< Isaiæ 29 >

1 vae Arihel Arihel civitas quam circumdedit David additus est annus ad annum sollemnitates evolutae sunt
हाय, अरीएल, अरीएल, हाय उस नगर पर जिसमें दाऊद छावनी किए हुए रहा! वर्ष पर वर्ष जोड़ते जाओ, उत्सव के पर्व अपने-अपने समय पर मनाते जाओ।
2 et circumvallabo Arihel et erit tristis et maerens et erit mihi quasi Arihel
तो भी मैं तो अरीएल को सकेती में डालूँगा, वहाँ रोना पीटना रहेगा, और वह मेरी दृष्टि में सचमुच अरीएल सा ठहरेगा।
3 et circumdabo quasi spheram in circuitu tuo et iaciam contra te aggerem et munimenta ponam in obsidionem tuam
मैं चारों ओर तेरे विरुद्ध छावनी करके तुझे कोटों से घेर लूँगा, और तेरे विरुद्ध गढ़ भी बनाऊँगा।
4 humiliaberis de terra loqueris et de humo audietur eloquium tuum et erit quasi pythonis de terra vox tua et de humo eloquium tuum mussitabit
तब तू गिराकर भूमि में डाला जाएगा, और धूल पर से बोलेगा, और तेरी बात भूमि से धीमी-धीमी सुनाई देगी; तेरा बोल भूमि पर से प्रेत का सा होगा, और तू धूल से गुनगुनाकर बोलेगा।
5 et erit sicut pulvis tenuis multitudo ventilantium te et sicut favilla pertransiens multitudo eorum qui contra te praevaluerunt
तब तेरे परदेशी बैरियों की भीड़ सूक्ष्म धूल के समान, और उन भयानक लोगों की भीड़ भूसे के समान उड़ाई जाएगी।
6 eritque repente confestim a Domino exercituum visitabitur in tonitru et commotione terrae et voce magna turbinis et tempestatis et flammae ignis devorantis
सेनाओं का यहोवा अचानक बादल गरजाता, भूमि को कँपाता, और महाध्वनि करता, बवण्डर और आँधी चलाता, और नाश करनेवाली अग्नि भड़काता हुआ उसके पास आएगा।
7 et erit sicut somnium visionis nocturnae multitudo omnium gentium quae dimicaverunt contra Arihel et omnes qui militaverunt et obsederunt et praevaluerunt adversus eam
और जातियों की सारी भीड़ जो अरीएल से युद्ध करेगी, और जितने लोग उसके और उसके गढ़ के विरुद्ध लड़ेंगे और उसको सकेती में डालेंगे, वे सब रात के देखे हुए स्वप्न के समान ठहरेंगे।
8 et sicuti somniat esuriens et comedit cum autem fuerit expertus vacua est anima eius et sicut somniat sitiens et bibit et postquam fuerit expergefactus lassus adhuc sitit et anima eius vacua est sic erit multitudo omnium gentium quae dimicaverunt contra montem Sion
और जैसा कोई भूखा स्वप्न में तो देखता है कि वह खा रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका पेट भूखा ही है, या कोई प्यासा स्वप्न में देखें की वह पी रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका गला सूखा जाता है और वह प्यासा मर रहा है; वैसी ही उन सब जातियों की भीड़ की दशा होगी जो सिय्योन पर्वत से युद्ध करेंगी।
9 obstupescite et admiramini fluctuate et vacillate inebriamini et non a vino movemini et non ebrietate
ठहर जाओ और चकित हो! भोग-विलास करो और अंधे हो जाओ! वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं, वे डगमगाते तो हैं, परन्तु मदिरा पीने से नहीं!
