< حزقیال 3 >
پس مرا گفت: «ای پسر انسان آنچه را که می یابی بخور. این طومار را بخور و رفته، باخاندان اسرائیل متکلم شو.» | ۱ 1 |
फिर उसने मुझे कहा, कि 'ऐ आदमज़ाद, जो कुछ तूने पाया सो खा। इस तूमार को निगल जा, और जा कर इस्राईल के ख़ान्दान से कलाम कर।
آنگاه دهان خود راگشودم و او آن طومار را به من خورانید. | ۲ 2 |
तब मैंने मुँह खोला और उसने वह तूमार मुझे खिलाया।
و مراگفت: «ای پسر انسان شکم خود را بخوران واحشای خویش را از این طوماری که من به تومی دهم پر کن.» پس آن را خوردم و در دهانم مثل عسل شیرین بود. | ۳ 3 |
फिर उसने मुझे कहा, कि 'ऐ आदमज़ाद, इस तूमार को जो मैं तुझे देता हूँ खा जा, और उससे अपना पेट भर ले। तब मैंने खाया और वह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था।
و مرا گفت: «ای پسر انسان بیا و نزد خاندان اسرائیل رفته، کلام مرا برای ایشان بیان کن. | ۴ 4 |
फिर उसने मुझे फ़रमाया, कि 'ऐ आदमज़ाद, तू बनी — इस्राईल के पास जा और मेरी यह बातें उनसे कह।
زیراکه نزد امت غامض زبان و ثقیل لسان فرستاده نشدی، بلکه نزد خاندان اسرائیل. | ۵ 5 |
क्यूँकि तू ऐसे लोगों की तरफ़ नहीं भेजा जाता जिनकी ज़बान बेगाना और जिनकी बोली सख़्त है; बल्कि इस्राईल के ख़ान्दान की तरफ़;
نه نزدقوم های بسیار غامض زبان و ثقیل لسان که سخنان ایشان را نتوانی فهمید. یقین اگر تو را نزدآنها میفرستادم به تو گوش میگرفتند. | ۶ 6 |
न बहुत सी उम्मतों की तरफ़ जिनकी ज़बान बेगाना और जिनकी बोली सख़्त है; जिनकी बात तू समझ नहीं सकता। यक़ीनन अगर मैं तुझे उनके पास भेजता, तो वह तेरी सुनतीं।
اماخاندان اسرائیل نمی خواهند تو را بشنوند زیرا که نمی خواهند مرا بشنوند. چونکه تمامی خاندان اسرائیل سخت پیشانی و قسی القلب هستند. | ۷ 7 |
लेकिन बनी इस्राईल तेरी बात न सुनेंगे, क्यूँकि वह मेरी सुनना नहीं चाहते, क्यूँकि सब बनी — इस्राईल सख़्त पेशानी और पत्थर दिल हैं।
هان من روی تو را در مقابل روی ایشان سخت خواهم ساخت و پیشانی تو را در مقابل پیشانیایشان سخت خواهم گردانید. | ۸ 8 |
देख, मैंने उनके चेहरों के सामने तेरा चेहरा दुरुश्त किया है, और तेरी पेशानी उनकी पेशानियों के सामने सख़्त कर दी है।
بلکه پیشانی تو رامثل الماس از سنگ خارا سختتر گردانیدم. پس از ایشان مترس و از رویهای ایشان هراسان مباش، زیرا که خاندان فتنه انگیز میباشند.» | ۹ 9 |
मैंने तेरी पेशानी को हीरे की तरह चकमाक से भी ज़्यादा सख़्त कर दिया है; उनसे न डर और उनके चेहरों से परेशान न हो, अगरचे वह सरकश ख़ान्दान हैं।
و مرا گفت: «ای پسر انسان تمام کلام مرا که به تو میگویم در دل خود جا بده و به گوشهای خود استماع نما. | ۱۰ 10 |
फिर उसने मुझ से कहा, कि 'ऐ आदमज़ाद, मेरी सब बातों को जो मैं तुझ से कहूँगा, अपने दिल से कु़बूल कर और अपने कानों से सुन।
و بیا و نزد اسیرانی که ازپسران قوم تو میباشند رفته، ایشان را خطاب کن و خواه بشنوند و خواه نشنوند. به ایشان بگو: خداوند یهوه چنین میفرماید.» | ۱۱ 11 |
