< اول پادشاهان 8 >
آنگاه سلیمان پادشاه تمام سران قبایل و طوایف و مشایخ قوم اسرائیل را به اورشلیم دعوت کرد تا صندوق عهد خداوند را که در صهیون، شهر داوود بود به خانۀ خدا بیاورند. | 1 |
१तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियों को और गोत्रों के सब मुख्य पुरुषों को भी जो इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के प्रधान थे, यरूशलेम में अपने पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्थात् सिय्योन से ऊपर ले आएँ।
همهٔ آنها در روزهای عید خیمهها در ماه ایتانیم که ماه هفتم است در اورشلیم جمع شدند. | 2 |
२अतः सब इस्राएली पुरुष एतानीम नामक सातवें महीने के पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए।
آنگاه کاهنان و لاویان صندوق عهد و خیمۀ ملاقات را با تمام ظروف مقدّسی که در آن بود، به خانۀ خدا آوردند. | 3 |
३जब सब इस्राएली पुरनिये आए, तब याजकों ने सन्दूक को उठा लिया।
४और यहोवा का सन्दूक, और मिलापवाले तम्बू, और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे, उन सभी को याजक और लेवीय लोग ऊपर ले गए।
سپس سلیمان پادشاه و تمام بنیاسرائیل در برابر صندوق عهد خداوند جمع شدند و در آن روز تعداد زیادی گاو و گوسفند قربانی کردند. تعداد گاو و گوسفند قربانی شده آنقدر زیاد بود که نمیشد شمرد. | 5 |
५और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मण्डली, जो उसके पास इकट्ठी हुई थी, वे सब सन्दूक के सामने इतने भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती थी।
سپس کاهنان، صندوق عهد را به درون قدسالاقداس خانهٔ خداوند بردند و آن را زیر بالهای آن دو کروبی قرار دادند. | 6 |
६तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्थान को अर्थात् भवन के पवित्रस्थान में, जो परमपवित्र स्थान है, पहुँचाकर करूबों के पंखों के तले रख दिया।
بالهای کروبیان روی صندوق عهد خداوند و روی چوبهای حامل صندوق گسترده میشد و آن را میپوشاند. | 7 |
७करूब सन्दूक के स्थान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडों को ढाँके थे।
این چوبها آنقدر دراز بود که از داخل اتاق دوم یعنی قدس دیده میشدند اما از حیاط دیده نمیشدند. (این چوبها هنوز هم در آنجا هستند.) | 8 |
८डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिरे उस पवित्रस्थान से जो पवित्रस्थान के सामने था दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वर्तमान हैं।
در صندوق عهد چیزی جز دو لوح سنگی نبود. وقتی خداوند با قوم خود، پس از بیرون آمدنشان از مصر، در کوه حوریب عهد و پیمان بست، موسی آن دو لوح را در صندوق عهد گذاشت. | 9 |
९सन्दूक में कुछ नहीं था, उन दो पटियाओं को छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने पर उनके साथ वाचा बाँधी थी।
وقتی کاهنان از قدس بیرون میآمدند ناگهان ابری خانهٔ خداوند را پر ساخت | 10 |
१०जब याजक पवित्रस्थान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया।
و حضور پرجلال خداوند آن مکان را فرا گرفت به طوری که کاهنان نتوانستند به خدمت خود ادامه دهند. | 11 |
११और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था।
آنگاه سلیمان پادشاه چنین دعا کرد: «خداوندا، تو فرمودهای که در ابر غلیظ و تاریک ساکن میشوی؛ ولی من برای تو خانهای ساختهام تا همیشه در آن منزل گزینی!» | 12 |
१२तब सुलैमान कहने लगा, “यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूँगा।
१३सचमुच मैंने तेरे लिये एक वासस्थान, वरन् ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिसमें तू युगानुयुग बना रहे।”
سپس پادشاه رو به جماعتی که ایستاده بودند کرد و ایشان را برکت داده، | 14 |
१४तब राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुँह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही।
گفت: «سپاس بر خداوند، خدای اسرائیل که آنچه را به پدرم داوود وعده داده بود، امروز با قدرت خود بجا آورده است. | 15 |
१५और उसने कहा, “धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा! जिसने अपने मुँह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथ से उसे पूरा किया है,
