< Mattheum 22 >

1 Et respondens Iesus, dixit iterum in parabolis eis, dicens:
यीशु तब उन्को सी दृष्टान्तों म कहन लग्यो,
2 Simile factum est regnum cælorum homini regi, qui fecit nuptias filio suo.
“स्वर्ग को राज्य की तुलना एक राजा सी कर सकय हय, जेन अपनो बेटा को बिहाव को जेवन दियो।
3 Et misit servos suos vocare invitatos ad nuptias, et nolebant venire.
अऊर ओन बिहाव को जेवन म नेवता वालो ख बुलावन लायी अपनो सेवक ख भेज्यो, पर उन लोगों न बिहाव म आनो नहीं चाह्यो।
4 Iterum misit alios servos, dicens: Dicite invitatis: Ecce prandium meum paravi, tauri mei, et altilia occisa sunt, et omnia parata: venite ad nuptias.
तब ओन अऊर सेवकों ख यो कह्य क भेज्यो, ‘नेवता वालो सी कहो: देखो, मय जेवन तैयार कर दियो हय, मोरो जनावर अऊर पाल्यो पशु काट्यो गयो हंय; अऊर सब कुछ तैयार हय; बिहाव को जेवन म आवो।’
5 Illi autem neglexerunt: et abierunt, alius in villam suam, alius vero ad negotiationem suam:
पर हि अनसुनी कर क् चली गयो: कोयी अपनो खेत ख, कोयी अपनो धन्दा ख।
6 reliqui vero tenuerunt servos eius, et contumeliis affectos occiderunt.
बाकी न ओको सेवकों ख पकड़ क उन्को अपमान करयो अऊर मार डाल्यो।
7 Rex autem cum audisset, iratus est: et missis exercitibus suis, perdidit homicidas illos, et civitatem illorum succendit.
तब राजा ख गुस्सा आयो, अऊर ओन अपनी सेना भेज क उन हत्यारों को नाश करयो, अऊर उन्को नगर ख जलाय दियो।
8 Tunc ait servis suis: Nuptiæ quidem paratæ sunt, sed qui invitati erant, non fuerunt digni.
तब ओन अपनो सेवकों सी कह्यो, ‘बिहाव को जेवन त तैयार हय पर नेवता वालो लोग लायक नहीं होतो।
9 Ite ergo ad exitus viarum, et quoscumque inveneritis, vocate ad nuptias.
येकोलायी सड़क पर जावो अऊर जितनो लोग तुम्ख मिले, सब ख बिहाव को जेवन म बुलाय लावो।’
10 Et egressi servi eius in vias, congregaverunt omnes, quos invenerunt, malos et bonos: et impletæ sunt nuptiæ discumbentium.
येकोलायी उन सेवकों न सड़क म जाय क जो भी बुरो यां भलो, जितनो मिल्यो, सब ख जमा करयो; अऊर बिहाव को घर मेहमानों सी भर गयो।”
11 Intravit autem rex ut viderent discumbentes, et vidit ibi hominem non vestitum veste nuptiali.
“जब राजा मेहमानों ख देखन अन्दर आयो, त ओन उत एक आदमी ख देख्यो, जो बिहाव को कपड़ा पहिन्यो नहीं होतो।
12 Et ait illi: Amice, quomodo huc intrasti non habens vestem nuptialem? At ille obmutuit.
ओन ओको सी कह्यो, ‘हे संगी; तय इत बिहाव को कपड़ा पहिन्यो बिना कसो आय गयो?’ अऊर ऊ कुछ नहीं कह्य सक्यो।
13 Tunc dicit rex ministris: Ligatis manibus, et pedibus eius, mittite eum in tenebras exteriores: ibi erit fletus, et stridor dentium.
