< Apostlenes-gjerninge 7 >

1 Ypperstepresten sa da: Er dette sant?
ततः परं महायाजकः पृष्टवान्, एषा कथां किं सत्या?
2 Han svarte: Brødre og fedre! Hør på mig: Herlighetens Gud åpenbarte sig for vår far Abraham mens han var i Mesopotamia, før han hadde bosatt sig i Karan,
ततः स प्रत्यवदत्, हे पितरो हे भ्रातरः सर्व्वे लाका मनांसि निधद्ध्वं।अस्माकं पूर्व्वपुरुष इब्राहीम् हारण्नगरे वासकरणात् पूर्व्वं यदा अराम्-नहरयिमदेशे आसीत् तदा तेजोमय ईश्वरो दर्शनं दत्वा
3 og sa til ham: Dra ut fra ditt land og fra din slekt, og gå til det land som jeg vil vise dig!
तमवदत् त्वं स्वदेशज्ञातिमित्राणि परित्यज्य यं देशमहं दर्शयिष्यामि तं देशं व्रज।
4 Så drog han ut fra kaldeernes land og bosatte sig i Karan. Og derfra lot Gud ham efter farens død flytte til dette land som I nu bor i;
अतः स कस्दीयदेशं विहाय हारण्नगरे न्यवसत्, तदनन्तरं तस्य पितरि मृते यत्र देशे यूयं निवसथ स एनं देशमागच्छत्।
5 men han gav ham ikke arvelodd der, enn ikke en fotsbredd; og han lovte å gi ham det til eie, og hans ætt efter ham, enda han ikke hadde barn.
किन्त्वीश्वरस्तस्मै कमप्यधिकारम् अर्थाद् एकपदपरिमितां भूमिमपि नाददात्; तदा तस्य कोपि सन्तानो नासीत् तथापि सन्तानैः सार्द्धम् एतस्य देशस्याधिकारी त्वं भविष्यसीति तम्प्रत्यङ्गीकृतवान्।
6 Og Gud talte således: Hans ætt skal bo i utlendighet i et fremmed land, og de skal holde den i trældom og mishandle den i fire hundre år;
ईश्वर इत्थम् अपरमपि कथितवान् तव सन्तानाः परदेशे निवत्स्यन्ति ततस्तद्देशीयलोकाश्चतुःशतवत्सरान् यावत् तान् दासत्वे स्थापयित्वा तान् प्रति कुव्यवहारं करिष्यन्ति।
7 og det folk som de skal træle under, vil jeg dømme, sa Gud, og derefter skal de dra ut derfra og tjene mig på dette sted.
अपरम् ईश्वर एनां कथामपि कथितवान्, ये लोकास्तान् दासत्वे स्थापयिष्यन्ति ताल्लोकान् अहं दण्डयिष्यामि, ततः परं ते बहिर्गताः सन्तो माम् अत्र स्थाने सेविष्यन्ते।
8 Og han gav ham omskjærelsens pakt; og så fikk han sønnen Isak, og omskar ham på den åttende dag, og Isak fikk sønnen Jakob, og Jakob blev far til de tolv patriarker.
पश्चात् स तस्मै त्वक्छेदस्य नियमं दत्तवान्, अत इस्हाकनाम्नि इब्राहीम एकपुत्रे जाते, अष्टमदिने तस्य त्वक्छेदम् अकरोत्। तस्य इस्हाकः पुत्रो याकूब्, ततस्तस्य याकूबोऽस्माकं द्वादश पूर्व्वपुरुषा अजायन्त।
9 Og patriarkene bar avind mot Josef og solgte ham til Egypten; og Gud var med ham
ते पूर्व्वपुरुषा ईर्ष्यया परिपूर्णा मिसरदेशं प्रेषयितुं यूषफं व्यक्रीणन्।
10 og fridde ham ut av alle hans trengsler, og gav ham nåde og visdom for Faraos, egypterkongens øine; og han satte ham til høvding over Egypten og hele sitt hus.
