< Lucam 14 >

1 Et factum est cum intraret Iesus in domum cuiusdam principis Pharisæorum sabbato manducare panem, et ipsi observabant eum.
फिरी यीशु सब्ते दे रोजे फरीसियां दे सरदारां चे कुसकी दे घरे रोटी खाणां खाणे तांई गिया: कने सै यीशु जो ढंगे ने ताका दे थे की कोई गलती तोपी सकन।
2 Et ecce homo quidam hydropicus erat ante illum.
ओथु इक माणु था, जिसदे हथ कने पैर सूजी गियो थे।
3 Et respondens Iesus dixit ad Legisperitos, et Pharisæos, dicens: Si licet sabbato curare?
इसा गल्ला पर यीशुऐ व्यवस्था जो सिखाणे बालयां कने फरीसियों ने बोलया, “क्या सब्ते दे रोजे लोकां जो ठीक करणे दी अनुमति व्यवस्था च है, की नी है?”
4 At illi tacuerunt. Ipse vero apprehensum sanavit eum, ac dimisit.
पर सै चुपचाप ही रे। तालू यीशुऐ उस पर हथ रखीकरी ठीक किता, कने जाणा दिता।
5 Et respondens ad illos dixit: Cuius vestrum asinus, aut bos in puteum cadet, et non continuo extrahet illum die sabbati?
कने उना जो बोलया, “मन्नी लिया कि तुसां चे कुसकी दा जागत या दांद सब्ते दे रोजे खुऐ च पेई जा कने उसयो उस रोजे झट बाहर ना कडे?”
6 Et non poterant ad hæc respondere illi.
सै इना गल्लां दा कोई भी जबाब नी देई सके।
7 Dicebat autem et ad invitatos parabolam, intendens quomodo primos accubitus eligerent, dicens ad illos:
तालू उनी दिखया, की सदयो लोक कियां सै जगा चुणी लेंदे जिथू सबते खास लोक बोंदे न, तां यीशुऐ उना जो इक कहाणी सुणाई करी उना ने बोलया,
8 Cum invitatus fueris ad nuptias, non discumbas in primo loco, ne forte honoratior te sit invitatus ab illo,
जालू कोई तिजो बियाये दिया धामा च सदगा, तां तुसां उना खास आसना च मत बोंदा, कुथकी इयां ना हो की उनी तिजो ला भी बड़े खास बंदे जो न्युंद्र दितियो हो।
9 et veniens is, qui te et illum vocavit, dicat tibi: Da huic locum: et tunc incipias cum rubore novissimum locum tenere.
कने जिनी तिजो कने उसयो दोनो जो न्युंद्र दितियो है, सै आई करी तिजो ने बोले, की इसयो जगा दे, तालू तिजो शरमिंदा होईकरी सारयां ला पिच्छे बालिया जगा च बोणा पोऐ।
10 sed cum vocatus fueris, vade, recumbe in novissimo loco: ut, cum venerit qui te invitavit, dicat tibi: Amice, ascende superius. Tunc erit tibi gloria coram simul discumbentibus:
पर जालू तिजो सदगे, तां सारयां ला पिच्छे बालिया जगा जाई करी बेई जा, की जालू सै, जिनी तिजो सदया हे सै ओऐ, कने तिजो ने बोले की हे मित्र, अग्गे जाई करी खास बाली जगा च बैठ; तालू तेरे सोगी बोंणे बालयां दे सामणे तेरी बड़ाई होंणी।
11 quia omnis, qui se exaltat, humiliabitur: et qui se humiliat, exaltabitur.
“क्योंकि जड़ा कोई अपणे आपे जो बडा महान बणांगा, उसयो छोटा किता जाणा; कने जड़ा कोई अपणे आपे जो छोटा बणांगा, सै सबते महान कितया जाणा।”
12 Dicebat autem et ei, qui invitaverat: Cum facis prandium, aut cœnam, noli vocare amicos tuos, neque fratres tuos, neque cognatos, neque vicinos divites: ne forte te et ipsi reinvitent, et fiat tibi retributio.