او به پدرم فرمود: از زمانی که قوم خود را از مصر بیرون آوردم تاکنون در هیچ جای سرزمین اسرائیل هرگز شهری را انتخاب نکردهام تا در آنجا خانهای برای حرمت نام من بنا شود ولی داوود را انتخاب کردهام تا بر قوم من حکومت کند. | 16 |
१६‘जिस दिन से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैंने किसी इस्राएली गोत्र का कोई नगर नहीं चुना, जिसमें मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए; परन्तु मैंने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिकारी हो।’
«پدرم داوود میخواست خانهای برای خداوند، خدای اسرائیل بنا کند، | 17 |
१७मेरे पिता दाऊद की यह इच्छा तो थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए।
ولی خداوند به پدرم داوود فرمود:”قصد و نیت تو خوب است، | 18 |
१८परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, ‘यह जो तेरी इच्छा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी इच्छा करके तूने भला तो किया;
اما کسی که باید خانهٔ خدا را بسازد تو نیستی. پسر تو خانهٔ مرا بنا خواهد کرد.“ | 19 |
१९तो भी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।’
«حال، خداوند به وعدهٔ خود وفا کرده است. زیرا من به جای پدرم داوود بر تخت سلطنت اسرائیل نشستهام و این خانه را برای عبادت خداوند، خدای اسرائیل ساختهام، | 20 |
२०यह जो वचन यहोवा ने कहा था, उसे उसने पूरा भी किया है, और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है।
و در آنجا مکانی برای صندوق عهد آماده کردهام عهدی که خداوند هنگامی که اجداد ما را از مصر بیرون آورد، با ایشان بست.» | 21 |
२१और इसमें मैंने एक स्थान उस सन्दूक के लिये ठहराया है, जिसमें यहोवा की वह वाचा है, जो उसने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उनसे बाँधी थी।”
آنگاه سلیمان در حضور جماعت اسرائیل، روبروی مذبح خداوند ایستاده، دستهای خود را به طرف آسمان بلند کرد | 22 |
२२तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ, और अपने हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा!
و گفت: «ای خداوند، خدای اسرائیل، در تمام زمین و آسمان خدایی همانند تو وجود ندارد. تو خدایی هستی که عهد پر از رحمت خود را با کسانی که با تمام دل احکام تو را اطاعت میکنند نگاه میداری. | 23 |
२३हे इस्राएल के परमेश्वर! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृथ्वी पर कोई परमेश्वर है: तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता, और करुणा करता रहता है।
تو به وعدهای که به بندهٔ خود، پدرم داوود دادی، امروز وفا کردی و با دستانت به انجام رسانیدی. | 24 |
२४जो वचन तूने मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तूने पालन किया है, जैसा तूने अपने मुँह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा कि आज है।
«پس ای خداوند، خدای اسرائیل، اینک به این وعدهای هم که به پدرم دادی وفا کن که فرمودی:”اگر فرزندان تو مانند خودت مطیع دستورهای من باشند همیشه کسی از نسل تو بر اسرائیل پادشاهی خواهد کرد.“ | 25 |
२५इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! इस वचन को भी पूरा कर, जो तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, ‘तेरे कुल में, मेरे सामने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चाल चलन में ऐसी ही चौकसी करें।’
اکنون ای خدای اسرائیل، از تو خواستارم که این وعدهای را که به پدرم دادی، به انجام برسانی. | 26 |
२६इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था उसे सच्चा सिद्ध कर।
«ولی آیا ممکن است که خدا براستی روی زمین ساکن شود؟ ای خداوند، حتی آسمانها گنجایش تو را ندارند، چه رسد به این خانهای که من ساختهام. | 27 |
२७“क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में कैसे समाएगा।
با وجود این، ای خداوند، خدای من، تو دعای مرا بشنو و آن را مستجاب فرما. | 28 |
२८तो भी हे मेरे परमेश्वर यहोवा! अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्थना सुन! जो मैं आज तेरे सामने कर रहा हूँ;