किन्त्वीश्वरस्तस्य सहायो भूत्वा सर्व्वस्या दुर्गते रक्षित्वा तस्मै बुद्धिं दत्त्वा मिसरदेशस्य राज्ञः फिरौणः प्रियपात्रं कृतवान् ततो राजा मिसरदेशस्य स्वीयसर्व्वपरिवारस्य च शासनपदं तस्मै दत्तवान्।
11 Så kom det hungersnød over hele Egyptens land og Kana'an, og stor trengsel, og våre fedre fant ikke føde.
तस्मिन् समये मिसर-किनानदेशयो र्दुर्भिक्षहेतोरतिक्लिष्टत्वात् नः पूर्व्वपुरुषा भक्ष्यद्रव्यं नालभन्त।
12 Men da Jakob fikk høre at det var korn i Egypten, sendte han våre fedre dit første gang;
किन्तु मिसरदेशे शस्यानि सन्ति, याकूब् इमां वार्त्तां श्रुत्वा प्रथमम् अस्माकं पूर्व्वपुरुषान् मिसरं प्रेषितवान्।
13 og annen gang blev Josef gjenkjent av sine brødre, og Josefs byrd kom til Faraos kunnskap.
ततो द्वितीयवारगमने यूषफ् स्वभ्रातृभिः परिचितोऽभवत्; यूषफो भ्रातरः फिरौण् राजेन परिचिता अभवन्।
14 Da sendte Josef bud og kalte til sig sin far Jakob og hele sin slekt, fem og sytti sjeler.
अनन्तरं यूषफ् भ्रातृगणं प्रेष्य निजपितरं याकूबं निजान् पञ्चाधिकसप्ततिसंख्यकान् ज्ञातिजनांश्च समाहूतवान्।
15 Så drog Jakob ned til Egypten, og han døde, han og våre fedre,
तस्माद् याकूब् मिसरदेशं गत्वा स्वयम् अस्माकं पूर्व्वपुरुषाश्च तस्मिन् स्थानेऽम्रियन्त।
16 og de blev ført til Sikem og lagt i den grav som Abraham kjøpte for en kjøpesum i sølv av Hemors barn i Sikem.
ततस्ते शिखिमं नीता यत् श्मशानम् इब्राहीम् मुद्रादत्वा शिखिमः पितु र्हमोरः पुत्रेभ्यः क्रीतवान् तत्श्मशाने स्थापयाञ्चक्रिरे।
17 Efter som nu tiden nærmet sig da det løfte skulde opfylles som Gud hadde gitt Abraham, tok folket til og blev mannsterkt i Egypten,
ततः परम् ईश्वर इब्राहीमः सन्निधौ शपथं कृत्वा यां प्रतिज्ञां कृतवान् तस्याः प्रतिज्ञायाः फलनसमये निकटे सति इस्रायेल्लोका सिमरदेशे वर्द्धमाना बहुसंख्या अभवन्।
18 inntil det fremstod en annen konge over Egypten, som ikke kjente Josef;
शेषे यूषफं यो न परिचिनोति तादृश एको नरपतिरुपस्थाय
19 han fór med svik mot vårt folk, og ved mishandling tvang han våre fedre til å sette sine nyfødte barn ut, så de ikke skulde holdes i live.
अस्माकं ज्ञातिभिः सार्द्धं धूर्त्ततां विधाय पूर्व्वपुरुषान् प्रति कुव्यवहरणपूर्व्वकं तेषां वंशनाशनाय तेषां नवजातान् शिशून् बहि र्निरक्षेपयत्।
20 På den tid blev Moses født, og han var fager for Gud; han blev i tre måneder fostret i sin fars hus,
एतस्मिन् समये मूसा जज्ञे, स तु परमसुन्दरोऽभवत् तथा पितृगृहे मासत्रयपर्य्यन्तं पालितोऽभवत्।
21 og da han var blitt utsatt, tok Faraos datter ham op, og fostret ham og tok ham i sønns sted.
