< Romanos 12 >

1 Obsecro itaque vos fratres per misericordiam Dei, ut exhibeatis corpora vestra hostiam viventem, sanctam, Deo placentem, rationabile obsequium vestrum.
प्रिय भाई बहिनो, परमेश्वर की बड़ी दया के प्रकाश में तुम सबसे मेरी विनती है कि तुम अपने शरीर को परमेश्वर के लिए परमेश्वर को भानेवाला जीवन तथा पवित्र बलि के रूप में भेंट करो. यही तुम्हारी आत्मिक आराधना की विधि है.
2 Et nolite conformari huic sæculo, sed reformamini in novitate sensus vestri: ut probetis quæ sit voluntas Dei bona, et beneplacens, et perfecta. (aiōn g165)
इस संसार के स्वरूप में न ढलो, परंतु मन के नए हो जाने के द्वारा तुममें जड़ से परिवर्तन हो जाए कि तुम परमेश्वर की इच्छा को, जो उत्तम, ग्रहण करने योग्य तथा त्रुटिहीन है, सत्यापित कर सको. (aiōn g165)
3 Dico enim per gratiam quæ data est mihi, omnibus qui sunt inter vos, non plus sapere quam oportet sapere, sed sapere ad sobrietatem: et unicuique sicut Deus divisit mensuram fidei.
मुझे दिए गए बड़े अनुग्रह के द्वारा मैं तुममें से हर एक को संबोधित करते हुए कहता हूं कि कोई भी स्वयं को अधिक न समझे, परंतु स्वयं के विषय में तुम्हारा आंकलन परमेश्वर द्वारा दिए गए विश्वास के परिमाण के अनुसार हो.
4 Sicut enim in uno corpore multa membra habemus, omnia autem membra non eumdem actum habent:
यह इसलिये कि जिस प्रकार हमारे शरीर में अनेक अंग होते हैं और सब अंग एक ही काम नहीं करते;
5 ita multi unum corpus sumus in Christo, singuli autem alter alterius membra.
उसी प्रकार हम, जो अनेक हैं, मसीह में एक शरीर तथा व्यक्तिगत रूप से सभी एक दूसरे के अंग हैं.
6 Habentes autem donationes secundum gratiam, quæ data est nobis, differentes: sive prophetiam secundum rationem fidei,
इसलिये कि हमें दिए गए अनुग्रह के अनुसार हममें पवित्र आत्मा द्वारा दी गई भिन्‍न-भिन्‍न क्षमताएं हैं. जिसे भविष्यवाणी की क्षमता प्राप्‍त है, वह उसका उपयोग अपने विश्वास के अनुसार करे;
7 sive ministerium in ministrando, sive qui docet in doctrina,
यदि सेवकाई की, तो सेवकाई में; सिखाने की, तो सिखाने में;
8 qui exhortatur in exhortando, qui tribuit in simplicitate, qui præest in sollicitudine, qui miseretur in hilaritate.
उपदेशक की, तो उपदेश देने में; सहायता की, तो बिना दिखावे के उदारतापूर्वक देने में; जिसे अगुवाई की, वह मेहनत के साथ अगुवाई करे तथा जिसे करुणाभाव की, वह इसका प्रयोग सहर्ष करे.
9 Dilectio sine simulatione: odientes malum, adhærentes bono:
प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; आदर्श के प्रति आसक्त रहो;
10 caritate fraternitatis invicem diligentes: honore invicem prævenientes:
आपसी प्रेम में समर्पित रहो; अन्यों को ऊंचा सम्मान दो;
11 sollicitudine non pigri: spiritu ferventes: Domino servientes:
तुम्हारा उत्साह कभी कम न हो; आत्मिक उत्साह बना रहे; प्रभु की सेवा करते रहो;
12 spe gaudentes: in tribulatione patientes: orationi instantes:
आशा में आनंद, क्लेशों में धीरज तथा प्रार्थना में नियमितता बनाए रखो;
13 necessitatibus sanctorum communicantes: hospitalitatem sectantes.
पवित्र संतों की सहायता के लिए तत्पर रहो, आतिथ्य सत्कार करते रहो.
14 Benedicite persequentibus vos: benedicite, et nolite maledicere.
अपने सतानेवालों के लिए तुम्हारे मुख से आशीष ही निकले—आशीष—न कि शाप;
15 Gaudere cum gaudentibus, flere cum flentibus:
जो आनंदित हैं, उनके साथ आनंद मनाओ तथा जो शोकित हैं, उनके साथ शोक;
16 idipsum invicem sentientes: non alta sapientes, sed humilibus consentientes. Nolite esse prudentes apud vosmetipsos:
तुममें आपस में मेल भाव हो; तुम्हारी सोच में अहंकार न हो परंतु उनसे मिलने-जुलने के लिए तत्पर रहो, जो समाज की दृष्टि में छोटे हैं; स्वयं को ज्ञानवान न समझो.
17 nulli malum pro malo reddentes: providentes bona non tantum coram Deo, sed etiam coram omnibus hominibus.
किसी के प्रति भी दुष्टता का बदला दुष्टता न हो; तुम्हारा स्वभाव सब की दृष्टि में सुहावना हो;
18 Si fieri potest, quod ex vobis est, cum omnibus hominibus pacem habentes:
यदि संभव हो तो यथाशक्ति सभी के साथ मेल बनाए रखो.
19 non vosmetipsos defendentes carissimi, sed date locum iræ. Scriptum est enim: Mihi vindicta: ego retribuam, dicit Dominus.
प्रियजन, तुम स्वयं बदला न लो—इसे परमेश्वर के क्रोध के लिए छोड़ दो, क्योंकि शास्त्र का लेख है: बदला लेना मेरा काम है, प्रतिफल मैं दूंगा. प्रभु का कथन यह भी है:
20 Sed si esurierit inimicus tuus, ciba illum: si sitit, potum da illi: hoc enim faciens, carbones ignis congeres super caput ejus.
यदि तुम्हारा शत्रु भूखा है, उसे भोजन कराओ, यदि वह प्यासा है, उसे पानी दो; ऐसा करके तुम उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगा दोगे.
21 Noli vinci a malo, sed vince in bono malum.
बुराई से न हारकर बुराई को भलाई के द्वारा हरा दो.

< Romanos 12 >