چشمان تو شبانه روز بر این خانه باشد که دربارهاش فرمودی:”نام من در آن خواهد بود.“هر وقت در این مکان دعا میکنم، دعای مرا بشنو و اجابت فرما. | 29 |
२९कि तेरी आँख इस भवन की ओर अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय तूने कहा है, ‘मेरा नाम वहाँ रहेगा,’ रात दिन खुली रहें और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।
نه تنها من، بلکه هر وقت قوم تو اسرائیل نیز در اینجا دعا میکنند، تو دعای آنها را اجابت فرما و از آسمان که محل سکونت تو است، استغاثهٔ ایشان را بشنو و گناهانشان را ببخش. | 30 |
३०और तू अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरन् स्वर्ग में से जो तेरा निवास-स्थान है सुन लेना, और सुनकर क्षमा करना।
«هرگاه کسی به همسایۀ خود گناه ورزد و از او بخواهند کنار این مذبح سوگند یاد کند که بیگناه است، | 31 |
३१“जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के सामने शपथ खाए,
آنگاه از آسمان بشنو و داوری کن. اگر به دروغ سوگند یاد نموده و مقصر باشد وی را به سزای عملش برسان، در غیر این صورت بیگناهی او را ثابت و اعلام کن. | 32 |
३२तब तू स्वर्ग में सुनकर, अर्थात् अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निर्दोष को निर्दोष ठहराकर, उसके धार्मिकता के अनुसार उसको फल देना।
«وقتی قوم تو اسرائیل گناه ورزند و مغلوب دشمن شوند، ولی بعد به سوی تو روی آورند و اعتراف نمایند و در این خانه به درگاه تو دعا کنند، | 33 |
३३फिर जब तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करे,
آنگاه از آسمان ایشان را اجابت فرما و گناه قوم خود را بیامرز و بار دیگر آنان را به این سرزمینی که به اجداد ایشان بخشیدهای، بازگردان. | 34 |
३४तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना: और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था।
«اگر قوم تو گناه کنند و دریچهٔ آسمان به سبب گناهشان بسته شود و دیگر باران نبارد، آنگاه که آنها از گناهشان بازگشت نموده، اعتراف نمایند و در این خانه به درگاه تو دعا کنند، | 35 |
३५“जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दुःख देता है, और अपने पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर क्षमा करना,
تو از آسمان دعای ایشان را اجابت فرما و گناه بندگان خود را بیامرز و راه راست را به ایشان نشان بده و بر زمینی که به قوم خود به ملکیت دادهای باران بفرست. | 36 |
३६और अपने दासों, अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिए अपने इस देश पर, जो तूने अपनी प्रजा का भागकर दिया है, पानी बरसा देना।
«هرگاه این سرزمین دچار قحطی یا طاعون شود، یا محصول آن بر اثر بادهای سوزان و هجوم ملخ از بین برود، یا دشمن قوم تو را در شهر محاصره کند و یا هر بلا و مرض دیگری پیش آید | 37 |
३७“जब इस देश में अकाल या मरी या झुलस हो या गेरूई या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, अथवा कोई विपत्ति या रोग क्यों न हों,
و قوم تو، هر یک دستهای خود را به سوی این خانه دراز کرده، دعا کنند، آنگاه تو نالههای ایشان را | 38 |
३८तब यदि कोई मनुष्य या तेरी प्रजा इस्राएल अपने-अपने मन का दुःख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए;
از آسمان که محل سکونت تو است، بشنو و گناهشان را ببخش. ای خدا تو که از دل مردم آگاهی، هر کس را برحسب کارهایش جزا بده | 39 |
३९तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुनकर क्षमा करना, और ऐसा करना, कि एक-एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना: तू ही तो सब मनुष्यों के मन के भेदों का जाननेवाला है।
تا قوم تو در این سرزمینی که به اجدادشان بخشیدهای از تو بترسند. | 40 |
४०तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें।
«در آینده بیگانگانی که از قوم تو اسرائیل نیستند، دربارۀ تو خواهند شنید. آنان به خاطر نام تو از سرزمینهای دور به اینجا خواهند آمد، | 41 |
४१“फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए,
زیرا دربارۀ نام عظیمت و بازوی قدرتمندت خواهند شنید. هرگاه آنان به سوی این خانه دعا کنند | 42 |
