< Philippenses 2 >

1 si qua ergo consolatio in Christo si quod solacium caritatis si qua societas spiritus si quid viscera et miserationes
मसीह म तुम्हरो जीवन तुम्ख मजबूत करय हय, ओको प्रेम भलायी देवय हय, अऊर आत्मा म तुम्हरी सहभागिता हय, अऊर तुम म करुना अऊर दूसरों को प्रति तरस हय,
2 implete gaudium meum ut idem sapiatis eandem caritatem habentes unianimes id ipsum sentientes
त मोरो या खुशी पूरी करो कि एक मन रहो, अऊर एकच प्रेम, अऊर एकच चित्त, अऊर एकच मनसा रखो।
3 nihil per contentionem neque per inanem gloriam sed in humilitate superiores sibi invicem arbitrantes
स्वार्थिपन अऊर घमण्ड करन की बेकार लालसा सी कुछ मत करो, पर दीनता सी एक दूसरों ख अपनो सी अच्छो समझो।
4 non quae sua sunt singuli considerantes sed et ea quae aliorum
हर एक अपनोच हित को नहीं बल्की दूसरों को हित की भी चिन्ता करे।
5 hoc enim sentite in vobis quod et in Christo Iesu
जसो मसीह यीशु को स्वभाव होतो वसोच तुम्हरो भी स्वभाव हो;
6 qui cum in forma Dei esset non rapinam arbitratus est esse se aequalem Deo
जो अपनो स्वरूप यद्दपि परमेश्वर को स्वरूप होतो, पर ओन अपनो आप ख परमेश्वर को जसो रहनो, यो फायदा हय असो ओन मान्यो नहीं।
7 sed semet ipsum exinanivit formam servi accipiens in similitudinem hominum factus et habitu inventus ut homo
बल्की अपनो आप ख असो शून्य कर दियो, अऊर सेवक को स्वरूप धारन कर लियो, अऊर आदमी की समानता म भय गयो।
8 humiliavit semet ipsum factus oboediens usque ad mortem mortem autem crucis
अऊर आदमी को रूप म प्रगट होय क अपनो आप ख नरमी करयो, अऊर यहां तक आज्ञाकारी रह्यो कि मृत्यु तक पहुंच गयो, क्रूस की मृत्यु भी स्वीकार करयो।
9 propter quod et Deus illum exaltavit et donavit illi nomen super omne nomen
यो वजह परमेश्वर न ओख ऊचो सी ऊचो जागा तक उठायो, अऊर ओख ऊ नाम दियो जो सब नामो सी उत्तम हय,
10 ut in nomine Iesu omne genu flectat caelestium et terrestrium et infernorum
कि जो स्वर्ग म अऊर धरती पर अऊर धरती को खल्लो हंय, हि सब यीशु को नाम पर घुटना टेके;
11 et omnis lingua confiteatur quia Dominus Iesus Christus in gloria est Dei Patris
अऊर परमेश्वर पिता की महिमा लायी हर एक जीबली यो स्वीकार करेंन कि यीशु मसीहच प्रभु आय।
12 itaque carissimi mei sicut semper oboedistis non ut in praesentia mei tantum sed multo magis nunc in absentia mea cum metu et tremore vestram salutem operamini
येकोलायी हे मोरो प्रियो, जो तरह तुम हमेशा सी आज्ञा मानत आयो हय, वसोच अब भी नहीं केवल मोरो संग रहतो हुयो पर विशेष कर क् अब मोरो दूर रहनो पर भी डरतो अऊर कापतो हुयो अपनो अपनो उद्धार को कार्य पूरो करतो जावो;
13 Deus est enim qui operatur in vobis et velle et perficere pro bona voluntate
कहालीकि परमेश्वरच आय जो अपनो प्रेम को काम ख पूरो करन लायी बिचार डालय हय अऊर ओको भलो उद्देश को अनुसार चलन को बल भी देवय हय।
14 omnia autem facite sine murmurationibus et haesitationibus
सब काम बिना शिकायत अऊर बिना विवाद को करतो रहो,
15 ut sitis sine querella et simplices filii Dei sine reprehensione in medio nationis pravae et perversae inter quos lucetis sicut luminaria in mundo
ताकी तुम निर्दोष होय क भ्रष्ट अऊर पापी लोगों को बीच म परमेश्वर को निष्कलंक सन्तान बन्यो रहो, उन्को बीच म चमको जसो तारा आशमान म चमकय हय,
16 verbum vitae continentes ad gloriam meam in die Christi quia non in vacuum cucurri neque in vacuum laboravi
