< प्रेषि. 26 >

1 अग्रिप्पा पौलाला म्हणाला, “तुला तुझी बाजू मांडायला परवानगी आहे.” यावर पौलाने आपला हात उंच करून आपल्या बचावाचे भाषण सुरू केले.
ତତ ଆଗ୍ରିପ୍ପଃ ପୌଲମ୍ ଅୱାଦୀତ୍, ନିଜାଂ କଥାଂ କଥଯିତୁଂ ତୁଭ୍ୟମ୍ ଅନୁମତି ର୍ଦୀଯତେ| ତସ୍ମାତ୍ ପୌଲଃ କରଂ ପ୍ରସାର୍ୟ୍ୟ ସ୍ୱସ୍ମିନ୍ ଉତ୍ତରମ୍ ଅୱାଦୀତ୍|
2 अग्रिप्पा महाराज, मी स्वतःला धन्य समजतो कारण यहूद्यांनी आपल्यासमोर माझ्याविरुद्ध केलेल्या आरोपांचा बचाव करण्याची संधी आज मिळाली.
ହେ ଆଗ୍ରିପ୍ପରାଜ ଯତ୍କାରଣାଦହଂ ଯିହୂଦୀଯୈରପୱାଦିତୋ ଽଭୱଂ ତସ୍ୟ ୱୃତ୍ତାନ୍ତମ୍ ଅଦ୍ୟ ଭୱତଃ ସାକ୍ଷାନ୍ ନିୱେଦଯିତୁମନୁମତୋହମ୍ ଇଦଂ ସ୍ୱୀଯଂ ପରମଂ ଭାଗ୍ୟଂ ମନ୍ୟେ;
3 विशेषत, यहूदी चालीरीति आणि प्रश्न इत्यादी गोष्टींची आपणांला चांगल्या प्रकारे माहिती असल्याने तर हे जास्तच खरे म्हणावे लागेल, तेव्हा आपण माझे बोलणे धीराने ऐकून घ्यावे अशी मी विनंती करतो.
ଯତୋ ଯିହୂଦୀଯଲୋକାନାଂ ମଧ୍ୟେ ଯା ଯା ରୀତିଃ ସୂକ୍ଷ୍ମୱିଚାରାଶ୍ଚ ସନ୍ତି ତେଷୁ ଭୱାନ୍ ୱିଜ୍ଞତମଃ; ଅତଏୱ ପ୍ରାର୍ଥଯେ ଧୈର୍ୟ୍ୟମୱଲମ୍ବ୍ୟ ମମ ନିୱେଦନଂ ଶୃଣୋତୁ|
4 मी माझे जीवन तरुणपणापासून माझ्या प्रांतात व यरूशलेम शहरात कशा रीतिने जगत आलो हे सर्व यहूदी लोकांस चांगले माहीत आहे.
ଅହଂ ଯିରୂଶାଲମ୍ନଗରେ ସ୍ୱଦେଶୀଯଲୋକାନାଂ ମଧ୍ୟେ ତିଷ୍ଠନ୍ ଆ ଯୌୱନକାଲାଦ୍ ଯଦ୍ରୂପମ୍ ଆଚରିତୱାନ୍ ତଦ୍ ଯିହୂଦୀଯଲୋକାଃ ସର୍ୱ୍ୱେ ୱିଦନ୍ତି|
5 ते मला बऱ्याच काळापासून ओळखतात आणि त्यांची इच्छा असेल तर मी एक परूशी म्हणजे आमच्या यहूदी धर्माच्या एका कट्टर गटाचा सभासद या नात्याने कसा जगत आलो याविषयी ते साक्ष देऊ शकतील.
