< 1 राजे 7 >
1 १ शलमोनाला स्वत: साठी महाल बांधण्यास तेरा वर्षे लागली.
ଏଥିଉତ୍ତାରେ ଶଲୋମନ ତେର ବର୍ଷ ଆପଣା ଗୃହ ନିର୍ମାଣ କରିବାରେ ଲାଗି ଆପଣାର ସମୁଦାୟ ଗୃହ ସମାପ୍ତ କଲେ।
2 २ त्याने लबानोनगृह वनातील घरही बांधले. त्याची लांबी शंभर हात, रूंदी पन्नास हात व उंची तीस हात होती. ती ईमारत गंधसरुच्या स्तंभाच्या चार रांगावर असून प्रत्येक स्तंभावर गंधसरूच्या तुळ्या ठेवल्या होत्या.
କାରଣ, ସେ ଲିବାନୋନ-ଅରଣ୍ୟ ନାମକ ଗୃହ ନିର୍ମାଣ କଲେ; ତହିଁର ଦୀର୍ଘତା ଏକ ଶହ ହାତ, ତହିଁର ପ୍ରସ୍ଥ ପଚାଶ ହାତ ଓ ତହିଁର ଉଚ୍ଚତା ତିରିଶ ହାତ, ଚାରି ଧାଡ଼ି ଏରସ କାଷ୍ଠର ସ୍ତମ୍ଭ ଉପରେ ଏରସ କାଷ୍ଠର କଡ଼ି ଦେଇ ତାହା ନିର୍ମାଣ କଲେ।
3 ३ त्यावर छत म्हणून गंधसरुच्या लाकडाची पाटण होती. प्रत्येक ओळीत पंधरा खांब अशा पंचेचाळीस खांबांवर तुळ्या होत्या.
ଆଉ, ସ୍ତମ୍ଭମାନର ଉପରିସ୍ଥିତ ପଞ୍ଚଚାଳିଶ କଡ଼ି ଉପରେ ଏରସ କାଷ୍ଠର ଛାତ କଲେ; ଧାଡ଼ିକେ ପନ୍ଦର ଲେଖାଏଁ।
4 ४ तिन्ही मजल्यावर तुळ्या असून भिंतींवर समोरासमोर येतील अशा खिडक्यांच्या तीन ओळी होत्या.
ପୁଣି, ତିନି ଧାଡ଼ି ଖିଡ଼ିକି ଥିଲା ଓ ତିନି ଧାଡ଼ିର ଆଲୁଅ ସମ୍ମୁଖାସମ୍ମୁଖୀ ଥିଲା।
5 ५ दोन्ही टोकांना तीन तीन दरवाजे होते. दाराची कवाडे आणि चौकटी काटकोन चौकोनात होत्या.
ଖିଡ଼ିକିର ସମସ୍ତ ଦ୍ୱାର ଓ ଚୌକାଠ ଚାରି ଚୌରସ ଥିଲା ଓ ତିନି ଧାଡ଼ିର ଆଲୁଅ ସମ୍ମୁଖାସମ୍ମୁଖୀ ଥିଲା।
6 ६ शलमोनाने एक द्वारमंडपही उभारला होता. हा राजासनाचा मंडप पन्नास हात लांब आणि तीस हात रुंद होता. दर्शनी बाजूला आधार देणाऱ्या स्तंभाची रांग होती.
ଆହୁରି ସେ ସ୍ତମ୍ଭଶ୍ରେଣୀର ବାରଣ୍ଡା କଲେ; ତହିଁର ଦୀର୍ଘତା ପଚାଶ ହାତ, ପ୍ରସ୍ଥ ତିରିଶ ହାତ; ତହିଁ ସମ୍ମୁଖରେ ଆଉ ଏକ ବାରଣ୍ଡା କଲେ ଓ ତହିଁ ସମ୍ମୁଖରେ ସ୍ତମ୍ଭ ଓ ମୋଟ କଡ଼ିମାନ ଦେଲେ।
7 ७ मग सिंहासनावर बसून न्यायनिवाडा करण्यासाठी त्याने एक दालन बांधून घेतले. त्यास त्याने “न्यायासनाचा मंडप” असे नाव दिले होते. हे दालनही जमिनीपासून छतापर्यंत गंधसरुच्या लाकडाने आच्छादलेले होते.
ପୁଣି, ସେ ବିଚାରାର୍ଥେ ସିଂହାସନର ବାରଣ୍ଡା, ଅର୍ଥାତ୍, ବିଚାର-ବାରଣ୍ଡା କଲେ; ଆଉ ଚଟାଣକୁ ଚଟାଣ ଏରସ କାଷ୍ଠରେ ଆଚ୍ଛାଦିତ କଲେ।
8 ८ याच्याच आतल्या बाजूला त्याचे घर होते. त्याची बांधणी न्यायासनाच्या मंडपासारखीच होती. मिसरच्या फारो राजाची कन्या म्हणजे शलमोनची पत्नी हिच्यासाठीही त्याने असाच महाल बांधून घेतला.