तालू यीशुऐ अपणे न्युंद्र देणेबाले फरीसियो जो भी बोलया, “जालू तू दिने दा या राती दा खाणां खांगा, तां अपणे दोस्तां या भाईयां या रिश्तेदारां या अमीर पड़ोसियां जो मत सददा, की इयां ना हो, की सै भी तिजो सदन, कने जड़ा तू खाणा खुआया उदा बदला होई जाऐ।”
13 sed cum facis convivium, voca pauperes, debiles, claudos, et cæcos:
“पर जालू तू रोटी खाऐ, तां गरीबां जो, लंगड़यां जो कने अन्नयां जो सदी लियां।
14 et beatus eris, quia non habent retribuere tibi: retribuetur enim tibi in resurrectione iustorum.
तालू तू धन्य होणा, क्योंकि उना बाल तिजो देंणे तांई कुछ नी है, पर जालू धर्मी लोकां दे फिरी जिन्दा होई जाणा तालू परमेश्वरे तुहांजो इदा इनाम देणा।”
15 Hæc cum audisset quidam de simul discumbentibus, dixit illi: Beatus, qui manducabit panem in regno Dei.
उदे सोगी रोटी खाणे बालयां चे इकी ऐ गल्लां सुणिकरी उसयो बोलया, “धन्य है सै, जड़ा परमेश्वरे दे राज्य दिया धाम च शामिल होंगा।”
16 At ipse dixit ei: Homo quidam fecit cœnam magnam, et vocavit multos.
उनी उसयो बोलया, कुनकी माणुऐ बड़ी बडी धाम दिती कने मतयां जो सदया।
17 Et misit servum suum hora cœnæ dicere invitatis ut venirent, quia iam parata sunt omnia.
जालू खाणां तैयार होई गिया, तां उनी अपणे नोकरे जो भेजया कि जिना जो नियुंद्र दितियो उना लोकां जो बोली ओआ, की ओआ, खाणां तैयार है।
18 Et cœperunt simul omnes excusare. Primus dixit ei: Villam emi, et necesse habeo exire, et videre illam: rogo te habe me excusatum.
पर सै सारे दे सारे माफी मंगणा लग्गे, पेहले माणुऐ उसला बोलया, मैं खेतर खरीदया है कने जरूरी है की मैं उसयो दिखें; मैं तिजो ने बिनती करदा है, की मिंजो माफ करी दे।
19 Et alter dixit: Iuga boum emi quinque, et eo probare illa: rogo te habe me excusatum.
दूऐ माणुऐ बोलया, मैं पंज जोड़ी दांद खरिदयो न, कने उना जो परखणा जाणा है; मैं तिजो ने बिनती करदा है की मिंजो माफ करी दे।
20 Et alius dixit: Uxorem duxi, et ideo non possum venire.
इकी होरनी बोलया, की मैं बियाह कितया है, इस तांई मैं नी आई सकदा है।
21 Et reversus servus nunciavit hæc domino suo. Tunc iratus paterfamilias, dixit servo suo: Exi cito in plateas, et vicos civitatis: et pauperes, ac debiles, et cæcos, et claudos introduc huc.
उनी सेवके आई करी अपणे मालिके ने ऐ गल्ल सुणाई। तालू घरे दे मालिके गुस्से च आई करी बोलया, शेहरे दे बजारां कने गलियां च जाई करी झट कंगालां, टुंडे, लंगड़यां कने अन्नयां जो ऐथू लेई ओआ।
22 Et ait servus: Domine, factum est ut imperasti, et adhuc locus est.
सेवके फिरी बोलया, हे मालिक, जियां तू बोलया था, तियां ही कितया है; फिरी भी जगा है।
23 Et ait dominus servo: Exi in vias, et sepes: et compelle intrare, ut impleatur domus mea.
“मालिके सेवके ने बोलया, सड़कां कने बागां च जाई करी लोकां जो मजबूर करी के लेई आऐ ताकि मेरा घर भरुई जा।