जब तुम उन्ख जीवन को सन्देश सुनावय हय। तब मोरो जवर मसीह को आवन को दिन पर घमण्ड करन को वजह हो कि मोरो पूरी मेहनत अऊर काम बेकार नहीं गयी।
17 sed et si immolor supra sacrificium et obsequium fidei vestrae gaudeo et congratulor omnibus vobis
यदि मोख तुम्हरो विश्वास रूपी बलिदान अऊर सेवा को संग अपनो खून भी बहानो पड़ेंन, तब भी मय खुश हय, अऊर तुम सब को संग खुशी बाटु हय।
18 id ipsum autem et vos gaudete et congratulamini mihi
वसोच तुम भी खुश रहो अऊर मोरो संग खुशी मनावो।
19 spero autem in Domino Iesu Timotheum cito me mittere ad vos ut et ego bono animo sim cognitis quae circa vos sunt
मोख प्रभु यीशु म आशा हय कि मय तीमुथियुस ख तुम्हरो जवर तुरतच भेजूं, ताकी तुम्हरी खबर सुन्क मोख प्रोत्साहन मिले।
20 neminem enim habeo tam unianimem qui sincera affectione pro vobis sollicitus sit
कहालीकि मोरो जवर दूसरों कोयी लोग नहाय जेको जवर मोरी भावनाये होना, जो शुद्ध मन सी तुम्हरी चिन्ता करे।
21 omnes enim sua quaerunt non quae sunt Christi Iesu
कहालीकि सब अपनो स्वार्थ की खोज म रह्य हंय, नहीं कि यीशु मसीह की।
22 experimentum autem eius cognoscite quoniam sicut patri filius mecum servivit in evangelium
पर ओख त तुम न परख्यो अऊर जान भी लियो हय कि जसो बेटा बाप को संग करय हय, वसोच ओन सुसमाचार को फैलान म मोरो संग सेवा करयो।
23 hunc igitur spero me mittere mox ut videro quae circa me sunt
येकोलायी मोख आशा हय कि जो मोख जसोच मोख जान पड़ेंन कि मोरो संग का होन वालो हय, त मय ओख जल्दी भेज देऊं।
24 confido autem in Domino quoniam et ipse veniam ad vos cito
अऊर मोख प्रभु म भरोसा हय कि मय खुद भी तुम्हरो जवर जल्दी आऊं।
25 necessarium autem existimavi Epafroditum fratrem et cooperatorem et commilitonem meum vestrum autem apostolum et ministrum necessitatis meae mittere ad vos
पर मय न इपफ्रुदीतुस ख जो मोरो भाऊ अऊर सेवक अऊर सहकर्मी योद्धा अऊर तुम्हरो दूत, अऊर जरूरी बातों म मोरी सेवा करन वालो हय, तुम्हरो जवर भेजनो जरूरी समझ्यो।
26 quoniam quidem omnes vos desiderabat et maestus erat propterea quod audieratis illum infirmatum
कहालीकि ओको मन तुम सब म लग्यो हुयो होतो, यो वजह ऊ व्याकुल अऊर चिन्तित रहत होतो कहालीकि तुम न ओकी बीमारी को हाल सुन्यो होतो।
27 nam et infirmatus est usque ad mortem sed Deus misertus est eius non solum autem eius verum etiam et mei ne tristitiam super tristitiam haberem
सचमुच ऊ बीमार भय गयो होतो यहां तक कि मरन पर होतो, पर परमेश्वर न ओको पर दया करी, अऊर केवल ओकोच पर नहीं पर मोरो पर भी कि मोख शोक पर शोक मत होय।
28 festinantius ergo misi illum ut viso eo iterum gaudeatis et ego sine tristitia sim
येकोलायी मय न ओख भेजन को अऊर भी कोशिश करयो कि तुम ओको सी फिर मुलाखात कर क् खुश होय जावो अऊर मोरो भी शोक कम होय जाये।
29 excipite itaque illum cum omni gaudio in Domino et eiusmodi cum honore habetote
येकोलायी तुम प्रभु म ओको सी बहुत खुशी होय क ओको स्वागत करजो, अऊर असो लोगों को आदर करजो,
30 quoniam propter opus Christi usque ad mortem accessit tradens animam suam ut impleret id quod ex vobis deerat erga meum obsequium
कहालीकि ऊ मसीह को काम लायी अपनो जीवो पर जोखिम उठाय क मृत्यु को जवर आय गयो होतो, ताकी जो कमी तुम्हरो तरफ सी मोरी सेवा म भयी ओख पूरो करे।

< Philippenses 2 >