ଆଉ, ତାଙ୍କର ବାସଗୃହ, ବାରଣ୍ଡା ଭିତର ଅନ୍ୟ ପ୍ରାଙ୍ଗଣର କାର୍ଯ୍ୟ ପରି ଥିଲା। ଆଉ, ଶଲୋମନ ଆପଣା ଭାର୍ଯ୍ୟା ଫାରୋର କନ୍ୟା ନିମନ୍ତେ ସେହି ବାରଣ୍ଡା ପରି ଏକ ଗୃହ ମଧ୍ୟ ନିର୍ମାଣ କଲେ।
9 ९ या सर्व इमारतींच्या बांधकामात किंमती दगडी चिरे वापरले होते. पुढून मागून घासून ते करवतीने योग्य मापाने कातले होते. पायापासून वळचणीपर्यंत त्यांचाच वापर केला होता. अंगणाभोवतालच्या भिंतीही याच बहुमूल्य दगडांनी बांधल्या होत्या.
ଏହିସବୁ ଭିତ୍ତିମୂଳ ଠାରୁ ଛାତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଭିତରେ ଓ ବାହାରେ ଖୋଦିତ ପ୍ରସ୍ତରର ପରିମାଣାନୁସାରେ କରତରେ ଚିରା ବହୁମୂଲ୍ୟ ପ୍ରସ୍ତର ଦ୍ୱାରା ନିର୍ମିତ ହେଲା। ପୁଣି, ବାହାରେ ବୃହତ ପ୍ରାଙ୍ଗଣ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେହିରୂପ ହେଲା।
10 १० पायासाठी वापरलेले चिरेही असेच प्रशस्त व भारी होते. काहींची लांबी आठ व इतरांची दहा हात होती.
ଆଉ ଦଶ ହାତ ଓ ଆଠ ହାତର ବଡ଼ ବଡ଼ ଓ ବହୁମୂଲ୍ୟ ପ୍ରସ୍ତରରେ ଭିତ୍ତିମୂଳ ହେଲା।
11 ११ त्यांच्यावर आणखी चांगल्या प्रतीचे चिरे आणि गंधसरुचे वासे होते.
ପୁଣି, ଉପରେ ପରିମାଣାନୁସାରେ ବହୁମୂଲ୍ୟ ଓ ଖୋଦିତ ପ୍ରସ୍ତର ଓ ଏରସ କାଷ୍ଠ ଥିଲା।
12 १२ महाल, मंदिर आणि द्वारमंडप यांच्या सभोवती भिंत होती. तिला दगडांच्या तीन चिऱ्या आणि गंधसरुच्या लाकडाची एक ओळ परमेश्वराच्या मंदिराचे आतले अंगण व त्या मंदिराची देवडी यांच्याप्रमाणे ही रचना होती.
ଆଉ ଯେପରି ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କ ଗୃହର ଭିତର ପ୍ରାଙ୍ଗଣ ଓ ଗୃହ-ବାରଣ୍ଡାରେ, ସେପରି ବୃହତ ପ୍ରାଙ୍ଗଣର ଚତୁର୍ଦ୍ଦିଗରେ ତିନି ଧାଡ଼ି ଖୋଦିତ ପ୍ରସ୍ତର ଓ ଏକ ଧାଡ଼ି ଏରସ-କଡ଼ି ଥିଲା।
13 १३ राजा शलमोनाने सोराहून (तायरहून) हिराम नावाच्या मनुष्यास निरोप पाठवून यरूशलेम येथे बोलावून घेतले.
ଏଥିଉତ୍ତାରେ ଶଲୋମନ ରାଜା ଲୋକ ପଠାଇ ହୂରମ୍କୁ ସୋରରୁ ଅଣାଇଲେ।
14 १४ हिरामची आई नफताली वंशातील होती. त्याचे वडिल सोराचे (तायरचे) होते. ते चांगले तांबट कारागीर होते. हिराम हा एक ज्ञानाने, बुद्धीने, आणि कसबी तांबट होता. म्हणून शलमोन राजाने त्यालाच बोलावून घेतले. त्यानेही हे आमंत्रण स्विकारले. राजाने हिरामला सर्व पितळी कारागिरीवरील प्रमुख म्हणून नेमले. हिरामने पितळेपासून बनवलेल्या सर्व वस्तू घडविल्या.
