< Danihelis Prophetæ 9 >

1 In anno primo Darii filii Assueri de semine Medorum, qui imperavit super regnum Chaldæorum:
मादी क्षयर्ष का पुत्र दारा, जो कसदियों के देश पर राजा ठहराया गया था,
2 Anno uno regni eius, ego Daniel intellexi in libris numerum annorum, de quo factus est sermo Domini ad Ieremiam prophetam, ut complerentur desolationis Ierusalem septuaginta anni.
उसके राज्य के पहले वर्ष में, मुझ दानिय्येल ने शास्त्र के द्वारा समझ लिया कि यरूशलेम की उजड़ी हुई दशा यहोवा के उस वचन के अनुसार, जो यिर्मयाह नबी के पास पहुँचा था, कुछ वर्षों के बीतने पर अर्थात् सत्तर वर्ष के बाद पूरी हो जाएगी।
3 Et posui faciem meam ad Dominum Deum meum rogare et deprecari in ieiuniis, sacco, et cinere.
तब मैं अपना मुख प्रभु परमेश्वर की ओर करके गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करने लगा, और उपवास कर, टाट पहन, राख में बैठकर विनती करने लगा।
4 Et oravi Dominum Deum meum, et confessus sum, et dixi: Obsecro Domine Deus magne et terribilis, custodiens pactum, et misericordiam diligentibus te, et custodientibus mandata tua.
मैंने अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार प्रार्थना की और पाप का अंगीकार किया, “हे प्रभु, तू महान और भययोग्य परमेश्वर है, जो अपने प्रेम रखने और आज्ञा माननेवालों के साथ अपनी वाचा को पूरा करता और करुणा करता रहता है,
5 Peccavimus, iniquitatem fecimus, impie egimus, et recessimus: et declinavimus a mandatis tuis, ac iudiciis.
हम लोगों ने तो पाप, कुटिलता, दुष्टता और बलवा किया है, और तेरी आज्ञाओं और नियमों को तोड़ दिया है।
6 Non obedivimus servis tuis prophetis, qui locuti sunt in nomine tuo regibus nostris, principibus nostris, patribus nostris, omnique populo terræ.
और तेरे जो दास नबी लोग, हमारे राजाओं, हाकिमों, पूर्वजों और सब साधारण लोगों से तेरे नाम से बातें करते थे, उनकी हमने नहीं सुनी।
7 Tibi Domine iustitia: nobis autem confusio faciei, sicut est hodie viro Iuda, et habitatoribus Ierusalem, et omni Israel, his qui prope sunt, et his qui procul in universis terris, ad quas eiecisti eos propter iniquitates eorum, in quibus peccaverunt in te.
हे प्रभु, तू धर्मी है, परन्तु हम लोगों को आज के दिन लज्जित होना पड़ता है, अर्थात् यरूशलेम के निवासी आदि सब यहूदी, क्या समीप क्या दूर के सब इस्राएली लोग जिन्हें तूने उस विश्वासघात के कारण जो उन्होंने तेरे साथ किया था, देश-देश में तितर-बितर कर दिया है, उन सभी को लज्जित होना पड़ता है।
8 Domine nobis confusio faciei, regibus nostris, principibus nostris, et patribus nostris, qui peccaverunt.
हे यहोवा, हम लोगों ने अपने राजाओं, हाकिमों और पूर्वजों समेत तेरे विरुद्ध पाप किया है, इस कारण हमको लज्जित होना पड़ता है।
9 Tibi autem Domino Deo nostro misericordia, et propitiatio, quia recessimus a te:
परन्तु, यद्यपि हम अपने परमेश्वर प्रभु से फिर गए, तो भी तू दया का सागर और क्षमा की खान है।
10 et non audivimus vocem Domini Dei nostri ut ambularemus in lege eius, quam posuit nobis per servos suos prophetas.
१०हम तो अपने परमेश्वर यहोवा की शिक्षा सुनने पर भी उस पर नहीं चले जो उसने अपने दास नबियों से हमको सुनाई।
11 Et omnis Israel prævaricati sunt legem tuam, et declinaverunt ne audirent vocem tuam, et stillavit super nos maledictio, et detestatio, quæ scripta est in libro Moysi servi Dei, quia peccavimus ei.
