< مزامیر 13 >

برای سالار مغنیان. مزمور داود ای خداوند تا به کی همیشه مرافراموش می‌کنی؟ تا به کی روی خود رااز من خواهی پوشید؟ ۱ 1
ऐ ख़ुदावन्द, कब तक? क्या तू हमेशा मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना चेहरा मुझ से छिपाए रख्खेगा?
تا به کی در نفس خودمشورت بکنم و در دلم هرروزه غم خواهد بود؟ تا به کی دشمنم بر من سرافراشته شود؟ ۲ 2
कब तक मैं जी ही जी में मन्सूबा बाँधता रहूँ, और सारे दिन अपने दिल में ग़म किया करू? कब तक मेरा दुश्मन मुझ पर सर बुलन्द रहेगा?
‌ای یهوه خدای من نظر کرده، مرا مستجاب فرما! چشمانم را روشن کن مبادا به خواب موت بخسبم. ۳ 3
ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझे जवाब दे। मेरी आँखे रोशन कर, ऐसा न हो कि मुझे मौत की नींद आ जाए
مبادا دشمنم گوید بر او غالب آمدم ومخالفانم از پریشانی‌ام شادی نمایند. ۴ 4
ऐसा न हो कि मेरा दुश्मन कहे, कि मैं इस पर ग़ालिब आ गया। ऐसा न हो कि जब मैं जुम्बिश खाऊँ तो मेरे मुखालिफ़ ख़ुश हों।
و اما من به رحمت تو توکل می‌دارم؛ دل من در نجات تو شادی خواهد کرد. ۵ 5
लेकिन मैंने तो तेरी रहमत पर भरोसा किया है; मेरा दिल तेरी नजात से खु़श होगा।
برای خداوندسرود خواهم خواند زیرا که به من احسان نموده است. ۶ 6
मैं ख़ुदावन्द का हम्द गाऊँगा क्यूँकि उसने मुझ पर एहसान किया है।

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