10 quoniam miscuit vobis Dominus spiritum soporis claudet oculos vestros prophetas et principes vestros qui vident visiones operiet
१०यहोवा ने तुम को भारी नींद में डाल दिया है और उसने तुम्हारी नबीरूपी आँखों को बन्द कर दिया है और तुम्हारे दर्शीरूपी सिरों पर परदा डाला है।
11 et erit vobis visio omnium sicut verba libri signati quem cum dederint scienti litteras dicent lege istum et respondebit non possum signatus est enim
११इसलिए सारे दर्शन तुम्हारे लिये एक लपेटी और मुहरबन्द की हुई पुस्तक की बातों के समान हैं, जिसे कोई पढ़े-लिखे मनुष्य को यह कहकर दे, “इसे पढ़”, और वह कहे, “मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि इस पर मुहरबन्द की हुई है।”
12 et dabitur liber nescienti litteras diceturque ei lege et respondebit nescio litteras
१२तब वही पुस्तक अनपढ़ को यह कहकर दी जाए, “इसे पढ़,” और वह कहे, “मैं तो अनपढ़ हूँ।”
13 et dixit Dominus eo quod adpropinquat populus iste ore suo et labiis suis glorificat me cor autem eius longe est a me et timuerunt me mandato hominum et doctrinis
१३प्रभु ने कहा, “ये लोग जो मुँह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझसे दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं,
14 ideo ecce ego addam ut admirationem faciam populo huic miraculo grandi et stupendo peribit enim sapientia a sapientibus eius et intellectus prudentium eius abscondetur
१४इस कारण सुन, मैं इनके साथ अद्भुत काम वरन् अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूँगा; तब इनके बुद्धिमानों की बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणों की प्रवीणता जाती रहेगी।”
15 vae qui profundi estis corde ut a Domino abscondatis consilium quorum sunt in tenebris opera et dicunt quis videt nos et quis novit nos
१५हाय उन पर जो अपनी युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपने काम अंधेरे में करके कहते हैं, “हमको कौन देखता है? हमको कौन जानता है?”
16 perversa est haec vestra cogitatio quasi lutum contra figulum cogitet et dicat opus factori suo non fecisti me et figmentum dicat fictori suo non intellegis
१६तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपने कर्ता के विषय कहे “उसने मुझे नहीं बनाया,” या रची हुई वस्तु अपने रचनेवाले के विषय कहे, “वह कुछ समझ नहीं रखता?”
17 nonne adhuc in modico et in brevi convertetur Libanus in Chermel et Chermel in saltum reputabitur
१७क्या अब थोड़े ही दिनों के बीतने पर लबानोन फिर फलदाई बारी न बन जाएगा, और फलदाई बारी जंगल न गिनी जाएगी?
18 et audient in die illa surdi verba libri et de tenebris et caligine oculi caecorum videbunt
१८उस समय बहरे पुस्तक की बातें सुनने लगेंगे, और अंधे जिन्हें अभी कुछ नहीं सूझता, वे देखने लगेंगे।
19 et addent mites in Domino laetitiam et pauperes homines in Sancto Israhel exultabunt
१९नम्र लोग यहोवा के कारण फिर आनन्दित होंगे, और दरिद्र मनुष्य इस्राएल के पवित्र के कारण मगन होंगे।
20 quoniam defecit qui praevalebat consummatus est inlusor et succisi sunt omnes qui vigilabant super iniquitatem
२०क्योंकि उपद्रवी फिर न रहेंगे और ठट्ठा करनेवालों का अन्त होगा, और जो अनर्थ करने के लिये जागते रहते हैं,
21 qui peccare faciebant homines in verbo et arguentem in porta subplantabant et declinaverunt frustra a iusto
२१जो मनुष्यों को बातों में फँसाते हैं, और जो सभा में उलाहना देते उनके लिये फंदा लगाते, और धर्म को व्यर्थ बात के द्वारा बिगाड़ देते हैं, वे सब मिट जाएँगे।
22 propter hoc haec dicit Dominus ad domum Iacob qui redemit Abraham non modo confundetur Iacob nec modo vultus eius erubescet
२२इस कारण अब्राहम का छुड़ानेवाला यहोवा, याकूब के घराने के विषय यह कहता है, “याकूब को फिर लज्जित होना न पड़ेगा, उसका मुख फिर नीचा न होगा।
23 sed cum viderit filios suos opera manuum mearum in medio sui sanctificantes nomen meum et sanctificabunt Sanctum Iacob et Deum Israhel praedicabunt
२३क्योंकि जब उसके सन्तान मेरा काम देखेंगे, जो मैं उनके बीच में करूँगा, तब वे मेरे नाम को पवित्र ठहराएँगे, वे याकूब के पवित्र को पवित्र मानेंगे, और इस्राएल के परमेश्वर का अति भय मानेंगे।
24 et scient errantes spiritu intellectum et mussitatores discent legem
२४उस समय जिनका मन भटका हो वे बुद्धि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वह शिक्षा ग्रहण करेंगे।”

< Isaiæ 29 >