ଅସ୍ମାକଂ ସର୍ୱ୍ୱେଭ୍ୟଃ ଶୁଦ୍ଧତମଂ ଯତ୍ ଫିରୂଶୀଯମତଂ ତଦୱଲମ୍ବୀ ଭୂତ୍ୱାହଂ କାଲଂ ଯାପିତୱାନ୍ ଯେ ଜନା ଆ ବାଲ୍ୟକାଲାନ୍ ମାଂ ଜାନାନ୍ତି ତେ ଏତାଦୃଶଂ ସାକ୍ଷ୍ୟଂ ଯଦି ଦଦାତି ତର୍ହି ଦାତୁଂ ଶକ୍ନୁୱନ୍ତି|
6 आता देवाने आमच्या पुर्वजांना जे वचन दिले त्याची आशा धरल्याबद्दल माझा न्याय होण्याकरता मी उभा आहे;
କିନ୍ତୁ ହେ ଆଗ୍ରିପ୍ପରାଜ ଈଶ୍ୱରୋଽସ୍ମାକଂ ପୂର୍ୱ୍ୱପୁରୁଷାଣାଂ ନିକଟେ ଯଦ୍ ଅଙ୍ଗୀକୃତୱାନ୍ ତସ୍ୟ ପ୍ରତ୍ୟାଶାହେତୋରହମ୍ ଇଦାନୀଂ ୱିଚାରସ୍ଥାନେ ଦଣ୍ଡାଯମାନୋସ୍ମି|
7 ते वचन प्राप्त होण्याची आशा बाळगून आमचे बारा वंश देवाची सेवा रात्रंदिवस एकाग्रतेने करीत आहेत, महाराज, तीच आशा बाळगल्याबद्दल माझ्यावर यहूद्यांनी आरोप ठेवला आहे.
ତସ୍ୟାଙ୍ଗୀକାରସ୍ୟ ଫଲଂ ପ୍ରାପ୍ତୁମ୍ ଅସ୍ମାକଂ ଦ୍ୱାଦଶୱଂଶା ଦିୱାନିଶଂ ମହାଯତ୍ନାଦ୍ ଈଶ୍ୱରସେୱନଂ କୃତ୍ୱା ଯାଂ ପ୍ରତ୍ୟାଶାଂ କୁର୍ୱ୍ୱନ୍ତି ତସ୍ୟାଃ ପ୍ରତ୍ୟାଶାଯା ହେତୋରହଂ ଯିହୂଦୀଯୈରପୱାଦିତୋଽଭୱମ୍|
8 देव मरण पावलेल्यांना परत उठवितो, असे तुमच्यापैकी कित्येकांना विश्वास ठेवण्यास अयोग्य का वाटावे.
ଈଶ୍ୱରୋ ମୃତାନ୍ ଉତ୍ଥାପଯିଷ୍ୟତୀତି ୱାକ୍ୟଂ ଯୁଷ୍ମାକଂ ନିକଟେଽସମ୍ଭୱଂ କୁତୋ ଭୱେତ୍?
9 नासरेथच्या येशूच्या नावाविरुद्ध जे जे काही करता येईल ते ते मी करावे असे मलादेखील वाटत होते.
ନାସରତୀଯଯୀଶୋ ର୍ନାମ୍ନୋ ୱିରୁଦ୍ଧଂ ନାନାପ୍ରକାରପ୍ରତିକୂଲାଚରଣମ୍ ଉଚିତମ୍ ଇତ୍ୟହଂ ମନସି ଯଥାର୍ଥଂ ୱିଜ୍ଞାଯ
10 १० आणि नक्की हेच मी यरूशलेम शहरात केले, कारण मुख्य याजकांकडून मला तसा अधिकार मिळाला होता, म्हणून मी देवाच्या अनेक संतांना तुरुंगात टाकले आणि हे जे संतगण जिवे मारले गेले, त्यांच्याविरुद्ध मी माझे मत नोंदविले.
ଯିରୂଶାଲମନଗରେ ତଦକରୱଂ ଫଲତଃ ପ୍ରଧାନଯାଜକସ୍ୟ ନିକଟାତ୍ କ୍ଷମତାଂ ପ୍ରାପ୍ୟ ବହୂନ୍ ପୱିତ୍ରଲୋକାନ୍ କାରାଯାଂ ବଦ୍ଧୱାନ୍ ୱିଶେଷତସ୍ତେଷାଂ ହନନସମଯେ ତେଷାଂ ୱିରୁଦ୍ଧାଂ ନିଜାଂ ସମ୍ମତିଂ ପ୍ରକାଶିତୱାନ୍|
11 ११ अनेक सभास्थानात मी त्यांना शिक्षा केली आणि देवाविरुद्ध जबरीने वाईट भाषण करायला लावण्याचा मी प्रयत्न केला, या लोकांवरील माझा राग इतक्या पराकोटीला गेला होता की, मी त्यांचा छळ करण्याकरता इतर शहरांमध्ये देखील जात असे.