ସେ ନପ୍ତାଲି-ବଂଶୀୟ ଏକ ବିଧବା ସ୍ତ୍ରୀର ପୁତ୍ର, ତାହାର ପିତା ସୋର ନଗରସ୍ଥ ଏକ କାଂସ୍ୟକାର ଥିଲା; ପୁଣି, ସେ ପିତ୍ତଳର ସମସ୍ତ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଜ୍ଞାନ ଓ ବୁଦ୍ଧି ଓ ବିଦ୍ୟାରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ଥିଲା। ପୁଣି, ସେ ଶଲୋମନ ରାଜାଙ୍କ ନିକଟକୁ ଆସି ତାଙ୍କର ସମସ୍ତ କାର୍ଯ୍ୟ କଲା।
15 १५ हिरामने दोन पितळी स्तंभ घडवले. ते स्तंभ अठरा हात उंचीचे होते. त्या प्रत्येकाला वेढावयास बारा हात दोरी लागे.
ଆଉ ସେ ଅଠର ହାତ ଉଚ୍ଚ ଓ ବାର ହାତ ପରିଧିରେ ଦୁଇ ପିତ୍ତଳ ସ୍ତମ୍ଭ ନିର୍ମାଣ କଲା।
16 १६ शिवाय त्याने त्या खांबाच्या शेंड्यावर बसवण्यासाठी पितळेच दोन ओतीव कळस केले. त्या एकाएका कळसाची उंची पाच पाच हात होती.
ପୁଣି, ସେ ଦୁଇ ସ୍ତମ୍ଭର ମଥାନରେ ଦେବା ପାଇଁ ଢଳା ପିତ୍ତଳର ଦୁଇ ମୁଣ୍ଡାଳି କଲା; ଏକ ମୁଣ୍ଡାଳିର ଉଚ୍ଚତା ପାଞ୍ଚ ହାତ ଓ ଅନ୍ୟ ମୁଣ୍ଡାଳିର ଉଚ୍ଚତା ପାଞ୍ଚ ହାତ ଥିଲା।
17 १७ या खांबाच्या घुमटांना आच्छादण्यासाठी दोन जाळीदार, साखळीची आच्छादने केली. एकाला सात व दुसऱ्याला सात.
ସ୍ତମ୍ଭ-ମଥାନର ସେହି ମୁଣ୍ଡାଳି ନିମନ୍ତେ ଜାଲିକାର୍ଯ୍ୟର ଜାଲି ଓ ଜଞ୍ଜିର କାର୍ଯ୍ୟର ମାଳା ଥିଲା, ଏକ ମୁଣ୍ଡାଳି ପାଇଁ ସାତ ଓ ଅନ୍ୟ ମୁଣ୍ଡାଳି ପାଇଁ ସାତ।
18 १८ याप्रकारे त्याने खांब तयार करून त्यांच्या शेडंयावर प्रत्येक कळसास झाकण्यासाठी जाळ्यांच्या एका रांगेवर डाळिंबाच्या दोन रांगा केल्या.
ଏହିପରି ସେ ସ୍ତମ୍ଭ ନିର୍ମାଣ କଲା; ସ୍ତମ୍ଭ-ମଥାନରେ ଥିବା ମୁଣ୍ଡାଳିର ଆଚ୍ଛାଦନାର୍ଥକ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜାଲିକାର୍ଯ୍ୟ ଉପରେ ଚତୁର୍ଦ୍ଦିଗରେ ଦୁଇ ଧାଡ଼ି ଡାଳିମ୍ବ ଥିଲା ଓ ସେ ଅନ୍ୟ ମୁଣ୍ଡାଳି ନିମନ୍ତେ ତଦ୍ରୂପ କଲା।
19 १९ जे कळस देवडीच्या खांबांच्या शेंड्यांवर होते त्यांच्या चार हात जागेत कमळांचे काम केले होते.
ପୁଣି, ବାରଣ୍ଡା ଭିତର ସ୍ତମ୍ଭ-ମଥାନର ମୁଣ୍ଡାଳି ଚାରି ହାତ କଇଁଫୁଲ-କର୍ମବିଶିଷ୍ଟ ଥିଲା।
20 २० हे घुमट स्तंभावर बसविलेले होते. परडीच्या आकाराच्या जाळीवर ते बसवले होते. या सगळ्या कळसांच्या भोवती रांगेने दोनशे डाळिंबे लावली होती.
ଆଉ, ଦୁଇ ସ୍ତମ୍ଭର ଉପରି ଭାଗରେ ମଧ୍ୟ ମୁଣ୍ଡାଳି ଥିଲା, ତାହା ଜାଲିକର୍ମ ସନ୍ନିକଟ ଗର୍ଭ ପାଖରେ ଥିଲା; ପୁଣି, ଅନ୍ୟ ମୁଣ୍ଡାଳି ଉପରେ ଚତୁର୍ଦ୍ଦିଗରେ ଧାଡ଼ି ଧାଡ଼ି ହୋଇ ଦୁଇ ଶହ ଡାଳିମ୍ବ ଥିଲା।
21 २१ हे दोन पितळी स्तंभ हिरामने द्वारमंडपाशी लावले. दक्षिणेकडील खांबाला याखीन (तो स्थापील) आणि उत्तरे कडील खांबाला बवाज (त्याच्या ठायी सामर्थ्य) असे नाव ठेवले.
