< Marcum 6 >

1 Et egressus inde, abiit in patriam suam: et sequebantur eum discipuli sui:
मसीह येशु वहां से अपने गृहनगर आए. उनके शिष्य उनके साथ थे.
2 et facto sabbato cœpit in synagoga docere: et multi audientes admirabantur in doctrina ejus, dicentes: Unde huic hæc omnia? et quæ est sapientia, quæ data est illi, et virtutes tales, quæ per manus ejus efficiuntur?
शब्बाथ पर वे यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. उनको सुन उनमें से अनेक चकित हो कहने लगे. “कहां से प्राप्‍त हुआ इसे यह सब? कहां से प्राप्‍त हुआ है इसे यह बुद्धि कौशल और हाथों से यह अद्भुत काम करने की क्षमता?
3 Nonne hic est faber, filius Mariæ, frater Jacobi, et Joseph, et Judæ, et Simonis? nonne et sorores ejus hic nobiscum sunt? Et scandalizabantur in illo.
क्या यह वही बढ़ई नहीं? क्या यह मरियम का पुत्र तथा याकोब, योसेस, यहूदाह तथा शिमओन का भाई नहीं? क्या उसी की बहनें हमारे मध्य नहीं हैं?” इस पर उन्होंने मसीह येशु को अस्वीकार कर दिया.
4 Et dicebat illis Jesus: Quia non est propheta sine honore nisi in patria sua, et in domo sua, et in cognatione sua.
मसीह येशु ने उनसे कहा, “भविष्यवक्ता हर जगह सम्मानित होता है सिवाय अपने स्वयं के नगर में, अपने संबंधियों तथा परिवार के मध्य.”
5 Et non poterat ibi virtutem ullam facere, nisi paucos infirmos impositis manibus curavit:
कुछ रोगियों पर हाथ रख उन्हें स्वस्थ करने के अतिरिक्त मसीह येशु वहां कोई अन्य अद्भुत काम न कर सके.
6 et mirabatur propter incredulitatem eorum, et circuibat castella in circuitu docens.
मसीह येशु को उनके अविश्वास पर बहुत ही आश्चर्य हुआ. मसीह येशु नगर-नगर जाकर शिक्षा देते रहे.
7 Et vocavit duodecim: et cœpit eos mittere binos, et dabat illis potestatem spirituum immundorum.
उन्होंने उन बारहों को बुलाया और उन्हें दुष्टात्माओं पर अधिकार देते हुए उन्हें दो-दो करके भेज दिया.
8 Et præcepit eis ne quid tollerent in via, nisi virgam tantum: non peram, non panem, neque in zona æs,
मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिए, “इस यात्रा में छड़ी के अतिरिक्त अपने साथ कुछ न ले जाना—न भोजन, न झोली और न पैसा.
9 sed calceatos sandaliis, et ne induerentur duabus tunicis.
हां, चप्पल तो पहन सकते हो किंतु अतिरिक्त बाहरी वस्त्र नहीं.”
10 Et dicebat eis: Quocumque introieritis in domum, illic manete donec exeatis inde:
आगे उन्होंने कहा, “जिस घर में भी तुम ठहरो उस नगर से विदा होने तक वहीं रहना.
11 et quicumque non receperint vos, nec audierint vos, exeuntes inde, excutite pulverem de pedibus vestris in testimonium illis.
जहां कहीं तुम्हें स्वीकार न किया जाए या तुम्हारा प्रवचन न सुना जाए, वह स्थान छोड़ते हुए अपने पैरों की धूल वहीं झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध प्रमाण हो.”
12 Et exeuntes prædicabant ut pœnitentiam agerent:
शिष्यों ने प्रस्थान किया. वे यह प्रचार करने लगे कि पश्चाताप सभी के लिए ज़रूरी है.
13 et dæmonia multa ejiciebant, et ungebant oleo multos ægros, et sanabant.
उन्होंने अनेक दुष्टात्माएं निकाली तथा अनेक रोगियों को तेल मलकर उन्हें स्वस्थ किया.
14 Et audivit rex Herodes (manifestum enim factum est nomen ejus), et dicebat: Quia Joannes Baptista resurrexit a mortuis: et propterea virtutes operantur in illo.
राजा हेरोदेस तक इसका समाचार पहुंच गया क्योंकि मसीह येशु की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी. कुछ तो यहां तक कह रहे थे, “बपतिस्मा देनेवाले योहन मरे हुओं में से जीवित हो गए हैं. यही कारण है कि मसीह येशु में यह अद्भुत सामर्थ्य प्रकट है.”
