< Isaiæ 64 >

1 utinam disrumperes caelos et descenderes a facie tua montes defluerent
काश कि तू आसमान को फाड़े और उतर आए कि तेरे सामने पहाड़ लरज़िश खाएँ।
2 sicut exustio ignis tabescerent aquae arderent igni ut notum fieret nomen tuum inimicis tuis a facie tua gentes turbarentur
जिस तरह आग सूखी डालियों को जलाती है और पानी आग से जोश मारता है ताकि तेरा नाम तेरे मुख़ालिफ़ों में मशहूर हो और क़ौमें तेरे सामने में लरज़ाँ हों।
3 cum feceris mirabilia non sustinebimus descendisti et a facie tua montes defluxerunt
जिस वक़्त तूने बड़े काम किए जिनके हम मुन्तज़िर न थे, तू उतर आया और पहाड़ तेरे सामने काँप गए।
4 a saeculo non audierunt neque auribus perceperunt oculus non vidit Deus absque te quae praeparasti expectantibus te
क्यूँकि शुरू' ही से न किसी ने सुना, न किसी के कान तक पहुँचा और न आँखों ने तेरे सिवा ऐसे ख़ुदा को देखा, जो अपने इन्तिज़ार करनेवाले के लिए कुछ कर दिखाए।
5 occurristi laetanti et facienti iustitiam in viis tuis recordabuntur tui ecce tu iratus es et peccavimus in ipsis fuimus semper et salvabimur
तू उससे मिलता है जो ख़ुशी से सदाक़त के काम करता है, और उनसे जो तेरी राहों में तुझे याद रखते हैं; देख, तू ग़ज़बनाक हुआ क्यूँकि हम ने गुनाह किया, और मुद्दत तक उसी में रहे; क्या हम नजात पाएँगे?
6 et facti sumus ut inmundus omnes nos quasi pannus menstruatae universae iustitiae nostrae et cecidimus quasi folium universi et iniquitates nostrae quasi ventus abstulerunt nos
और हम तो सब के सब ऐसे हैं जैसे नापाक चीज़ और हमारी तमाम रस्तबाज़ी नापाक लिबास की तरह है। और हम सब पत्ते की तरह कुमला जाते हैं, और हमारी बदकिरदारी आँधी की तरह हम को उड़ा ले जाती है।
7 non est qui invocet nomen tuum qui consurgat et teneat te abscondisti faciem tuam a nobis et adlisisti nos in manu iniquitatis nostrae
और कोई नहीं जो तेरा नाम ले, जो अपने आपको आमादा करे कि तुझ से लिपटा रहे; क्यूँकि हमारी बदकिरदारी की वजह से तू हम से छिपा रहा और हम को पिघला डाला।
8 et nunc Domine pater noster es tu nos vero lutum et fictor noster et opera manuum tuarum omnes nos
तोभी ऐ ख़ुदावन्द, तू हमारा बाप है; हम मिट्टी है और तू हमारा कुम्हार है, और हम सब के सब तेरी दस्तकारी हैं।
9 ne irascaris Domine satis et ne ultra memineris iniquitatis ecce respice populus tuus omnes nos
ऐ ख़ुदावन्द, ग़ज़बनाक न हो और बदकिरदारी को हमेशा तक याद न रख; देख, हम तेरी मिन्नत करते हैं, हम सब तेरे लोग हैं।
10 civitas sancti tui facta est deserta Sion deserta facta est Hierusalem desolata
तेरे पाक शहर वीराने बन गए, सिय्यून सुनसान और येरूशलेम वीरान है।
11 domus sanctificationis nostrae et gloriae nostrae ubi laudaverunt te patres nostri facta est in exustionem ignis et omnia desiderabilia nostra versa sunt in ruinas
हमारा ख़ुशनुमा मक़दिस जिसमें हमारे बाप दादा तेरी इबादत करते थे, आग से जलाया गया और हमारी उम्दा चीज़ें बर्बाद हो गईं।
12 numquid super his continebis te Domine tacebis et adfliges nos vehementer
ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू इस पर भी अपने आप को रोकेगा? क्या तू ख़ामोश रहेगा और हम को यूँ बदहाल करेगा?

< Isaiæ 64 >