा था। वह कुएँ में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भरकर फिर ऊपर आई।
خادم نزد او شتافت و از وی آب خواست. | 17 |
१७तब वह दास उससे भेंट करने को दौड़ा, और कहा, “अपने घड़े में से थोड़ा पानी मुझे पिला दे।”
دختر گفت: «سَروَرم، بنوش!» و فوری سبوی خود را پایین آورد و او نوشید. | 18 |
१८उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, ले, पी ले,” और उसने फुर्ती से घड़ा उतारकर हाथ में लिये-लिये उसको पानी पिला दिया।
سپس افزود: «شترانت را نیز سیراب خواهم کرد.» | 19 |
१९जब वह उसको पिला चुकी, तब कहा, “मैं तेरे ऊँटों के लिये भी तब तक पानी भर-भर लाऊँगी, जब तक वे पी न चुकें।”
آنگاه آب را در آبشخور ریخت و دوباره به طرف چاه دوید و برای تمام شترها آب کشید. | 20 |
२०तब वह फुर्ती से अपने घड़े का जल हौद में उण्डेलकर फिर कुएँ पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊँटों के लिये पानी भर दिया।
خادم چشم بر او دوخته، چیزی نمیگفت تا ببیند آیا خداوند او را در این سفر کامیاب خواهد ساخت یا نه. | 21 |
२१और वह पुरुष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साथ ताकता हुआ यह सोचता था कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सफल किया है कि नहीं।
پس از آنکه ربکا شترها را سیراب نمود، خادم یک حلقهٔ طلا به وزن نیم مثقال و یک جفت النگوی طلا به وزن ده مثقال به او داده، گفت: | 22 |
२२जब ऊँट पी चुके, तब उस पुरुष ने आधा तोला सोने का एक नत्थ निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथों में पहना दिए;
«به من بگو دختر که هستی؟ آیا در منزل پدرت جایی برای ما هست تا شب را به سر ببریم؟» | 23 |
२३और पूछा, “तू किसकी बेटी है? यह मुझ को बता। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिये स्थान है?”
او در جواب گفت: «من دختر بتوئیل و نوهٔ ناحور و مِلکه هستم. | 24 |
२४उसने उत्तर दिया, “मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूँ।”
بله، ما برای شما و شترهایتان جا و خوراک کافی داریم.» | 25 |
२५फिर उसने उससे कहा, “हमारे यहाँ पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिये स्थान भी है।”
آنگاه آن مرد خداوند را سجده کرده، گفت: | 26 |
२६तब उस पुरुष ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा,
«ای خداوند، خدای سَروَرم ابراهیم، از تو سپاسگزارم که نسبت به او امین و مهربان بودهای و مرا در این سفر هدایت نموده، به نزد بستگان سرورم آوردی.» | 27 |
२७“धन्य है मेरे स्वामी अब्राहम का परमेश्वर यहोवा, जिसने अपनी करुणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया: यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई-बन्धुओं के घर पर पहुँचा दिया है।”
پس آن دختر دواندوان رفته، به اهل خانهٔ خود خبر داد. | 28 |
२८तब उस कन्या ने दौड़कर अपनी माता को इस घटना का सारा हाल बता दिया।
ربکا برادری به نام لابان داشت. او دواندوان بیرون آمد تا آن مردی را که سر چاه بود ببیند، | 29 |
२९तब लाबान जो रिबका का भाई था, बाहर कुएँ के निकट उस पुरुष के पास दौड़ा गया।
زیرا حلقه و النگوها را بر دست خواهرش دیده بود و سخنان آن مرد را از خواهرش شنیده بود. پس بیدرنگ سر چاه رفت و دید آن مرد هنوز پیش شترهایش ایستاده است. | 30 |
३०और ऐसा हुआ कि जब उसने वह नत्थ और अपनी बहन रिबका के हाथों में वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी कि उस पुरुष ने मुझसे ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरुष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊँटों के पास खड़ा है।