ଆହୁରି ସେ ମନ୍ଦିରର ବାରଣ୍ଡାରେ ସେହି ସ୍ତମ୍ଭମାନ ସ୍ଥାପନ କଲା; ଆଉ ସେ ଦକ୍ଷିଣ ସ୍ତମ୍ଭ ସ୍ଥାପନ କରି ତହିଁର ନାମ ଯାଖୀନ୍ (ସେ ସ୍ଥିର କରିବେ) ଦେଲା ଓ ସେ ବାମ ସ୍ତମ୍ଭ ସ୍ଥାପନ କରି ତହିଁର ନାମ ବୋୟସ୍ (ତହିଁରେ ବଳ) ଦେଲା।
22 २२ कमळाच्या आकाराचे कळस या खांबांवर चढवले आणि या दोन स्तंभाचे काम संपले.
ପୁଣି, ସେହି ସ୍ତମ୍ଭ-ମଥାନ ଉପରେ କଇଁଫୁଲ-କର୍ମ ଥିଲା; ଏହିରୂପେ ସ୍ତମ୍ଭ କାର୍ଯ୍ୟ ସମାପ୍ତ ହେଲା।
23 २३ मग त्याने एक गंगाळसागर ओतविला होता, त्याचा काठाकडला व्यास दहा हात होता; त्याचा आकार गोल असून त्याची उंची पाच हात होती व त्यास वेढायला तीस हात दोरी लागत असे.
ଏଥିଉତ୍ତାରେ ସେ ଛାଞ୍ଚରେ ଢଳା ଗୋଲାକାର ସମୁଦ୍ରରୂପ ପାତ୍ର ନିର୍ମାଣ କଲା, ତାହା ଏକ ଫନ୍ଦରୁ ଅନ୍ୟ ଫନ୍ଦ ଯାଏ ଦଶ ହାତ ଓ ତହିଁର ଉଚ୍ଚତା ପାଞ୍ଚ ହାତ ଓ ତହିଁର ପରିଧି ତିରିଶ ହାତ ପରିମିତ ଥିଲା।
24 २४ या हौदाच्या कडेल्या बाहेरच्या बाजूला एक पट्टी बसवली होती. तिच्याखाली पितळी रानकाकड्यांच्या दोन रांगा होत्या. या काकड्या हौदाचाच एक भाग म्हणून एकसंधपणे करून घेतल्या होत्या.
ଆଉ ଫନ୍ଦ ତଳେ ଚତୁର୍ଦ୍ଦିଗରେ କଳିକାମାନ ପରିବେଷ୍ଟିତ ଥିଲା, ତାହା ହାତକେ ଦଶ ଲେଖାଏଁ ସମୁଦ୍ରରୂପ ପାତ୍ରକୁ ବେଷ୍ଟନ କରି ରହିଲା; ପାତ୍ର ଢଳା ହେବା ବେଳେ ଏହି କଳିକାମାନ ଦୁଇ ଧାଡ଼ିରେ ଢଳା ଯାଇଥିଲା।
25 २५ बारा पितळी बैलांच्या पाठीवर हा हौद विसावलेला होता. बैलांची तोंडे बाहेरच्या बाजूला होती. तिघांची तोंडे उत्तरेला, तिघांची दक्षिणेला, तिघांची पूर्वेला आणि तिघांची पश्चिमेला होती.
ଏହି ପାତ୍ର ଦ୍ୱାଦଶ ଗୋରୁ ଉପରେ ସ୍ଥାପିତ ଥିଲା, ସେମାନଙ୍କ ତିନିର ମୁଖ ଉତ୍ତରକୁ ଓ ତିନିର ମୁଖ ପଶ୍ଚିମକୁ ଓ ତିନିର ମୁଖ ଦକ୍ଷିଣକୁ ଓ ତିନିର ମୁଖ ପୂର୍ବକୁ ଥିଲା; ସେମାନଙ୍କ ଉପରେ ସମୁଦ୍ରରୂପ ପାତ୍ର ସ୍ଥାପିତ ଥିଲା ଓ ସେସମସ୍ତର ପଶ୍ଚାତ୍ଭାଗ ଭିତରକୁ ଥିଲା।
26 २६ हौदाची जाडी वितभर होती; आणि वरची कड कटोऱ्याच्या कडेसारखी अथवा कमळफुलासारखी उमललेली होती. यामध्ये दोन हजार बथ पाणी मावत असे.
