< Iacobi 1 >

1 Jacobus, Dei et Domini nostri Jesu Christi servus, duodecim tribubus, quæ sunt in dispersione, salutem.
परमेश्वर को अऊर प्रभु यीशु मसीह को सेवक याकूब को तरफ सी, उन बारा गोत्रों ख जो तितर-बितर हुयो हंय उन्ख नमस्कार।
2 Omne gaudium existimate fratres mei, cum in tentationes varias incideritis:
हे मोरो भाऊवों अऊर बहिनों, जब तुम नाना तरह की परीक्षावों म पड़ो, त येख अपनो आप म बहुत आनन्द कि बात समझो,
3 scientes quod probatio fidei vestræ patientiam operatur.
तुम जानय हय कि तुम्हरो विश्वास ख परख्यो जानो सी धीरज तैयार होवय हय।
4 Patientia autem opus perfectum habet: ut sitis perfecti et integri in nullo deficientes.
पर धीरज ख अपनो पूरो काम करन देवो कि तुम पूरो अऊर सिद्ध होय जावो, अऊर तुम म कोयी बात की कमी नहीं रहे।
5 Si quis autem vestrum indiget sapientia, postulet a Deo, qui dat omnibus affluenter, et non improperat: et dabitur ei.
पर यदि तुम म सी कोयी ख बुद्धि की कमी हय त परमेश्वर सी मांगो, जो अनुग्रह अऊर उदारता सी देवय हय, अऊर ओख दियो जायेंन।
6 Postulet autem in fide nihil hæsitans: qui enim hæsitat, similis est fluctui maris, qui a vento movetur et circumfertur:
पर विश्वास सी मांगे, अऊर कुछ शक मत करो, कहालीकि शक करन वालो समुन्दर की लहर को जसो हय जो हवा सी बहय अऊर उछलय हय।
7 non ergo æstimet homo ille quod accipiat aliquid a Domino.
असो आदमी यो नहीं समझे कि मोख प्रभु सी कुछ मिलेंन,
8 Vir duplex animo inconstans est in omnibus viis suis.
ऊ आदमी शक्की हय अऊर अपनी बातों म अस्थिर हय।
9 Glorietur autem frater humilis in exaltatione sua:
गरीब विश्वासियों जब परमेश्वर तुम्ख ऊचो पद देवय हय तब खुशी मनाये,
10 dives autem in humilitate sua, quoniam sicut flos fœni transibit;
अऊर धनवान आदमी घास को फूल को जसो हय जो नाश होय जावय हय।
11 exortus est enim sol cum ardore, et arefecit fœnum, et flos ejus decidit, et decor vultus ejus deperiit: ita et dives in itineribus suis marcescet.
कहालीकि सूरज निकलतो समय कड़ी धूप पड़य हय अऊर पौधा मुरझाय जावय हय, अऊर ओको फूल झड़ जावय हय अऊर ओकी शोभा कम होत जावय हय। योच तरह धनवान भी अपनो कार्य म चलतो चलतो नाश होय जायेंन।
12 Beatus vir qui suffert tentationem: quoniam cum probatus fuerit, accipiet coronam vitæ, quam repromisit Deus diligentibus se.
धन्य हय ऊ आदमी जो परीक्षा म स्थिर रह्य हय, कहालीकि ऊ खरो निकल क जीवन को ऊ मुकुट पायेंन जेकी प्रतिज्ञा प्रभु न अपनो प्रेम करन वालो सी करी हय।
13 Nemo cum tentatur, dicat quoniam a Deo tentatur: Deus enim intentator malorum est: ipse autem neminem tentat.
परीक्षा की घड़ी म कोयी ख यो नहीं कहनो चाहिये कि परमेश्वर मोरी परीक्षा ले रह्यो हय, कहालीकि बुरी बातों सी परमेश्वर ख कोयी लेनो देनो नहाय। ऊ कोयी की परीक्षा नहीं लेवय।
14 Unusquisque vero tentatur a concupiscentia sua abstractus, et illectus.
पर हर एक आदमी अपनी बुरी इच्छा सी खिच क अऊर फस क परीक्षा म पड़य हय।
15 Deinde concupiscentia cum conceperit, parit peccatum: peccatum vero cum consummatum fuerit, generat mortem.
तब बुरी इच्छा गर्भवती होय क पाप ख जनम देवय हय अऊर जब पाप पूरी रीति सी बढ़ जावय हय त मृत्यु ख पैदा करय हय।
16 Nolite itaque errare, fratres mei dilectissimi.
हे मोरो प्रिय भाऊवों अऊर बहिनों, धोका मत खावो।
17 Omne datum optimum, et omne donum perfectum desursum est, descendens a Patre luminum, apud quem non est transmutatio, nec vicissitudinis obumbratio.