किन्तु तस्मिन् बहिर्निक्षिप्ते सति फिरौणराजस्य कन्या तम् उत्तोल्य नीत्वा दत्तकपुत्रं कृत्वा पालितवती।
22 Og Moses blev oplært i all egypternes visdom, og han var mektig i ord og gjerninger.
तस्मात् स मूसा मिसरदेशीयायाः सर्व्वविद्यायाः पारदृष्वा सन् वाक्ये क्रियायाञ्च शक्तिमान् अभवत्।
23 Men da han var blitt firti år gammel, fikk han i sinne å se til sine brødre, Israels barn,
स सम्पूर्णचत्वारिंशद्वत्सरवयस्को भूत्वा इस्रायेलीयवंशनिजभ्रातृन् साक्षात् कर्तुं मतिं चक्रे।
24 og da han så en lide urett, kom han ham til hjelp og hevnet den som blev mishandlet, og slo egypteren ihjel.
तेषां जनमेकं हिंसितं दृष्ट्वा तस्य सपक्षः सन् हिंसितजनम् उपकृत्य मिसरीयजनं जघान।
25 Han tenkte da at hans brødre skulde forstå at Gud gav dem frelse ved hans hånd; men de forstod det ikke.
तस्य हस्तेनेश्वरस्तान् उद्धरिष्यति तस्य भ्रातृगण इति ज्ञास्यति स इत्यनुमानं चकार, किन्तु ते न बुबुधिरे।
26 Den næste dag kom han til dem mens de trettet, og han formante dem til å holde fred, han sa: I menn! I er brødre; hvorfor gjør I hverandre urett?
तत्परे ऽहनि तेषाम् उभयो र्जनयो र्वाक्कलह उपस्थिते सति मूसाः समीपं गत्वा तयो र्मेलनं कर्त्तुं मतिं कृत्वा कथयामास, हे महाशयौ युवां भ्रातरौ परस्परम् अन्यायं कुतः कुरुथः?
27 Men han som gjorde sin næste urett, støtte ham fra sig og sa: Hvem har satt dig til høvding og dommer over oss?
ततः समीपवासिनं प्रति यो जनोऽन्यायं चकार स तं दूरीकृत्य कथयामास, अस्माकमुपरि शास्तृत्वविचारयितृत्वपदयोः कस्त्वां नियुक्तवान्?
28 Vil du kanskje slå mig ihjel, som du igår slo ihjel egypteren?
ह्यो यथा मिसरीयं हतवान् तथा किं मामपि हनिष्यसि?
29 Men Moses flyktet for dette ords skyld, og blev en utlending i Midians land og fikk der to sønner.
तदा मूसा एतादृशीं कथां श्रुत्वा पलायनं चक्रे, ततो मिदियनदेशं गत्वा प्रवासी सन् तस्थौ, ततस्तत्र द्वौ पुत्रौ जज्ञाते।
30 Og da firti år var til ende, åpenbarte en engel sig for ham i berget Sinais ørken i en brennende tornebusk.
अनन्तरं चत्वारिंशद्वत्सरेषु गतेषु सीनयपर्व्वतस्य प्रान्तरे प्रज्वलितस्तम्बस्य वह्निशिखायां परमेश्वरदूतस्तस्मै दर्शनं ददौ।