११वरन् सब इस्राएलियों ने तेरी व्यवस्था का उल्लंघन किया, और ऐसे हट गए कि तेरी नहीं सुनी। इस कारण जिस श्राप की चर्चा परमेश्वर के दास मूसा की व्यवस्था में लिखी हुई है, वह श्राप हम पर घट गया, क्योंकि हमने उसके विरुद्ध पाप किया है।
12 Et statuit sermones suos, quos locutus est super nos, et super principes nostros, qui iudicaverunt nos, ut superinduceret in nos magnum malum, quale numquam fuit sub omni cælo, secundum quod factum est in Ierusalem.
१२इसलिए उसने हमारे और हमारे न्यायियों के विषय जो वचन कहे थे, उन्हें हम पर यह बड़ी विपत्ति डालकर पूरा किया है; यहाँ तक कि जैसी विपत्ति यरूशलेम पर पड़ी है, वैसी सारी धरती पर और कहीं नहीं पड़ी।
13 Sicut scriptum est in lege Moysi, omne malum hoc venit super nos: et non rogavimus faciem tuam Domine Deus noster, ut reverteremur ab iniquitatibus nostris, et cogitaremus veritatem tuam.
१३जैसे मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसे ही यह सारी विपत्ति हम पर आ पड़ी है, तो भी हम अपने परमेश्वर यहोवा को मनाने के लिये न तो अपने अधर्म के कामों से फिरे, और न तेरी सत्य बातों पर ध्यान दिया।
14 Et vigilavit Dominus super malitiam, et adduxit eam super nos: iustus Dominus Deus noster in omnibus operibus suis, quæ fecit: non enim audivimus vocem eius.
१४इस कारण यहोवा ने सोच विचार कर हम पर विपत्ति डाली है; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा जितने काम करता है उन सभी में धर्मी ठहरता है; परन्तु हमने उसकी नहीं सुनी।
15 Et nunc Domine Deus noster, qui eduxisti populum tuum de Terra Ægypti in manu forti, et fecisti tibi nomen secundum diem hanc: peccavimus, iniquitatem fecimus.
१५और अब, हे हमारे परमेश्वर, हे प्रभु, तूने अपनी प्रजा को मिस्र देश से, बलवन्त हाथ के द्वारा निकाल लाकर अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जो आज तक प्रसिद्ध है, परन्तु हमने पाप किया है और दुष्टता ही की है।
16 Domine in omnem iustitiam tuam: avertatur obsecro ira tua, et furor tuus a civitate tua Ierusalem, et monte sancto tuo. Propter peccata enim nostra, et iniquitates patrum nostrorum, Ierusalem, et populus tuus in opprobrium sunt omnibus per circuitum nostrum.
१६हे प्रभु, हमारे पापों और हमारे पूर्वजों के अधर्म के कामों के कारण यरूशलेम की और तेरी प्रजा की, और हमारे आस-पास के सब लोगों की ओर से नामधराई हो रही है; तो भी तू अपने सब धार्मिकता के कामों के कारण अपना क्रोध और जलजलाहट अपने नगर यरूशलेम पर से उतार दे, जो तेरे पवित्र पर्वत पर बसा है।
17 Nunc ergo exaudi Deus noster orationem servi tui, et preces eius: et ostende faciem tuam super sanctuarium tuum, quod desertum est propter temetipsum.
१७हे हमारे परमेश्वर, अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर, अपने उजड़े हुए पवित्रस्थान पर अपने मुख का प्रकाश चमका; हे प्रभु, अपने नाम के निमित्त यह कर।
18 Inclina Deus meus aurem tuam, et audi: aperi oculos tuos, et vide desolationem nostram, et civitatem, super quam invocatum est nomen tuum: neque enim in iustificationibus nostris prosternimus preces ante faciem tuam, sed in miserationibus tuis multis:
१८हे मेरे परमेश्वर, कान लगाकर सुन, आँख खोलकर हमारी उजड़ी हुई दशा और उस नगर को भी देख जो तेरा कहलाता है; क्योंकि हम जो तेरे सामने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करते हैं, इसलिए अपने धार्मिकता के कामों पर नहीं, वरन् तेरी बड़ी दया ही के कामों पर भरोसा रखकर करते हैं।
19 Exaudi Domine, placare Domine: attende et fac: ne moreris propter temetipsum Deus meus: quia nomen tuum invocatum est super civitatem, et super populum tuum.