तब राजा न सेवकों सी कह्यो, ‘येको हाथ-पाय बान्ध क ओख बाहेर अन्धारो म डाल देवो, उत रोवनो अऊर दात कटरनो होयेंन।’”
14 Multi enim sunt vocati, pauci vero electi.
कहालीकि “बुलायो हुयो त बहुत हंय, पर चुन्यो हुयो थोड़ो हंय।”
15 Tunc abeuntes Pharisæi, consilium inierunt ut caperent eum in sermone.
तब फरीसियों न जाय क आपस म बिचार करयो कि ओख कसो तरह बातों म फसायबोंन।
16 Et mittunt ei discipulos suos cum Herodianis dicentes: Magister, scimus quia verax es, et viam Dei in veritate doces, et non est tibi cura de aliquo: non enim respicis personam hominum:
येकोलायी उन्न अपनो चेलावों ख हेरोदियों को संग ओको जवर यो कहन ख भेज्यो, “हे गुरु, हम जानजे हंय कि तय सच्चो हय, अऊर परमेश्वर को रस्ता सच्चायी सी सिखावय हय, अऊर कोयी कि परवाह नहीं करय, कहालीकि तय आदमियों को चेहरा देख क बाते नहीं करय।
17 dic ergo nobis quid tibi videtur? licet censum dare Cæsari, an non?
येकोलायी हम्ख बता कि तय का सोचय हय? कैसर ख कर देनो उचित हय कि नहाय।”
18 Cognita autem Iesus nequitia eorum, ait: Quid me tentatis hypocritæ?
यीशु न उन्की दुष्ट हरकत जान क कह्यो, “हे कपटियों, मोख कहाली परखय हय?
19 Ostendite mihi numisma census. At illi obtulerunt ei denarium.
मोख ऊ सिक्का दिखाव।” जेकोसी कर चुकायो जावय हय। तब हि ओको जवर एक सिक्का ले क आयो।
20 Et ait illis Iesus: Cuius est imago hæc, et superscriptio?
ओन उन्को सी पुच्छ्यो, “यो चेहरा अऊर नाम कौन्को आय?”
21 Dicunt ei: Cæsaris. Tunc ait illis: Reddite ergo quæ sunt Cæsaris, Cæsari: et quæ sunt Dei, Deo.
उन्न ओको सी कह्यो, “कैसर को हय।” तब यीशु उन्को सी कह्यो, “जो कैसर को हय, ऊ कैसर ख देवो; अऊर जो परमेश्वर को हय, ऊ परमेश्वर ख देवो।”
22 Et audientes mirati sunt, et relicto eo abierunt.
यो सुन क उन्न अचम्भित भयो, अऊर हि यीशु छोड़ क चली गयो।
23 In illo die accesserunt ad eum Sadducæi, qui dicunt non esse resurrectionem: et interrogaverunt eum,
उच दिन सदूकी जो कह्य हंय कि मरयो हुयो को पुनरुत्थान हयच नहाय, यीशु को जवर आयो अऊर ओको सी पुच्छ्यो,
24 dicentes: Magister, Moyses dixit: Si quis mortuus fuerit non habens filium, ut ducat frater eius uxorem illius, et suscitet semen fratri suo.
“हे गुरु, मूसा न कह्यो होतो, कि यदि कोयी आदमी बिना सन्तान मर जाये, त ओको भाऊ ओकी पत्नी सी बिहाव कर क् अपनो भाऊ लायी सन्तान पैदा करे।
25 Erant autem apud nos septem fratres: et primus, uxore ducta, defunctus est: et non habens semen, reliquit uxorem suam fratri suo.
अब हमरो इत सात भाऊ होतो; पहिलो बिहाव कर क् मर गयो, अऊर सन्तान नहीं होन को वजह अपनी विधवा पत्नी ख अपनो भाऊ लायी छोड़ गयो।
26 Similiter secundus, et tertius usque ad septimum.
यो तरह दूसरों अऊर तीसरो न भी करयो, अऊर सातों तक योच भयो।
27 Novissime autem omnium et mulier defuncta est.
सब को बाद आखरी म वा बाई भी मर गयी।
28 In resurrectione ergo cuius erit de septem uxor? omnes enim habuerunt eam.
येकोलायी पुनरुत्थान को समय जीन्दो होन पर वा उन सातों म सी कौन्की पत्नी होयेंन? कहालीकि वा सब की पत्नी भय गयी होती।”
29 Respondens autem Iesus, ait illis: Erratis nescientes Scripturas, neque virtutem Dei.
यीशु न उन्ख उत्तर दियो, “तुम पवित्र शास्त्र अऊर परमेश्वर को सामर्थ नहीं जानय; यो वजह सी भूल म पड़्यो हय।