कहालीकि हर एक अच्छो दान अऊर हर एक अच्छो परिपूर्ण उपहार स्वर्ग सीच आवय हय, अऊर ऊ परमेश्वर को द्वारा जेन स्वर्गीय प्रकाश ख बनायो हय, ओख खल्लो लायो जावय हय, ऊ हमेशा बदलतो रहन वाली छाव को जसो नहीं बदलय।
18 Voluntarie enim genuit nos verbo veritatis, ut simus initium aliquod creaturæ ejus.
ओन अपनीच इच्छा सी हम्ख सच को वचन को द्वारा पैदा करयो, ताकि हम ओकी सृष्टि करी हुयी चिजों म सी एक तरह को पहिलो फर हो।
19 Scitis, fratres mei dilectissimi. Sit autem omnis homo velox ad audiendum: tardus autem ad loquendum, et tardus ad iram.
हे मोरो प्रिय भाऊवों अऊर बहिनों, या बात तुम जान लेवो: हर एक आदमी सुनन लायी तत्पर अऊर बोलन म धीमो अऊर गुस्सा म भी धीमो हो,
20 Ira enim viri justitiam Dei non operatur.
कहालीकि आदमी को गुस्सा परमेश्वर को सच्चो उद्देश्य हासिल नहीं कर सकय।
21 Propter quod abjicientes omnem immunditiam, et abundantiam malitiæ, in mansuetudine suscipite insitum verbum, quod potest salvare animas vestras.
येकोलायी पूरी मलिनता अऊर कपट पन की बढ़ती ख दूर कर क्, ऊ वचन ख नम्रता सी स्वीकार कर लेवो जो दिल म बोयो गयो अऊर जो तुम्हरो उद्धार कर सकय हय।
22 Estote autem factores verbi, et non auditores tantum: fallentes vosmetipsos.
केवल सुनन वालो नहीं जो अपनो आप ख धोका देवय हंय पर वचन पर चलन वालो बने।
23 Quia si quis auditor est verbi, et non factor, hic comparabitur viro consideranti vultum nativitatis suæ in speculo:
कहालीकि जो कोयी वचन ख सुनन वालो हय अऊर ओको पर चलन वालो नहीं हो, त ऊ आदमी को जसो हय जो अपनो स्वाभाविक मुंह आरसा म देखय हय।
24 consideravit enim se, et abiit, et statim oblitus est qualis fuerit.
ऊ अपनो आप ख देख क चली जावय अऊर तुरतच भूल जावय हय कि मय कसो होतो।
25 Qui autem perspexerit in legem perfectam libertatis, et permanserit in ea, non auditor obliviosus factus, sed factor operis: hic beatus in facto suo erit.
पर जो आदमी स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करतो रह्य हय, ऊ सुन क भूलय नहीं पर वसोच काम करय हय, येकोलायी परमेश्वर ओको काम म आशीष देयेंन।
26 Si quis autem putat se religiosum esse, non refrenans linguam suam, sed seducens cor suum, hujus vana est religio.
का कोयी अपनो आप ख सच्चो समझय हय? अऊर यदि खुद अपनी जीबली ख वश म नहीं कर सकतो त अपनो आप ख धोका दे रह्यो हय, त ओकी भक्ति बेकार हय।
27 Religio munda et immaculata apud Deum et Patrem, hæc est: visitare pupillos et viduas in tribulatione eorum, et immaculatum se custodire ab hoc sæculo.
हमरो परमेश्वर अऊर बाप को जवर शुद्ध अऊर निर्मल भक्ति यो हय कि अनाथों अऊर विधवावों को कठिनायी म ओकी सुधि ले, अऊर अपनो आप ख जगत सी निष्कलंक रखे।

< Iacobi 1 >