< Corinthios Ii 2 >

1 statui autem hoc ipse apud me ne iterum in tristitia venirem ad vos
मन्नै अपणे मन म्ह न्यू ठान लिया था, के दुबारा थारे धोरै ओड़ै आकै थमनै दुख ना देऊँ।
2 si enim ego contristo vos et quis est qui me laetificet nisi qui contristatur ex me
क्यूँके जै मै थमनै उदास करुँ, तो थारे अलावा मन्नै आनन्द देण आळा कोए कोनी रह्या, सिर्फ थमे सों, जिस ताहीं मन्नै उदास करया।
3 et hoc ipsum scripsi ut non cum venero tristitiam super tristitiam habeam de quibus oportuerat me gaudere confidens in omnibus vobis quia meum gaudium omnium vestrum est
अर मन्नै याए बात थारे तै ज्यांतै लिक्खी के कदे इसा ना हो के मेरै आण पै, जिनतै मन्नै आनन्द मिलणा चाहिये, मै उनतै उदास होऊँ; क्यूँके थम सारया पै मन्नै इस बात का भरोस्सा सै, के जो मेरा आनन्द सै, वोए थम सारया का भी सै।
4 nam ex multa tribulatione et angustia cordis scripsi vobis per multas lacrimas non ut contristemini sed ut sciatis quam caritatem habeo abundantius in vobis
बड़े क्ळेश अर दुखी मन तै मन्नै घणेए आँसू बहा-बहाकै थारे ताहीं चिट्ठी लिखी, ज्यांतै न्ही के थम उदास होवो पर ज्यांतै के थम उस घणे प्यार नै जाण ल्यो, जो मन्नै थारे तै सै।
5 si quis autem contristavit non me contristavit sed ex parte ut non onerem omnes vos
अर जै किसे नै उदास करया सै, तो मेरे ताहीं ए न्ही बल्के थोड़ा-थोड़ा थारे सारया ताहीं उदास करया सै, अर मै उसकी गलतियाँ के बारें म्ह इसतै ज्यादा कुछ और न्ही कहणा चाहन्दा।
6 sufficit illi qui eiusmodi est obiurgatio haec quae fit a pluribus
इसे माणस कै खात्तर या सजा जो सारे बिश्वासी भाईयाँ नै उस ताहीं देई सै, वा भतेरी सै।
7 ita ut e contra magis donetis et consolemini ne forte abundantiori tristitia absorbeatur qui eiusmodi est
ज्यांतै इसतै भला यो सै, के उसका अपराध माफ करो अर उस ताहीं उत्साहित करो, इसा ना हो के वो माणस घणी उदासी म्ह डूब जावै।
8 propter quod obsecro vos ut confirmetis in illum caritatem
इस कारण मै थारे तै बिनती करुँ सूं के उस ताहीं अपणे प्यार का सबूत द्यो।
9 ideo enim et scripsi ut cognoscam experimentum vestrum an in omnibus oboedientes sitis
क्यूँके मन्नै यो ज्यांतै भी लिख्या था के थमनै परख ल्यूँ, के थम मेरी सारी बात्तां नै मानण नै त्यार सो के न्ही।
10 cui autem aliquid donatis et ego nam et ego quod donavi si quid donavi propter vos in persona Christi
जिस ताहीं थम किसे बाबत माफ करो सो, उस ताहीं मै भी माफ करुँ सूं, क्यूँके जिस बात के बारें मन्नै उस ताहीं माफ करया सै, जै वो सच म्ह माफी लायक था, तो मन्नै मसीह ताहीं हाजिर जाणकै उस ताहीं थारे खात्तर माफ करया सै।
11 ut non circumveniamur a Satana non enim ignoramus cogitationes eius
ताके शैतान का म्हारै पै दाँव ना चाल्लै। क्यूँके हम उसके बुरे इराद्यां तै अनजाण कोनी।
12 cum venissem autem Troadem propter evangelium Christi et ostium mihi apertum esset in Domino
जिब मै मसीह का सुसमाचार सुणाण नै त्रोआस नगर म्ह आया, अर प्रभु नै मेरे ताहीं वचन सुणाण खात्तर एक राह खोल दिया।
13 non habui requiem spiritui meo eo quod non invenerim Titum fratrem meum sed valefaciens eis profectus sum in Macedoniam
अपणे बिश्वासी भाई तीतुस ताहीं ओड़ै ना पाकै, मेरै मन नै चैन कोनी मिल्या, ज्यांतै बिश्वासी भाईयाँ तै बिदा होकै मै मकिदुनिया परदेस म्ह बोहड़ ग्या।
14 Deo autem gratias qui semper triumphat nos in Christo Iesu et odorem notitiae suae manifestat per nos in omni loco
पर परमेसवर का धन्यवाद हो, जो मसीह कै साथ म्हारी संगति होण के कारण हमनै जीत कै उत्सव म्ह लिये फिरै सै, इब परमेसवर म्हारे ताहीं खसबूदार इत्र की ढाळ मसीह का ज्ञान फैलाण खात्तर हरेक जगहां इस्तमाल करै सै।
15 quia Christi bonus odor sumus Deo in his qui salvi fiunt et in his qui pereunt
हम परमेसवर कै खात्तर मसीह के जरिये, जळाई गई उस धूप की खस्बू की ढाळ सां, जो उद्धार पाण आळे अर नाश होण आळे दोनुआ कै खात्तर सै, यो परमेसवर का सुसमाचार सै, अर सारे माणसां धोरै फैल्लण लागरया सै।
16 aliis quidem odor mortis in mortem aliis autem odor vitae in vitam et ad haec quis tam idoneus
कितन्याँ कै खात्तर तो मरण कै कारण मौत की गन्ध, अर कितन्याँ कै खात्तर जिन्दगी कै कारण जिन्दगी की खस्बू सां। कोए भी माणस इस काम नै न्ही कर सकता।
17 non enim sumus sicut plurimi adulterantes verbum Dei sed ex sinceritate sed sicut ex Deo coram Deo in Christo loquimur
हम उन बरगे कोनी जो परमेसवर के वचन नै पईसा खात्तर प्रचार करै सै; पर यो जाण सां के परमेसवर नै म्हारे ताहीं भेज्या सै अर मन की सच्चाई तै हम उसका वचन आज्ञाकारिता अर मसीह अधिकार तै सुणावां सां, यो जाणकै के परमेसवर म्हारे ताहीं देक्खै सै।

< Corinthios Ii 2 >