ୱାରଂ ୱାରଂ ଭଜନଭୱନେଷୁ ତେଭ୍ୟୋ ଦଣ୍ଡଂ ପ୍ରଦତ୍ତୱାନ୍ ବଲାତ୍ ତଂ ଧର୍ମ୍ମଂ ନିନ୍ଦଯିତୱାଂଶ୍ଚ ପୁନଶ୍ଚ ତାନ୍ ପ୍ରତି ମହାକ୍ରୋଧାଦ୍ ଉନ୍ମତ୍ତଃ ସନ୍ ୱିଦେଶୀଯନଗରାଣି ଯାୱତ୍ ତାନ୍ ତାଡିତୱାନ୍|
12 १२ एकदा दिमिष्क शहराला जाण्यासाठी मुख्य याजकांनी मला अधिकार व परवानगी दिली तेव्हा महाराज.
ଇତ୍ଥଂ ପ୍ରଧାନଯାଜକସ୍ୟ ସମୀପାତ୍ ଶକ୍ତିମ୍ ଆଜ୍ଞାପତ୍ରଞ୍ଚ ଲବ୍ଧ୍ୱା ଦମ୍ମେଷକ୍ନଗରଂ ଗତୱାନ୍|
13 १३ वाटेत भर दुपारच्या वेळी मी माझ्या व माझ्यासमवेत असणाऱ्यांच्या भोवती स्वर्गीय प्रकाश फाकलेला पाहिला, तो प्रकाश सूर्यापेक्षाही जास्त प्रखर होता.
ତଦାହଂ ହେ ରାଜନ୍ ମାର୍ଗମଧ୍ୟେ ମଧ୍ୟାହ୍ନକାଲେ ମମ ମଦୀଯସଙ୍ଗିନାଂ ଲୋକାନାଞ୍ଚ ଚତସୃଷୁ ଦିକ୍ଷୁ ଗଗଣାତ୍ ପ୍ରକାଶମାନାଂ ଭାସ୍କରତୋପି ତେଜସ୍ୱତୀଂ ଦୀପ୍ତିଂ ଦୃଷ୍ଟୱାନ୍|
14 १४ आम्ही सर्व खाली जमिनीवर पडलो आणि इब्री भाषेत माझ्याशी बोलताना एक वाणी मी ऐकली, ती वाणी म्हणाली, “शौला, शौला, माझा छळ तू का करतोस? अणकुचीदार काठीवर लाथ मारणे तुला हानिकारक आहे.”
ତସ୍ମାଦ୍ ଅସ୍ମାସୁ ସର୍ୱ୍ୱେଷୁ ଭୂମୌ ପତିତେଷୁ ସତ୍ସୁ ହେ ଶୌଲ ହୈ ଶୌଲ କୁତୋ ମାଂ ତାଡଯସି? କଣ୍ଟକାନାଂ ମୁଖେ ପାଦାହନନଂ ତୱ ଦୁଃସାଧ୍ୟମ୍ ଇବ୍ରୀଯଭାଷଯା ଗଦିତ ଏତାଦୃଶ ଏକଃ ଶବ୍ଦୋ ମଯା ଶ୍ରୁତଃ|
15 १५ आणि मी म्हणालो, ‘प्रभू, तू कोण आहेस?’ प्रभूने उत्तर दिले, “मी येशू आहे, ज्याचा तू छळ करीत आहेस.
ତଦାହଂ ପୃଷ୍ଟୱାନ୍ ହେ ପ୍ରଭୋ କୋ ଭୱାନ୍? ତତଃ ସ କଥିତୱାନ୍ ଯଂ ଯୀଶୁଂ ତ୍ୱଂ ତାଡଯସି ସୋହଂ,
16 १६ आता ऊठ आणि उभा राहा! या कारणांसाठी मी तुला दर्शन दिले आहे तुला सेवक म्हणून नेमावे व जे काही तुला दाखविले व जे दाखवीन त्याचा साक्षीदार म्हणून तुला नेमावे.
କିନ୍ତୁ ସମୁତ୍ତିଷ୍ଠ ତ୍ୱଂ ଯଦ୍ ଦୃଷ୍ଟୱାନ୍ ଇତଃ ପୁନଞ୍ଚ ଯଦ୍ୟତ୍ ତ୍ୱାଂ ଦର୍ଶଯିଷ୍ୟାମି ତେଷାଂ ସର୍ୱ୍ୱେଷାଂ କାର୍ୟ୍ୟାଣାଂ ତ୍ୱାଂ ସାକ୍ଷିଣଂ ମମ ସେୱକଞ୍ଚ କର୍ତ୍ତୁମ୍ ଦର୍ଶନମ୍ ଅଦାମ୍|
17 १७ या लोकांपासून व परराष्ट्रीयांपासून मी तुझे रक्षण करीन.