अब उठ, ग़ुलामों या'नी अपनी क़ौम के लोगों के पास जा, और उनसे कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,' चाहे वह सुनें चाहे न सुनें।
آنگاه روح، مرا برداشت و از عقب خود صدای گلبانگ عظیمی شنیدم که «جلال یهوه از مقام او متبارک باد.» | ۱۲ 12 |
और रूह ने मुझे उठा लिया, और मैंने अपने पीछे एक बड़ी कड़क की आवाज़ सुनी जो कहती थी: कि 'ख़ुदावन्द का जलाल उसके घर से मुबारक हो।
و صدای بالهای آن حیوانات را که به همدیگر برمی خوردند و صدای چرخها را که پیش روی آنها بود و صدای گلبانگ عظیمی راشنیدم. | ۱۳ 13 |
और जानदारों के परों के एक दूसरे से लगने की आवाज़ और उनके सामने पहियों की आवाज़ और एक बड़े धड़ाके की आवाज़ सुनाई दी।
آنگاه روح مرا برداشت و برد و با تلخی در حرارت روح خود رفتم و دست خداوند بر من سنگین میبود. | ۱۴ 14 |
और रूह मुझे उठा कर ले गई, इसलिए मैं तल्ख़ दिल और ग़ज़बनाक होकर रवाना हुआ, और ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर ग़ालिब था;
پس به تل ابیب نزد اسیرانی که نزد نهر خابور ساکن بودند، رسیدم و در مکانی که ایشان نشسته بودند، در آنجا به میان ایشان هفت روز متحیر نشستم. | ۱۵ 15 |
और मैं तल अबीब में ग़ुलामों के पास, जो नहर — ए — किबार के किनारे बसते थे पहुँचा; और जहाँ वह रहते थे, मैं सात दिन तक उनके बीच परेशान बैठा रहा।
و بعد از انقضای هفت روز واقع شد که کلام خداوند بر من نازل شده، گفت: | ۱۶ 16 |
और सात दिन के बाद ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
«ای پسر انسان تو را برای خاندان اسرائیل دیده بان ساختم، پس کلام را از دهان من بشنو و ایشان را از جانب من تهدید کن. | ۱۷ 17 |
कि 'ऐ आदमज़ाद, मैंने तुझे बनी — इस्राईल का निगहबान मुक़र्रर किया। इसलिए तू मेरे मुँह का कलाम सुन, और मेरी तरफ़ से उनको आगाह कर दे।
و حینی که من به مرد شریر گفته باشم که البته خواهی مرد، اگر تو او را تهدید نکنی و سخن نگویی تا آن شریر را از طریق زشت اوتهدید نموده، او را زنده سازی، آنگاه آن شریر درگناهش خواهد مرد، اما خون او را از دست توخواهم طلبید. | ۱۸ 18 |
जब मैं शरीर से कहूँ, कि 'तू यक़ीनन मरेगा, और तू उसे आगाह न करे और शरीर से न कहे कि वह अपनी बुरी चाल चलन से ख़बरदार हो, ताकि वह उससे बाज़ आकर अपनी जान बचाए, तो वह शरीर अपनी शरारत में मरेगा, लेकिन मैं उसके खू़न का सवाल — ओ — जवाब तुझ से करूँगा।
لیکن اگر تو مرد شریر را تهدیدکنی و او از شرارت خود و طریق بد خویش بازگشت نکند او در گناه خود خواهد مرد، اما توجان خود را نجات دادهای. | ۱۹ 19 |
लेकिन अगर तूने शरीर को आगाह कर दिया और वह अपनी शरारत और अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ न आया तो वह अपनी बदकिरदारी में मरेगा पर तूने अपनी जान को बचा लिया।