30 In resurrectione enim neque nubent, neque nubentur: sed erunt sicut Angeli Dei in cælo.
कहालीकि पुनरुत्थान को समय जीन्दो होनो पर हि नहीं बिहाव करेंन अऊर नहीं बिहाव म दियो जायेंन पर स्वर्ग म परमेश्वर को दूतों को जसो होयेंन।
31 De resurrectione autem mortuorum non legistis quod dictum est a Deo dicente vobis:
पर मरयो हुयो को जीन्दो होन को बारे म का तुम न यो वचन नहीं पढ़्यो जो परमेश्वर न तुम सी कह्यो:
32 Ego sum Deus Abraham, et Deus Isaac, et Deus Iacob? Non est Deus mortuorum, sed viventium.
‘मय अब्राहम को परमेश्वर, अऊर इसहाक को परमेश्वर, अऊर याकूब को परमेश्वर आय?’ ऊ मरयो हुयो को नहाय, पर जीन्दो को परमेश्वर आय।”
33 Et audientes turbæ, mirabantur in doctrina eius.
यो सुन क लोग ओकी शिक्षा सी अचम्भित भयो।
34 Pharisæi autem audientes quod silentium imposuisset Sadducæis, convenerunt in unum:
जब फरीसियों न सुन्यो कि यीशु न सदूकियों को मुंह बन्द कर दियो, त हि जमा भयो।
35 et interrogavit eum unus ex eis legis doctor, tentans eum:
उन्म सी एक व्यवस्था को शिक्षक न ओख परखन लायी ओको सी पुच्छ्यो,
36 Magister, quod est mandatum magnum in lege?
“हे गुरु, व्यवस्था म कौन सी आज्ञा सब सी बड़ी हय?”
37 Ait illi Iesus: Diliges Dominum Deum tuum ex toto corde tuo, et in tota anima tua, et in tota mente tua.
ओन ओको सी कह्यो, “तय परमेश्वर अपनो प्रभु सी अपनो पूरो दिल अऊर अपनो पूरो जीव अऊर अपनी पूरी मन को संग प्रेम रख।
38 Hoc est maximum, et primum mandatum.
बड़ी अऊर मुख्य आज्ञा त योच आय।
39 Secundum autem simile est huic: Diliges proximum tuum, sicut teipsum.
अऊर ओकोच जसो यो दूसरी भी हय कि तय अपनो पड़ोसी सी अपनो जसो प्रेम रख।
40 In his duobus mandatis universa lex pendet, et prophetæ.
योच दोय आज्ञायें पूरी व्यवस्था अऊर भविष्यवक्तावों को आधार हंय।”
41 Congregatis autem Pharisæis, interrogavit eos Iesus,
जब फरीसी जमा होतो, त यीशु न उन्को सी पुच्छ्यो,
42 dicens: Quid vobis videtur de Christo? cuius filius est? Dicunt ei: David.
“मसीह को बारे म तुम का सोचय हय? ऊ कौन्को बेटा आय?” उन्न ओको सी कह्यो, “दाऊद को।”
43 Ait illis: Quomodo ergo David in Spiritu vocat eum Dominum, dicens:
ओन उन्को सी पुच्छ्यो, “त दाऊद आत्मा म होय क ओख ‘प्रभु’ कहाली कह्य हय?”
44 Dixit Dominus Domino meo: sede a dextris meis, donec ponam inimicos tuos scabellum pedum tuorum?
“प्रभु न, मोरो प्रभु सी कह्यो, मोरो दायो बैठ, जब तक कि मय तोरो दुश्मनों ख तोरो पाय को खल्लो नहीं कर देऊं।”
45 Si ergo David vocat eum Dominum, quomodo filius eius est?
“जब दाऊद ओख ‘प्रभु’ कह्य हय, त ऊ ओको बेटा कसो भयो?”
46 Et nemo poterat ei respondere verbum: neque ausus fuit quisquam ex illa die eum amplius interrogare.
कोयी भी ओख कुछ उत्तर नहीं दे सक्यो। अऊर ऊ दिन सी कोयी ख फिर ओको सी अऊर प्रश्न करन को साहस नहीं भयो।

< Mattheum 22 >