१९हे प्रभु, सुन ले; हे प्रभु, पाप क्षमा कर; हे प्रभु, ध्यान देकर जो करना है उसे कर, विलम्ब न कर; हे मेरे परमेश्वर, तेरा नगर और तेरी प्रजा तेरी ही कहलाती है; इसलिए अपने नाम के निमित्त ऐसा ही कर।”
20 Cumque adhuc loquerer, et orarem, et confiterer peccata mea, et peccata populi mei Israel, et prosternerem preces meas in conspectu Dei mei, pro monte sancto Dei mei:
२०इस प्रकार मैं प्रार्थना करता, और अपने और अपने इस्राएली जातिभाइयों के पाप का अंगीकार करता हुआ, अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख उसके पवित्र पर्वत के लिये गिड़गिड़ाकर विनती करता ही था,
21 Adhuc me loquente in oratione, ecce vir Gabriel, quem videram in visione a principio, cito volans tetigit me in tempore sacrificii vespertini.
२१तब वह पुरुष गब्रिएल जिसे मैंने उस समय देखा जब मुझे पहले दर्शन हुआ था, उसने वेग से उड़ने की आज्ञा पाकर, साँझ के अन्नबलि के समय मुझ को छू लिया; और मुझे समझाकर मेरे साथ बातें करने लगा।
22 Et docuit me, et locutus est mihi, dixitque: Daniel nunc egressus sum ut docerem te, et intelligeres.
२२उसने मुझसे कहा, “हे दानिय्येल, मैं तुझे बुद्धि और प्रवीणता देने को अभी निकल आया हूँ।
23 Ab exordio precum tuarum egressus est sermo: ego autem veni ut indicarem tibi, quia vir desideriorum es: tu ergo animadverte sermonem, et intellige visionem.
२३जब तू गिड़गिड़ाकर विनती करने लगा, तब ही इसकी आज्ञा निकली, इसलिए मैं तुझे बताने आया हूँ, क्योंकि तू अति प्रिय ठहरा है; इसलिए उस विषय को समझ ले और दर्शन की बात का अर्थ जान ले।
24 Septuaginta hebdomades abbreviatæ sunt super populum tuum, et super urbem sanctam tuam ut consummetur prævaricatio, et finem accipiat peccatum, et deleatur iniquitas, et adducatur iustitia sempiterna, et impleatur visio, et prophetia, et ungatur Sanctus sanctorum.
२४“तेरे लोगों और तेरे पवित्र नगर के लिये सत्तर सप्ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्चित किया जाए, और युग-युग की धार्मिकता प्रगट हो; और दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्र स्थान का अभिषेक किया जाए।
25 Scito ergo, et animadverte: Ab exitu sermonis, ut iterum ædificetur Ierusalem, usque ad Christum ducem, hebdomades septem, et hebdomades sexaginta duæ erunt: et rursum ædificabitur platea, et muri in angustia temporum.
२५इसलिए यह जान और समझ ले, कि यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्त प्रधान के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे। फिर बासठ सप्ताहों के बीतने पर चौक और खाई समेत वह नगर कष्ट के समय में फिर बसाया जाएगा।
26 Et post hebdomades sexaginta duas occidetur Christus: et non erit eius populus, qui eum negaturus est. Et civitatem, et sanctuarium dissipabit populus cum duce venturo: et finis eius vastitas, et post finem belli statuta desolatio.
२६और उन बासठ सप्ताहों के बीतने पर अभिषिक्त पुरुष काटा जाएगा: और उसके हाथ कुछ न लगेगा; और आनेवाले प्रधान की प्रजा नगर और पवित्रस्थान को नाश तो करेगी, परन्तु उस प्रधान का अन्त ऐसा होगा जैसा बाढ़ से होता है; तो भी उसके अन्त तक लड़ाई होती रहेगी; क्योंकि उसका उजड़ जाना निश्चय ठाना गया है।
27 Confirmabit autem pactum multis hebdomada una: et in dimidio hebdomadis deficiet hostia et sacrificium: et erit in templo abominatio desolationis: et usque ad consummationem et finem perseverabit desolatio.
२७और वह प्रधान एक सप्ताह के लिये बहुतों के संग दृढ़ वाचा बाँधेगा, परन्तु आधे सप्ताह के बीतने पर वह मेलबलि और अन्नबलि को बन्द करेगा; और कंगूरे पर उजाड़नेवाली घृणित वस्तुएँ दिखाई देंगी और निश्चय से ठनी हुई बात के समाप्त होने तक परमेश्वर का क्रोध उजाड़नेवाले पर पड़ा रहेगा।”

< Danihelis Prophetæ 9 >