< ایّوب 3 >
و بعد از آن ایوب دهان خود را باز کرده، روز خود را نفرین کرد. | ۱ 1 |
१इसके बाद अय्यूब मुँह खोलकर अपने जन्मदिन को धिक्कारने
و ایوب متکلم شده، گفت: | ۲ 2 |
२और कहने लगा,
«روزی که در آن متولد شدم، هلاک شود و شبی که گفتند مردی در رحم قرار گرفت، | ۳ 3 |
३“वह दिन नाश हो जाए जिसमें मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, ‘बेटे का गर्भ रहा।’
آن روز تاریکی شود. و خدا از بالا بر آن اعتنانکند و روشنایی بر او نتابد. | ۴ 4 |
४वह दिन अंधियारा हो जाए! ऊपर से परमेश्वर उसकी सुधि न ले, और न उसमें प्रकाश होए।
تاریکی و سایه موت، آن را به تصرف آورند. ابر بر آن ساکن شود. کسوفات روز آن را بترساند. | ۵ 5 |
५अंधियारा और मृत्यु की छाया उस पर रहे। बादल उस पर छाए रहें; और दिन को अंधेरा कर देनेवाली चीजें उसे डराएँ।
و آن شب را ظلمت غلیظ فروگیرد و در میان روزهای سال شادی نکند، و به شماره ماهها داخل نشود. | ۶ 6 |
६घोर अंधकार उस रात को पकड़े; वर्षा के दिनों के बीच वह आनन्द न करने पाए, और न महीनों में उसकी गिनती की जाए।
اینک آن شب نازاد باشد. و آواز شادمانی در آن شنیده نشود. | ۷ 7 |
७सुनो, वह रात बाँझ हो जाए; उसमें गाने का शब्द न सुन पड़े
لعنت کنندگان روز، آن را نفرین نمایند، که در برانگیزانیدن لویاتان ماهر میباشند. | ۸ 8 |
८जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिव्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे धिक्कारें।
ستارگان شفق آن، تاریک گردد و انتظار نوربکشد و نباشد، و مژگان سحر را نبیند، | ۹ 9 |
९उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकों को भी देखने न पाए;
چونکه درهای رحم مادرم را نبست، و مشقت را ازچشمانم مستور نساخت. | ۱۰ 10 |
१०क्योंकि उसने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया।
«چرا از رحم مادرم نمردم؟ و چون از شکم بیرون آمدم چرا جان ندادم؟ | ۱۱ 11 |
११“मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्यों न छूटा?
چرا زانوها مراقبول کردند، و پستانها تا مکیدم؟ | ۱۲ 12 |
१२मैं घुटनों पर क्यों लिया गया? मैं छातियों को क्यों पीने पाया?
زیرا تا بحال میخوابیدم و آرام میشدم. در خواب میبودم واستراحت مییافتم. | ۱۳ 13 |
१३ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्राम करता,
با پادشاهان و مشیران جهان، که خرابهها برای خویشتن بنا نمودند، | ۱۴ 14 |
१४और मैं पृथ्वी के उन राजाओं और मंत्रियों के साथ होता जिन्होंने अपने लिये सुनसान स्थान बनवा लिए,
یابا سروران که طلا داشتند، و خانه های خود را ازنقره پر ساختند. | ۱۵ 15 |
१५या मैं उन राजकुमारों के साथ होता जिनके पास सोना था जिन्होंने अपने घरों को चाँदी से भर लिया था;
یا مثل سقط پنهان شده نیست میبودم، مثل بچه هایی که روشنایی را ندیدند. | ۱۶ 16 |
१६या मैं असमय गिरे हुए गर्भ के समान हुआ होता, या ऐसे बच्चों के समान होता जिन्होंने उजियाले को कभी देखा ही न हो।
در آنجا شریران از شورش باز میایستند، و درآنجا خستگان میآرامند، | ۱۷ 17 |
१७उस दशा में दुष्ट लोग फिर दुःख नहीं देते, और थके-माँदे विश्राम पाते हैं।
در آنجا اسیران دراطمینان با هم ساکنند، و آواز کارگذاران رانمی شنوند. | ۱۸ 18 |
१८उसमें बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्रम करानेवाले का शब्द नहीं सुनते।
کوچک و بزرگ در آنجا یکاند. وغلام از آقایش آزاد است. | ۱۹ 19 |
१९उसमें छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतंत्र रहता है।
چرا روشنی به مستمند داده شود؟ و زندگی به تلخ جانان؟ | ۲۰ 20 |
२०“दुःखियों को उजियाला, और उदास मनवालों को जीवन क्यों दिया जाता है?
که انتظار موت را میکشند و یافت نمی شود، و برای آن حفره میزنند بیشتر از گنجها. | ۲۱ 21 |
२१वे मृत्यु की बाट जोहते हैं पर वह आती नहीं; और गड़े हुए धन से अधिक उसकी खोज करते हैं;
که شادی وابتهاج مینمایند و مسرور میشوند چون قبر رامی یابند؟ | ۲۲ 22 |
२२वे कब्र को पहुँचकर आनन्दित और अत्यन्त मगन होते हैं।
چرا نور داده میشود به کسیکه راهش مستور است، که خدا اطرافش را مستورساخته است؟ | ۲۳ 23 |
२३उजियाला उस पुरुष को क्यों मिलता है जिसका मार्ग छिपा है, जिसके चारों ओर परमेश्वर ने घेरा बाँध दिया है?
زیرا که ناله من، پیش از خوراکم میآید و نعره من، مثل آب ریخته میشود، | ۲۴ 24 |
२४मुझे तो रोटी खाने के बदले लम्बी-लम्बी साँसें आती हैं, और मेरा विलाप धारा के समान बहता रहता है।
زیرا ترسی که از آن میترسیدم، بر من واقع شد. و آنچه از آن بیم داشتم بر من رسید. | ۲۵ 25 |
२५क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है।
مطمئن و آرام نبودم و راحت نداشتم وپریشانی بر من آمد.» | ۲۶ 26 |
२६मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दुःख ही दुःख आता है।”