24 Dico autem vobis quod nemo virorum illorum, qui vocati sunt, gustabit cœnam meam.
क्योंकि मैं तुसां ने बोलदा है, की पेहले सदयो होए लोकां चे कोई भी मेरिया रोटिया जो नी चखगा।”
25 Ibant autem turbæ multæ cum eo: et conversus dixit ad illos:
कने जालू मती भीड़ यीशुऐ सोगी चलियो थी, तां उनी पिच्छे मुड़ी करी उसला बोलया।
26 Si quis venit ad me, et non odit patrem suum, et matrem, et uxorem, et filios, et fratres, et sorores, adhuc autem et animam suam, non potest meus esse discipulus.
“जड़े लोक मेरे बाल ओंदे न, सै तालू दीकर मेरे चेले नी बणी सकदे, जालू दिकर अपणे माता-पिता कने घरे बाली कने बच्चे कने भाई बेंहण कने अपणे आपे ला जादा प्यारा मिंजो ने नी करदे।”
27 Et qui non baiulat crucem suam, et venit post me, non potest meus esse discipulus.
जड़ा मेरिया बजा ला दुख सेहन कने मरणे तांई तैयार नही है, सै भी मेरा चेला बणने दे लायक नही है।
28 Quis enim ex vobis volens turrim ædificare, non prius sedens computat sumptus, qui necessarii sunt, si habeat ad perficiendum,
“अगर तुसां चे कोई इक बड़ा बड्डा घर बणाणा चांदा हो, तां उनी सबते पेहले बेईकरी इसा गल्ला दा हिसाब लाणा की इसयो बणाणे च कितणा खर्चा ओणा, कने दिखणा की इसयो पूरा करणे तांई पूरा पैसा है की नी।”
29 ne, posteaquam posuerit fundamentum, et non potuerit perficere, omnes, qui vident, incipiant illudere ei,
अगर उनी इयां नी किता, तां उनी जालू नियां पाई करी घरे जो पूरा तैयार नी करी सकणा, तां सारे दिखणे बाले ऐ बोलिकरी उदा मजाक उड़ाणा,
30 dicentes: Quia hic homo cœpit ædificare, et non potuit consummare?
की इनी माणुऐ घर बणाणा तां शुरू किता, पर पूरा बणाई नी सकया?
31 Aut quis rex iturus committere bellum adversus alium regem, non sedens prius cogitat, si possit cum decem millibus occurrere ei, qui cum viginti millibus venit ad se?
“अगर इक राजा दस हजार माणुआं जो लेईकरी दुऐ राजे ने लड़ना चलया हो, जड़ा बी हजार माणुआं जो लेईकरी उस पर हमला करणा ओआ दा हो, तां सबते पेहले बेईकरी इसा गल्ला पर बिचार करे की जड़ा बी हजार लेईकरी मिंजो ने लड़ना ओआ दा है, क्या मैं उदा सामणा करी सकदा है की नी?”
32 alioquin adhuc illo longe agente, legationem mittens rogat ea, quæ pacis sunt.
नितां उदे दूर रेंदे ही, उसला संधी करणे दे बारे च गल्ल बात करणे तांई सै दूतां जो भेजे।
33 Sic ergo omnis ex vobis, qui non renunciat omnibus, quæ possidet, non potest meus esse discipulus.
इयां ही तुसां चे जड़ा कोई अपणा सब कुछ छडी दे, सै ही मेरा चेला होई सकदा है।
34 Bonum est sal. Si autem sal evanuerit, in quo condietur?
लूँण तां खरा होंदा है, पर अगर उदा स्वाद बिगड़ी जा, तां उदा स्वाद कियां नमकीन करणा?
35 Neque in terram, neque in sterquilinium utile est, sed foras mittetur. Qui habet aures audiendi, audiat.
“सै तां ना जमिना दे ना तां खादी दे कम्मे ओंदा है: उसयो तां लोक बाहर फेंकी दिन्दे न। जिस बाल सुणने तांई कन्न न सै ध्यान लाईकरी गल्ला जो सुणे, कने इसा गल्ला जो समझी ले।”

< Lucam 14 >