< Psalmorum 53 >
1 In finem, pro Maëleth intelligentiæ David. [Dixit insipiens in corde suo: Non est Deus. Corrupti sunt, et abominabiles facti sunt in iniquitatibus; non est qui faciat bonum.
१प्रधान बजानेवाले के लिये महलत की राग पर दाऊद का मश्कील मूर्ख ने अपने मन में कहा, “कोई परमेश्वर है ही नहीं।” वे बिगड़ गए, उन्होंने कुटिलता के घिनौने काम किए हैं; कोई सुकर्मी नहीं।
2 Deus de cælo prospexit super filios hominum, ut videat si est intelligens, aut requirens Deum.
२परमेश्वर ने स्वर्ग पर से मनुष्यों के ऊपर दृष्टि की ताकि देखे कि कोई बुद्धि से चलनेवाला या परमेश्वर को खोजनेवाला है कि नहीं।
3 Omnes declinaverunt; simul inutiles facti sunt: non est qui faciat bonum, non est usque ad unum.
३वे सब के सब हट गए; सब एक साथ बिगड़ गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं।
4 Nonne scient omnes qui operantur iniquitatem, qui devorant plebem meam ut cibum panis?
४क्या उन सब अनर्थकारियों को कुछ भी ज्ञान नहीं, जो मेरे लोगों को रोटी के समान खाते है पर परमेश्वर का नाम नहीं लेते है?
5 Deum non invocaverunt; illic trepidaverunt timore, ubi non erat timor. Quoniam Deus dissipavit ossa eorum qui hominibus placent: confusi sunt, quoniam Deus sprevit eos.
५वहाँ उन पर भय छा गया जहाँ भय का कोई कारण न था। क्योंकि यहोवा ने उनकी हड्डियों को, जो तेरे विरुद्ध छावनी डाले पड़े थे, तितर-बितर कर दिया; तूने तो उन्हें लज्जित कर दिया इसलिए कि परमेश्वर ने उनको त्याग दिया है।
6 Quis dabit ex Sion salutare Israël? cum converterit Deus captivitatem plebis suæ, exsultabit Jacob, et lætabitur Israël.]
६भला होता कि इस्राएल का पूरा उद्धार सिय्योन से निकलता! जब परमेश्वर अपनी प्रजा को बन्धुवाई से लौटा ले आएगा। तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।