15 Alii autem dicebant: Quia Elias est; alii vero dicebant: Quia propheta est, quasi unus ex prophetis.
कुछ कह रहे थे, “वह एलियाह हैं.” कुछ यह भी कहते सुने गए, “वह एक भविष्यवक्ता हैं—अतीत में हुए भविष्यद्वक्ताओं के समान.”
16 Quo audito Herodes ait: Quem ego decollavi Joannem, hic a mortuis resurrexit.
यह सब सुनकर हेरोदेस कहता रहा, “योहन, जिसका मैंने वध करवाया था, जीवित हो गया है.”
17 Ipse enim Herodes misit, ac tenuit Joannem, et vinxit eum in carcere propter Herodiadem uxorem Philippi fratris sui, quia duxerat eam.
स्वयं हेरोदेस ने योहन को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था क्योंकि उसने अपने भाई फ़िलिप्पॉस की पत्नी हेरोदिअस से विवाह कर लिया था.
18 Dicebat enim Joannes Herodi: Non licet tibi habere uxorem fratris tui.
योहन हेरोदेस को याद दिलाते रहते थे, “तुम्हारे लिए अपने भाई की पत्नी को रख लेना व्यवस्था के अनुसार नहीं है.” इसलिये
19 Herodias autem insidiabatur illi: et volebat occidere eum, nec poterat.
हेरोदियास के मन में योहन के लिए शत्रुभाव पनप रहा था. वह उनका वध करवाना चाहती थी किंतु उससे कुछ नहीं हो पा रहा था.
20 Herodes enim metuebat Joannem, sciens eum virum justum et sanctum: et custodiebat eum, et audito eo multa faciebat, et libenter eum audiebat.
हेरोदेस योहन से डरता था क्योंकि वह जानता था कि योहन एक धर्मी और पवित्र व्यक्ति हैं. हेरोदेस ने योहन को सुरक्षित रखा था. योहन के प्रवचन सुनकर वह घबराता तो था फिर भी उसे उनके प्रवचन सुनना बहुत प्रिय था.
21 Et cum dies opportunus accidisset, Herodes natalis sui cœnam fecit principibus, et tribunis, et primis Galilææ:
आखिरकार हेरोदिअस को वह मौका प्राप्‍त हो ही गया: अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने सभी उच्च अधिकारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भोज पर आमंत्रित किया.
22 cumque introisset filia ipsius Herodiadis, et saltasset, et placuisset Herodi, simulque recumbentibus, rex ait puellæ: Pete a me quod vis, et dabo tibi:
इस अवसर पर हेरोदिअस की पुत्री ने वहां अपने नृत्य के द्वारा हेरोदेस और अतिथियों को मोह लिया. राजा ने पुत्री से कहा. “मुझसे चाहे जो मांग लो, मैं दूंगा.”
23 et juravit illi: Quia quidquid petieris dabo tibi, licet dimidium regni mei.
राजा ने शपथ खाते हुए कहा, “तुम जो कुछ मांगोगी, मैं तुम्हें दूंगा—चाहे वह मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो.”
24 Quæ cum exisset, dixit matri suæ: Quid petam? At illa dixit: Caput Joannis Baptistæ.
अपनी मां के पास जाकर उसने पूछा, “क्या मांगूं?” “बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर,” उसने कहा.
25 Cumque introisset statim cum festinatione ad regem, petivit dicens: Volo ut protinus des mihi in disco caput Joannis Baptistæ.
पुत्री ने तुरंत जाकर राजा से कहा, “मैं चाहती हूं कि आप मुझे इसी समय एक थाल में बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर लाकर दें.”
26 Et contristatus est rex: propter jusjurandum, et propter simul discumbentes, noluit eam contristare:
हालांकि राजा को इससे गहरा दुःख तो हुआ किंतु आमंत्रित अतिथियों के सामने ली गई अपनी शपथ के कारण वह अस्वीकार न कर सका.
27 sed misso spiculatore præcepit afferri caput ejus in disco. Et decollavit eum in carcere,
तत्काल राजा ने एक जल्लाद को बुलवाया और योहन का सिर ले आने की आज्ञा दी. वह गया, कारागार में योहन का वध किया
28 et attulit caput ejus in disco: et dedit illud puellæ, et puella dedit matri suæ.
और उनका सिर एक बर्तन में रखकर पुत्री को सौंप दिया और उसने जाकर अपनी माता को सौंप दिया.
29 Quo audito, discipuli ejus venerunt, et tulerunt corpus ejus: et posuerunt illud in monumento.
जब योहन के शिष्यों को इसका समाचार प्राप्‍त हुआ, वे आए और योहन के शव को ले जाकर एक कब्र में रख दिया.
30 Et convenientes Apostoli ad Jesum, renuntiaverunt ei omnia quæ egerant, et docuerant.
प्रेरित लौटकर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया.