31 Da Moses så det, undret han sig over synet; men da han gikk bort for å se på det, kom en røst fra Herren:
मूसास्तस्मिन् दर्शने विस्मयं मत्वा विशेषं ज्ञातुं निकटं गच्छति,
32 Jeg er dine fedres Gud, Abrahams og Isaks og Jakobs Gud. Men Moses skalv av redsel, og vågde ikke å se på det.
एतस्मिन् समये, अहं तव पूर्व्वपुरुषाणाम् ईश्वरोऽर्थाद् इब्राहीम ईश्वर इस्हाक ईश्वरो याकूब ईश्वरश्च, मूसामुद्दिश्य परमेश्वरस्यैतादृशी विहायसीया वाणी बभूव, ततः स कम्पान्वितः सन् पुन र्निरीक्षितुं प्रगल्भो न बभूव।
33 Og Herren sa til ham: Løs skoene av dine føtter! for det sted du står på, er hellig jord.
परमेश्वरस्तं जगाद, तव पादयोः पादुके मोचय यत्र तिष्ठसि सा पवित्रभूमिः।
34 Jeg har grant sett hvor mitt folk blir mishandlet i Egypten, og deres sukk har jeg hørt, og jeg er steget ned for å utfri dem. Og nu, kom, la mig sende dig til Egypten!
अहं मिसरदेशस्थानां निजलोकानां दुर्द्दशां नितान्तम् अपश्यं, तेषां कातर्य्योक्तिञ्च श्रुतवान् तस्मात् तान् उद्धर्त्तुम् अवरुह्यागमम्; इदानीम् आगच्छ मिसरदेशं त्वां प्रेषयामि।
35 Denne Moses som de fornektet, idet de sa: Hvem har satt dig til høvding og dommer? ham sendte Gud til å være både høvding og redningsmann ved den engels hånd som åpenbarte sig for ham i tornebusken.
कस्त्वां शास्तृत्वविचारयितृत्वपदयो र्नियुक्तवान्, इति वाक्यमुक्त्वा तै र्यो मूसा अवज्ञातस्तमेव ईश्वरः स्तम्बमध्ये दर्शनदात्रा तेन दूतेन शास्तारं मुक्तिदातारञ्च कृत्वा प्रेषयामास।
36 Han var den som førte dem ut, idet han gjorde undergjerninger og tegn i Egyptens land og i det Røde Hav og i ørkenen i firti år.
स च मिसरदेशे सूफ्नाम्नि समुद्रे च पश्चात् चत्वारिंशद्वत्सरान् यावत् महाप्रान्तरे नानाप्रकाराण्यद्भुतानि कर्म्माणि लक्षणानि च दर्शयित्वा तान् बहिः कृत्वा समानिनाय।
37 Han er den Moses som sa til Israels barn: En profet, likesom mig, skal Gud opreise eder av eders brødre.
प्रभुः परमेश्वरो युष्माकं भ्रातृगणस्य मध्ये मादृशम् एकं भविष्यद्वक्तारम् उत्पादयिष्यति तस्य कथायां यूयं मनो निधास्यथ, यो जन इस्रायेलः सन्तानेभ्य एनां कथां कथयामास स एष मूसाः।
38 Han er den som i menigheten i ørkenen var med den engel som talte til ham på Sinai berg, og med våre fedre, han som mottok levende ord for å gi oss dem.
महाप्रान्तरस्थमण्डलीमध्येऽपि स एव सीनयपर्व्वतोपरि तेन सार्द्धं संलापिनो दूतस्य चास्मत्पितृगणस्य मध्यस्थः सन् अस्मभ्यं दातव्यनि जीवनदायकानि वाक्यानि लेभे।
39 Ham vilde våre fedre ikke være lydige, de støtte ham fra sig, og vendte sig i sitt hjerte til Egypten, og de sa til Aron:
अस्माकं पूर्व्वपुरुषास्तम् अमान्यं कत्वा स्वेभ्यो दूरीकृत्य मिसरदेशं परावृत्य गन्तुं मनोभिरभिलष्य हारोणं जगदुः,
40 Gjør oss guder som kan dra foran oss! for denne Moses som førte oss ut av Egyptens land vi vet ikke hvad det er blitt av ham.
