< Iohannem 17 >
1 haec locutus est Iesus et sublevatis oculis in caelum dixit Pater venit hora clarifica Filium tuum ut Filius tuus clarificet te
यीशु नै ये बात कही अर अपणी नजर अकास कान्ही ठाकै कह्या, “हे पिता, वो बखत आण पहोंच्या सै, अपणे बेट्टे की महिमा कर, के बेट्टा भी तेरी महिमा कर सकै,
2 sicut dedisti ei potestatem omnis carnis ut omne quod dedisti ei det eis vitam aeternam (aiōnios )
क्यूँके तन्नै उस ताहीं सारी मानवजात्ति पै हक दिया, के वो सब नै अनन्त जीवन देवै जो तन्नै उस ताहीं सौप्या सै। (aiōnios )
3 haec est autem vita aeterna ut cognoscant te solum verum Deum et quem misisti Iesum Christum (aiōnios )
अर अनन्त जीवन यो सै के वे तुझ, जो के एकमात्र सच्चे परमेसवर अर यीशु मसीह नै जिस ताहीं तन्नै भेज्या सै, जाणै। (aiōnios )
4 ego te clarificavi super terram opus consummavi quod dedisti mihi ut faciam
जो काम तन्नै मेरै ताहीं सौप्या था, उस ताहीं पूरा करकै मन्नै धरती पै तेरी महिमा करी सै।
5 et nunc clarifica me tu Pater apud temet ipsum claritatem quam habui priusquam mundus esset apud te
जो महिमा मेरी तेरे गैल दुनिया की सृष्टि तै पैहल्या थी, इब हे पिता, तू अपणे गेल्या मन्नै भी महिमावान कर।”
6 manifestavi nomen tuum hominibus quos dedisti mihi de mundo tui erant et mihi eos dedisti et sermonem tuum servaverunt
“मन्नै तेरा नाम उन माणसां पै जाहिर करया सै दुनिया म्ह तै जिनताहीं तन्नै छाटकै मेरै ताहीं सौप्या था, वे तेरे थे पर तन्नै उन ताहीं मेरै ताहीं सौप्या सै, अर उननै तेरे वचन का पालन करया सै।”
7 nunc cognoverunt quia omnia quae dedisti mihi abs te sunt
इब जाणगे सै के जो कुछ तन्नै मेरै ताहीं दिया सै, वो सारा तेरी ओड़ तै सै,
8 quia verba quae dedisti mihi dedi eis et ipsi acceperunt et cognoverunt vere quia a te exivi et crediderunt quia tu me misisti
क्यूँके जो बात तन्नै मेरै ताहीं बताई, मन्नै उन ताहीं उनकै धोरै पहोंच्या दी सै, अर उननै उन ताहीं अपणालिया, अर सच म्ह ए जाण लिया सै के मै तेरी ओड़ तै आया सूं, अर उननै बिश्वास भी कर लिया सै के तू ए मेरा भेजण आळा सै।
9 ego pro eis rogo non pro mundo rogo sed pro his quos dedisti mihi quia tui sunt
मै उन खात्तर बिनती करुँ सूं, दुनिया के माणसां कै खात्तर बिनती कोनी करदा पर उन्नैए कै खात्तर करुँ सूं जिन ताहीं तन्नै मेरै ताहीं दिया सै, क्यूँके वे तेरे सै,
10 et mea omnia tua sunt et tua mea sunt et clarificatus sum in eis
अर जो कुछ मेरा सै वो सारा तेरा सै, अर जो तेरा सै वो मेरा सै, अर मन्नै उनके जरिये महिमा पाई सै।
11 et iam non sum in mundo et hii in mundo sunt et ego ad te venio Pater sancte serva eos in nomine tuo quos dedisti mihi ut sint unum sicut et nos
इब मै इस दुनिया म्ह कोनी रहूँगा, अर मै तेरे धोरै आऊँ सूं, पर ये दुनिया म्ह रहवैंगे, हे पवित्र पिता, अपणे नाम की शक्ति तै उनकी रुखाळ कर, जो तन्नै मेरै ताहीं दिया सै, ताके जिस तरियां मै अर तू एक सां, वे भी एक हो सकै।
12 cum essem cum eis ego servabam eos in nomine tuo quos dedisti mihi custodivi et nemo ex his perivit nisi filius perditionis ut scriptura impleatur
जिब मै उनकै गेल्या था, तो मन्नै उन ताहीं तेरे नाम म्ह, जो तन्नै मेरै ताहीं दिया था, उनकी रुखाळ करी, अर उन म्ह तै किसे का नाश कोनी होया, सिवाए उसके जिस ताहीं खोणा जरूरी था, वो भी ज्यांतै के पवित्र ग्रन्थ म्ह जो लिख्या होड़ सच हो।
