< Ecclesiastes 11 >

1 Mitte panem tuum super transeuntes aquas: quia post tempora multa invenies illum.
अपनी रोटी जल के ऊपर डाल दे, क्योंकि बहुत दिन के बाद तू उसे फिर पाएगा।
2 Da partem septem, necnon et octo: quia ignoras quid futurum sit mali super terram.
सात वरन् आठ जनों को भी भाग दे, क्योंकि तू नहीं जानता कि पृथ्वी पर क्या विपत्ति आ पड़ेगी।
3 Si repletæ fuerint nubes, imbrem super terram effundent. Si ceciderit lignum ad Austrum, aut ad Aquilonem, in quocumque loco ceciderit, ibi erit.
यदि बादल जलभरे हैं, तब उसको भूमि पर उण्डेल देते हैं; और वृक्ष चाहे दक्षिण की ओर गिरे या उत्तर की ओर, तो भी जिस स्थान पर वृक्ष गिरेगा, वहीं पड़ा रहेगा।
4 Qui observat ventum, non seminat: et qui considerat nubes, numquam metet.
जो वायु को ताकता रहेगा वह बीज बोने न पाएगा; और जो बादलों को देखता रहेगा वह लवने न पाएगा।
5 Quomodo ignoras quæ sit via spiritus, et qua ratione compingantur ossa in ventre prægnantis; sic nescis opera Dei, qui Fabricator est omnium.
जैसे तू वायु के चलने का मार्ग नहीं जानता और किस रीति से गर्भवती के पेट में हड्डियाँ बढ़ती हैं, वैसे ही तू परमेश्वर का काम नहीं जानता जो सब कुछ करता है।
6 Mane semina semen tuum, et vespere ne cesset manus tua: quia nescis quid magis oriatur, hoc aut illud: et si utrumque simul, melius erit.
भोर को अपना बीज बो, और साँझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सफल होगा, यह या वह या दोनों के दोनों अच्छे निकलेंगे।
7 Dulce lumen, et delectabile est oculis videre solem.
उजियाला मनभावना होता है, और धूप के देखने से आँखों को सुख होता है।
8 Si annis multis vixerit homo, et in his omnibus lætatus fuerit, meminisse debet tenebrosi temporis, et dierum multorum: qui cum venerint, vanitatis arguentur præterita.
यदि मनुष्य बहुत वर्ष जीवित रहे, तो उन सभी में आनन्दित रहे; परन्तु यह स्मरण रखे कि अंधियारे के दिन भी बहुत होंगे। जो कुछ होता है वह व्यर्थ है।
9 Lætare ergo iuvenis in adolescentia tua, et in bono sit cor tuum in diebus iuventutis tuæ, et ambula in viis cordis tui, et in intuitu oculorum tuorum: et scito quod pro omnibus his adducet te Deus in iudicium.
हे जवान, अपनी जवानी में आनन्द कर, और अपनी जवानी के दिनों में मगन रह; अपनी मनमानी कर और अपनी आँखों की दृष्टि के अनुसार चल। परन्तु यह जान रख कि इन सब बातों के विषय में परमेश्वर तेरा न्याय करेगा।
10 Aufer iram a corde tuo, et amove malitiam a carne tua. Adolescentia enim et voluptas vana sunt.
१०अपने मन से खेद और अपनी देह से दुःख दूर कर, क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ हैं।

< Ecclesiastes 11 >