< Mattheum 25 >
1 Tunc simile erit regnum cælorum decem virginibus: quæ accipientes lampades suas exierunt obviam sponso, et sponsæ.
“स्वर्ग को राज्य उन दस कुंवारियों को जसो होयेंन जो अपनी दीया पकड़ क दूल्हा सी मिलन लायी निकली।
2 Quinque autem ex eis erant fatuæ, et quinque prudentes:
उन्म पाच मूर्ख अऊर पाच समझदार होती।
3 sed quinque fatuæ, acceptis lampadibus, non sumpserunt oleum secum:
मूर्खो न अपनी दीया त ली, पर अपनो संग तेल नहीं लियो;
4 prudentes vero acceperunt oleum in vasis suis cum lampadibus.
पर समझदारों न अपनी दीया को संग अपनो कुप्पियों म तेल भी भर लियो।
5 Moram autem faciente sponso, dormitaverunt omnes et dormierunt.
जब दूल्हा को आनो म देर भयी, त हि सब नींद सी झुलन लगी अऊर सोय गयी।”
6 Media autem nocte clamor factus est: Ecce sponsus venit, exite obviam ei.
“अरधी रात ख धूम मची: ‘देखो, दूल्हा आय रह्यो हय! ओको सी मिलन लायी चलो।’
7 Tunc surrexerunt omnes virgines illæ, et ornaverunt lampades suas.
तब हि सब कुंवारिया उठ क अपनी दीया ठीक करन लगी।
8 Fatuæ autem sapientibus dixerunt: Date nobis de oleo vestro: quia lampades nostræ extinguuntur.
अऊर मूर्खो न समझदारों सी कह्यो, ‘अपनो तेल म सी कुछ हम्ख भी देवो, कहालीकि हमरो दीया बुझ रह्यो हंय।’
9 Responderunt prudentes, dicentes: Ne forte non sufficiat nobis, et vobis, ite potius ad vendentes, et emite vobis.
पर समझदारों न उत्तर दियो, ‘यो हमरो अऊर तुम्हरो लायी पूरो नहीं होय; भलो त यो हय कि तुम तेल बेचन वालो को जवर जाय क अपनो लायी ले लेवो।’
10 Dum autem irent emere, venit sponsus: et quæ paratæ erant, intraverunt cum eo ad nuptias, et clausa est ianua.
जब हि तेल लेन ख जाय रही होती त दूल्हा आय पहुंच्यो, अऊर जो तैयार होती, हि ओको संग बिहाव को भवन म चली गयी अऊर दरवाजा बन्द कर दियो गयो।”
11 Novissime vero veniunt et reliquæ virgines, dicentes: Domine, Domine, aperi nobis.
“येको बाद हि दूसरी कुंवारिया भी आय क कहन लगी, ‘हे मालिक, हे मालिक, हमरो लायी दरवाजा खोल दे अऊर हम ख अन्दर आवन दे!’
12 At ille respondens, ait: Amen dico vobis, nescio vos.
ओन उत्तर दियो, ‘मय तुम सी सच कहूं हय, मय तुम्ख नहीं जानु।’”
13 Vigilate itaque, quia nescitis diem, neque horam.
येकोलायी “जागतो रहो,” कहालीकि तुम न ऊ दिन ख जानय हय, अऊर न ऊ समय ख।
14 Sicut enim homo peregre proficiscens, vocavit servos suos, et tradidit illis bona sua.
“कहालीकि यो ऊ आदमी को जसो हय जेन परदेश जातो समय अपनो सेवकों ख बुलाय क अपनी जायजाद उन्ख सौंप दियो।
15 Et uni dedit quinque talenta, alii autem duo, alii vero unum, unicuique secundum propriam virtutem, et profectus est statim.
ओन एक ख पाच हजार सोनो को सिक्का दियो, दूसरों ख दोय हजार दियो, अऊर तीसरो ख एक हजार; यानेकि हर एक ख ओकी लायकता को अनुसार दियो, अऊर तब ऊ अपनी यात्रा पर चली गयो।
16 Abiit autem qui quinque talenta acceperat, et operatus est in eis, et lucratus est alia quinque.
तब, जेक पाच हजार को सिक्का मिल्यो होतो, ओन तुरतच जाय क उन्को सी लेन-देन करयो, अऊर पाच हजार सिक्का अऊर कमायो।
17 Similiter et qui duo acceperat, lucratus est alia duo.
योच रीति सी जेक दोय हजार सोनो को सिक्का मिल्यो होतो, ओन भी दोय अऊर कमायो।
18 Qui autem unum acceperat, abiens fodit in terram, et abscondit pecuniam domini sui.
पर जेक एक हजार सोनो को सिक्का मिल्यो होतो, ओन जाय क माटी खोदी, अऊर अपनो मालिक को धन लूकाय दियो।”
19 Post multum vero temporis venit dominus servorum illorum, et posuit rationem cum eis.
“बहुत दिनो को बाद उन सेवकों को मालिक आय क उन्को सी हिसाब लेन लग्यो।
20 Et accedens qui quinque talenta acceperat, obtulit alia quinque talenta, dicens: Domine, quinque talenta tradidisti mihi, ecce alia quinque superlucratus sum.
जो नौकर ख पाच हजार सिक्का मिल्यो होतो, ओन आय क दूसरों पाच हजार सिक्का अऊर लाय क कह्यो, ‘हे मालिक, तय न मोख पाच हजार सिक्का दियो, देख, मय न पाच हजार सिक्का अऊर कमायो हंय।’
21 Ait illi dominus eius: Euge serve bone, et fidelis, quia super pauca fuisti fidelis, super multa te constituam, intra in gaudium domini tui.
ओको मालिक न ओको सी कह्यो, ‘शाबाश, हे अच्छो अऊर विश्वास लायक सेवक, तय थोड़ो म विश्वास लायक रह्यो; मय तोख बहुत धन को अधिकारी बनाऊं। अपनो मालिक की खुशी म सहभागी हो।’”
22 Accessit autem et qui duo talenta acceperat, et ait: Domine, duo talenta tradidisti mihi, ecce alia duo lucratus sum.
अऊर जेक दोय हजार सिक्का मिल्यो होतो, ओन भी आय क कह्यो, हे मालिक, “तय न मोख दोय हजार सिक्का दियो होतो, देख, मय न दोय हजार सिक्का अऊर कमायो।”
23 Ait illi dominus eius: Euge serve bone, et fidelis, quia super pauca fuisti fidelis, super multa te constituam, intra in gaudium domini tui.
ओको मालिक न ओको सी कह्यो, “शाबाश, हे अच्छो अऊर विश्वास लायक सेवक, तय थोड़ो म विश्वास लायक रह्यो; मय तोख बहुत धन को अधिकारी बनाऊं। अपनो स्वामी को खुशी म सहभागी हो।”
24 Accedens autem et qui unum talentum acceperat, ait: Domine, scio quia homo durus es, metis ubi non seminasti, et congregas ubi non sparsisti:
“तब जेक एक हजार सिक्का मिल्यो होतो, ओन आय क कह्यो, ‘हे मालिक, मय तोख जानत होतो कि तय कठोर आदमी हय: तय जित कहीं नहीं बोवय उत काटय हय, अऊर जित नहीं बोवय उत सी जमा करय हय।
25 et timens abii, et abscondi talentum tuum in terra: ecce habes quod tuum est.
येकोलायी मय डर गयो अऊर जाय क तोरो धन माटी म लूकाय दियो। देख, जो तोरो हय, ऊ यो आय।’”
26 Respondens autem dominus eius, dixit ei: Serve male, et piger, sciebas quia meto ubi non semino, et congrego ubi non sparsi:
ओको मालिक न ओख उत्तर दियो, “हे दुष्ट अऊर आलसी सेवक, जब तय यो जानत होतो कि जित मय न फसल नहीं बोयो, उत सी फसल काटू हय, अऊर जित मय न बीज नहीं बोयो उत सी फसल जमा कर लेऊ हय;
27 oportuit ergo te committere pecuniam meam numulariis, et veniens ego recepissem utique quod meum est cum usura.
त तोख समझनो होतो कि मोरो धन व्यापारी ख दे देतो, तब मय आय क अपनो धन ब्याज समेत ले लेतो।
28 Tollite itaque ab eo talentum, et date ei, qui habet decem talenta.
अब, धन ख ओको सी ले लेवो, अऊर जेको जवर दस हजार को सिक्का हंय, ओख दे देवो।
29 Omni enim habenti dabitur, et abundabit: ei autem, qui non habet, et quod videtur habere, auferetur ab eo.
हर एक आदमी लायी जेको जवर कुछ हय, ओख अऊर भी जादा दियो जायेंन; अऊर ओको जवर जादा सी जादा होयेंन: पर जो आदमी को जवर कुछ भी नहाय, यो तक कि ओको जवर जो कुछ भी हय, ऊ ओको सी ले लियो जायेंन।
30 Et inutilem servum eiicite in tenebras exteriores: illic erit fletus, et stridor dentium.
अऊर यो बेकार सेवक ख बाहेर अन्धारो म डाल देवो, जित रोवनो अऊर दात कटरनो होयेंन।”
31 Cum autem venerit Filius hominis in maiestate sua, et omnes angeli cum eo, tunc sedebit super sedem maiestatis suæ:
“जब आदमी को बेटा अपनी महिमा म आयेंन अऊर सब स्वर्गदूत ओको संग आयेंन, त ऊ अपनी महिमा को सिंहासन पर विराजमान होयेंन।
32 et congregabuntur ante eum omnes gentes, et separabit eos ab invicem, sicut pastor segregat oves ab hœdis:
अऊर सब राष्ट्रों को लोगों ख ओको आगु जमा करयो जायेंन; अऊर जसो चरावन वालो मेंढीं ख शेरी सी अलग कर देवय हय, वसोच ऊ उन्ख एक दूसरों सी अलग करेंन।
33 et statuet oves quidem a dextris suis, hœdos autem a sinistris.
ऊ मेंढीं ख अपनो दायो तरफ अऊर शेरी ख बायो तरफ खड़ो करेंन।
34 Tunc dicet Rex his, qui a dextris eius erunt: Venite benedicti Patris mei, possidete paratum vobis regnum a constitutione mundi.
तब राजा अपनो दायो तरफ वालो सी कहेंन, ‘हे मोरो बाप को धन्य लोगों, आवो, ऊ राज्य को अधिकारी होय जावो, जो जगत की सुरूवात सी तुम्हरो लायी तैयार करयो गयो हय।
35 Esurivi enim, et dedistis mihi manducare: sitivi, et dedistis mihi bibere: hospes eram, et collegistis me:
कहालीकि मय भूखो होतो, अऊर तुम्न मोख खान ख दियो; मय प्यासो होतो, अऊर तुम्न मोख पानी पिलायो; मय अनजान होतो, अऊर तुम न मोख अपनो घर म रख्यो;
36 nudus, et cooperuistis me: infirmus, et visitastis me: in carcere eram, et venistis ad me.
मय नंगा होतो, अऊर तुम्न मोख कपड़ा पहिनायो; मय बीमार होतो, अऊर तुम्न मोरी देखभाल करी, मय जेलखाना म होतो, अऊर तुम मोरो सी मिलन आयो।’
37 Tunc respondebunt ei iusti, dicentes: Domine, quando te vidimus esurientem, et pavimus te: sitientem, et dedimus tibi potum?
“तब सच्चो ओख उत्तर देयेंन, ‘हे प्रभु, हम न कब तोख भूखो देख्यो अऊर खिलायो? यां प्यासो देख्यो अऊर पानी पिलायो?
38 quando autem te vidimus hospitem, et collegimus te: aut nudum, et cooperuimus te?
हम न तोख कभी अनजानो देख्यो अऊर अपनो घर म ठहरायो? यां बिना को देख क मोख कपड़ा पहिनायो?
39 aut quando te vidimus infirmum: aut in carcere, et venimus ad te?
हम्न कब तोख बीमार यां जेलखाना म देख्यो अऊर तोरो सी मिलन आयो?’
40 Et respondens Rex, dicet illis: Amen dico vobis, quamdiu fecistis uni ex his fratribus meis minimis, mihi fecistis.
तब राजा उन्ख उत्तर देयेंन, ‘मय तुम सी सच कहू हय कि तुम्न जो मोरो इन छोटो भाऊवों म सी कोयी एक को संग करयो, ऊ मोरोच संग करयो।’
41 Tunc dicet et his, qui a sinistris erunt: Discedite a me maledicti in ignem æternum, qui paratus est diabolo, et angelis eius. (aiōnios )
“तब ऊ बायो तरफ वालो सी कहेंन, ‘हे श्रापित लोगों, मोरो आगु सी ऊ अनन्त आगी म चली जावो, जो शैतान अऊर ओको दूतों लायी तैयार करी गयी हय। (aiōnios )
42 Esurivi enim, et non dedistis mihi manducare: sitivi, et non desistis mihi potum:
कहालीकि मय भूखो होतो, अऊर तुम्न मोख खान ख नहीं दियो; मय प्यासो होतो, अऊर तुम्न मोख पानी नहीं पिलायो;
43 hospes eram, et non collegistis me: nudus, et non cooperuistis me: infirmus, et in carcere, et non visitastis me.
मय अनजानो होतो, अऊर तुम्न मोख अपनो घर म नहीं रख्यो; मय नंगा होतो, अऊर तुम्न मोख कपड़ा नहीं पहिनायो; अऊर मय बीमार अऊर जेलखाना म होतो, अऊर तुम्न मोरी सुधि नहीं ली।’
44 Tunc respondebunt ei et ipsi, dicentes: Domine, quando te vidimus esurientem, aut sitientem, aut hospitem, aut nudum, aut infirmum, aut in carcere, et non ministravimus tibi?
“तब हि उत्तर देयेंन, ‘हे प्रभु, हम्न तोख कब भूखो, प्यासो, अनजान, नंगा, बीमार, यां जेलखाना म देख्यो, अऊर तोरी सेवा नहीं करी?’
45 Tunc respondebit illis dicens: Amen dico vobis: Quamdiu non fecistis uni de minoribus his, nec mihi fecistis.
तब ऊ उन्ख उत्तर देयेंन, ‘मय तुम सी सच कहू हय कि तुम्न जो इन छोटो सी छोटो म सी कोयी एक को संग मदत नहीं करयो, ऊ मोरो संग भी नहीं करयो।’
46 Et ibunt hi in supplicium æternum: iusti autem in vitam æternam. (aiōnios )
अऊर हि अनन्त सजा भोगन लायी लिजायेंन पर न्याय को अनन्त जीवन म सिरेंन।” (aiōnios )