अस्माकम् अग्रेऽग्रे गन्तुुम् अस्मदर्थं देवगणं निर्म्माहि यतो यो मूसा अस्मान् मिसरदेशाद् बहिः कृत्वानीतवान् तस्य किं जातं तदस्माभि र्न ज्ञायते।
41 Og de gjorde en kalv i hine dager og bar frem offer til avgudsbilledet, og de gledet sig over sine henders verk.
तस्मिन् समये ते गोवत्साकृतिं प्रतिमां निर्म्माय तामुद्दिश्य नैवेद्यमुत्मृज्य स्वहस्तकृतवस्तुना आनन्दितवन्तः।
42 Men Gud vendte sig bort, og overgav dem til å dyrke himmelens hær, som skrevet er i profetenes bok: Israels hus! gav I mig vel slaktoffer og andre offer i firti år i ørkenen?
तस्माद् ईश्वरस्तेषां प्रति विमुखः सन् आकाशस्थं ज्योतिर्गणं पूजयितुं तेभ्योऽनुमतिं ददौ, यादृशं भविष्यद्वादिनां ग्रन्थेषु लिखितमास्ते, यथा, इस्रायेलीयवंशा रे चत्वारिंशत्समान् पुरा। महति प्रान्तरे संस्था यूयन्तु यानि च। बलिहोमादिकर्म्माणि कृतवन्तस्तु तानि किं। मां समुद्दिश्य युष्माभिः प्रकृतानीति नैव च।
43 Nei, I bar med eder Moloks telt og guden Remfans stjerne, de billeder som I gjorde for å tilbede dem, og jeg vil flytte eder bort hinsides Babylon.
किन्तु वो मोलकाख्यस्य देवस्य दूष्यमेव च। युष्माकं रिम्फनाख्याया देवतायाश्च तारका। एतयोरुभयो र्मूर्ती युष्माभिः परिपूजिते। अतो युष्मांस्तु बाबेलः पारं नेष्यामि निश्चितं।
44 Våre fedre hadde i ørkenen vidnesbyrdets telt, således som den som talte til Moses, bød ham å gjøre det efter det forbillede han hadde sett;
अपरञ्च यन्निदर्शनम् अपश्यस्तदनुसारेण दूष्यं निर्म्माहि यस्मिन् ईश्वरो मूसाम् एतद्वाक्यं बभाषे तत् तस्य निरूपितं साक्ष्यस्वरूपं दूष्यम् अस्माकं पूर्व्वपुरुषैः सह प्रान्तरे तस्थौ।
45 dette tok våre fedre i arv, og førte det med Josva inn i de hedningers eiendomsland som Gud drev bort for våre fedre, inntil Davids dager.
पश्चात् यिहोशूयेन सहितैस्तेषां वंशजातैरस्मत्पूर्व्वपुरुषैः स्वेषां सम्मुखाद् ईश्वरेण दूरीकृतानाम् अन्यदेशीयानां देशाधिकृतिकाले समानीतं तद् दूष्यं दायूदोधिकारं यावत् तत्र स्थान आसीत्।
46 Han fant nåde hos Gud, og bad om at han måtte finne et bosted for Jakobs Gud.
स दायूद् परमेश्वरस्यानुग्रहं प्राप्य याकूब् ईश्वरार्थम् एकं दूष्यं निर्म्मातुं ववाञ्छ;
47 Men Salomo bygget ham et hus.
किन्तु सुलेमान् तदर्थं मन्दिरम् एकं निर्म्मितवान्।
48 Men den Høieste bor ikke i hus som er gjort med hender, således som profeten sier:
तथापि यः सर्व्वोपरिस्थः स कस्मिंश्चिद् हस्तकृते मन्दिरे निवसतीति नहि, भविष्यद्वादी कथामेतां कथयति, यथा,
49 Himmelen er min trone, og jorden en skammel for mine føtter; hvad hus vil I bygge mig, sier Herren, eller hvor er det sted jeg skal hvile på?
