< Jeremiæ 22 >
1 haec dicit Dominus descende in domum regis Iuda et loqueris ibi verbum hoc
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “शाह — ए — यहूदाह के घर को जा, और वहाँ ये कलाम सुना
2 et dices audi verbum Domini rex Iuda qui sedes super solium David tu et servi tui et populus tuus qui ingredimini per portas istas
और कह, 'ऐ शाह — ए — यहूदाह जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, तू और तेरे मुलाज़िम और तेरे लोग जो इन दरवाज़ों से दाख़िल होते हैं।
3 haec dicit Dominus facite iudicium et iustitiam et liberate vi oppressum de manu calumniatoris et advenam et pupillum et viduam nolite contristare neque opprimatis inique et sanguinem innocentem ne effundatis in loco isto
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: 'अदालत और सदाक़त के काम करो, और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ; और किसी से बदसुलूकी न करो, और मुसाफ़िर — ओ — यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, इस जगह बेगुनाह का ख़ून न बहाओ।
4 si enim facientes feceritis verbum istud ingredientur per portas domus huius reges sedentes de genere David super thronum eius et ascendentes currus et equos ipsi et servi et populus eorum
क्यूँकि अगर तुम इस पर 'अमल करोगे, तो दाऊद के जानशीन बादशाह रथों पर और घोड़ों पर सवार होकर इस घर के फाटकों से दाख़िल होंगे, बादशाह और उसके मुलाज़िम और उसके लोग।
5 quod si non audieritis verba haec in memet ipso iuravi dicit Dominus quia in solitudinem erit domus haec
लेकिन अगर तुम इन बातों को न सुनोगे, तो ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी ज़ात की क़सम यह घर वीरान हो जाएगा
6 quia haec dicit Dominus super domum regis Iuda Galaad tu mihi caput Libani si non posuero te solitudinem urbes inhabitabiles
क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह के घराने के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगरचे तू मेरे लिए जिल'आद है और लुबनान की चोटी, तो भी मैं यक़ीनन तुझे उजाड़ दूंगा और ग़ैर — आबाद शहर बनाऊँगा।
7 et sanctificabo super te interficientem virum et arma eius et succident electam cedrum tuam et praecipitabunt in ignem
और मैं तेरे ख़िलाफ़ ग़ारतगरों को मुक़र्रर करूँगा, हर एक को उसके हथियारों के साथ, और वह तेरे नफ़ीस देवदारों को काटेंगे और उनको आग में डालेंगे।
8 et pertransibunt gentes multae per civitatem hanc et dicet unusquisque proximo suo quare fecit Dominus sic civitati huic grandi
और बहुत सी क़ौमें इस शहर की तरफ़ से गुज़रेंगी और उनमें से एक दूसरे से कहेगा कि 'ख़ुदावन्द ने इस बड़े शहर से ऐसा क्यूँ किया है?”
9 et respondebunt eo quod dereliquerint pactum Domini Dei sui et adoraverint deos alienos et servierint eis
तब वह जवाब देंगे, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद को छोड़ दिया और ग़ैरमा'बूदों की इबादत और परस्तिश की।
10 nolite flere mortuum neque lugeatis super eum fletu plangite eum qui egreditur quia non revertetur ultra nec videbit terram nativitatis suae
मुर्दे पर न रो, न नौहा करो, मगर उस पर जो चला जाता है ज़ार — ज़ार नाला करो, क्यूँकि वह फिर न आएगा, न अपने वतन को देखेगा।
11 quia haec dicit Dominus ad Sellum filium Iosiae regem Iuda qui regnavit pro Iosia patre suo qui egressus est de loco isto non revertetur huc amplius
क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह सलूम — बिन — यूसियाह के बारे में जो अपने बाप यूसियाह का जानशीन हुआ और इस जगह से चला गया, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “वह फिर इस तरफ़ न आएगा;
12 sed in loco ad quem transtuli eum ibi morietur et terram istam non videbit amplius
बल्कि वह उसी जगह मरेगा, जहाँ उसे ग़ुलाम करके ले गए हैं और इस मुल्क को फिर न देखेगा।”
13 vae qui aedificat domum suam in iniustitia et cenacula sua non in iudicio amicum suum opprimet frustra et mercedem eius non reddet ei
“उस पर अफ़सोस, जो अपने घर को बे — इन्साफ़ी से और अपने बालाख़ानों को ज़ुल्म से बनाता है; जो अपने पड़ोसी से बेगार लेता है, और उसकी मज़दूरी उसे नहीं देता;
14 qui dicit aedificabo mihi domum latam et cenacula spatiosa qui aperit sibi fenestras et facit laquearia cedrina pingitque sinopide
जो कहता है, 'मैं अपने लिए बड़ा मकान और हवादार बालाख़ाना बनाऊँगा, और वह अपने लिए झांझरियाँ बनाता है और देवदार की लकड़ी की छत लगाता हैं और उसे शंगर्फ़ी करता है।
15 numquid regnabis quoniam confers te cedro pater tuus numquid non comedit et bibit et fecit iudicium et iustitiam tunc cum bene erat ei
क्या तू इसीलिए सल्तनत करेगा कि तुझे देवदार के काम का शौक़ है? क्या तेरे बाप ने नहीं खाया — पिया और 'अदालत — ओ — सदाक़त नहीं की जिससे उसका भला हुआ?
16 iudicavit causam pauperis et egeni in bonum suum numquid non ideo quia cognovit me dicit Dominus
उसने ग़रीब और मुहताज का इन्साफ़ किया, इसी से उसका भला हुआ। क्या यही मेरा इरफ़ान न था? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
17 tui vero oculi et cor ad avaritiam et ad sanguinem innocentem fundendum et ad calumniam et ad cursum mali operis
लेकिन तेरी आँखें और तेरा दिल, सिर्फ़ लालच और बेगुनाह का ख़ून बहाने और ज़ुल्म — ओ — सितम पर लगे हैं।”
18 propterea haec dicit Dominus ad Ioachim filium Iosiae regem Iuda non plangent eum vae frater et vae fratres non concrepabunt ei vae domine et vae inclite
इसीलिए ख़ुदावन्द यहूयक़ीम शाह — ए — यहूदाह — बिन — यूसियाह के बारे में यूँ फ़रमाता है कि “उस पर 'हाय मेरे भाई! या हाय बहन!' कह कर मातम नहीं करेंगे, उसके लिए 'हाय आक़ा! या हाय मालिक!' कह कर नौहा नहीं करेंगे।
19 sepultura asini sepelietur putrefactus et proiectus extra portas Hierusalem
उसका दफ़्न गधे के जैसा होगा, उसको घसीटकर येरूशलेम के फाटकों के बाहर फेंक देंगे।”
20 ascende Libanum et clama et in Basan da vocem tuam et clama ad transeuntes quia contriti sunt omnes amatores tui
“तू लुबनान पर चढ़ जा और चिल्ला, और बसन में अपनी आवाज़ बुलन्द कर; और 'अबारीम पर से फ़रियाद कर, क्यूँकि तेरे सब चाहने वाले मारे गए।
21 locutus sum ad te in abundantia tua dixisti non audiam haec est via tua ab adulescentia tua quia non audisti vocem meam
मैंने तेरी इक़बालमन्दी के दिनों में तुझ से कलाम किया, लेकिन तूने कहा, 'मैं न सुनूँगी। तेरी जवानी से तेरी यही चाल है कि तू मेरी आवाज़ को नहीं सुनती।
22 omnes pastores tuos pascet ventus et amatores tui in captivitatem ibunt et tunc confunderis et erubesces ab omni malitia tua
एक आँधी तेरे चरवाहों को उड़ा ले जाएगी, और तेरे आशिक़ ग़ुलामी में जाएँगे; तब तू अपनी सारी शरारत के लिए शर्मसार और पशेमान होगी।
23 quae sedes in Libano et nidificas in cedris quomodo congemuisti cum venissent tibi dolores quasi dolores parturientis
ऐ लुबनान की बसनेवाली, जो अपना आशियाना देवदारों पर बनाती है, तू कैसी 'आजिज़ होगी, जब तू ज़च्चा की तरह पैदाइश के दर्द में मुब्तिला होगी।”
24 vivo ego dicit Dominus quia si fuerit Iechonias filius Ioachim regis Iuda anulus in manu dextera mea inde avellam eum
'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे तू ऐ शाह — ए — यहूदाह कूनियाह — बिन — यहूयक़ीम मेरे दहने हाथ की अँगूठी होता, तो भी मैं तुझे निकाल फेंकता;
25 et dabo te in manu quaerentium animam tuam et in manu quorum tu formidas faciem et in manu Nabuchodonosor regis Babylonis et in manu Chaldeorum
और मैं तुझ को तेरे जानी दुश्मनों के जिनसे तू डरता है, या'नी शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र और कसदियों के हवाले करूँगा।
26 et mittam te et matrem tuam quae genuit te in terram alienam in qua nati non estis ibique moriemini
हाँ, मैं तुझे और तेरी माँ को जिससे तू पैदा हुआ, ग़ैर मुल्क में जो तुम्हारी ज़ादबूम नहीं है, हाँक दूँगा और तुम वहीं मरोगे।
27 et in terram ad quam ipsi levant animam suam ut revertantur illuc non revertentur
जिस मुल्क में वह वापस आना चाहते हैं, हरगिज़ लौटकर न आएँगे।
28 numquid vas fictile atque contritum vir iste Iechonias numquid vas absque omni voluptate quare abiecti sunt ipse et semen eius et proiecti in terram quam ignoraverunt
क्या यह शख़्स कूनियाह, नाचीज़ टूटा बर्तन है या ऐसा बर्तन जिसे कोई नहीं पूछता? वह और उसकी औलाद क्यूँ निकाल दिए गए और ऐसे मुल्क में जिलावतन किए गए जिसे वह नहीं जानते?
29 terra terra terra audi sermonem Domini
ऐ ज़मीन, ज़मीन, ज़मीन! ख़ुदावन्द का कलाम सुन!
30 haec dicit Dominus scribe virum istum sterilem virum qui in diebus suis non prosperabitur nec enim erit de semine eius vir qui sedeat super solium David et potestatem habeat ultra in Iuda
ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “इस आदमी को बे — औलाद लिखो, जो अपने दिनों में इक़बालमन्दी का मुँह न देखेगा; क्यूँकि उसकी औलाद में से कभी कोई ऐसा इक़बालमन्द न होगा कि दाऊद के तख़्त पर बैठे और यहूदाह पर सल्तनत करे।”