ୱିଶେଷତୋ ଯିହୂଦୀଯଲୋକେଭ୍ୟୋ ଭିନ୍ନଜାତୀଯେଭ୍ୟଶ୍ଚ ତ୍ୱାଂ ମନୋନୀତଂ କୃତ୍ୱା ତେଷାଂ ଯଥା ପାପମୋଚନଂ ଭୱତି
18 १८ मी तुला त्यांच्याकडे पाठवतो, ह्यासाठी की, त्यांनी अंधारांतून निघून उजेडाकडे व सैतानाच्या अधिकारातून देवाकडे वळावे, म्हणून तू त्यांचे डोळे उघडावे आणि त्यांना पापाची क्षमा व्हावी व माझ्यावरील विश्वासाने पवित्र झालेल्या लोकांमध्ये वतन मिळावे.”
ଯଥା ତେ ମଯି ୱିଶ୍ୱସ୍ୟ ପୱିତ୍ରୀକୃତାନାଂ ମଧ୍ୟେ ଭାଗଂ ପ୍ରାପ୍ନୁୱନ୍ତି ତଦଭିପ୍ରାଯେଣ ତେଷାଂ ଜ୍ଞାନଚକ୍ଷୂଂଷି ପ୍ରସନ୍ନାନି କର୍ତ୍ତୁଂ ତଥାନ୍ଧକାରାଦ୍ ଦୀପ୍ତିଂ ପ୍ରତି ଶୈତାନାଧିକାରାଚ୍ଚ ଈଶ୍ୱରଂ ପ୍ରତି ମତୀଃ ପରାୱର୍ତ୍ତଯିତୁଂ ତେଷାଂ ସମୀପଂ ତ୍ୱାଂ ପ୍ରେଷ୍ୟାମି|
19 १९ यासाठी, अग्रिप्पा महाराज मला जो स्वर्गीय दृष्टांत झाला, त्याचा मी आज्ञाभंग केला नाही.
ହେ ଆଗ୍ରିପ୍ପରାଜ ଏତାଦୃଶଂ ସ୍ୱର୍ଗୀଯପ୍ରତ୍ୟାଦେଶଂ ଅଗ୍ରାହ୍ୟମ୍ ଅକୃତ୍ୱାହଂ
20 २० उलट पहिल्यांदा दिमिष्कातील आणि नंतर यरूशलेम शहरातील, यहूदीया प्रांतातील सर्व आणि परराष्ट्रीय लोकांससुद्धा प्रभूच्या वचनाची साक्ष दिली, त्यांनी पश्चात्ताप करावा, देवाकडे वळावे आणि पश्चात्तापाला साजेल अशी कामे करावी असे मी त्यांना सांगितले.
ପ୍ରଥମତୋ ଦମ୍ମେଷକ୍ନଗରେ ତତୋ ଯିରୂଶାଲମି ସର୍ୱ୍ୱସ୍ମିନ୍ ଯିହୂଦୀଯଦେଶେ ଅନ୍ୟେଷୁ ଦେଶେଷୁ ଚ ଯେନ ଲୋକା ମତିଂ ପରାୱର୍ତ୍ତ୍ୟ ଈଶ୍ୱରଂ ପ୍ରତି ପରାୱର୍ତ୍ତଯନ୍ତେ, ମନଃପରାୱର୍ତ୍ତନଯୋଗ୍ୟାନି କର୍ମ୍ମାଣି ଚ କୁର୍ୱ୍ୱନ୍ତି ତାଦୃଶମ୍ ଉପଦେଶଂ ପ୍ରଚାରିତୱାନ୍|
21 २१ या कारणांमुळे मी परमेश्वराच्या भवनात असताना काही यहूदी लोकांनी मला धरले आणि जिवे मारण्याचा प्रयत्न केला.
ଏତତ୍କାରଣାଦ୍ ଯିହୂଦୀଯା ମଧ୍ୟେମନ୍ଦିରଂ ମାଂ ଧୃତ୍ୱା ହନ୍ତୁମ୍ ଉଦ୍ୟତାଃ|
22 २२ परंतु देवाने मला मदत केली म्हणून मी आज येथे उभा राहून समाजातील लहानथोरांना साक्ष देत आहे, जे काही पुढे होणार होते, त्याविषयी संदेष्ट्यांनी व मोशेने जे सांगितले त्यापेक्षा दुसरे मी सांगत नाही.