ସେହି ପାତ୍ର ଚାରି ଅଙ୍ଗୁଳି ମୋଟ, ତହିଁର ଫନ୍ଦ ତାଟିଆର ଫନ୍ଦ ପରି ନିର୍ମିତ, କଇଁଫୁଲ ତୁଲ୍ୟ ଥିଲା; ତହିଁରେ ଦୁଇ ହଜାର ମହଣ ଧରିଲା।
27 २७ मग हिरामने दहा पितळी चौरंग बनवले. प्रत्येक चौरंग चार हात लांब, चार हात रुंद आणि तीन हात उंच होते.
ପୁଣି, ସେ ଦଶ ପିତ୍ତଳ ବଇଠି କଲା; ପ୍ରତ୍ୟେକ ବଇଠିର ଦୈର୍ଘ୍ୟ ଚାରି ହାତ, ପ୍ରସ୍ଥ ଚାରି ହାତ ଓ ଉଚ୍ଚତା ତିନି ହାତ ଥିଲା।
28 २८ चौरंग याप्रकारे बनविण्यात आले होते; त्यास पत्रे लावलेले होते आणि या पत्र्यास सभोवार कंगोरे होते.
ସେସବୁ ବଇଠିର ଗଠନ ଏହିରୂପ, ଯଥା, ସେସବୁର ମଧ୍ୟଦେଶ ଥିଲା; ସେହି ସବୁ ମଧ୍ୟଦେଶ ବିଟମାନର ମଧ୍ୟରେ ଥିଲା;
29 २९ पितळी पत्रे आणि चौकट यांच्यावर सिंह, बैल व करुब देवदूत यांचे कोरीव काम होते. सिंह आणि बैल यांच्याखाली फुलांची वेलबुट्टी बसवलेली होती.
ପୁଣି, ବିଟର ମଧ୍ୟବର୍ତ୍ତା ସେହି ସବୁ ମଧ୍ୟଦେଶରେ ସିଂହ, ଗୋରୁ ଓ କିରୂବମାନେ ଥିଲେ; ଆଉ ବିଟ ଉପରେ ଏକ ବଇଠି ଥିଲା; ପୁଣି, ସିଂହ ଓ ଗୋରୁମାନଙ୍କ ତଳେ ସୂକ୍ଷ୍ମ କାର୍ଯ୍ୟର ମାଳା ଥିଲା।
30 ३० प्रत्येक चौरंगाला पितळी धुऱ्यांवर पितळेची चारचार चाके लावलेली होती आणि चारही कोपऱ्यातून प्रशस्त घंगाळासाठी पितळी आधार दिलेले होते. त्यावरही फुलांचे सुबक काम केलेले होते.
ଆହୁରି ପ୍ରତ୍ୟେକ ବଇଠିର ପିତ୍ତଳମୟ ଚାରି ଚକ୍ର, ପିତ୍ତଳର ଅଖ ଥିଲା ଓ ଚାରି କୋଣରେ ସ୍ଥାପିତ ଅବଲମ୍ବନ ଥିଲା; ସେହି ସବୁ ଢଳାକର୍ମର ଅବଲମ୍ବନ ପ୍ରକ୍ଷାଳନ-ପାତ୍ର ତଳେ ଥିଲା ଓ ପ୍ରତ୍ୟେକର ପାର୍ଶ୍ୱରେ ମାଳା ଥିଲା।
31 ३१ कळसाच्या आतल्या बाजूपासून वरपर्यंत त्याचे तोंड एक हात उंच होते हे तोंड बैठकीसारखे असून त्याचा व्यास दीड हात होता, त्यावर काही कोरीव काम होते, त्याच्या पट्टया गोल नसून चौकोनी होत्या.
ପୁଣି, ତହିଁର ମୁଣ୍ଡାଳି ମଧ୍ୟରେ ଓ ତାହା ଉପରେ ତହିଁର ମୁଖ ଏକ ହସ୍ତ, ଆଉ ତହିଁର ମୁଖ ବଇଠିର କର୍ମାନୁସାରେ ଗୋଲାକାର ଓ ଦେଢ଼ ହସ୍ତ ପରିମିତ; ମଧ୍ୟ ତହିଁର ମୁଖ ଉପରେ ଶିଳ୍ପକାର୍ଯ୍ୟ ଓ ତହିଁର ମଧ୍ୟଦେଶସବୁ ଗୋଲାକାର ନ ହୋଇ ଚତୁଷ୍କୋଣ ଥିଲା।
32 ३२ चारही चाके पट्यांच्या खाली होती व प्रत्येक चाकाच्या धुऱ्या तळाशी जोडल्या होत्या, त्या प्रत्येक चाकाची उंची दीड हात होती.
