< دوم سموئیل 1 >

پس از کشته شدن شائول، داوود عمالیقی‌ها را سرکوب کرد و به شهر صقلغ بازگشت و دو روز در آنجا ماند. 1
शाऊल की मृत्यु हो चुकी थी और दावीद को अमालेकियों का संहार कर लौटे हुए दो दिन व्यतीत हो चुके थे.
در روز سوم، ناگهان مردی از لشکر شائول با لباس پاره، در حالی که روی سرش خاک ریخته بود، آمد و در حضور داوود تعظیم نموده، به خاک افتاد. 2
तीसरे दिन शाऊल के शिविर से एक व्यक्ति वहां आया उसके वस्त्र फटे हुए थे और उसके केशों में धूल समाई हुई थी. जब वह दावीद के निकट पहुंचा, उसने दंडवत हो उनका अभिवादन किया.
داوود از او پرسید: «از کجا آمده‌ای؟» جواب داد: «از اردوگاه اسرائیل فرار کرده‌ام.» 3
दावीद ने उससे प्रश्न किया, “कहां से आ रहे हो?” उसने उत्तर दिया, “मैं इस्राएली सेना के शिविर से बच निकल भागकर यहां पहुंचा हूं.”
داوود پرسید: «به من بگو چه اتفاقی افتاده است؟» جواب داد: «تمام سربازان ما فرار کرده‌اند. عدهٔ زیادی از افراد ما کشته و مجروح شده‌اند. شائول و پسرش یوناتان هم کشته شده‌اند!» 4
दावीद ने उससे आगे पूछा, “मुझे बताओ वहां स्थिति क्या है?” उसने उत्तर दिया, “इस्राएली सेना पीठ दिखाकर भागी है. अनेक सैनिक घायल हुए, और अनेक मारे गए हैं. शाऊल और उनके पुत्र योनातन भी युद्ध में मारे गये.”
داوود از او پرسید: «از کجا می‌دانی که شائول و پسرش یوناتان مرده‌اند؟» 5
दावीद ने उस संदेशवाहक युवक से प्रश्न किया, “तुम्हें यह कैसे ज्ञात हुआ कि शाऊल और योनातन की मृत्यु हो चुकी है?”
گفت: «برحسب تصادف، در کوه جلبوع بودم که دیدم شائول به نیزهٔ خود تکیه داده بود و ارابه‌ها و سواران دشمن هر لحظه به او نزدیکتر می‌شدند. 6
उस सूचना देनेवाले युवक ने उन्हें बताया, “संयोगवश में उस समय गिलबोआ पर्वत पर ही था. वहां मैंने देखा कि शाऊल अपने भाले पर झुके हुए थे, घुड़सवार और रथ उनकी ओर बढ़े चले आ रहे थे,
وقتی شائول چشمش به من افتاد مرا صدا زد. گفتم: بله آقا. 7
उन्होंने मुड़कर मेरी ओर देखा और मुझे पुकारा, मैंने उनसे कहा, ‘आज्ञा दीजिए?’
پرسید:”کیستی؟“گفتم:”یک عَمالیقی.“ 8
“उन्होंने ही मुझसे पूछा, ‘कौन हो तुम?’ “मैंने उन्हें उत्तर दिया, ‘मैं अमालेकी हूं.’
آنگاه التماس کرد:”بیا و مرا بکش چون به سختی مجروح شده‌ام و می‌خواهم زودتر راحت شوم.“ 9
“उन्होंने मुझसे कहा, ‘मेरे निकट आकर मुझे इस पीड़ा से मुक्त कर दो. मेरी मृत्यु की पीड़ा असहनीय हो रही है, परंतु मेरे प्राण निकल नहीं रहे.’
پس من هم او را کشتم، چون می‌دانستم که زنده نمی‌ماند. تاج و بازوبندش را گرفتم و نزد آقای خویش آوردم.» 10
“तब मैं उनके निकट गया और उन पर वार कर उनकी हत्या कर दी, क्योंकि यह स्पष्ट ही थी कि भाले पर गिरने के बाद उनका जीवित रहना असंभव था. फिर मैंने उनका मुकुट उनके सिर से उठाया, उनकी बांह से उनका कंगन निकाला, और अपने स्वामी के लिए उन्हें ले आया हूं.”
داوود و افرادش وقتی این خبر را شنیدند از شدت ناراحتی لباسهای خود را پاره کردند. 11
तब दावीद ने अपने कपड़ों को पकड़कर उन्हें फाड़ दिया, और यही उनके सभी साथियों ने भी किया.
آنها برای شائول و پسرش یوناتان و قوم خداوند و به خاطر سربازان شهید اسرائیلی، تمام روز روزه گرفته، گریه کردند و به سوگواری پرداختند. 12
शाऊल, उनके पुत्र योनातन और तलवार से घात किए गए याहवेह की प्रजा और इस्राएल वंश के लिए वे सांझ तक विलाप करते रहे और उन्होंने उपवास किया.
آنگاه داوود به جوانی که این خبر را آورده بود گفت: «تو اهل کجا هستی؟» او جواب داد: «من یک عمالیقی هستم ولی در سرزمین شما زندگی می‌کنم.» 13
दावीद ने उस युवक से जो समाचार लाया था पूछा, “कहां के हो तुम?” और उसने उन्हें उत्तर दिया था, “मैं एक विदेशी की संतान हूं, एक अमालेकी.”
داوود به او گفت: «چطور جرأت کردی پادشاه برگزیدهٔ خداوند را بکشی؟» 14
दावीद ने इस युवक से प्रश्न किया, “याहवेह के अभिषिक्त पर हाथ उठाते हुए तुम्हें भय क्यों न लगा?”
سپس به یکی از افرادش دستور داد او را بکشد و آن مرد او را کشت. 15
दावीद ने अपने एक युवा साथी को बुलाकर उससे कहा, “जाकर उसे समाप्‍त कर दो.” तब उस साथी ने अमालेकी पर वार किया और उसकी मृत्यु हो गई.
داوود گفت: «تو خودت باعث مرگت شدی، چون با زبان خودت اعتراف کردی که پادشاه برگزیدهٔ خداوند را کشته‌ای.» 16
दावीद ने कहा, “तुम्हारा रक्त-दोष तुम्हारे ही सिर पर है, क्योंकि स्वयं तुमने यह कहते हुए अपने मुख से अपने ही विरुद्ध गवाही दी है, ‘मैंने याहवेह के अभिषिक्त की हत्या की है.’”
آنگاه داوود این مرثیه را برای شائول و یوناتان نوشت و بعد دستور داد آن را به مردم یهودا تعلیم دهند. (کلمات این مرثیه در کتاب یاشَر نوشته شده است.) 17
दावीद ने शाऊल और उनके पुत्र योनातन के लिए यह शोक गीत गाया,
18
और उन्होंने यह आदेश प्रसारित किया, कि यह गीत सारे यहूदियावासियों को सिखाया जाए (यह गीत याशर के ग्रंथ में अंकित है):
«ای اسرائیل، جلال تو بر فراز تپه‌ها از بین رفت. دلاوران تو به خاک افتاده‌اند! 19
“इस्राएल, तुम्हारा गौरव तुम्हारे ही उच्च स्थानों पर घात किया गया है. कैसे पराक्रमी गिर पड़े हैं!
«این را به فلسطینی‌ها نگویید، مبادا شادی کنند. این را از شهرهای جت و اشقلون مخفی بدارید، مبادا دختران خدانشناس فلسطین وجد نمایند. 20
“इसका उल्लेख गाथ में न किया जाए, इसका उल्लेख अश्कलोन की गलियों में भी न किया जाए, ऐसा न हो कि फिलिस्तीनियों की पुत्रियां इस पर उल्लास मनाने लगें, ऐसा न हो कि अख़तनितों की पुत्रियां हर्षित होने लगें.
«ای کوه جلبوع، کاش دیگر شبنم و باران بر تو نبارد، کاش دیگر محصول غله در دامنت نروید، زیرا در آنجا شائول و دلاوران اسرائیل مرده‌اند، از این پس، سپر شائول را روغن نخواهند مالید. 21
“गिलबोआ के पर्वतों, तुम पर न तो ओस पड़े, और न बारिश, तुम पर उपजाऊ खेत भी न हों. क्योंकि इसी स्थान पर शूर योद्धा की ढाल दूषित की गई, शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई.
«شائول و یوناتان، هر دو دشمنان نیرومند خود را کشتند و دست خالی از جنگ برنگشتند. 22
“घात किए हुओं के रक्त से, शूरवीरों की चर्बी से, योनातन का धनुष कभी खाली न लौटा, वैसे ही शाऊल की तलवार का वार कभी विफल नहीं हुआ.
شائول و یوناتان چقدر محبوب و نازنین بودند! در زندگی و در مرگ از هم جدا نشدند! از عقابها سریعتر و از شیرها تواناتر بودند! 23
शाऊल और योनातन अपने जीवनकाल में प्रिय और आकर्षक थे, मृत्यु में भी वे विभक्त नहीं हुए. उनमें गरुड़ों सदृश तेज गति, और सिंहों सदृश बल था.
«ای زنان اسرائیل، برای شائول گریه کنید. او شما را با لباسهای زیبا و گرانبها می‌پوشانْد و با زر و زیور می‌آراست. 24
“इस्राएल की पुत्रियो, शाऊल के लिए विलाप करो, जिन्होंने तुम्हें भव्य बैंगनी वस्त्र पहनाए, जिन्होंने वस्त्रों के अलावा तुम्हें सोने के आभूषण भी दिए.
«یوناتان بر فراز تپه‌ها کشته شده است. دلاوران در میدان جنگ افتاده‌اند. 25
“शूर कैसे घात किए गए युद्ध में! तुम्हारे उच्च स्थल पर योनातन मृत पड़ा है.
ای برادر من یوناتان، برای تو بسیار دلتنگم. چقدر تو را دوست داشتم! محبت تو برای من، عمیقتر از محبت زنان بود! 26
योनातन, मेरे भाई, तुम्हारे लिए मैं शोकाकुल हूं; तुम मुझे अत्यंत प्रिय थे. मेरे लिए तुम्हारा प्रेम, नारी के प्रेम से कहीं अधिक मधुर था.
«دلاوران به خاک افتاده و مرده‌اند. اسلحه آنها را به غنیمت برده‌اند.» 27
“कैसे शूर मिट गए! कैसे युद्ध के हथियार नष्ट हो गए!”

< دوم سموئیل 1 >