13 nunc autem ad te venio et haec loquor in mundo ut habeant gaudium meum impletum in semet ipsis
पर इब मै तेरे धोरै आऊँ सूं, अर ये बात दुनिया म्ह रहते होए कहूँ सूं, ताके वे अपणे मनां म्ह मेरे भरपूर आनन्द नै पा सकै।
14 ego dedi eis sermonem tuum et mundus odio eos habuit quia non sunt de mundo sicut et ego non sum de mundo
मन्नै तेरा वचन उन ताहीं पोहोचा दिया सै, अर दुनिया के माणसां नै उनतै बैर करया, क्यूँके जिस तरियां मै इस दुनिया का कोनी, उस्से तरियां वे भी इस दुनिया के कोनी।
15 non rogo ut tollas eos de mundo sed ut serves eos ex malo
मै या बिनती कोनी करदा के उननै तू दुनिया तै लिकाड़ ले, बल्के तू उननै उस शैतान तै बचाए राख।
16 de mundo non sunt sicut et ego non sum de mundo
जिस तरियां मै दुनिया का कोनी, उस्से तरियां वे भी दुनिया के कोनी।
17 sanctifica eos in veritate sermo tuus veritas est
तेरा वचन साच्चा सै, सच कै जरिये तू उननै अलग करण खात्तर समर्पित कर।
18 sicut me misisti in mundum et ego misi eos in mundum
जिस तरियां तन्नै मेरै ताहीं दुनिया म्ह भेज्या, उस्से तरियां मन्नै भी उन ताहीं दुनिया म्ह भेज्या,
19 et pro eis ego sanctifico me ipsum ut sint et ipsi sanctificati in veritate
मै उनकै खात्तर खुद नै तेरी सेवा म्ह समर्पित करुँ सूं, ताके वे भी सच कै खात्तर समर्पित हो जावै।
20 non pro his autem rogo tantum sed et pro eis qui credituri sunt per verbum eorum in me
“मै केवल इन्हे खात्तर बिनती कोनी करदा, पर उन माणसां खात्तर भी जो इनकै वचन कै जरिये मेर पै बिश्वास करैगें,
21 ut omnes unum sint sicut tu Pater in me et ego in te ut et ipsi in nobis unum sint ut mundus credat quia tu me misisti
ताके वे सब एक हों, जिस तरियां हे पिता तू मेरै म्ह सै, अर मै तेरे म्ह सूं, उस्से तरियां वे भी म्हारै म्ह एक हो, जिसतै दुनिया के माणस बिश्वास करै के तन्नै ए मेरै ताहीं भेज्या सै।
22 et ego claritatem quam dedisti mihi dedi eis ut sint unum sicut nos unum sumus
वा महिमा जो तन्नै मेरै ताहीं दी, मन्नै उन ताहीं दी सै, ताके वे उस्से तरियां ए एक होवै जिस तरियां हम एक सा,
23 ego in eis et tu in me ut sint consummati in unum et cognoscat mundus quia tu me misisti et dilexisti eos sicut me dilexisti
मै उन म्ह अर तू मेरे म्ह ताके वे सिध्द होकै एक हो जावै, अर दुनिया नै बेरा पाट्टै के तन्नै ए मेरै ताहीं भेज्या, अर जिस तरियां तन्नै मेरै तै प्यार करया उस्से तरियां उनतै प्यार करया।”
24 Pater quos dedisti mihi volo ut ubi ego sum et illi sint mecum ut videant claritatem meam quam dedisti mihi quia dilexisti me ante constitutionem mundi
हे पिता, मै चाहूँ सूं, के जिन ताहीं तन्नै मेरैताहीं सौप्या सै, जड़ै मै सूं उड़ै वे भी मेरै गेल्या हो, के वे मेरी उस महिमा नै देक्खै जो तन्नै मेरैताहीं दी सै, क्यूँके तन्नै दुनिया नै बणाण तै पैहल्या मेरतै प्यार करया सै।
25 Pater iuste et mundus te non cognovit ego autem te cognovi et hii cognoverunt quia tu me misisti
“हे धार्मिक पिता, दुनिया के माणसां नै तो तेरे ताहीं कोनी जाण्या, पर मन्नै तेरे ताहीं जाण लिया सै, अर मेरे चेल्यां नै भी बेरा पाटग्या के तन्नै ए मेरैताहीं भेज्या सै।
26 et notum feci eis nomen tuum et notum faciam ut dilectio qua dilexisti me in ipsis sit et ego in ipsis
मन्नै तेरे ताहीं उनपै जाहिर करया सै, अर जाहिर होन्दा रहूँगा, के जो प्यार तन्नै मेरतै करया था वोए प्यार उन म्ह बस जावै, अर मै उन म्ह रहूँ।”