ପୁଣି, ମଧ୍ୟଦେଶ ତଳେ ଚାରି ଚକ୍ର ଓ ଚକ୍ରର ଅଖ ବଇଠିକିରେ ସଂଯୁକ୍ତ ଥିଲା; ଆଉ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଚକ୍ର ଦେଢ଼ ହସ୍ତ ଉଚ୍ଚ ଥିଲା।
33 ३३ रथाच्या चाकांसारखी ही चाके होती. आणि त्याच्या धुऱ्या धावा, आरे आणि तुंबे असे सर्वकाही ओतीव पितळेचे होते.
ଆଉ ସେହି ସବୁ ଚକ୍ରର କର୍ମ ରଥଚକ୍ରର କର୍ମ ତୁଲ୍ୟ ଥିଲା; ତହିଁର ଅଖ, ନେମୀ, ନାଭି ଓ ଅରସବୁ ଢଳାକର୍ମର ଥିଲା।
34 ३४ प्रत्येक चौरंगाच्या चारही कोपऱ्यांना आधार दिलेले होते. तेही एकसंध होते.
ପୁଣି, ପ୍ରତ୍ୟେକ ବଇଠିକିର ଚାରି କୋଣରେ ଚାରି ଅବଲମ୍ବନ ଥିଲା, ସେହି ଅବଲମ୍ବନ ବଇଠିକି ଦେହରେ ନିର୍ମିତ ଥିଲା।
35 ३५ प्रत्येक चौरंगावर अर्धा हात उंच गोलाकार झाकण होते, व त्या झाकणाचे टेकावे व त्याच्या पट्टया ही चौरंगाशी अंखड होत्या.
ଆଉ ବଇଠିକି ମୁଣ୍ଡରେ ଅର୍ଦ୍ଧ ହସ୍ତ ଉଚ୍ଚ ଏକ ଗୋଲାକାର ବନ୍ଧନୀ ଥିଲା; ପୁଣି, ବଇଠିକି ଉପରିସ୍ଥ ଅବଲମ୍ବନ ଓ ମଧ୍ୟଦେଶ ତହିଁ ସଙ୍ଗେ ନିର୍ମିତ ଥିଲା।
36 ३६ चौरंगाची बाहेरची बाजू आणि चौकट यांच्यावर करुब देवदूत, सिंह, खजूरीची झाडे यांचे कोरीव काम पितळेचे केलेले होते. ही नक्षी अगदी भरगच्च असून त्यामध्ये कुठेही मोकळी जागा नव्हती. शिवाय भोवताली फुलांची नक्षी होती.
ପୁଣି, ସେ ତହିଁର ଅବଲମ୍ବନ ପ୍ରଦେଶରେ ଓ ତହିଁର ମଧ୍ୟଦେଶରେ ପ୍ରତ୍ୟେକର ପରିମାଣାନୁଯାୟୀ କିରୂବ, ସିଂହ ଓ ଖର୍ଜ୍ଜୁର ବୃକ୍ଷ ଖୋଦନ କରି ଚତୁର୍ଦ୍ଦିଗରେ ମାଳା ଦେଲା।
37 ३७ हिरामने अशाप्रकारे अगदी एकसारखे एक असे दहा पितळी चौरंग घडवले. हे सर्व ओतीव काम होते त्यामुळे ते तंतोतंत एकसारखे होते.
ଏହିରୂପେ ସେ ଏକ ଛାଞ୍ଚ, ଏକ ପରିମାଣ ଓ ଏକ ଆକାରରେ ସେହି ଦଶ ବଇଠିକିଯାକ ନିର୍ମାଣ କଲା।
38 ३८ हिरामने अशीच दहा गंगाळे केली. ती या दहा चौरंगासाठी प्रत्येकी एक याप्रमाणे होती. प्रत्येक गंगाळाचा व्यास चार हात होतो. त्यामध्ये चाळीस बथ पाणी मावू शकत असे.
ଏଉତ୍ତାରେ ସେ ପିତ୍ତଳର ଦଶ ପ୍ରକ୍ଷାଳନ-ପାତ୍ର ନିର୍ମାଣ କଲା; ଏକ ଏକ ପାତ୍ର ଚାଳିଶ ମହଣ ଧରେ; ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାତ୍ର ଚାରି ହସ୍ତ ପରିମିତ; ପୁଣି, ଦଶ ବଇଠିକିର ପ୍ରତ୍ୟେକର ଉପରେ ଏକ ଏକ ପ୍ରକ୍ଷାଳନ-ପାତ୍ର ରହିଲା।
39 ३९ त्याने पाच बैठकी मंदिराच्या उत्तरेला आणि दक्षिणेला पाच व गंगाळसागर मंदिराच्या उजवीकडे पूर्व दिशेला ठेवल्या.
