< Deuteronomii 24 >
1 Si acceperit homo uxorem, et habuerit eam, et non invenerit gratiam ante oculos eius propter aliquam fœditatem: scribet libellum repudii, et dabit in manu illius, et dimittet eam de domo sua.
१“यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उससे अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपने घर से निकाल दे।
2 Cumque egressa alterum maritum duxerit,
२और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरुष की हो सकती है।
3 et ille quoque oderit eam, dederitque ei libellum repudii, et dimiserit de domo sua, vel certe mortuus fuerit:
३परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरुष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ में देकर उसे अपने घर से निकाल दे, या वह दूसरा पुरुष जिसने उसको अपनी स्त्री कर लिया हो मर जाए,
4 non poterit prior maritus recipere eam in uxorem: quia polluta est, et abominabilis facta est coram Domino: ne peccare facias Terram tuam, quam Dominus Deus tuus tradiderit tibi possidendam.
४तो उसका पहला पति, जिसने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपनी पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी न बनाना।
5 Cum acceperit homo nuper uxorem, non procedet ad bellum, nec ei quippiam necessitatis iniungetur publicæ, sed vacabit absque culpa domi suæ, ut uno anno lætetur cum uxore sua.
५“जिस पुरुष का हाल ही में विवाह हुआ हो, वह सेना के साथ न जाए और न किसी काम का भार उस पर डाला जाए; वह वर्ष भर अपने घर में स्वतंत्रता से रहकर अपनी ब्याही हुई स्त्री को प्रसन्न करता रहे।
6 Non accipies loco pignoris inferiorem, et superiorem molam: quia animam suam opposuit tibi.
६“कोई मनुष्य चक्की को या उसके ऊपर के पाट को बन्धक न रखे; क्योंकि वह तो मानो प्राण ही को बन्धक रखना है।
7 Si deprehensus fuerit homo solicitans fratrem suum de filiis Israel, et vendito eo acceperit pretium, interficietur, et auferes malum de medio tui.
७“यदि कोई अपने किसी इस्राएली भाई को दास बनाने या बेच डालने के विचार से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपने मध्य में से दूर करना।
8 Observa diligenter ne incurras plagam lepræ, sed facies quæcumque docuerint te sacerdotes Levitici generis iuxta id, quod præcepi eis, et imple sollicite.
८“कोढ़ की व्याधि के विषय में चौकस रहना, और जो कुछ लेवीय याजक तुम्हें सिखाएँ उसी के अनुसार यत्न से करने में चौकसी करना; जैसी आज्ञा मैंने उनको दी है वैसा करने में चौकसी करना।
9 Mementote quæ fecerit Dominus Deus vester Mariæ in via cum egrederemini de Ægypto.
९स्मरण रख कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने, जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तब मार्ग में मिर्याम से क्या किया।
10 Cum repetes a proximo tuo rem aliquam, quam debet tibi, non ingredieris domum eius ut pignus auferas:
१०“जब तू अपने किसी भाई को कुछ उधार दे, तब बन्धक की वस्तु लेने के लिये उसके घर के भीतर न घुसना।
11 sed stabis foris, et ille tibi proferet quod habuerit.
११तू बाहर खड़ा रहना, और जिसको तू उधार दे वही बन्धक की वस्तु को तेरे पास बाहर ले आए।
12 sin autem pauper est, non pernoctabit apud te pignus,
१२और यदि वह मनुष्य कंगाल हो, तो उसका बन्धक अपने पास रखे हुए न सोना;
13 sed statim reddes ei ante solis occasum: ut dormiens in vestimento suo, benedicat tibi, et habeas iustitiam coram Domino Deo tuo.
१३सूर्य अस्त होते-होते उसे वह बन्धक अवश्य फेर देना, इसलिए कि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सो सके और तुझे आशीर्वाद दे; और यह तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में धार्मिकता का काम ठहरेगा।
14 Non negabis mercedem indigentis, et pauperis fratris tui, sive advenæ, qui tecum moratur in terra, et intra portas tuas est:
१४“कोई मजदूर जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाइयों में से हो चाहे तेरे देश के फाटकों के भीतर रहनेवाले परदेशियों में से हो, उस पर अंधेर न करना;
15 sed eadem die reddes ei pretium laboris sui ante solis occasum, quia pauper est, et ex eo sustentat animam suam: ne clamet contra te ad Dominum, et reputetur tibi in peccatum.
१५यह जानकर कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने ही के दिन सूर्यास्त से पहले तू उसकी मजदूरी देना; ऐसा न हो कि वह तेरे कारण यहोवा की दुहाई दे, और तू पापी ठहरे।
16 Non occidentur patres pro filiis, nec filii pro patribus, sed unusquisque pro peccato suo morietur.
१६“पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।
17 Non pervertes iudicium advenæ et pupilli, nec auferes pignoris loco viduæ vestimentum.
१७“किसी परदेशी मनुष्य या अनाथ बालक का न्याय न बिगाड़ना, और न किसी विधवा के कपड़े को बन्धक रखना;
18 Memento quod servieris in Ægypto, et eruerit te Dominus Deus tuus inde. Idcirco præcipio tibi ut facias hanc rem.
१८और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र में दास था, और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे वहाँ से छुड़ा लाया है; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ।
19 Quando messueris segetem in agro tuo, et oblitus manipulum reliqueris, non reverteris ut tollas illum: sed advenam, et pupillum, et viduam auferre patieris, ut benedicat tibi Dominus Deus tuus in omni opere manuum tuarum.
१९“जब तू अपने पक्के खेत को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौट जाना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये पड़ा रहे; इसलिए कि परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझको आशीष दे।
20 Si fruges collegeris olivarum, quidquid remanserit in arboribus, non reverteris ut colligas: sed relinques advenæ, pupillo, ac viduæ.
२०जब तू अपने जैतून के वृक्ष को झाड़े, तब डालियों को दूसरी बार न झाड़ना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये रह जाए।
21 Si vindemiaveris vineam tuam, non colliges remanentes racemos, sed cedent in usus advenæ, pupilli, ac viduæ.
२१जब तू अपनी दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना-दाना न तोड़ लेना; वह परदेशी, अनाथ और विधवा के लिये रह जाए।
22 Memento quod et tu servieris in Ægypto, et idcirco præcipio tibi ut facias hanc rem.
२२और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र देश में दास था; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ।