< Psalmorum 147 >

1 alleluia Aggei et Zacchariae laudate Dominum quoniam bonum psalmus Deo nostro sit iucunda decoraque; laudatio
यहोवा की स्तुति करो! क्योंकि अपने परमेश्वर का भजन गाना अच्छा है; क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करना उचित है।
2 aedificans Hierusalem Dominus dispersiones Israhel congregabit
यहोवा यरूशलेम को फिर बसा रहा है; वह निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठा कर रहा है।
3 qui sanat contritos corde et alligat contritiones illorum
वह खेदित मनवालों को चंगा करता है, और उनके घाव पर मरहम-पट्टी बाँधता है।
4 qui numerat multitudinem stellarum et omnibus eis nomina vocans
वह तारों को गिनता, और उनमें से एक-एक का नाम रखता है।
5 magnus Dominus noster et magna virtus eius et sapientiae eius non est numerus
हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है।
6 suscipiens mansuetos Dominus humilians autem peccatores usque ad terram
यहोवा नम्र लोगों को सम्भालता है, और दुष्टों को भूमि पर गिरा देता है।
7 praecinite Domino in confessione psallite Deo nostro in cithara
धन्यवाद करते हुए यहोवा का गीत गाओ; वीणा बजाते हुए हमारे परमेश्वर का भजन गाओ।
8 qui operit caelum nubibus et parat terrae pluviam qui producit in montibus faenum et herbam servituti hominum
वह आकाश को मेघों से भर देता है, और पृथ्वी के लिये मेंह को तैयार करता है, और पहाड़ों पर घास उगाता है।
9 et dat iumentis escam ipsorum et pullis corvorum invocantibus eum
वह पशुओं को और कौवे के बच्चों को जो पुकारते हैं, आहार देता है।
10 non in fortitudine equi voluntatem habebit nec in tibiis viri beneplacitum erit ei
१०न तो वह घोड़े के बल को चाहता है, और न पुरुष के बलवन्त पैरों से प्रसन्न होता है;
11 beneplacitum est Domino super timentes eum et in eis qui sperant super misericordia eius
११यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है, अर्थात् उनसे जो उसकी करुणा पर आशा लगाए रहते हैं।
12 alleluia lauda Hierusalem Dominum lauda Deum tuum Sion
१२हे यरूशलेम, यहोवा की प्रशंसा कर! हे सिय्योन, अपने परमेश्वर की स्तुति कर!
13 quoniam confortavit seras portarum tuarum benedixit filiis tuis in te
१३क्योंकि उसने तेरे फाटकों के खम्भों को दृढ़ किया है; और तेरी सन्तानों को आशीष दी है।
14 qui posuit fines tuos pacem et adipe frumenti satiat te
१४वह तेरी सीमा में शान्ति देता है, और तुझको उत्तम से उत्तम गेहूँ से तृप्त करता है।
15 qui emittit eloquium suum terrae velociter currit sermo eius
१५वह पृथ्वी पर अपनी आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है।
16 qui dat nivem sicut lanam nebulam sicut cinerem spargit
१६वह ऊन के समान हिम को गिराता है, और राख के समान पाला बिखेरता है।
17 mittit cristallum suum sicut buccellas ante faciem frigoris eius quis sustinebit
१७वह बर्फ के टुकड़े गिराता है, उसकी की हुई ठण्ड को कौन सह सकता है?
18 emittet verbum suum et liquefaciet ea flabit spiritus eius et fluent aquae
१८वह आज्ञा देकर उन्हें गलाता है; वह वायु बहाता है, तब जल बहने लगता है।
19 qui adnuntiat verbum suum Iacob iustitias et iudicia sua Israhel
१९वह याकूब को अपना वचन, और इस्राएल को अपनी विधियाँ और नियम बताता है।
20 non fecit taliter omni nationi et iudicia sua non manifestavit eis
२०किसी और जाति से उसने ऐसा बर्ताव नहीं किया; और उसके नियमों को औरों ने नहीं जाना। यहोवा की स्तुति करो।

< Psalmorum 147 >