ପୁଣି, ସେ ଗୃହର ଦକ୍ଷିଣ ପାର୍ଶ୍ୱରେ ପାଞ୍ଚ ଓ ଗୃହର ବାମ ପାର୍ଶ୍ୱରେ ପାଞ୍ଚ ବଇଠିକି ରଖିଲା; ଆଉ ଗୃହର ଦକ୍ଷିଣ ପାର୍ଶ୍ୱରେ ପୂର୍ବ ଦିଗରେ ଦକ୍ଷିଣ ଆଡ଼କୁ ସମୁଦ୍ରରୂପ ପାତ୍ର ସ୍ଥାପନ କଲା।
40 ४० याखेरीज हिरामने वाडगी, पावडी, लहान गंगाळे बनवली. शलमोन राजाने सांगितले ते सर्व हिरामने केले. परमेश्वराच्या मंदिरासाठी हिरामने ज्या वस्तू घडवल्या
ପୁଣି, ହୂରମ୍ ଏହିସବୁ ପ୍ରକ୍ଷାଳନ-ପାତ୍ର ଓ କରଚୁଲି ଓ କୁଣ୍ଡ ନିର୍ମାଣ କଲା। ଏହିରୂପେ ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କ ଗୃହରେ ଶଲୋମନ ରାଜାଙ୍କ ନିମନ୍ତେ ହୂରମ୍ ଯେ ଯେ କର୍ମରେ ପ୍ରବୃତ୍ତ ହୋଇଥିଲା, ସେସକଳ ସମାପ୍ତ କଲା;
41 ४१ त्यांची यादी पुढीलप्रमाणे: दोन स्तंभ स्तंभाच्या कळसांवर बसवायच्या दोन घुमट्या त्यांच्या भोवतीच्या दोन जाळ्या
ଦୁଇ ସ୍ତମ୍ଭ ଓ ସେହି ସ୍ତମ୍ଭ ଉପରିସ୍ଥ ମୁଣ୍ଡାଳିର ଦୁଇ ଗୋଲାକାର ଓ ସ୍ତମ୍ଭ ଉପରିସ୍ଥ ମୁଣ୍ଡାଳିର ଦୁଇ ଗୋଲାକାର ଆଚ୍ଛାଦନାର୍ଥେ ଦୁଇ ଜାଲିକର୍ମ;
42 ४२ या दोन जाळ्यांसाठी चारशे नक्षीदार डाळिंबे तयार केली खांबाच्या शेंडयावरील प्याल्याच्या आकाराचे कळसाचे भाग झाकावयाच्या जाळ्यासाठी या डाळींबाच्या दोन-दोन रांगा होत्या.
ଆଉ, ସେହି ଦୁଇ ଜାଲିକର୍ମ ନିମନ୍ତେ ଚାରି ଶହ ଡାଳିମ୍ବ; ଅର୍ଥାତ୍, ସ୍ତମ୍ଭ ଉପରିସ୍ଥ ମୁଣ୍ଡାଳିର ଦୁଇ ଗୋଲାକାର ଆଚ୍ଛାଦନାର୍ଥେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜାଲିକର୍ମ ପାଇଁ ଦୁଇ ଦୁଇ ଧାଡ଼ି ଡାଳିମ୍ବ;
43 ४३ दहा चौंरग व त्यांच्यावरील दहा गंगाळे,
ଆଉ, ଦଶ ବଇଠିକି ଓ ସେହି ସବୁ ବଇଠିକି ଉପରେ ଦଶ ପ୍ରକ୍ଷାଳନ-ପାତ୍ର,
44 ४४ एक गंगाळसागर व त्याच्याखालचे बारा बैल;
ଏକ ସମୁଦ୍ରରୂପ ପାତ୍ର, ସେହି ସମୁଦ୍ରପାତ୍ର ତଳେ ବାର ଗୋରୁ,
45 ४५ याखेरीज हंडे, पातेली, पावडी अशी परमेश्वराच्या मंदिरासाठी वेगवेगळी पात्रे शलमोन राजाच्या इच्छेखातर हिरामने बनवले. ते सर्व लखलखीत पितळेच होते.
ହାଣ୍ଡି, କରଚୁଲି ଓ କୁଣ୍ଡ, ଏହି ଯେସକଳ ପାତ୍ର ହୂରମ୍ ଶଲୋମନ ରାଜାଙ୍କ ପାଇଁ ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କ ଗୃହରେ ନିର୍ମାଣ କଲା, ତାହାସବୁ ଉଜ୍ଜ୍ୱଳ ପିତ୍ତଳର ଥିଲା।
46 ४६ सुक्कोथ आणि सारतान यांच्यामध्ये यार्देन नदीच्या तीरावर असलेल्या मैदानावर शलमोन राजाने हे काम करायला सांगितले. पितळ वितळवून मातीच्या साच्यात हे ओतकाम करण्यात आले.