४२वह तो तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिए जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करे,
آنگاه از آسمان که محل سکونت توست، دعای آنها را بشنو و هر چه میخواهند به آنها ببخش تا تمام اقوام روی زمین تو را بشناسند و مانند قومت اسرائیل تو را احترام کرده، بدانند که حضور تو در این خانهای است که من ساختهام. | 43 |
४३तब तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुन, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिससे पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल के समान तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैंने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।
«اگر قومت به فرمان تو به جنگ دشمن بروند و از میدان جنگ به سوی این شهر برگزیدهٔ تو و این خانهای که به اسم تو ساختهام نزد تو دعا کنند، | 44 |
४४“जब तेरी प्रजा के लोग जहाँ कहीं तू उन्हें भेजे, वहाँ अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएँ, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्थना करें,
آنگاه از آسمان دعای ایشان را اجابت فرما و آنها را در جنگ پیروز گردان. | 45 |
४५तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय
«اگر قوم تو نسبت به تو گناه کنند، (و کیست که گناه نکند؟)، و تو بر آنها خشمگین شوی و اجازه دهی دشمن آنها را به کشور خود، خواه دور و خواه نزدیک، به اسارت ببرد، | 46 |
४६“निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है: यदि ये भी तेरे विरुद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्दी बनाकर अपने देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएँ,
سپس در آن کشور بیگانه به خود آیند و توبه کرده، به تو پناه آورند و دعا نموده، بگویند: خداوندا، ما به راه خطا رفتهایم و مرتکب گناه شدهایم! | 47 |
४७और यदि वे बँधुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपने बन्दी बनानेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, ‘हमने पाप किया, और कुटिलता और दुष्टता की है;’
و از گناهان خود دست بکشند و به سوی این سرزمین که به اجداد ایشان بخشیدی و این شهر برگزیدهات و این خانهای که به اسم تو ساختهام دعا کنند، | 48 |
४८और यदि वे अपने उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्दी करके ले गए हों, अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपने इस देश की ओर जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्थना करें,
آنگاه از آسمان که محل سکونت توست، دعاها و نالههای ایشان را بشنو و به داد آنان برس. | 49 |
४९तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना,
قوم خود را که نسبت به تو گناه کردهاند بیامرز و تقصیراتشان را ببخش و در دل دشمن نسبت به آنها ترحم ایجاد کن؛ | 50 |
५०और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरुद्ध करेंगे, सब को क्षमा करके, उनके बन्दी करनेवालों के मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें।
زیرا آنها قوم تو و میراث تو هستند و تو ایشان را از اسارت و بندگی مصریها آزاد کردی! | 51 |
५१क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्थात् मिस्र से निकाल लाया है।
«ای خداوند، همواره بر بندهات و قومت نظر لطف بفرما و دعاها و نالههایشان را بشنو. | 52 |
५२इसलिए तेरी आँखें तेरे दास की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब-तब तू उनकी सुन ले;
زیرا وقتی تو ای خداوند یهوه، اجداد ما را از سرزمین مصر بیرون آوردی، به بنده خود موسی فرمودی: من قوم اسرائیل را از میان تمام قومهای جهان انتخاب کردهام تا قوم خاص من باشد!» | 53 |
५३क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपने उस वचन के अनुसार, जो तूने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपने दास मूसा के द्वारा दिया था, तूने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है।”
سلیمان همانطور که زانو زده و دستهای خود را به سوی آسمان بلند کرده بود، دعای خود را به پایان رسانید. سپس از برابر مذبح خداوند برخاست و با صدای بلند برای تمام بنیاسرائیل برکت خواست و گفت: | 54 |
५४जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए था, यहोवा की वेदी के सामने से उठा,
५५और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊँचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया,
«سپاس بر خداوند که همهٔ وعدههای خود را در حق ما به انجام رسانید و به قوم خود آرامش و آسایش بخشید. حتی یک کلمه از وعدههای نیکویی که خدا به بنده خویش موسی داده بود بر زمین نیفتاد. | 56 |
५६“धन्य है यहोवा, जिसने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं, उनमें से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।
همانگونه که خداوند، خدای ما، با اجداد ما بود، با ما نیز باشد و هرگز ما را ترک نگوید و وانگذارد. | 57 |
५७हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता था, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हमको त्याग न दे और न हमको छोड़ दे।
او قلبهای ما را به سوی خود مایل گرداند تا ما از او پیروی کنیم و از تمامی احکام و دستورهایی که به اجداد ما داده؛ اطاعت نماییم. | 58 |
५८वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब मार्गों पर चला करें, और उसकी आज्ञाएँ और विधियाँ और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया था, नित माना करें।
خداوند، خدای ما تمام کلمات این دعا را شب و روز در نظر داشته باشد و برحسب نیاز روزانه، مرا و قوم بنیاسرائیل را یاری دهد، | 59 |
५९और मेरी ये बातें जिनकी मैंने यहोवा के सामने विनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसी प्रतिदिन आवश्यकता हो वैसा ही वह अपने दास का और अपनी प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे,
تا همهٔ قومهای جهان بدانند که فقط خداوند، خداست و غیر از او خدای دیگری وجود ندارد. | 60 |
६०और इससे पृथ्वी की सब जातियाँ यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं।
ای قوم من، با تمام دل از خداوند، خدایمان پیروی کنید و مانند امروز، از احکام و دستورهای او اطاعت نمایید.» | 61 |
६१तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज के समान उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते रहो।”
آنگاه پادشاه و همۀ قوم اسرائیل با وی قربانیها به خداوند تقدیم کردند. | 62 |
६२तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा।
سلیمان بیست و دو هزار گاو و صد و بیست هزار گوسفند به عنوان قربانی سلامتی به خداوند تقدیم کرد. به این ترتیب، پادشاه و همۀ قوم اسرائیل خانهٔ خداوند را تبرک نمودند. | 63 |
६३और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, वे बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें थीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियों समेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
چون مذبح مفرغین خانهٔ خداوند گنجایش آن همه قربانیهای سوختنی و هدایای آردی و چربی قربانیهای سلامتی را نداشت پس پادشاه وسط حیاط خانۀ خدا را به عنوان مذبح تقدیس کرد تا از آنجا نیز استفاده کنند. | 64 |
६४उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के सामनेवाले आँगन के मध्य भी एक स्थान पवित्र किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के सामने थी, वह उनके लिये छोटी थी।
این مراسم چهارده روز طول کشید و گروه بیشماری از سراسر اسرائیل، از گذرگاه حمات گرفته، تا سرحد مصر، در حضور خداوند خدای ما جشن گرفتند. | 65 |
६५अतः सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात के प्रवेश-द्वार से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशों से इकट्ठी हुई थी, दो सप्ताह तक अर्थात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के सामने पर्व को माना।
روز بعد سلیمان مردم را مرخص کرد و آنها به خاطر تمام برکاتی که خداوند به خدمتگزار خود داوود و قوم خویش اسرائیل عطا کرده بود با خوشحالی به شهرهای خود بازگشتند و برای سلامتی پادشاه دعا کردند. | 66 |
६६फिर आठवें दिन उसने प्रजा के लोगों को विदा किया। और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने-अपने डेरे को चले गए।