31 Et ait illis: Venite seorsum in desertum locum, et requiescite pusillum. Erant enim qui veniebant et redibant multi: et nec spatium manducandi habebant.
मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकांत में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्‍त न हो सका था.
32 Et ascendentes in navim, abierunt in desertum locum seorsum.
वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए.
33 Et viderunt eos abeuntes, et cognoverunt multi: et pedestres de omnibus civitatibus concurrerunt illuc, et prævenerunt eos.
लोगों ने उन्हें वहां जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुंचे.
34 Et exiens vidit turbam multam Jesus: et misertus est super eos, quia erant sicut oves non habentes pastorem, et cœpit docere multa.
जब मसीह येशु तट पर पहुंचे, उन्होंने वहां एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहां मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे.
35 Et cum jam hora multa fieret, accesserunt discipuli ejus, dicentes: Desertus est locus hic, et jam hora præteriit:
दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आकर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है.
36 dimitte illos, ut euntes in proximas villas et vicos, emant sibi cibos, quos manducent.
अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गांवों में जाकर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”
37 Et respondens ait illis: Date illis vos manducare. Et dixerunt ei: Euntes emamus ducentis denariis panes, et dabimus illis manducare.
किंतु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!” शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर इनके लिए इतने का भोजन ले आएं?”
38 Et dicit eis: Quot panes habetis? ite, et videte. Et cum cognovissent, dicunt: Quinque, et duos pisces.
मसीह येशु ने उनसे पूछा, “कितनी रोटियां हैं यहां? जाओ, पता लगाओ!” उन्होंने पता लगाकर उत्तर दिया, “पांच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.”
39 Et præcepit illis ut accumbere facerent omnes secundum contubernia super viride fœnum.
मसीह येशु ने सभी लोगों को झुंड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी.
40 Et discubuerunt in partes per centenos et quinquagenos.
वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुंडों में बैठ गए.
41 Et acceptis quinque panibus et duobus pisces, intuens in cælum, benedixit, et fregit panes, et dedit discipulis suis, ut ponerent ante eos: et duos pisces divisit omnibus.
मसीह येशु ने वे पांच रोटियां और दो मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बांटते जाएं. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं.
42 Et manducaverunt omnes, et saturati sunt.
सभी ने भरपेट खाया.
43 Et sustulerunt reliquias, fragmentorum duodecim cophinos plenos, et de piscibus.
शिष्यों ने शेष रह गए रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए तो बारह टोकरे भर गए.
44 Erant autem qui manducaverunt quinque millia virorum.
जिन्होंने भोजन किया था, उनमें पुरुष ही पांच हज़ार थे.
45 Et statim coëgit discipulos suos ascendere navim, ut præcederent eum trans fretum ad Bethsaidam, dum ipse dimitteret populum.
तुरंत ही मसीह येशु ने शिष्यों को जबरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुंचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे.
46 Et cum dimisisset eos, abiit in montem orare.
उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए.
47 Et cum sero esset, erat navis in medio mari et ipse solus in terra.
रात हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे.
48 Et videns eos laborantes in remigando (erat enim ventus contrarius eis) et circa quartam vigiliam noctis venit ad eos ambulans supra mare: et volebat præterire eos.
मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुंचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे.
49 At illi ut viderunt eum ambulantem supra mare, putaverunt phantasma esse, et exclamaverunt.
उन्हें जल सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई दुष्टात्मा है और वे चिल्ला उठे
50 Omnes enim viderunt eum, et conturbati sunt. Et statim locutus est cum eis, et dixit eis: Confidite, ego sum: nolite timere.
क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे. इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूं! मत डरो! साहस मत छोड़ो!”
51 Et ascendit ad illos in navim, et cessavit ventus. Et plus magis intra se stupebant:
यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यंत चकित रह गए.
52 non enim intellexerunt de panibus: erat enim cor eorum obcæcatum.
रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे.
53 Et cum transfretassent, venerunt in terram Genesareth, et applicuerunt.
झील पार कर वे गन्‍नेसरत प्रदेश में पहुंच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी.
54 Cumque egressi essent de navi, continuo cognoverunt eum:
मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया.
55 et percurrentes universam regionem illam, cœperunt in grabatis eos, qui se male habebant, circumferre, ubi audiebant eum esse.
जहां कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहां ले आते थे.
56 Et quocumque introibat, in vicos, vel in villas aut civitates, in plateis ponebant infirmos, et deprecabantur eum, ut vel fimbriam vestimenti ejus tangerent, et quotquot tangebant eum, salvi fiebant.
मसीह येशु जिस किसी नगर, गांव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.

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