< Iohannis Ii 1 >

1 Senior Electæ dominæ, et natis ejus, quos ego diligo in veritate, et non ego solus, sed et omnes qui cognoverunt veritatem,
मुझ प्राचीन की ओर से उस चुनी हुई महिला और उसके बच्चों के नाम जिनसे मैं सच्चा प्रेम रखता हूँ, और केवल मैं ही नहीं, वरन् वह सब भी प्रेम रखते हैं, जो सच्चाई को जानते हैं।
2 propter veritatem, quæ permanet in nobis, et nobiscum erit in æternum. (aiōn g165)
वह सत्य जो हम में स्थिर रहता है, और सर्वदा हमारे साथ अटल रहेगा; (aiōn g165)
3 Sit vobiscum gratia, misericordia, pax a Deo Patre, et a Christo Jesu Filio Patris in veritate, et caritate.
परमेश्वर पिता, और पिता के पुत्र यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, दया, और शान्ति हमारे साथ सत्य और प्रेम सहित रहेंगे।
4 Gavisus sum valde, quoniam inveni de filiis tuis ambulantes in veritate, sicut mandatum accepimus a Patre.
मैं बहुत आनन्दित हुआ, कि मैंने तेरे कुछ बच्चों को उस आज्ञा के अनुसार, जो हमें पिता की ओर से मिली थी, सत्य पर चलते हुए पाया।
5 Et nunc rogo te domina, non tamquam mandatum novum scribens tibi, sed quod habuimus ab initio, ut diligamus alterutrum.
अब हे महिला, मैं तुझे कोई नई आज्ञा नहीं, पर वही जो आरम्भ से हमारे पास है, लिखता हूँ; और तुझ से विनती करता हूँ, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें।
6 Et hæc est caritas, ut ambulemus secundum mandata ejus. Hoc est enim mandatum, ut quemadmodum audistis ab initio, in eo ambuletis.
और प्रेम यह है कि हम उसकी आज्ञाओं के अनुसार चलें: यह वही आज्ञा है, जो तुम ने आरम्भ से सुनी है और तुम्हें इस पर चलना भी चाहिए।
7 Quoniam multi seductores exierunt in mundum, qui non confitentur Jesum Christum venisse in carnem: hic est seductor, et antichristus.
क्योंकि बहुत से ऐसे भरमानेवाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया; भरमानेवाला और मसीह का विरोधी यही है।
8 Videte vosmetipsos, ne perdatis quæ operati estis: sed ut mercedem plenam accipiatis.
अपने विषय में चौकस रहो; कि जो परिश्रम हम सब ने किया है, उसको तुम न खोना, वरन् उसका पूरा प्रतिफल पाओ।
9 Omnis qui recedit, et non permanet in doctrina Christi, Deum non habet: qui permanet in doctrina, hic et Patrem et Filium habet.
जो कोई आगे बढ़ जाता है, और मसीह की शिक्षा में बना नहीं रहता, उसके पास परमेश्वर नहीं। जो कोई उसकी शिक्षा में स्थिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी।
10 Si quis venit ad vos, et hanc doctrinam non affert, nolite recipere eum in domum, nec Ave ei dixeritis.
१०यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिक्षा न दे, उसे न तो घर में आने दो, और न नमस्कार करो।
11 Qui enim dicit illi Ave, communicat operibus ejus malignis.
११क्योंकि जो कोई ऐसे जन को नमस्कार करता है, वह उसके बुरे कामों में सहभागी होता है।
12 Plura habens vobis scribere, nolui per cartam et atramentum: spero enim me futurum apud vos, et os ad os loqui: ut gaudium vestrum plenum sit.
१२मुझे बहुत सी बातें तुम्हें लिखनी हैं, पर कागज और स्याही से लिखना नहीं चाहता; पर आशा है, कि मैं तुम्हारे पास आऊँ, और सम्मुख होकर बातचीत करूँ: जिससे हमारा आनन्द पूरा हो।
13 Salutant te filii sororis tuæ Electæ.
१३तेरी चुनी हुई बहन के बच्चे तुझे नमस्कार करते हैं।

< Iohannis Ii 1 >