لابان به او گفت: «ای که برکت خداوند بر توست، چرا اینجا ایستادهای؟ به منزل ما بیا. ما برای تو و شترهایت جا آماده کردهایم.» | 31 |
३१उसने कहा, “हे यहोवा की ओर से धन्य पुरुष भीतर आ तू क्यों बाहर खड़ा है? मैंने घर को, और ऊँटों के लिये भी स्थान तैयार किया है।”
پس آن مرد با لابان به منزل رفت و لابان بار شترها را باز کرده، به آنها کاه و علف داد. سپس برای خادم ابراهیم و افرادش آب آورد تا پاهای خود را بشویند. | 32 |
३२इस पर वह पुरुष घर में गया; और लाबान ने ऊँटों की काठियाँ खोलकर पुआल और चारा दिया; और उसके और उसके साथियों के पाँव धोने को जल दिया।
وقتی غذا را آوردند، خادم ابراهیم گفت: «تا مقصود خود را از آمدن به اینجا نگویم لب به غذا نخواهم زد.» لابان گفت: «بسیار خوب، بگو.» | 33 |
३३तब अब्राहम के दास के आगे जलपान के लिये कुछ रखा गया; पर उसने कहा “मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूँ, तब तक कुछ न खाऊँगा।” लाबान ने कहा, “कह दे।”
او گفت: «من خادم ابراهیم هستم. | 34 |
३४तब उसने कहा, “मैं तो अब्राहम का दास हूँ।
خداوند او را بسیار برکت داده است و او مردی بزرگ و معروف میباشد. خداوند به او گلهها و رمهها، طلا و نقرهٔ بسیار، غلامان و کنیزان، و شترها و الاغهای فراوانی داده است. | 35 |
३५यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; इसलिए वह महान पुरुष हो गया है; और उसने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना-रूपा, दास-दासियाँ, ऊँट और गदहे दिए हैं।
«سارا همسر سرورم در سن پیری پسری زایید، و سرورم تمام دارایی خود را به پسرش بخشیده است. | 36 |
३६और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ है; और उस पुत्र को अब्राहम ने अपना सब कुछ दे दिया है।
سرورم مرا قسم داده که از دختران کنعانی برای پسرش زن نگیرم، | 37 |
३७मेरे स्वामी ने मुझे यह शपथ खिलाई है, कि ‘मैं उसके पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से जिनके देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊँगा।
بلکه به اینجا نزد قبیله و خاندان پدریاش آمده، زنی برای او انتخاب کنم. | 38 |
३८मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगों के पास जाकर उसके पुत्र के लिये एक स्त्री ले आऊँगा।’
«من به سرورم گفتم:”شاید نتوانم دختری پیدا کنم که حاضر باشد به اینجا بیاید؟“ | 39 |
३९तब मैंने अपने स्वामी से कहा, ‘कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए।’
او به من گفت:”خداوندی که از او پیروی میکنم، فرشتهٔ خود را همراه تو خواهد فرستاد تا در این سفر کامیاب شوی و دختری از قبیله و خاندان پدریام پیدا کنی. | 40 |
४०तब उसने मुझसे कहा, ‘यहोवा, जिसके सामने मैं चलता आया हूँ, वह तेरे संग अपने दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सफल करेगा; और तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिये एक स्त्री ले आ सकेगा।
تو وظیفه داری به آنجا رفته، پرس و جو کنی. اگر آنها از فرستادن دختر خودداری کردند، آن وقت تو از سوگندی که خوردهای مبرا خواهی بود.“ | 41 |
४१तू तब ही मेरी इस शपथ से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगों के पास पहुँचेगा; और यदि वे तुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी शपथ से छूटेगा।’
«امروز که به سر چاه رسیدم چنین دعا کردم:”ای خداوند، خدای سَروَرم ابراهیم، التماس میکنم که مرا در این سفر کامیاب سازی. | 42 |
४२इसलिए मैं आज उस कुएँ के निकट आकर कहने लगा, ‘हे मेरे स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सफल करता हो;