परेशो वदति स्वर्गो राजसिंहासनं मम। मदीयं पादपीठञ्च पृथिवी भवति ध्रुवं। तर्हि यूयं कृते मे किं प्रनिर्म्मास्यथ मन्दिरं। विश्रामाय मदीयं वा स्थानं किं विद्यते त्विह।
50 Har ikke min hånd gjort alt dette?
सर्व्वाण्येतानि वस्तूनि किं मे हस्तकृतानि न॥
51 I hårde halser og uomskårne på hjerte og ører! I står alltid den Hellige Ånd imot, som eders fedre, således også I.
हे अनाज्ञाग्राहका अन्तःकरणे श्रवणे चापवित्रलोकाः यूयम् अनवरतं पवित्रस्यात्मनः प्रातिकूल्यम् आचरथ, युष्माकं पूर्व्वपुरुषा यादृशा यूयमपि तादृशाः।
52 Hvem av profetene forfulgte ikke eders fedre? De drepte dem som forut forkynte at den rettferdige skulde komme, han som I nu har forrådt og myrdet,
युष्माकं पूर्व्वपुरुषाः कं भविष्यद्वादिनं नाताडयन्? ये तस्य धार्म्मिकस्य जनस्यागमनकथां कथितवन्तस्तान् अघ्नन् यूयम् अधूना विश्वासघातिनो भूत्वा तं धार्म्मिकं जनम् अहत।
53 I som mottok loven gitt ved engler og ikke har holdt den!
यूयं स्वर्गीयदूतगणेन व्यवस्थां प्राप्यापि तां नाचरथ।
54 Men da de hørte dette, stakk det dem i deres hjerter, og de skar tenner mot ham.
इमां कथां श्रुत्वा ते मनःसु बिद्धाः सन्तस्तं प्रति दन्तघर्षणम् अकुर्व्वन्।
55 Men han var full av den Hellige Ånd og skuet ufravendt op mot himmelen, og han så Guds herlighet, og Jesus stå ved Guds høire hånd,
किन्तु स्तिफानः पवित्रेणात्मना पूर्णो भूत्वा गगणं प्रति स्थिरदृष्टिं कृत्वा ईश्वरस्य दक्षिणे दण्डायमानं यीशुञ्च विलोक्य कथितवान्;
56 og han sa: Nu ser jeg himlene åpne, og Menneskesønnen stå ved Guds høire hånd!
पश्य, मेघद्वारं मुक्तम् ईश्वरस्य दक्षिणे स्थितं मानवसुतञ्च पश्यामि।
57 Da skrek de med høi røst og holdt for sine ører, og stormet alle som en inn på ham
तदा ते प्रोच्चैः शब्दं कृत्वा कर्णेष्वङ्गुली र्निधाय एकचित्तीभूय तम् आक्रमन्।
58 og drev ham ut av byen og stenet ham; og vidnene la sine klær av sig ved en ung manns føtter som hette Saulus.
पश्चात् तं नगराद् बहिः कृत्वा प्रस्तरैराघ्नन् साक्षिणो लाकाः शौलनाम्नो यूनश्चरणसन्निधौ निजवस्त्राणि स्थापितवन्तः।
59 Og de stenet Stefanus, mens han bad og sa: Herre Jesus, ta imot min ånd!
अनन्तरं हे प्रभो यीशे मदीयमात्मानं गृहाण स्तिफानस्येति प्रार्थनवाक्यवदनसमये ते तं प्रस्तरैराघ्नन्।
60 Og han falt på kne og ropte med høi røst: Herre, tilregn dem ikke denne synd! Og som han hadde sagt dette, sov han inn.
तस्मात् स जानुनी पातयित्वा प्रोच्चैः शब्दं कृत्वा, हे प्रभे पापमेतद् एतेषु मा स्थापय, इत्युक्त्वा महानिद्रां प्राप्नोत्।

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