و اگر مرد عادل ازعدالت خود برگردد و گناه ورزد و من سنگی مصادم پیش وی بنهم تا بمیرد، چونکه تو او راتهدید ننمودی، او در گناه خود خواهد مرد و عدالتی که بعمل آورده بود به یاد آورده نخواهدشد. لیکن خون او را از دست تو خواهم طلبید. | ۲۰ 20 |
और अगर रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी छोड़ दे और गुनाह करे, और मैं उसके आगे ठोकर खिलाने वाला पत्थर रख्खूँ तो वह मर जाएगा; इसलिए कि तूने उसे आगाह नहीं किया, तो वह अपने गुनाह में मरेगा और उसकी सदाक़त के कामों का लिहाज़ न किया जाएगा, लेकिन मैं उसके खू़न का सवाल — ओ — जवाब तुझ से करूँगा।
و اگر تو مرد عادل را تهدید کنی که آن مردعادل گناه نکند و او خطا نورزد البته زنده خواهدماند، چونکه تهدید پذیرفته است و تو جان خودرا نجات دادهای.» | ۲۱ 21 |
लेकिन अगर तू उस रास्तबाज़ को आगाह कर दे, ताकि गुनाह न करे और वह गुनाह से बाज़ रहे तो वह यक़ीनन जिएगा; इसलिए के नसीहत पज़ीर हुआ और तूने अपनी जान बचा ली।
و دست خداوند در آنجا بر من نهاده شد واو مرا گفت: «برخیز و به هامون بیرون شو که درآنجا با تو سخن خواهم گفت.» | ۲۲ 22 |
और वहाँ ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और उसने मुझे फ़रमाया, “उठ, मैदान में निकल जा और वहाँ मैं तुझ से बातें करूँगा।”
پس برخاسته، به هامون بیرون رفتم و اینک جلال خداوند مثل جلالی که نزد نهر خابور دیده بودم، در آنجا برپاشد و من به روی خود درافتادم. | ۲۳ 23 |
तब मैं उठ कर मैदान में गया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द का जलाल उस शौकत की तरह, जो मैंने नहर — ए — किबार के किनारे देखी थी खड़ा है; और मैं मुँह के बल गिरा।
و روح داخل من شده، مرا بر پایهایم برپا داشت و او مرا خطاب کرده، گفت: «برو و خویشتن را در خانه خود ببند. | ۲۴ 24 |
तब रूह मुझ में दाख़िल हुई और उसने मुझे मेरे पाँव पर खड़ा किया, और मुझ से हमकलाम होकर फ़रमाया, कि अपने घर जा, और दरवाज़ा बन्द करके अन्दर बैठ रह।
و اما توای پسر انسان اینک بندها بر توخواهند نهاد و تو را به آنها خواهند بست اما درمیان ایشان بیرون مرو. | ۲۵ 25 |
और ऐ आदमज़ाद देख, वह तुझ पर बंधन डालेंगे और उनसे तुझे बाँधेंगे और तू उनके बीच बाहर न जाएगा।
و من زبان تو را به کامت خواهم چسبانید تا گنگ شده، برای ایشان ناصح نباشی. زیرا که ایشان خاندان فتنه انگیز میباشند. | ۲۶ 26 |
और मैं तेरी ज़बान तेरे तालू से चिपका दूँगा कि तू गूँगा हो जाए; और उनके लिए नसीहत गो न हो, क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
اما وقتی که من با تو تکلم نمایم، آنگاه دهان تورا خواهم گشود و به ایشان خواهی گفت: خداوندیهوه چنین میفرماید. آنگاه آنکه شنوا باشدبشنود و آنکه ابا نماید ابا کند. زیرا که ایشان خاندان فتنه انگیز میباشند.» | ۲۷ 27 |
लेकिन जब मैं तुझ से हमकलाम हूँगा, तो तेरा मुँह खोलूँगा, तब तू उनसे कहेगा, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, जो सुनता है सुने और जो नहीं सुनता न सुने, क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।