< Iudicum 12 >
1 Ecce autem in Ephraim orta est seditio. nam transeuntes contra aquilonem, dixerunt ad Iephte: Quare vadens ad pugnam contra filios Ammon, vocare nos noluisti, ut pergeremus tecum? Igitur incendemus domum tuam.
१तब एप्रैमी पुरुष इकट्ठे होकर सापोन को जाकर यिप्तह से कहने लगे, “जब तू अम्मोनियों से लड़ने को गया तब हमें संग चलने को क्यों नहीं बुलवाया? हम तेरा घर तुझ समेत जला देंगे।”
2 Quibus ille respondit: Disceptatio erat mihi et populo meo contra filios Ammon vehemens: vocavique vos, ut præberetis mihi auxilium, et facere noluistis.
२यिप्तह ने उनसे कहा, “मेरा और मेरे लोगों का अम्मोनियों से बड़ा झगड़ा हुआ था; और जब मैंने तुम से सहायता माँगी, तब तुम ने मुझे उनके हाथ से नहीं बचाया।
3 Quod cernens posui animam meam in manibus meis, transivique ad filios Ammon, et tradidit eos Dominus in manus meas. Quid commerui, ut adversum me consurgatis in prælium?
३तब यह देखकर कि तुम मुझे नहीं बचाते मैं अपने प्राणों को हथेली पर रखकर अम्मोनियों के विरुद्ध चला, और यहोवा ने उनको मेरे हाथ में कर दिया; फिर तुम अब मुझसे लड़ने को क्यों चढ़ आए हो?”
4 Vocatis itaque ad se cunctis viris Galaad, pugnabat contra Ephraim: percusseruntque viri Galaad Ephraim, quia dixerat: Fugitivus est Galaad de Ephraim, et habitat in medio Ephraim et Manasse.
४तब यिप्तह गिलाद के सब पुरुषों को इकट्ठा करके एप्रैम से लड़ा, एप्रैम जो कहता था, “हे गिलादियों, तुम तो एप्रैम और मनश्शे के बीच रहनेवाले एप्रैमियों के भगोड़े हो,” और गिलादियों ने उनको मार लिया।
5 Occupaveruntque Galaaditæ vada Iordanis, per quæ Ephraim reversurus erat. Cumque venisset ad ea de Ephraim numero, fugiens, atque dixisset: Obsecro ut me transire permittatis: dicebant ei Galaaditæ: Numquid Ephrathæus es? quo dicente: Non sum:
५और गिलादियों ने यरदन का घाट उनसे पहले अपने वश में कर लिया। और जब कोई एप्रैमी भगोड़ा कहता, “मुझे पार जाने दो,” तब गिलाद के पुरुष उससे पूछते थे, “क्या तू एप्रैमी है?” और यदि वह कहता, “नहीं,”
6 interrogabant eum: Dic ergo Scibboleth, quod interpretatur Spica. Qui respondebat, Sibboleth: eadem littera spicam exprimere non valens. Statimque apprehensum iugulabant in ipso Iordanis transitu. Et ceciderunt in illo tempore de Ephraim quadraginta duo millia.
६तो वे उससे कहते, “अच्छा, शिब्बोलेत कह,” और वह कहता, “सिब्बोलेत,” क्योंकि उससे वह ठीक से बोला नहीं जाता था; तब वे उसको पकड़कर यरदन के घाट पर मार डालते थे। इस प्रकार उस समय बयालीस हजार एप्रैमी मारे गए।
7 Iudicavit itaque Iephte Galaadites Israel sex annis: et mortuus est, ac sepultus in civitate sua Galaad.
७यिप्तह छः वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब यिप्तह गिलादी मर गया, और उसको गिलाद के किसी नगर में मिट्टी दी गई।
8 Post hunc iudicavit Israel Abesan de Bethlehem:
८उसके बाद बैतलहम का निवासी इबसान इस्राएल का न्याय करने लगा।
9 qui habuit triginta filios, et totidem filias, quas emittens foras, maritis dedit, et eiusdem numeri filiis suis accepit uxores, introducens in domum suam. Qui septem annis iudicavit Israel.
९और उसके तीस बेटे हुए; और उसने अपनी तीस बेटियाँ बाहर विवाह दीं, और बाहर से अपने बेटों का विवाह करके तीस बहू ले आया। और वह इस्राएल का न्याय सात वर्ष तक करता रहा।
10 mortuusque est, ac sepultus in Bethlehem.
१०तब इबसान मर गया, और उसको बैतलहम में मिट्टी दी गई।
11 Cui successit Ahialon Zabulonites: et iudicavit Israel decem annis:
११उसके बाद जबूलूनी एलोन इस्राएल का न्याय करने लगा; और वह इस्राएल का न्याय दस वर्ष तक करता रहा।
12 mortuusque est, ac sepultus in Zabulon.
१२तब एलोन जबूलूनी मर गया, और उसको जबूलून के देश के अय्यालोन में मिट्टी दी गई।
13 Post hunc iudicavit Israel Abdon, filius Illel Pharathonites:
१३उसके बाद पिरातोनी हिल्लेल का पुत्र अब्दोन इस्राएल का न्याय करने लगा।
14 qui habuit quadraginta filios, et triginta ex eis nepotes, ascendentes super septuaginta pullos asinarum, et iudicavit Israel octo annis:
१४और उसके चालीस बेटे और तीस पोते हुए, जो गदहियों के सत्तर बच्चों पर सवार हुआ करते थे। वह आठ वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा।
15 mortuusque est, ac sepultus in Pharathon terræ Ephraim, in monte Amalec.
१५तब पिरातोनी हिल्लेल का पुत्र अब्दोन मर गया, और उसको एप्रैम के देश के पिरातोन में, जो अमालेकियों के पहाड़ी देश में है, मिट्टी दी गई।