اینک در کنار این چاه میایستم و به یکی از دخترانی که از شهر برای بردن آب میآیند خواهم گفت: «از سبوی خود قدری آب به من بده تا بنوشم.» | 43 |
४३तो देख मैं जल के इस कुएँ के निकट खड़ा हूँ; और ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिये आए, और मैं उससे कहूँ, “अपने घड़े में से मुझे थोड़ा पानी पिला,”
اگر آن دختر جواب بدهد: «بنوش و من شترانت را نیز سیراب خواهم کرد»، آنگاه خواهم دانست که او همان دختری است که تو برای اسحاق پسر سرورم در نظر گرفتهای.“ | 44 |
४४और वह मुझसे कहे, “पी ले, और मैं तेरे ऊँटों के पीने के लिये भी पानी भर दूँगी,” वह वही स्त्री हो जिसको तूने मेरे स्वामी के पुत्र के लिये ठहराया है।’
«هنوز دعایم تمام نشده بود که دیدم ربکا با سبویی بر دوش سر رسید و به سر چاه رفته، آب کشید و سبو را از آب پُر کرد. به او گفتم:”کمی آب به من بده تا بنوشم.“ | 45 |
४५मैं मन ही मन यह कह ही रहा था, कि देख रिबका कंधे पर घड़ा लिये हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतरकर भरने लगी। मैंने उससे कहा, ‘मुझे पानी पिला दे।’
او فوراً سبو را پایین آورد تا بنوشم و گفت:”شترانت را نیز سیراب خواهم کرد“و چنین نیز کرد. | 46 |
४६और उसने जल्दी से अपने घड़े को कंधे पर से उतार के कहा, ‘ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,’ इस प्रकार मैंने पी लिया, और उसने ऊँटों को भी पिला दिया।
«آنگاه از او پرسیدم:”تو دختر که هستی؟“«او به من گفت:”دختر بتوئیل و نوه ناحور و مِلکه هستم.“«من هم حلقه را در بینی او و النگوها را به دستش کردم. | 47 |
४७तब मैंने उससे पूछा, ‘तू किसकी बेटी है?’ और उसने कहा, ‘मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूँ,’ तब मैंने उसकी नाक में वह नत्थ, और उसके हाथों में वे कंगन पहना दिए।
سپس سجده کرده خداوند، خدای سَروَرم ابراهیم را پرستش نمودم، چون مرا به راه راست هدایت فرمود تا دختری از خانوادۀ برادر سرور خود برای پسرش پیدا کنم. | 48 |
४८फिर मैंने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपने स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उसने मुझे ठीक मार्ग से पहुँचाया कि मैं अपने स्वामी के पुत्र के लिये उसके कुटुम्बी की पुत्री को ले जाऊँ।
اکنون به من جواب بدهید؛ آیا چنین لطفی در حق سرور من خواهید کرد و آنچه درست است به جا خواهید آورد؟ به من جواب بدهید تا تکلیف خود را بدانم.» | 49 |
४९इसलिए अब, यदि तुम मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझसे कहो; और यदि नहीं चाहते हो; तो भी मुझसे कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, या बाईं ओर फिर जाऊँ।”
لابان و بتوئیل به او گفتند: «خداوند تو را به اینجا هدایت کرده است، پس ما چه میتوانیم بگوییم؟ | 50 |
५०तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “यह बात यहोवा की ओर से हुई है; इसलिए हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा।
اینک ربکا را برداشته برو تا چنانکه خداوند اراده فرموده است، همسر پسر سرورت بشود.» | 51 |
५१देख, रिबका तेरे सामने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए।”
به محض شنیدن این سخن، خادمِ ابراهیم در حضور خداوند به خاک افتاد و او را سجده نمود. | 52 |
५२उनकी यह बात सुनकर, अब्राहम के दास ने भूमि पर गिरकर यहोवा को दण्डवत् किया।
سپس لباس و طلا و نقره و جواهرات به ربکا داد و هدایای گرانبهایی نیز به مادر و برادرانش پیشکش کرد. | 53 |
५३फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए; और उसके भाई और माता को भी उसने अनमोल-अनमोल वस्तुएँ दीं।
پس از آن او و همراهانش شام خوردند و شب را در منزل بتوئیل به سر بردند. خادم ابراهیم صبح زود برخاسته، به آنها گفت: «حال اجازه دهید برویم.» | 54 |