ତଥାପି ଖ୍ରୀଷ୍ଟୋ ଦୁଃଖଂ ଭୁକ୍ତ୍ୱା ସର୍ୱ୍ୱେଷାଂ ପୂର୍ୱ୍ୱଂ ଶ୍ମଶାନାଦ୍ ଉତ୍ଥାଯ ନିଜଦେଶୀଯାନାଂ ଭିନ୍ନଦେଶୀଯାନାଞ୍ଚ ସମୀପେ ଦୀପ୍ତିଂ ପ୍ରକାଶଯିଷ୍ୟତି
23 २३ त्यानुसार देवाचा अभिषिक्त जो ख्रिस्त तो दुःखसहन करील आणि मरण पावलेल्यातून उठविला जाणाऱ्यांत तो पाहिला असेल, यहूदी लोकांस तसेच परराष्ट्रीयांनाही देव प्रकाशाची घोषणा करील.
ଭୱିଷ୍ୟଦ୍ୱାଦିଗଣୋ ମୂସାଶ୍ଚ ଭାୱିକାର୍ୟ୍ୟସ୍ୟ ଯଦିଦଂ ପ୍ରମାଣମ୍ ଅଦଦୁରେତଦ୍ ୱିନାନ୍ୟାଂ କଥାଂ ନ କଥଯିତ୍ୱା ଈଶ୍ୱରାଦ୍ ଅନୁଗ୍ରହଂ ଲବ୍ଧ୍ୱା ମହତାଂ କ୍ଷୁଦ୍ରାଣାଞ୍ଚ ସର୍ୱ୍ୱେଷାଂ ସମୀପେ ପ୍ରମାଣଂ ଦତ୍ତ୍ୱାଦ୍ୟ ଯାୱତ୍ ତିଷ୍ଠାମି|
24 २४ पौल आपल्या बचावासंबंधी बोलत असताना फेस्त त्यास मोठ्याने म्हणाला, “पौला, तू वेडा आहेस, जास्त ज्ञानामुळे तुला वेड लागले आहे.”
ତସ୍ୟମାଂ କଥାଂ ନିଶମ୍ୟ ଫୀଷ୍ଟ ଉଚ୍ଚୈଃ ସ୍ୱରେଣ କଥିତୱାନ୍ ହେ ପୌଲ ତ୍ୱମ୍ ଉନ୍ମତ୍ତୋସି ବହୁୱିଦ୍ୟାଭ୍ୟାସେନ ତ୍ୱଂ ହତଜ୍ଞାନୋ ଜାତଃ|
25 २५ पौलाने उत्तर दिले, “फेस्त महाराज, मी वेडा नाही; तर ज्या गोष्टी खऱ्या आहेत आणि अगदी योग्य आहेत, त्यांच्याविषयीच मी बोलत आहे.
ସ ଉକ୍ତୱାନ୍ ହେ ମହାମହିମ ଫୀଷ୍ଟ ନାହମ୍ ଉନ୍ମତ୍ତଃ କିନ୍ତୁ ସତ୍ୟଂ ୱିୱେଚନୀଯଞ୍ଚ ୱାକ୍ୟଂ ପ୍ରସ୍ତୌମି|
26 २६ येथे हजर असलेल्या महाराजांना याविषयी चांगली माहिती आहे आणि यामुळे मी त्यांच्याशी उघडपणाने बोलू शकतो, त्याच्या ध्यानातून काही सुटले नसेल, असे मला खात्रीने वाटते, मी हे म्हणतो, कारण ही गोष्ट एखाद्या कानाकोपऱ्यात झाली नाही.
ଯସ୍ୟ ସାକ୍ଷାଦ୍ ଅକ୍ଷୋଭଃ ସନ୍ କଥାଂ କଥଯାମି ସ ରାଜା ତଦ୍ୱୃତ୍ତାନ୍ତଂ ଜାନାତି ତସ୍ୟ ସମୀପେ କିମପି ଗୁପ୍ତଂ ନେତି ମଯା ନିଶ୍ଚିତଂ ବୁଧ୍ୟତେ ଯତସ୍ତଦ୍ ୱିଜନେ ନ କୃତଂ|
27 २७ अग्रिप्पा महाराज, संदेष्ट्यानी जे लिहिले त्यावर तुमचा विश्वास आहे काय? तुमचा त्यावर विश्वास आहे.” हे मला नक्की माहीत आहे.
