< Psalmorum 94 >
1 Psalmus David, Quarta sabbati. Deus ultionum Dominus: Deus ultionum libere egit.
१हे यहोवा, हे पलटा लेनेवाले परमेश्वर, हे पलटा लेनेवाले परमेश्वर, अपना तेज दिखा!
2 Exaltare qui iudicas terram: redde retributionem superbis.
२हे पृथ्वी के न्यायी, उठ; और घमण्डियों को बदला दे!
3 Usquequo peccatores Domine: usquequo peccatores gloriabuntur:
३हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे?
4 Effabuntur, et loquentur iniquitatem: loquentur omnes, qui operantur iniustitiam?
४वे बकते और ढिठाई की बातें बोलते हैं, सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं।
5 Populum tuum Domine humiliaverunt: et hereditatem tuam vexaverunt.
५हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दुःख देते हैं।
6 Viduam, et advenam interfecerunt: et pupillos occiderunt.
६वे विधवा और परदेशी का घात करते, और अनाथों को मार डालते हैं;
7 Et dixerunt: Non videbit Dominus, nec intelliget Deus Iacob.
७और कहते हैं, “यहोवा न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।”
8 Intelligite insipientes in populo: et stulti aliquando sapite.
८तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खों तुम कब बुद्धिमान बनोगे?
9 Qui plantavit aurem, non audiet? aut qui finxit oculum, non considerat?
९जिसने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिसने आँख रची, क्या वह आप नहीं देखता?
10 Qui corripit gentes, non arguet: qui docet hominem scientiam?
१०जो जाति-जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, क्या वह न सुधारेगा?
11 Dominus scit cogitationes hominum, quoniam vanae sunt.
११यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं।
12 Beatus homo, quem tu erudieris Domine: et de lege tua docueris eum.
१२हे यहोवा, क्या ही धन्य है वह पुरुष जिसको तू ताड़ना देता है, और अपनी व्यवस्था सिखाता है,
13 Ut mitiges ei a diebus malis: donec fodiatur peccatori fovea.
१३क्योंकि तू उसको विपत्ति के दिनों में उस समय तक चैन देता रहता है, जब तक दुष्टों के लिये गड्ढा नहीं खोदा जाता।
14 Quia non repellet Dominus plebem suam: et hereditatem suam non derelinquet.
१४क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा, वह अपने निज भाग को न छोड़ेगा;
15 Quoadusque iustitia convertatur in iudicium: et qui iuxta illam omnes qui recto sunt corde.
१५परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा, और सारे सीधे मनवाले उसके पीछे-पीछे हो लेंगे।
16 Quis consurget mihi adversus malignantes? aut quis stabit mecum adversus operantes iniquitatem?
१६कुकर्मियों के विरुद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा? मेरी ओर से अनर्थकारियों का कौन सामना करेगा?
17 Nisi quia Dominus adiuvit me: paulominus habitasset in inferno anima mea. ()
१७यदि यहोवा मेरा सहायक न होता, तो क्षण भर में मुझे चुपचाप होकर रहना पड़ता।
18 Si dicebam: Motus est pes meus: misericordia tua Domine adiuvabat me.
१८जब मैंने कहा, “मेरा पाँव फिसलने लगा है,” तब हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया।
19 Secundum multitudinem dolorum meorum in corde meo: consolationes tuae laetificaverunt animam meam.
१९जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएँ होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।
20 Numquid adhaeret tibi sedes iniquitatis: qui fingis laborem in praecepto?
२०क्या तेरे और दुष्टों के सिंहासन के बीच संधि होगी, जो कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं?
21 Captabunt in animam iusti: et sanguinem innocentem condemnabunt.
२१वे धर्मी का प्राण लेने को दल बाँधते हैं, और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं।
22 Et factus est mihi Dominus in refugium: et Deus meus in adiutorium spei meae.
२२परन्तु यहोवा मेरा गढ़, और मेरा परमेश्वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है।
23 Et reddet illis iniquitatem ipsorum: et in malitia eorum disperdet eos: disperdet illos Dominus Deus noster.
२३उसने उनका अनर्थ काम उन्हीं पर लौटाया है, और वह उन्हें उन्हीं की बुराई के द्वारा सत्यानाश करेगा। हमारा परमेश्वर यहोवा उनको सत्यानाश करेगा।