५४तब उसने अपने संगी जनों समेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई। उसने तड़के उठकर कहा, “मुझ को अपने स्वामी के पास जाने के लिये विदा करो।”
ولی مادر و برادر ربکا گفتند: «ربکا باید اقلاً ده روز دیگر پیش ما بماند و بعد از آن برود.» | 55 |
५५रिबका के भाई और माता ने कहा, “कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्थात् कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चली जाएगी।”
اما او گفت: «خواهش میکنم مرا معطل نکنید. خداوند مرا در این سفر کامیاب گردانیده است. بگذارید بروم و این خبر خوش را به سرورم برسانم.» | 56 |
५६उसने उनसे कहा, “यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सफल किया है; इसलिए तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपने स्वामी के पास जाऊँ।”
ایشان گفتند: «بسیار خوب. ما از دختر میپرسیم تا ببینیم نظر خودش چیست.» | 57 |
५७उन्होंने कहा, “हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है।”
پس ربکا را صدا کرده، از او پرسیدند: «آیا مایلی همراه این مرد بروی؟» وی جواب داد: «بله، میروم.» | 58 |
५८और उन्होंने रिबका को बुलाकर उससे पूछा, “क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी?” उसने कहा, “हाँ मैं जाऊँगी।”
آنگاه با او خداحافظی کرده، دایهاش را همراه وی فرستادند. | 59 |
५९तब उन्होंने अपनी बहन रिबका, और उसकी दाई और अब्राहम के दास, और उसके साथी सभी को विदा किया।
هنگام حرکت، ربکا را برکت داده، چنین گفتند: «خواهر، امیدواریم مادرِ فرزندان بسیاری شوی! امیدواریم نسل تو بر تمام دشمنانت چیره شوند.» | 60 |
६०और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद देकर कहा, “हे हमारी बहन, तू हजारों लाखों की आदिमाता हो, और तेरा वंश अपने बैरियों के नगरों का अधिकारी हो।”
پس ربکا و کنیزانش بر شتران سوار شده، همراه خادمِ ابراهیم رفتند. | 61 |
६१तब रिबका अपनी सहेलियों समेत चली; और ऊँट पर चढ़कर उस पुरुष के पीछे हो ली। इस प्रकार वह दास रिबका को साथ लेकर चल दिया।
در این هنگام اسحاق که در سرزمین نِگِب سکونت داشت، به بئرلحی رُئی بازگشته بود. | 62 |
६२इसहाक जो दक्षिण देश में रहता था, लहैरोई नामक कुएँ से होकर चला आता था।
یک روز عصر هنگامی که در صحرا قدم میزد و غرق اندیشه بود، سر خود را بلند کرده، دید که اینک شتران میآیند. | 63 |
६३साँझ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिये निकला था; और उसने आँखें उठाकर क्या देखा, कि ऊँट चले आ रहे हैं।
ربکا با دیدن اسحاق به شتاب از شتر پیاده شد | 64 |
६४रिबका ने भी आँखें उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊँट पर से उतर पड़ी।
و از خادم پرسید: «آن مردی که از صحرا به استقبال ما میآید کیست؟» وی پاسخ داد: «اسحاق، پسر سَروَر من است.» با شنیدن این سخن، ربکا با روبندِ خود صورتش را پوشانید. | 65 |
६५तब उसने दास से पूछा, “जो पुरुष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, वह कौन है?” दास ने कहा, “वह तो मेरा स्वामी है।” तब रिबका ने घूँघट लेकर अपने मुँह को ढाँप लिया।
آنگاه خادم تمام داستان سفر خود را برای اسحاق شرح داد. | 66 |
६६दास ने इसहाक से अपने साथ हुई घटना का वर्णन किया।
اسحاق ربکا را به داخل خیمهٔ مادرش سارا آورد و او را به زنی گرفته به او دل بست و از غم مرگ مادرش تسلی یافت. | 67 |
६७तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याह कर उससे प्रेम किया। इस प्रकार इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति प्राप्त हुई।