ହେ ଆଗ୍ରିପ୍ପରାଜ ଭୱାନ୍ କିଂ ଭୱିଷ୍ୟଦ୍ୱାଦିଗଣୋକ୍ତାନି ୱାକ୍ୟାନି ପ୍ରତ୍ୟେତି? ଭୱାନ୍ ପ୍ରତ୍ୟେତି ତଦହଂ ଜାନାମି|
28 २८ यावर अग्रिप्पा म्हणाला, “एवढ्या थोड्या वेळात ख्रिस्ती होण्यासाठी तू माझे मन वळवू शकशील असे तुला वाटते काय?”
ତତ ଆଗ୍ରିପ୍ପଃ ପୌଲମ୍ ଅଭିହିତୱାନ୍ ତ୍ୱଂ ପ୍ରୱୃତ୍ତିଂ ଜନଯିତ୍ୱା ପ୍ରାଯେଣ ମାମପି ଖ୍ରୀଷ୍ଟୀଯଂ କରୋଷି|
29 २९ पौलाने उत्तर दिले, “थोड्या वेळात म्हणा अगर जास्त वेळात म्हणा, मी जसा आहे तसे केवळ तुम्हीच नव्हे तर आज जे जे येथे बसून माझे बोलणे ऐकत आहेत त्या सर्वांनी माझ्यासारखे या साखळदंडाखेरीज, विश्वास ठेवणारे व्हावे, अशी माझी देवाला नम्र विनंती आहे.”
ତତଃ ସୋଽୱାଦୀତ୍ ଭୱାନ୍ ଯେ ଯେ ଲୋକାଶ୍ଚ ମମ କଥାମ୍ ଅଦ୍ୟ ଶୃଣ୍ୱନ୍ତି ପ୍ରାଯେଣ ଇତି ନହି କିନ୍ତ୍ୱେତତ୍ ଶୃଙ୍ଖଲବନ୍ଧନଂ ୱିନା ସର୍ୱ୍ୱଥା ତେ ସର୍ୱ୍ୱେ ମାଦୃଶା ଭୱନ୍ତ୍ୱିତୀଶ୍ୱସ୍ୟ ସମୀପେ ପ୍ରାର୍ଥଯେଽହମ୍|
30 ३० यानंतर राजा, बर्णीका, राज्यपाल आणि त्यांच्याबरोबर इतर जे तेथे बसले होते, ते सर्व उठले.
ଏତସ୍ୟାଂ କଥାଯାଂ କଥିତାଯାଂ ସ ରାଜା ସୋଽଧିପତି ର୍ବର୍ଣୀକୀ ସଭାସ୍ଥା ଲୋକାଶ୍ଚ ତସ୍ମାଦ୍ ଉତ୍ଥାଯ
31 ३१ ते न्यायालयातून बाहेर पडल्यावर एकमेकांशी बोलत होते, ते म्हणाले, “ज्यामुळे तुरुंगवास किंवा मरणदंड द्यावा असे काहीही या मनुष्याने केले नाही.”
ଗୋପନେ ପରସ୍ପରଂ ୱିୱିଚ୍ୟ କଥିତୱନ୍ତ ଏଷ ଜନୋ ବନ୍ଧନାର୍ହଂ ପ୍ରାଣହନନାର୍ହଂ ୱା କିମପି କର୍ମ୍ମ ନାକରୋତ୍|
32 ३२ अग्रिप्पा फेस्ताला म्हणाला, “या मनुष्याने कैसराकडे न्याय मागितला नसता, तर त्यास सोडून देता आले असते.”
ତତ ଆଗ୍ରିପ୍ପଃ ଫୀଷ୍ଟମ୍ ଅୱଦତ୍, ଯଦ୍ୟେଷ ମାନୁଷଃ କୈସରସ୍ୟ ନିକଟେ ୱିଚାରିତୋ ଭୱିତୁଂ ନ ପ୍ରାର୍ଥଯିଷ୍ୟତ୍ ତର୍ହି ମୁକ୍ତୋ ଭୱିତୁମ୍ ଅଶକ୍ଷ୍ୟତ୍|

< प्रेषि. 26 >