ରାଜା ଯର୍ଦ୍ଦନ-ପଦାରେ ସୁକ୍କୋତ ଓ ସର୍ତ୍ତନ ମଧ୍ୟସ୍ଥିତ ଚିକ୍କଣ ଭୂମିରେ ତାହାସବୁ ଢଳାଇଲେ।
47 ४७ या सगळ्यासाठी किती पितळ लागले ते शलमोन राजाने बघितले नाही. वजन करायचे म्हटले तरी ते खूपच होते. त्यामुळे या सर्व वस्तूंचे नक्की वजन कधीच माहीत झाले नाही.
ଆଉ, ଅତ୍ୟନ୍ତ ବାହୁଲ୍ୟ ହେତୁ ଶଲୋମନ ସେହି ସବୁ ପାତ୍ର ତୌଲ କଲେ ନାହିଁ; ପିତ୍ତଳର ଓଜନ ଜଣାଗଲା ନାହିଁ।
48 ४८ शलमोनाने परमेश्वराच्या मंदिरासाठी सोन्याच्याही कितीतरी वस्तू करवून घेतल्या. त्या अशा: सोन्याचे मेज (देवाची सोन्याची वेदी समर्पित भाकर ठेवण्यासाठी)
ଆହୁରି ଶଲୋମନ ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କ ଗୃହସ୍ଥିତ ସମସ୍ତ ସାମଗ୍ରୀ ନିର୍ମାଣ କରାଇଲେ; ଅର୍ଥାତ୍, ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣ-ବେଦି ଓ ଦର୍ଶନୀୟ ରୁଟି ସ୍ଥାପନାର୍ଥେ ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣର ମେଜ;
49 ४९ शुद्ध सोन्याच्या समया. (या परमपवित्र गाभाऱ्यासमोर उजवीडावीकडे पाच पाच लावलेल्या होत्या) सोन्याची फुले, दिवे आणि चिमटे ही सोन्याची करवली होती.
ପୁଣି, ମହାପବିତ୍ର ସ୍ଥାନ ସମ୍ମୁଖର ଦକ୍ଷିଣରେ ପାଞ୍ଚ, ବାମରେ ପାଞ୍ଚ ନିର୍ମଳ ସୁବର୍ଣ୍ଣର ଦୀପବୃକ୍ଷ, ସୁବର୍ଣ୍ଣର ପୁଷ୍ପ, ପ୍ରଦୀପ, ଚିମୁଟା,
50 ५० पेले, कातरी, कटोरे, चमचे व धूपदाने ही शुद्ध सोन्याची करवली होती; तसेच मंदिराचा आतील भाग म्हणजे परमपवित्रस्थान यांचे दरवाजे व पवित्रस्थानाच्या दाराच्या बिजागऱ्या सोन्याच्या बनवल्या होत्या.
ନିର୍ମଳ ସୁବର୍ଣ୍ଣର ପାତ୍ର, କତୁରୀ, କୁଣ୍ଡ, ଚାମର ଓ ଅଙ୍ଗାରଧାନୀ; ପୁଣି, ଅନ୍ତରାଗାରର, ଅର୍ଥାତ୍, ମହାପବିତ୍ର ସ୍ଥାନର କବାଟ ପାଇଁ ଓ ଗୃହର, ଅର୍ଥାତ୍, ମନ୍ଦିରର କବାଟ ପାଇଁ ସୁବର୍ଣ୍ଣର କବ୍ଜା କଲେ।
51 ५१ परमेश्वराच्या मंदिराचे हे काम शलमोन राजाने स्वत: च्या हाती घेतले ते संपवले. मग आपले वडिल दावीद यांनी समर्पिलेले सोने, चांदी व पात्रे ही शलमोनाने आत आणून परमेश्वराच्या मंदिराच्या भांडारात ठेवली.
ଏହିରୂପେ ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କ ଗୃହରେ ଶଲୋମନ ରାଜା ଯେସକଳ କାର୍ଯ୍ୟରେ ପ୍ରବୃତ୍ତ ହେଲେ, ତାହା ସମାପ୍ତ କଲେ। ପୁଣି, ଶଲୋମନ ଆପଣା ପିତା ଦାଉଦଙ୍କର ପବିତ୍ରୀକୃତ ସାମଗ୍ରୀ, ଅର୍ଥାତ୍, ରୂପା, ସୁନା ଓ ପାତ୍ରସବୁ ଆଣି ସଦାପ୍ରଭୁଙ୍କ ଗୃହସ୍ଥିତ ଭଣ୍ଡାରରେ ରଖିଲେ।